अमेरिका की एक अदालत ने राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के टैरिफ को अवैध ठहराया है. इस फैसले का अमेरिका में बहुत से लोगों ने स्वागत किया है.
अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंपतस्वीर: Chip Somodevilla/Getty Images
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अमेरिका की एक अपीली अदालत ने राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप द्वारा लगाए गए व्यापक टैरिफ को अवैध ठहराते हुए कहा है कि ट्रंप के पास "राष्ट्रीय आपातकाल” कानून के तहत इतने बड़े पैमाने पर आयात शुल्क लगाने का अधिकार नहीं था. अदालत का यह फैसला ट्रंप प्रशासन के लिए एक बड़ा कानूनी झटका है, लेकिन फिलहाल ये टैरिफ बने रहेंगे क्योंकि फैसला 14 अक्टूबर से प्रभावी होगा. इससे पहले तक प्रशासन सुप्रीम कोर्ट में अपील कर सकता है.
कोर्ट का फैसला आने के तुरंत बाद राष्ट्रपति ट्रंप ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रुथ सोशल पर लिखा, "आज एक बेहद पक्षपाती अपीली अदालत ने गलत कहा कि हमारे टैरिफ हटा दिए जाने चाहिए. अगर यह फैसला कायम रहा तो यह अमेरिका को बर्बाद कर देगा.”
वाइट हाउस के प्रवक्ता ने कहा कि राष्ट्रपति ने कानून के तहत ही कार्रवाई की थी और वे इस मामले में "अंतिम जीत” हासिल करने की उम्मीद रखते हैं.
ट्रंप ने इस साल अप्रैल में "लिबरेशन डे” के नाम से आयात पर भारी शुल्क की घोषणा की थी. इसमें उन देशों पर 50 प्रतिशत तक टैरिफ लगाया गया जिनसे अमेरिका को व्यापार घाटा था, जबकि लगभग सभी अन्य देशों पर 10 प्रतिशत "बेसलाइन” शुल्क लगा दिया गया. बाद में कुछ दरें बदली गईं और यूरोपीय संघ से आयात पर 15 प्रतिशत शुल्क 7 अगस्त से लागू किया गया.
ट्रंप का तर्क था कि अमेरिका का बढ़ता व्यापार घाटा राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा है, इसलिए वे कांग्रेस की मंजूरी के बिना ही आयात शुल्क लगा सकते हैं. लेकिन अदालत ने कहा कि 1977 के अंतरराष्ट्रीय आपातकालीन आर्थिक शक्तियां अधिनियम (आईईईपीए) के तहत राष्ट्रपति को ऐसी असीमित शक्तियां देना कांग्रेस का इरादा कभी नहीं रहा होगा.
अदालतकीदलीलेंऔरविरोध
फेडरल सर्किट की अपीली अदालत ने 7-4 के बहुमत से कहा कि राष्ट्रपति ने अपने अधिकारों का अतिक्रमण किया है. हालांकि, अदालत ने तुरंत टैरिफ हटाने का आदेश नहीं दिया और सरकार को अपील का समय दिया.
इस मामले में 12 अमेरिकी राज्यों ने मुकदमा दायर किया था. इनमें 10 डेमोक्रेटिक और 2 रिपब्लिकन सरकारों वाले राज्य हैं जिनका कहना था कि अमेरिकी संविधान के मुताबिक टैक्स और टैरिफ लगाने का अधिकार केवल कांग्रेस के पास है.
कैसे धड़ाम हुई भारत-अमेरिका की ट्रेड डील वार्ता
नरेंद्र मोदी और उनके मित्र डॉनल्ड ट्रंप, साथ मिलकर भारत और अमेरिका की ट्रेड डील का एलान करना चाहते थे. लेकिन अब ये दोस्ती भारी मतभेदों और कड़वाहट में तब्दील हो चुकी है.
तस्वीर: Manish Swarup/AP/picture alliance
फरवरी में दोस्त को जीत की बधाई
फरवरी 2025 में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमेरिका दौरे पर गए. वॉशिंगटन में उन्होंने दूसरी बार अमेरिकी राष्ट्रपति बने डॉनल्ड ट्रंप से मुलाकात की और उन्हें बधाई दी. दोनों नेताओं ने 2025 के पतझड़ तक एक सीमित कारोबारी समझौते तक पहुंचने की इच्छा जताई. 2030 तक इस डील को 500 अरब के व्यापार तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया.
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मार्च में उत्साह ही उत्साह
ट्रेड डील के लिए होने वाली बातचीत को गति देने के लिए भारत के वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल वॉशिंगटन पहुंचे. गोयल ने वहां अमेरिकी वाणिज्य मंत्री होवार्ड लुटनिक और अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि (यूएसटीआर) जैमिसन ग्रीर से बातचीत की. इसके बाद मार्च अंत में अमेरिकी अधिकारी बात आगे बढ़ाने नई दिल्ली आए. इस दौरान भारत ने कहा कि बातचीत अच्छी तरह आगे जा रही है.
तस्वीर: Deepak Gupta/Hindustan Times/IMAGO
जल्द साथ निभाने के वादे
मार्च में ही नई दिल्ली में भारतीय अधिकारियों से बातचीत के दौरान ही यूएसटीआर ने भारत के महंगे आयात शुल्कों की तरफ ध्यान दिलाया. अमेरिकी अधिकारियों ने भारत के सामने नॉन-टैरिफ बैरियर, डेटा कानून और पेटेंट संबंधी मुद्दे भी उठाए, लेकिन इन शिकायतों के निपटारे के संकेत भी मिलने लगे.
तस्वीर: INDRANIL MUKHERJEE/AFP
अप्रैल में भारत आए वैंस और पहलगाम हमला
अमेरिकी उप राष्ट्रपति जेडी वैंस परिवार समेत भारत के दौरे पर आए. इस दौरान दोनों पक्षों ने द्विपक्षीय बातचीत को संदर्भ देने वाली शर्तें भी तय कर लीं. भारतीय अधिकारियों ने कहा कि दोनों देशों के बीच 9 जुलाई की डेडलाइन से पहले ही एक डील हो सकती है. लेकिन वैंस के दौरे के दौरान ही 22 अप्रैल को पहलगाम में पर्यटकों पर जानलेवा हमला हुआ.
तस्वीर: India's Press Information Bureau/Handout via REUTERS
बातचीत के बीच ऑपरेशन सिंदूर
ट्रेड डील पर बातचीत को आगे बढ़ाने पीयूष गोयल फिर अमेरिका गए. उनके साथ मुख्य मध्यस्थ राजेश अग्रवाल भी थे. नई दिल्ली ने उम्मीद जताई कि एक पंसदीदा नतीजा जल्द ही सामने आ सकता है. लेकिन इसी दौरान भारत ने पहलगाम हमले के जवाब में पाकिस्तान पर हवाई हमले कर दिए. इन हमलों के साथ ही चार दिन तक भारत और पाकिस्तान भीषण सैन्य संघर्ष छिड़ा.
तस्वीर: ANI Photo/Shrikant Singh
मई में ट्रंप का सीजफायर पोस्ट
10 मई 2025 को अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रुथ सोशल पर दावा किया कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच भीषण परमाणु युद्ध की आशंका को टालते हुए, संघर्ष विराम करा दिया है. पाकिस्तान ने ट्रंप के इस बयान का स्वागत किया और नई दिल्ली ने इसे खारिज करते हुए कहा कि संघर्ष विराम आपसी स्तर पर हुआ और इसमें तीसरे पक्ष की कोई भूमिका नहीं है.
3 जून को अमेरिकी वाणिज्य मंत्री लुटनिक ने कहा कि अमेरिका और भारत प्रगति कर रहे हैं और जल्द ही एक डील फाइनल हो सकेगी. ट्रंप ने भी कहा कि भारत के साथ एक बड़ी ट्रेड डील जल्द होने वाली है. लेकिन इसी दौरान भारतीय अधिकारियों ने कहा कि बातचीत आयात शुल्कों पर फंस गई है. इस बीच ट्रंप बार-बार संघर्ष विराम में अपनी भूमिका वाले बयान देते रहे.
तस्वीर: Eric Lee/UPI Photo/IMAGO
दोस्ती में खटास
20 जून को ओडिशा में एक रैली के दौरान भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहलगाम हमले और ऑपरेशन सिंदूर का जिक्र किया. इसके बाद मोदी ने दावा किया कि उन्होंने ट्रंप के न्योते पर वॉशिंगटन जाने से मना कर दिया है. वहीं ट्रंप नई दिल्ली की नाराजगी के बावजूद संघर्ष विराम में अपनी भूमिका को दोहराते रहे.
तस्वीर: Ben Curtis/AP Photo/picture alliance
जुलाई में, हमसे ना हो पाएगा
जून में अमेरिका गया भारतीय प्रतिनिधि मंडल बिना किसी ठोस नतीजे के जुलाई की शुरुआत में भारत लौट आया. 4 जुलाई को भारतीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि उनका देश किसी डेडलाइन की बाध्यता के लिए ट्रेड डील नहीं करेगा. गोयल ने यह भी कहा कि उनके लिए देश के हित सबसे ऊपर हैं. इसके बाद मध्य जुलाई में यह प्रतिनिधि मंडल फिर वॉशिंगटन गया, लेकिन गतिरोध बना रहा.
तस्वीर: ANI Photo/Hindustan Times/Sipa USA/picture alliance
अति उत्साह के बाद ठंडा रुख
भारतीय संसद के मॉनसून सत्र में पाकिस्तान के साथ संघर्ष विराम का जिक्र करते हुए मोदी ने कहा कि "दुनिया के किसी नेता ने हमें यह ऑपरेशन रोकने के लिए नहीं कहा." इसके बाद भारत सरकार के उच्च स्तरीय नेतृत्व की तरफ से अमेरिका के साथ बातचीत करने की कोई पहल नहीं की गई.
31 जुलाई को अमेरिकी राष्ट्रपति ने भारत पर 25 फीसदी आयात शुल्क लगा दिया. भारत पर टैरिफ लगाने के साथ ही अमेरिकी राष्ट्रपति ने रूस और ईरान से भारत की तेल खरीद पर भी कड़ी आपत्तियां जतानी शुरू कर दीं. इसी दौरान अमेरिका और पाकिस्तान के बीच ट्रेड डील भी हुई.
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कुछ जजों ने असहमति जताते हुए कहा कि आपातकालीन शक्तियों का कानून असंवैधानिक नहीं है और राष्ट्रपति को कुछ हद तक आयात शुल्क लगाने का अधिकार देता है. यह मतभेद ट्रंप के लिए आगे की कानूनी राह खोल सकता है.
अदालत के फैसले से कई छोटे व्यवसायों और उद्योग समूहों ने राहत की सांस ली है. लिबर्टी जस्टिस सेंटर के वकील जेफ़्री श्वाब ने कहा, "यह फैसला दिखाता है कि राष्ट्रपति के पास असीमित शक्ति नहीं है. यह फैसला अमेरिकी व्यवसायों और उपभोक्ताओं को अनिश्चितता और नुकसान से बचाता है.”
नेशनल फॉरेन ट्रेड काउंसिल के अध्यक्ष जेक कॉल्विन ने कहा कि यदि ये टैरिफ अंततः खत्म हो जाते हैं तो यह कांग्रेस के लिए चेतावनी होगी कि वह अपने संवैधानिक अधिकार वापस ले और व्यापार में स्थिरता लाए. डेमोक्रेटिक सेनेटर रॉन वाइडन ने कहा कि वे हर अवसर पर इन "हानिकारक टैक्सों” को हटाने के लिए वोट कराने की कोशिश करेंगे.
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भारतपरअसर
भारत पहले से ही ट्रंप प्रशासन के भारी टैरिफ का शिकार है. रूस से तेल आयात जारी रखने के कारण अमेरिका ने भारतीय उत्पादों पर 50 प्रतिशत शुल्क लगा दिया था, जिससे कपड़ा, समुद्री उत्पाद और आभूषण जैसे निर्यात प्रभावित हुए. अब अदालत के ताजा फैसले से यह सवाल उठता है कि क्या भारत पर लगाए गए टैरिफ भी भविष्य में खत्म हो सकते हैं.
ट्रंप के टैरिफ का स्विस घड़ियों की कीमत पर असर
04:25
हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि फिलहाल स्थिति अस्पष्ट है. जब तक सुप्रीम कोर्ट का अंतिम फैसला नहीं आता, तब तक भारत जैसे देशों पर लगे शुल्क लागू रहेंगे. भारत ने कहा है कि वह इन टैरिफों के सामने नहीं झुकेगा.
नई दिल्ली में एक व्यापार विश्लेषक ने कहा, "अगर अमेरिकी अदालतें यह मान लेती हैं कि राष्ट्रपति टैरिफ लगाने का अधिकार नहीं रखते, तो भारत को बड़ी राहत मिल सकती है. लेकिन अभी कहना जल्दबाजी होगी क्योंकि ट्रंप सुप्रीम कोर्ट में अपील करेंगे और वहां फैसला बदल भी सकता है.”
ट्रंप की टैरिफ नीतियों ने वैश्विक व्यापार व्यवस्था को हिला दिया है. यूरोपीय संघ, जापान और अन्य साझेदार देशों के साथ अमेरिका के रिश्ते तनावपूर्ण हुए हैं. आयात पर शुल्क ने अमेरिकी उपभोक्ताओं और उद्योगों के लिए कीमतें बढ़ाईं, जबकि कई निर्यातक देशों को वैकल्पिक बाजार तलाशने पड़ रहे हैं.
अब अदालत का फैसला ट्रंप की व्यापार नीति को चुनौती दे रहा है. अगर सुप्रीम कोर्ट भी यही रुख अपनाता है तो ट्रंप प्रशासन के लिए दबाव बनाने का यह हथियार खत्म हो सकता है. लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि यह कानूनी लड़ाई काफी लंबी चल सकती है.