एक शोध में वैज्ञानिकों ने पाया है कि अमेरिका में चमगादड़ों की संख्या घटने से नवजात शिशुओं की मृत्युदर 8 फीसदी तक बढ़ गई.
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उत्तरी अमेरिका में चमगादड़ों की संख्या में भारी गिरावट के कारण किसानों ने कीटों से फसलों की रक्षा के लिए वैकल्पिक रूप से कीटनाशकों का इस्तेमाल बढ़ा दिया. इससे नवजात शिशुओं की मौतों में इजाफा हुआ है. एक वैज्ञानिक अध्ययन में गुरुवार को यह खुलासा किया गया.
यह अध्ययन ‘साइंस' पत्रिका में प्रकाशित हुआ है, जिसमें बताया गया है कि वैश्विक जैव विविधता में गिरावट का मानवता पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा.
चमगादड़ों के लिए उनकी अम्मा बन गई है यह महिला
पोलैंड में एक महिला चमगादड़ों को जलवायु परिवर्तन के खतरों से बचाने के लिए एक मां की तरह उनका ख्याल रखती हैं. ये चमगादड़ कई बार उनके कपड़ों में लिपटे हुए उनके साथ घर से बाहर भी चले जाते हैं.
तस्वीर: SERGEI GAPON/AFP
"चमगादड़ों की अम्मा"
69 साल की बारबरा गोरेका को स्थानीय लोग "बैट मम" यानी चमगादड़ों की अम्मा कहने लगे हैं. नौकरी से रिटायर होने के बाद से यह पोलिश महिला अपना पूरा समय बीमार चमगादड़ों की देखभाल में बिताती हैं.
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1,600 से ज्यादा चमगादड़
आवासीय इमारत की नौंवीं मंजिल पर बने अपार्टमेंट में गोरेका ने चमगादड़ों का एक तरह से अभयारण्य बना रखा है. यहां पर वो खुद भी रहती हैं और उनके मुताबिक अब तक उन्होंने 1,600 से ज्यादा चमगादड़ों की देखभाल की है.
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16 सालों से चला आ रहा है सिलसिला
चमगादड़ों की देखभाल का यह सिलसिला 16 साल पहले शुरू हुआ जब उनके अपार्टमेंट के वेंटिलेशन डक्ट से चमगादड़ निकलने लगे. इस समय उनके अपार्टमेंट में करीब 3 दर्जन चमगादड़ रहते हैं जो बीमार, घायल या फिर समय से पहले हाइबरनेशन से बाहर आ गए हैं.
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जलवायु परिवर्तन का असर
गोरेका का कहना है कि चमगादड़ों पर जलवायु परिवर्तन के असर और उनके घर में पलते चमगादड़ों की बढ़ती संख्या के बीच सीधा संबंध है. वैज्ञानिक भी बताते हैं कि बढ़ती रोशनी, शोर और गर्मी की वजह से चमगादड़ों का जीवन बहुत ज्यादा प्रभावित हुआ है. उन्हें अकसर भोजन भी नहीं मिलता.
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चमगादड़ों से डर नहीं लगता
गोरेका ने बताया कि पहले उन्हें भी चमगादड़ों से जुड़ी भ्रांतियों और बीमारियों का डर था. बाद में उन्होंने जीवविज्ञानियों से इस बारे में बात की और यह जान गईं कि ऐसी कोई समस्या नहीं है और इनके साथ भी रहा जा सकता है.
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चमगादड़ों की देखभाल
उनके अपार्टमेंट में रहने वाले हर चमगादड़ को एक नाम मिलता है. उन्हें समय पर खाना और दवाइयां दी जाती हैं साथ ही उनकी दूसरी जरूरतों का भी ख्याल रखा जाता है. कुछ चमगादड़ उनके यहां हफ्ते दो हफ्ते रह कर वापस चले जाते हैं लेकिन जिनके शरीर में टूट फूट हुई हो या कोई और बीमारी तो वो ज्यादा समय तक उनके मेहमान बनते हैं.
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चमगादड़ों के लिए वॉलंटियर
गोरेका ना सिर्फ खुद ये काम कर रही हैं बल्कि अभयारण्य के लिए दूसरे वॉलंटियरों को भी तैयार कर रही हैं. ये चमगादड़ों की देखभाल में उनकी मदद करते हैं. छोटे बच्चों तो खासतौर से इसमें काफी दिलचस्पी दिखा रहे हैं.
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चमगादड़ों के बारे में जागरुकता
गोरेका इन चमगादड़ों को लेकर स्कूल में बच्चों के पास भी जाती हैं और उन्हें इनके बारे में जानकारी देती हैं. उनका मकसद है बच्चों को धरती के लिए जरूरी इन जीवों के बारे में बताना और जलवायु परिवर्तन के कारण हो रहे भारी नुकसान के बारे में आगाह करना.
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शोधकर्ता, शिकागो यूनिवर्सिटी के इयाल फ्रैंक ने एएफपी को बताया, "पारिस्थितिकीविद लंबे समय से चेतावनी दे रहे हैं कि हम तेजी से प्रजातियां खो रहे हैं. और इसका मानवता पर गंभीर प्रभाव हो सकता है. हालांकि, इन भविष्यवाणियों के लिए बहुत अधिक ठोस सबूत नहीं थे क्योंकि बड़े पैमाने पर एक पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित करना बहुत मुश्किल होता है."
कैसे हुआ अध्ययन
फ्रैंक ने अपने अध्ययन के लिए एक "प्राकृतिक प्रयोग" का इस्तेमाल किया, जिसमें एक घातक बीमारी ने अचानक चमगादड़ों की संख्या कम कर दी. इससे कीट नियंत्रण में उनका योगदान कम हो गया.
2006 में न्यूयॉर्क से शुरू हुई व्हाइट-नोज सिंड्रोम नामक फफूंद से जन्मी बीमारी ने पूरे अमेरिका में फैलते हुए चमगादड़ों को सर्दियों में हाइबरनेशन से जगा दिया. सर्दियों में कीट कम हो जाते हैं और चमगादड़ों को खाने के लिए कीट नहीं मिले. इससे उनकी ऊर्जा खत्म हो गई और बड़ी संख्या में चमगादड़ों की मौत हो गई.
फ्रैंक ने पूर्वी अमेरिका में सिंड्रोम के फैलाव का अध्ययन किया और प्रभावित और अप्रभावित इलाकों में कीटनाशकों के प्रयोग की तुलना की. उन्होंने पाया कि जिन इलाकों में चमगादड़ों की संख्या घटी थी, वहां कीटनाशकों का इस्तेमाल 31 प्रतिशत बढ़ गया था.
सिर्फ बीमारी नहीं फैलाते हैं चमगादड़
कोरोना वायरस का स्रोत माने जाने की वजह से चमगादड़ बड़े बदनाम हो गए हैं, लेकिन असल में धरती पर इनकी काफी उपयोगिता भी है. क्या आप जानते हैं ये सब इनके बारे में?
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ना कैंसर और ना बुढ़ापा छू सके
साल में केवल एक ही संतान पैदा कर सकने वाले चमगादड़ ज्यादा से ज्यादा 30 से 40 साल ही जीते हैं. लेकिन ये कभी बूढ़े नहीं होते यानि पुरानी पड़ती कोशिकाओं की लगातार मरम्मत करते रहते हैं. इसी खूबी के कारण इन्हें कभी कैंसर जैसी बीमारी भी नहीं होती.
ऑस्ट्रेलिया की झाड़ियों से लेकर मेक्सिको के तट तक - कहीं पेड़ों में लटके, तो कहीं पहाड़ की चोटी पर, कहीं गुफाओं में छुपे तो कहीं चट्टान की दरारों में - यह अंटार्कटिक को छोड़कर धरती के लगभग हर हिस्से में पाए जाते हैं. स्तनधारियों में चूहों के परिवार के बाद संख्या के मामले में चमगादड़ ही आते हैं.
तस्वीर: Imago/Bluegreen Pictures
क्या सारे चमगादड़ अंधे होते हैं
इनकी आंखें छोटी होने और कान बड़े होने की बहुत जरूरी वजहें हैं. यह सच है कि ज्यादातर की नजर बहुत कमजोर होती है और अंधेरे में अपने लिए रास्ता तलाशने के लिए वे सोनार तरंगों का सहारा लेते हैं. अपने गले से ये बेहद हाई पिच वाली आवाज निकालते हैं और जब वह आगे किसी चीज से टकरा कर वापस आती है तो इससे उन्हें अपने आसपास के माहौल का अंदाजा होता है.
तस्वीर: picture-alliance/Mary Evans Picture Library/J. Daniel
काले ही नहीं सफेद भी होते हैं चमगादड़
यह है होंडुरान व्हाइट बैट, जो यहां हेलिकोनिया पौधे की पत्ती में अपना टेंट सा बना कर चिपका हुआ है. दुनिया में पाई जाने वाली चमगादड़ों की 1,400 से भी अधिक किस्मों में से केवल पांच किस्में सफेद होती हैं और यह होंडुरान व्हाइट बैट तो केवल अंजीर खाते हैं.
चमगादड़ों को आम तौर पर दुष्ट खून चूसने वाले जीव समझा जाता है लेकिन असल में इनकी केवल तीन किस्में ही सचमुच खून पीती हैं. जो पीते हैं वे अपने दांतों को शिकार की त्वचा में गड़ा कर छेद करते हैं और फिर खून पीते हैं. यह किस्म अकसर सोते हुए गाय-भैंसों, घोड़ों को ही निशाना बनाते हैं लेकिन जब कभी ये इंसानों में दांत गड़ाते हैं तो उनमें कई तरह के संक्रमण और बीमारियां पहुंचा सकते हैं.
कुदरती तौर पर चमगादड़ कई तरह के वायरसों के होस्ट होते हैं. सार्स, मर्स, कोविड-19, मारबुर्ग, निपा, हेन्ड्रा और शायद इबोला का वायरस भी इनमें रहता है. वैज्ञानिकों का मानना है कि इनका अनोखा इम्यूम सिस्टम इसके लिए जिम्मेदार है जिससे ये दूसरे जीवों के लिए खतरनाक बीमारियों के कैरियर बनते हैं. इनके शरीर का तापमान काफी ऊंचा रहता है और इनमें इंटरफेरॉन नामका एक खास एंटीवायरल पदार्थ होता है.
तस्वीर: picture-lliance/Zuma
ये ना होते तो ना आम होते और ना केले
जी हां, आम, केले और आवोकाडो जैसे फलों के लिए जरूरी परागण का काम चमगादड़ ही करते हैं. ऐसी 500 से भी अधिक किस्में हैं जिनके फूलों में परागण की जिम्मेदारी इन पर ही है. तस्वीर में दिख रहे मेक्सिको केलंबी नाक वाले चमगादड़ और इक्वाडोर के ट्यूब जैसे होंठों वाले चमगादड़ अपनी लंबी जीभ से इस काम को अंजाम देते हैं. (चार्ली शील्ड/आरपी)
तस्वीर: picture-alliance/All Canada Photos
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चूंकि कीटनाशकों और खराब स्वास्थ्य परिणामों के बीच संबंध स्थापित हो चुका है, फ्रैंक ने यह भी जांचा कि क्या कीटनाशकों के बढ़ते उपयोग से शिशु मृत्यु दर बढ़ी है. उन्होंने पाया कि कीटनाशकों के बढ़ते इस्तेमाल से शिशु मृत्यु दर लगभग 8 प्रतिशत बढ़ गई, जो कि 1,334 अतिरिक्त शिशु मौतों के बराबर है. यह उन्हीं इलाकों में देखा गया जिन्हें चमगादड़ों की बीमारी ने प्रभावित किया. विशेषज्ञों के मुताबिक संभवतः दूषित पानी और हवा के माध्यम से ये रसायन मानव शरीर में प्रवेश कर रहे हैं.
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वन्यजीवों की सुरक्षा जरूरी
फ्रैंक ने जोर देकर कहा कि यह इत्तेफाक नहीं है, बल्कि चमगादड़ों की संख्या में गिरावट ही शिशु मृत्यु दर में वृद्धि का कारण है, क्योंकि अन्य ग्रामीण समस्याएं जैसे नशीली दवाओं का उपयोग या गरीबी, इस पैटर्न के साथ मेल नहीं खाते.
फ्रैंक ने कहा, "हमें पर्यावरण में कीटनाशकों की उपस्थिति पर बेहतर डेटा की जरूरत है" और इस अध्ययन ने यह भी बताया कि चमगादड़ों की सुरक्षा बेहद जरूरी है. सिंड्रोम के खिलाफ टीके विकसित किए जा रहे हैं, लेकिन चमगादड़ों को आवास की हानि, जलवायु परिवर्तन और पवनचक्कियों से भी खतरा है.
यह अध्ययन वन्यजीवों के नुकसान से पारिस्थितिकी तंत्र पर पड़ने वाले प्रभावों को समझने में मदद करता है. हाल के एक अध्ययन में पाया गया कि विस्कॉन्सिन में भेड़ियों की वापसी से सड़कों पर हिरणों से होने वाली दुर्घटनाओं में कमी आई.
चमगादड़ हैं जरूरी
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कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, सांता बारबरा और ब्रिटिश कोलंबिया विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने एक टिप्पणी में लिखा, "जैव विविधता संकट को रोकना जरूरी है ताकि पारिस्थितिकी तंत्र द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाओं को बनाए रखा जा सके, जिनका तकनीकी विकल्प तैयार करना संभव नहीं हो सकता."