चीनी की कई सरकारी और वाणिज्यिक संस्थाओं को अमेरिका में ब्लैकलिस्ट कर दिया गया है. इसकी वजह शिनचियांग प्रांत में अधिकारों का हनन बताई गई है. अमेरिका ने इस कदम को कारोबार पर होने वाली बातचीत से जुड़ा होने से इनकार किया है.
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अमेरिकी वाणिज्य विभाग ने कहा कि शिनचियांग प्रांत में उइगुर मुसलमानों और दूसरे मुस्लिम अल्पसंख्यकों के अधिकारों का हनन किया जा रहा है. इस वजह से उसने चीन के 28 सरकारी और व्यावसायिक संस्थाओं को ब्लैकलिस्ट कर दिया. जिन कंपनियों और ब्यूरो को ब्लैकलिस्ट किया गया है उनमें शिनचियांग प्रांत के पब्लिक सिक्योरिटी ब्यूरो सहित 19 दूसरी सरकारी एजेंसियां शामिल हैं. चीन की जिन आठ व्यवसायिक कंपनियों को ब्लैकलिस्ट किया गया है उनमें वीडियो सर्विलांस कंपनी हाइकविजन के साथ-साथ चीन की प्रमुख आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस कंपनी सेंस टाइम ग्रुप लिमिटेड और मेगवी टेक्नोलॉजी लिमिटेड शामिल है. ब्लैकलिस्ट वाणिज्यिक कंपनियों में शेजियांग दाहुआ टेक्नोलॉजी, इफलीटेक कंपनी, शियामेन मेइया पिको इंफार्मेशन कंपनी, और यिक्सिन साइंस एंड टेक्नोलॉजी भी शामिल है.
इन संगठनों को वाणिज्य विभाग की 'एनटिटी लिस्ट' में शामिल किया जाएगा. इस सूची में शामिल कंपनियां सरकार से पूर्व अनुमति के बिना अमेरिकी कंपनी से किसी तरह का सामान नहीं खरीद सकती हैं. यह कदम तब उठाया गया है जब वाशिंगटन में अमेरिका और चीनी अधिकारियों के बीच इस हफ्ते उच्च स्तर की व्यापार वार्ता होनी है.
वाणिज्य विभाग ने एक बयान जारी कर कहा, "शिनचियांग उइगुर स्वायत्त क्षेत्र में चीन द्वारा उइगुर और दूसरे मुस्लिम अल्पसंख्यक समूहों को निशाना बनाया जा रहा है. मानवाधिकारों का हनन किया जा रहा है. बड़े पैमाने पर उन्हें हिरासत में लिया गया. उनका दमन किया जा रहा है. उनके ऊपर कड़ी निगरानी रखी जा रही है. ये संस्थाएं चीन के उस अभियान में शामिल है." इस मामले पर प्रतिक्रिया देते हुए चीन की सरकारी मीडिया ने कहा कि वीडियो सर्विलांस कंपनी हाइकविजन ने अमेरिका द्वारा ब्लैकलिस्ट करने के फैसले का विरोध किया है. जिस आधार पर अमेरिका ने यह फैसला लिया है वह पूरी तरह आधारहीन है. इसमें किसी तरह की सच्चाई नहीं है.
इस्लाम के रास्ते से मुसलमानों को हटाता चीन
चीन में इस्लामी चरमपंथ और अलगाववाद से निपटने के लिए मुसलमानों को इस्लाम के रास्ते से हटाकर चीनी नीति और तौर तरीकों का पाठ पढ़ाया जा रहा है. जानिए क्या होता है ऐसे शिविरों में.
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बुरी यादें
चीन में मुसलमानों का ब्रेशवॉश करने के शिविरों में ओमिर बेकाली ने जो झेला, उसकी बुरी यादें अब तक उनके दिमाग से नहीं निकलतीं. इस्लामी चरमपंथ से निपटने के नाम पर चल रहे इन शिविरों में रखे लोगों की सोच को पूरी तरह बदलने की कोशिश हो रही है.
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यातनाएं
सालों पहले चीन से जाकर कजाखस्तान में बसे बेकाली अपने परिवार से मिलने 2017 में चीन के शिनचियांग गए थे कि पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर ऐसे शिविर में डाल दिया. बेकाली बताते हैं कि कैसे कलाइयों के जरिए उन्हें लटकाया गया और यातनाएं दी गईं.
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आत्महत्या का इरादा
बेकाली बताते हैं कि पकड़े जाने के एक हफ्ते बाद उन्हें एक कालकोठरी में भेज दिया गया और 24 घंटे तक खाना नहीं दिया गया. शिविर में पहुंचने के 20 दिन के भीतर जो कुछ सहा, उसके बाद वह आत्महत्या करना चाहते थे.
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क्या होता है
बेकाली बताते हैं कि इन शिविरों में रखे गए लोगों को अपनी खुद की आलोचना करनी होती है, अपने धार्मिक विचारों को त्यागना होता है, अपने समुदाय को छोड़ना होता है. चीनी मुसलमानों के अलावा इन शिविरों में कुछ विदेशी भी रखे गए हैं.
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इस्लाम के 'खतरे'
बेकाली बताते हैं कि शिविरों में इंस्ट्रक्टर लोगों को इस्लाम के 'खतरों' के बारे में बताते थे. कैदियों के लिए क्विज रखी गई थीं, जिनका सभी जवाब न देने वाले व्यक्ति को घंटों तक दीवार पर खड़ा रहना पड़ता था.
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कम्युनिस्ट पार्टी की तारीफ
यहां लोग सवेरे सवेरे उठते हैं, चीनी राष्ट्रगान गाते थे और साढ़े सात बजे चीनी ध्वज फहराते थे. वे ऐसे गीते गाते थे जिनमें कम्युनिस्ट पार्टी की तारीफ की गई हो. इसके अलावा उन्हें चीनी भाषा और इतिहास भी पढ़ाया जाता था.
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धन्यवाद शी जिनपिंग
जब इन लोगों को सब्जियों का सूप और डबल रोटी खाने को दी जाती थी तो उससे पहले उन्हें "धन्यवाद पार्टी! धन्यवाद मातृभूमि! धन्यवाद राष्ट्रपति शी!" कहना पड़ता था. कुल मिलाकर उन्हें चीनी राष्ट्रवाद की घुट्टी पिलाई जाती है.
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नई पहचान
चीन के पश्चिमी शिनचियांग इलाके में चल रहे इन शिविरों का मकसद वहां रखे गए लोगों की राजनीतिक सोच को तब्दील करना, उनके धार्मिक विचारों को मिटाना और उनकी पहचान को नए सिरे से आकार देना है.
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लाखों कैदी
रिपोर्टों के मुताबिक इन शिविरों में हजारों लोगों को रखा गया है. कहीं कहीं उनकी संख्या दस लाख तक बताई जाती है. एक अमेरिकी आयोग ने इन शिविरों को दुनिया में "अल्पसंख्यकों का सबसे बड़ा कैदखाना" बताया है.
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गोपनीय कार्यक्रम
यह कार्यक्रम बेहद गोपनीय तरीके से चल रहा है लेकिन कुछ चीनी अधिकारी कहते हैं कि अलगाववाद और इस्लामी चरमपंथ से निपटने के लिए "वैचारिक परिवर्तन बहुत जरूरी" है. चीन में हाल के सालों में उइगुर चरमपंथियों के हमलों में सैकड़ों लोग मारे गए हैं.
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खोने को कुछ नहीं
बेकाली तो अब वापस कजाखस्तान पहुंच गए हैं लेकिन वह कहते हैं कि चीन में अधिकारियों ने उनके माता पिता और बहन को पकड़ रखा है. उन्होंने अपनी कहानी दुनिया को बताई, क्योंकि "अब मेरे पास खोने को कुछ" नहीं है.
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व्यापार वार्ता से कोई संबंध नहीं
अमेरिका ने कहा कि 28 कंपनियों को ब्लैकलिस्ट करने के फैसले का चीन से होने वाली व्यापार वार्ता का कोई संबंध नहीं है. अमेरिकी और चीन के बीच पिछले कुछ समय से कारोबारी युद्ध चल रहा है. इस सप्ताह इस मुद्दे के सामाधान की कोशिश को लेकर दोनों देशों के अधिकारियों के बीच बातचीत होने वाली है.
मई महीने में अमेरिकी सरकार ने चीनी कंपनी हुआवे को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए चिंता का विषय बताते हुए एनटिटी लिस्ट में शामिल कर दिया था. अगस्त महीने में ट्रंप प्रशासन ने हुआवे और हाइकविजन सहित पांच चीनी कंपनियों से टेलिकम्यूनिकेशन का सामान खरीदने पर रोक लगा दी थी. हुआवे इस बात को खारिज करता रहा है कि उसके ऊपर चीनी सरकार, मिलिट्री या खुफिया सेवा का किसी तरह का नियंत्रण है. कंपनी ने अमेरिकी सरकार द्वारा लगाए गए प्रतिबंध के खिलाफ एक मुकदमा भी दायर किया है.
चीन में रहने वाले उइगुर मुसलमान न तो दाढ़ी रख सकते हैं और न ही धार्मिक कपड़े पहन सकते हैं. चीन सरकार के नए नियमों के मुताबिक उन पर कई बंदिशें लगाई गई हैं. चलिए जानते हैं कौन हैं उइगुर लोग.
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नए नियम, नयी बंदिशें
उइगुर चीन में रहने वाला एक जातीय अल्पसंख्यक समुदाय है. ये लोग सांस्कृतिक रूप से खुद को चीन के मुकाबले मध्य एशियाई देशों के ज्यादा करीब पाते हैं. मुख्यतः चीन के शिनचियांग प्रांत में रहने वाले उइगुर लोग न तो सार्वजनिक रूप से नमाज पढ़ सकते हैं और न ही धार्मिक कपड़े पहन सकते हैं.
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धार्मिक कट्टरपंथ
नए सरकारी नियमों के मुताबिक मस्जिद में जाने के लिए व्यक्ति को कम से 18 साल का होना चाहिए. इसके अलावा अगर कोई सार्वजनिक जगह पर धार्मिक उपदेश देता दिखा तो पुलिस उसके खिलाफ कार्रवाई करेगी. इसके अलावा धार्मिक रीति रिवाज से शादी और अंतिम संस्कार को भी धार्मिक कट्टरपंथ से जोड़कर देखा जा रहा है.
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शक और संदेह
उइगुर लोग शिनचियांग में सदियों से रह रहे हैं. 20वीं सदी की शुरुआत में उन्होंने अपने इलाके को पूर्वी तुर्केस्तान नाम देते हुए आजादी की घोषणा की थी. लेकिन 1949 में माओ त्सेतुंग ने ताकत के साथ वहां चीनी शासन लागू कर दिया. उसके बाद से चीन और उइगुर लोगों के संबंध संदेह और अविश्वास का शिकार हैं.
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बदल गया समीकरण
शिनचियांग पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए चीन की सरकार ने देश के अन्य हिस्सों से हान चीनियों को वहां ले जाकर बसाया है. 1949 में शिनचियांग में हान आबादी सिर्फ छह प्रतिशत थी जो 2010 में बढ़कर 40 प्रतिशत हो गई. शिनचियांग के उत्तरी हिस्से में उइगुर लोग अल्पसंख्यक हो गए हैं.
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'अच्छे' मुसलमान
चीन में उइगुर अकेला मुस्लिम समुदाय नहीं है. हुई मुस्लिम समुदाय को भाषा और सांस्कृतिक लिहाज से हान चीनियों के ज्यादा नजदीक माना जाता है. उन्हें अधिकार भी ज्यादा मिले हुए हैं. अपनी मस्जिदें और मदरसे बनाने के लिए उन्हें चीन की सरकार से मदद भी मिलती है.
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आतंकवाद और अलगाववाद
शिनचियांग की आजादी के लिए लड़ने वाले गुटों में सबसे अहम नाम ईस्ट तुर्केस्तान इस्लामिक मूवमेंट का है. इसके अलावा तुर्केस्तान इस्लामिक पार्टी भी है जिस पर अल कायदा से संबंध रखने के आरोप लगते हैं. इस गुट को शिनचियांग में हुए कई धमाकों के लिए भी जिम्मेदार माना जाता है.
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समृद्धि का दायरा
शिनचियांग क्षेत्रफल के हिसाब से चीन का सबसे बड़ा प्रांत हैं और यह इलाका प्राकृतिक संसाधनों से मालामाल है. कभी सिल्क रूट का हिस्सा रहे इस इलाके में चीन बड़ा निवेश कर रहा है. लेकिन उइगुर लोग चीन की चमक दमक और समृद्धि के दायरे से बाहर दिखाई देते हैं.
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असमानता
हाल के बरसों में शिनचियांग में उइगुर और हान चीनियों के बीच असमानता बढ़ी है. वहां हो रहे तेज विकास के कारण चीन भर से शिक्षित और योग्य हान चीनी पहुंच रहे हैं. उन्हें अच्छी नौकरियां और अच्छे वेतन मिल रहे हैं. वहीं उइगुर लोगों के लिए उतने मौके उलब्ध नहीं हैं.
(रिपोर्ट: रिज्की नुग्रहा/एके)