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अमेरिका में मौत की सजा पर अस्थायी रोक

२ जुलाई २०२१

अमेरिका के अटॉर्नी जनरल ने मौत की सजा देने पर अस्थायी तौर पर रोक लगा दी है. यह रोक केंद्रीय सजाओं पर ही लागू होगी. अब इस सजा की समीक्षा की जाएगी और तब तक किसी फैसले पर अमल नहीं होगा.

तस्वीर: Brendan Smialowski /AFP/Getty Images

पिछली सरकार की नीति को पलटते हुए अमेरिका की जो बाइडेन सरकार ने केंद्र की ओर से दी जाने वाली मौत की सजाओं पर रोक लगा दी है. अटॉर्नी जनरल मेरिक गारलैंड ने यह आदेश जारी किया है. गारलैंड के नेतृत्व में देश का न्याय विभाग मौत की सजा को लेकर अपनी नीतियों में बदलाव ला रहा है.

गुरुवार को मेरिक गारलैंड ने आदेश जारी करते हुए कहा कि संघीय अदालतों द्वारा दी गई मौत की सजाओं का क्रियान्वयन अस्थायी तौर पर स्थगित किया जाता है. गारलैंड ने न्याय विभाग को आदेश दिया कि मौत की सजा की समीक्षा की जाए. वरिष्ठ अधिकारियों को भेजे गए एक संदेश में उन्होंने कहा कि उन्हें अश्वेत लोगों पर इस सजा के असंतुलित प्रभाव की आशंका है. उन्होंने इस बात पर भी ध्यान दिलाया कि बड़ी संख्या में मौत की सजाओं के फैसलों को पलटा जा रहा है.

गारलैंड ने एक बयान में कहा, "न्याय विभाग को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि संघीय अपराधिक न्याय व्यवस्था संविधान और अमेरिका के कानूनों द्वारा दिए गए अधिकार उपलब्ध कराए और वहनीय हो. साथ ही, यह भी कि यह निष्पक्ष व मानवीय हो.” जब तक यह समीक्षा पूरी नहीं होती, तब तक मौत की किसी सजा पर अमल नहीं किया जाएगा.

ट्रंप नीति के उलट

गारलैंड का यह फैसला सरकार की नीति में बड़ा बदलाव है. पूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के कार्यकाल के दौरान अटॉर्नी जरनल रहे विलियम बार के कार्यकाल में बड़ी संख्या में मौत की सजाओं को अंजाम दिया गया. सिर्फ आखरी छह महीने यानी जुलाई 2020 से जनवरी 2021 के बीच 13 लोगों की मौत की सजा पर अमल किया गया, जो कि अमेरिका के 120 साल के इतिहास में एक रिकॉर्ड है.

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बार ने निर्देश जारी किया था कि केंद्रीय सजाओं के अमल के लिए पेंटोबारबिटल दवा का इस्तेमाल किया जाए. आलोचकों का कहना है कि यह दवा सजा पाने वालों को बहुत ज्यादा यातना देती है क्योंकि यह फेफड़ों को नुकसान पहुंचाती है और दवा लेने वाले को डूब कर मरने का अहसास होता है.

इसी साल पद संभालने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने देश में मौत की सजा को खत्म करने का वादा किया है. अमेरिकी मानवाधिकार कार्यकर्ता इस सजा के खिलाफ लंबे समय से संघर्ष कर रहे हैं. हालांकि इस सरकार के आने के बाद न्याय विभाग 2013 की बॉस्टन मैराथन में हुए आतंकी बम धमाके के दोषी की सजा के लिए जोर लगा रहा है.

मौत की सजा, एक चुनौती

मानवाधिकार कार्यकर्ता दुनियाभर में मौत की सजा खत्म कराने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. दूसरे विश्व युद्ध के बाद इस सजा के अमल पर काफी कमी आई है और 107 देशों ने इसे पूरी तरह खत्म कर दिया है. लेकिन आज भी 54 देश ऐसे हैं जहां मौत की सजा को कानूनी दर्जा प्राप्त है. सात देशों ने बहुत कम अपराधों के लिए इसे सीमित कर दिया है, जबकि 27 देश ऐसे हैं जहां पिछले दस साल से ज्यादा समय से मौत की सजा नहीं दी गई है.

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एमनेस्टी इंटरनेशनल के मुताबिक 2020 में 18 देश ऐसे थे जहां कम से कम एक व्यक्ति को मौत की सजा के तहत मारा गया. और यह आंकड़ा चीन व उत्तर कोरिया जैसे देशों को छोड़कर है, जो मौत की सजा के आंकड़े उजागर नहीं करते. एमनेस्टी के मुताबिक 2017 में एक हजार लोगों को मौत की सजा दी गई थी.

रिपोर्टः विवेक कुमार (रॉयटर्स)

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