भारत में बढ़ रही हैं विदेश जाने से रोकने की घटनाएं
२० अक्टूबर २०२२
एक और भारतीय पत्रकार को विदेश जाने से रोक दिया गया. भारत सरकार द्वारा पत्रकारों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को विदेश यात्राओं से रोकने की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं. अमेरिका और अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने इसकी आलोचना की है.
अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने कहा कि उन्हें इस घटना की जानकारी है और वे हालात पर करीबी निगाह बनाए हुए हैं. अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वेदांत पटेल ने मीडिया से बातचीत में कहा, "मीडिया की आजादी समेत लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति साझी प्रतिबद्धता भारत-अमेरिका संबंधों का आधार है.”
भारत की रैंकिंग और गिरी
वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में भारत की रैंकिंग और गिर गई है. 180 देशों में भारत का 150वां नंबर है. क्या है दुनिया में प्रेस फ्रीडम की स्थिति, देखिए...
वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में भारत की रैंकिंग 142 से आठ स्थान गिरकर 150 हो गई है. नेपाल और चीन को छोड़कर उसके बाकी सारे पड़ोसियों की रैंकिंग भी गिरी है.
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सबसे अव्वल नॉर्वे
2022 के प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में नॉर्डिक देश सबसे ऊपर हैं. नॉर्वे नंबर एक पर है. उसके बाद डेनमार्क (2) और स्वीडन (3) का नंबर है. एस्टोनिया चौथे और फिनलैंड पांचवें नंबर पर है.
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सबसे नीचे कौन?
180 देशों की सूची में उत्तर कोरिया को सबसे नीचे रखा गया है. रूस 150 से गिरकर 155वें नंबर पर आ गया है, जबकि यूक्रेन 106 पर है.
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नेपाल का उछाल
इस साल रैंकिंग में नेपाल ने 30 स्थानों की छलांग लगाई है और वह 76वें नंबर पर आ गया है. पिछले साल यह 106वें नंबर पर था.
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भारत के पड़ोसियों की हालत
पाकिस्तान 157वें नंबर पर है. श्रीलंका की रैंकिंग है 146, बांग्लादेश की 162 और म्यांमार की 176. चीन की हालत दो स्थान सुधरी है और वह 175वें नंबर पर आ गया है.
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ध्रुवीकरण का नया युग
रैंकिंग जारी करते हुए रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स ने कहा कि दुनिया में मीडिया ध्रुवीकरण का एक नया युग शुरू हो गया है यानी देशी मीडिया संस्थानों के बीच बंटवारा बहुत स्पष्ट और तीखा हो गया है.
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विकसित देशों की स्थिति
अमेरिका को 42वीं रैंकिंग मिली है. ऑस्ट्रेलिया (39), फ्रांस (26), यूके (24), कनाडा, (19), जर्मनी (16) और न्यूजीलैंड (11) में मीडिया की स्थिति कमोबेश अच्छी मानी गई है.
रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स ने 28 देशों में स्थिति को ‘बेहद खराब’ बताया है. इनमें से सबसे खराब दस देशों में उत्तर कोरिया के अलावा इरिट्रिया, ईरान, तुर्कमेनिस्तान, चीन और म्यांमार शामिल हैं.
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पटेल ने हालांकि इसके बारे में और अधिक जानकारी देने से इनकार कर दिया. उन्होंने यह भी नहीं बताया कि अमेरिकी अधिकारियों ने यह मामला भारत के समक्ष उठाया है या नहीं.
आलोचकों का कहना है कि 2014 में भारतीय जनता पार्टी की सरकार आने के बाद से भारत में मीडिया की आजादी लगातार कम हुई है और खासतौर पर महिला पत्रकारों व मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को ऑनलाइन उत्पीड़न झेलना पड़ रहा है. बुधवार को संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने अपनी मुंबई यात्रा के दौरान एक आयोजन में भी यह मुद्दा उठाया था. यूएन महासचिव अंटोनिया गुटेरेश ने कहा कि भारत को "पत्रकारों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, छात्रों और शिक्षकों के अधिकारों की रक्षा करनी चाहिए.”
मट्टू रॉयटर्स के लिए काम कर रहीं उन तीन पत्रकारों में से एक हैं जिन्हें इस साल का प्रतिष्ठित पुलित्जर पुरस्कार दिया गया है. प्रतिष्ठित मैग्नम फाउंडेशन की फेलो मट्टू ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया कि अधिकारियों ने उनके टिकट पर ‘बिना किसी पूर्वाग्रह के रद्द' की मुहर लगा दी.
उन्होंने कहा, "मुझे समझ नहीं आ रहा कि क्या बोलूं. ऐसा मौका जीवन में किसी को एक बार ही मिलता है. सिर्फ मुझे बिना किसी वजह के रोक लिया गया जबकि अन्य दो को जाने दिया गया. शायद ऐसा मेरे कश्मीरी होने की वजह से है.”
कश्मीरी पत्रकारों की मुश्किल
यह दूसरी बार है जब मट्टू को भारतीय अधिकारियों ने विदेश जाने से रोका है. जुलाई में भी उन्हें इसी तरह एयरपोर्ट पर रोक लिया गया था जब वह अपनी एक फोटो प्रदर्शनी के लिए पेरिस जा रही थीं.
2019 में धारा 370 निरस्त करके जम्मू और कश्मीर को मिला विशेष दर्जा खत्म किए जान के बाद से राज्य में विदेशी पत्रकारों के जाने पर मनाही है और स्थानीय पत्रकारों का कहना है कि उन्हें बेहद दबाव में काम करना पड़ रहा है. यह पहला मामला नहीं है जब भारतीय अधिकारियों ने किसी कश्मीरी पत्रकार को विदेश जाने से रोका है. इससे पहले गार्डियन अखबार के लिए लिखने वाले स्वतंत्र पत्रकार आकाश हसन को जुलाई में दिल्ली से काम के सिलसिले में श्रीलंका जाने से रोका गया था.
यूक्रेन युद्ध में मारे गए ये पत्रकार
यूक्रेन पर रूसी हमले के दौरान अब तक युद्ध को कवर कर रहे छह पत्रकारों और मीडियाकर्मियों की मौत हो गई है. मारे गए कुछ पत्रकार यूक्रेनी और कुछ विदेशी हैं.
तस्वीर: Oksana Baulina/REUTERS
येवहनी सकुन
यूक्रेन के 'लाइव' स्टेशन के लिए बतौर कैमरा ऑपरेटर काम करने वाली 49 वर्षीय येवहनी सकुन यूक्रेन युद्ध में मारी गई पहली मीडियाकर्मी थी. 1 मार्च को सकुन की मृत्यु तब हो गई जब रूस ने कीव में एक टीवी टावर पर हमला किया था. इस हमले में चार अन्य लोगों की भी मौत हुई थी.
तस्वीर: Yaghobzadeh Alfred/ABACA/picture alliance
ब्रेंट रेनॉड
50 साल के ब्रेंट रेनॉड की 13 मार्च को रूसी सैनिकों की फायरिंग में तब मौत हो गई जब वे कीव के बाहरी इलाके में अपनी गाड़ी से जा रहे थे. रेनॉड टाइम स्टूडियो के लिए काम कर रहे थे. वे यूक्रेन में शरणार्थी संकट पर एक प्रोजेक्ट पर काम कर रहे थे.
तस्वीर: Jemal Countess/Getty Images
ऑलेक्जांड्रा कुवशिनोवा
फॉक्स न्यूज के लिए एक काम करने वाली 24 वर्षीय यूक्रेनी ऑलेक्जांड्रा कुवशिनोवा की 14 मार्च को फायरिंग में मौत हो गई थी. वो एक वाहन में अपने सहकर्मियों के साथ यात्रा कर रही थीं.
तस्वीर: Yaghobzadeh Alfred/ABACA/picture alliance
पियरे जक्रजेवस्की
55 वर्षीय पियरे जक्रजेवस्की फॉक्स न्यूज के कैमरामैन थे और होरेनका शहर में कुवशिनोवा के साथ ही यात्रा कर रहे थे. उनकी गाड़ी पर फायरिंग होने से कुवशिनोवा के साथ उनकी भी मौत हो गई. हमले में फॉक्स न्यूज के एक और पत्रकार बेंजामिन हॉल गंभीर रूप से घायल हो गए थे.
तस्वीर: Pierre Zakrzewski/dpa/Fox News/AP/picture alliance
ओक्साना बाउलिना
रूस की खोजी साइट द इनसाइडर के लिए काम करने वाली पत्रकार ओक्साना बाउलिना की कीव में 23 मार्च को रूसी गोलाबारी के दौरान मौत हो गई थी. जिस वक्त रूसी हमला हुआ तब वे तबाही को फिल्मा रही थीं और उसी दौरान वे हमले की चपेट में आ गई.
तस्वीर: Oksana Baulina/REUTERS
माक्सिम लेविन
यूक्रेनी फोटो पत्रकार माक्सिम लेविन, जिन्हें उनके सहयोगी मैक्स कह कर पुकारते थे, वे राजधानी कीव के उत्तरी इलाके में मृत पाए गए थे. रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स ने कहा कि लेविन रॉयटर्स, एसोसिएटेड प्रेस, बीबीसी और यूक्रेनी आउटलेट होरोमाडस्के समेत संगठनों के लिए काम कर चुके थे. लेविन मार्च में कीव के पास विशोरोड के आसपास युद्ध कवर करते हुए गायब हुए थे.
आकाश हसन ने बताया कि महीनों बाद भी उन्हें यह नहीं बताया गया है कि उन्हें किस वजह से यात्रा की इजाजत नहीं दी गई. हसन ने कहा, "पैटर्न को देखें तो लगता है कि ऐसा सिर्फ कश्मीरी पत्रकारों के साथ किया जा रहा है.”
‘कमेटी टु प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स' की बे ली ने भारत के इस कदम की आलोचना की है. उन्होंने एक बयान जारी कर कहा, "मट्टू को देश से बाहर जाने से रोकना एक मनमाना और अतिशय निर्णय था. भारत को कश्मीर में काम कर रहे पत्रकारों के किसी भी तरीके से उत्पीड़न और धमकाने को फौरन बंद करना चाहिए.”
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विदेश जाने से रोकने की घटनाएं
कश्मीरी पत्रकारों के अलावा भी कई ऐसी घटनाएं हुई हैं जबकि भारत सरकार ने लोगों को बाहर जाने से रोका. बीती मार्च में पत्रकार और लेखिका राणा अय्यूब को लंदन जाने से रोक दिया गया था. मनी लॉन्डरिंग के मामले में आरोपी पत्रकार राणा अय्यूब को अधिकारियों ने विमान में नहीं चढ़ने दिया था
तब ट्विटर पर अय्यूब ने लिखा, "मुझे आज मुंबई इमिग्रेशन ने यात्रा करने से रोक दिया. मैंने हफ्तों पहले ही इस बारे में ऐलान कर दिया था. तब भी, उत्सुकता की बात यह है कि ईडी का समन रोक दिए जाने के बाद मेरे इनबॉक्स में पहुंचा.” अय्यूब को ‘इंटरनेशनल सेंटर फॉर जर्नलिस्ट्स' में एक कार्यक्रम में हिस्सा लेना था. वहां वह ‘महिला पत्रकारों के खिलाफ' हिंसा विषय पर बोलने वाली थीं.
यूरोप में भी हो रही है पत्रकारों के खिलाफ हिंसा
डच पत्रकार पेटर आर दे विरीज पर जानलेवा हमले ने यूरोप में लोग सदमें में हैं. प्रेस की आजादी को लेकर यूरोपीय देशों की अच्छी छवि के बावजूद, पत्रकारों के खिलाफ हिंसा के कई उदाहरण हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/Stringer
सदमें में एम्सटर्डम
छह जुलाई 2021 को नीदरलैंड्स की राजधानी एम्सटर्डम के बीचो बीच जाने माने क्राइम रिपोर्टर पेटर आर दे विरीज को एक टेलीविजन स्टूडियो के बाहर अज्ञात हमलावरों ने गोली मार दी. अंदेशा है कि हमले के पीछे संगठित जुर्म की दुनिया का एक गिरोह शामिल है. कई घंटों बाद दो लोगों को हिरासत में लिया गया.
तस्वीर: Evert Elzinga/ANP/picture alliance
एक दमदार पत्रकार
दे विरीज ने अपने देश में संगठित जुर्म पर कई सालों से रिपोर्टिंग की है. इस हमले से पहले वो एक कुख्यात जुर्म सरगना के खिलाफ बयान देने वाले एक सरकारी गवाह के निजी सलाहकार के रूप में काम कर रहे थे. इस व्यक्ति के भाई और वकील की कई सालों पहले हत्या हो गई थी. आज दे विरीज अस्पताल में जिंदगी और मौत की जंग लड़ रहे हैं.
तस्वीर: ANP/imago images
उम्मीद और डर
दे विरीज पर हमले के बाद देश के कई लोगों की प्रतिक्रिया थी, "ऐसा यूरोप के बीचो बीच नहीं हो सकता!" कई लोगों ने हमले के स्थल पर जा कर वहां घायल पत्रकार के लिए शुभकामनाओं के साथ फूल चढ़ाए हैं. दुख की बात यह है कि दे विरीज जानलेवा हमला झेलने वाले पहली यूरोपीय पत्रकार नहीं हैं.
तस्वीर: Koen Van Weel/dpa/picture alliance
लोकतंत्र का जन्म-स्थल
यूनानी क्राइम रिपोर्टर गिओर्गोस करइवाज की एथेंस में नौ अप्रैल को हत्या कर दी गई थी. मुखौटे पहने मोटरसाइकिल पर सवार दो हमलावरों ने करइवाज पर 10 बार गोलियां चलाईं. करइवाज ने देश के नौकरशाहों के भ्रष्टाचार और संगठित जुर्म के गिरोहों पर कई खबरें की थीं.
माल्टा की खोजी पत्रकार डैफ्ने कारूआना गालिजिया ने देश के राजनीतिक और व्यापारिक क्षेत्रों में भ्रष्टाचार को काफी कवर किया है. लेकिन 19 अक्टूबर 2017 को 53 वर्षीय डैफ्नै की गाड़ी में एक बम धमाका कर उनकी हत्या कर दी गई. इस मामले में एक व्यक्ति के जुर्म कबूलने के बाद उसे 15 साल जेल की सजा दे दी गई. मुख्य आरोपी एक जाना माना व्यवसायी है जिसके खिलाफ सुनवाई अभी चल ही रही है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/L. Klimkeit
घर पर ही हत्या
21 फरवरी 2018 को स्लोवाकिया के खोजी पत्रकार यान कुशियाक और उनकी मंगेतर की भाड़े के हत्यारों ने गोली मार कर हत्या कर दी. 28-वर्षीय कुशियाक संगठित जुर्म के गिरोहों, टैक्स चोरी और देश के राजनेताओं और कुलीन लोगों के भ्रष्टाचार का पर्दाफाश करते थे. उनकी हत्याओं के बाद पूरे यूरोप में इतना विरोध हुआ कि प्रधानमंत्री रोबर्ट फीको को इस्तीफा देना पड़ा.
तस्वीर: Mikula Martin/dpa/picture alliance
पोलैंड का हाल
2015 में पोलैंड के एक पत्रकार लुकास मासियाक की एक बॉलिंग क्लब में पीट- पीटकर हत्या कर दी गई थी. मासियाक भ्रष्टाचार, गैर कानूनी नशीली पदार्थों का व्यापार और मनमानी गिरफ्तारियों पर खबरें किया करते थे. पोलैंड की सरकार पर आज भी कई तरह के मानवाधिकारों के उल्लंघन के आरोप लगते हैं.
तस्वीर: Attila Husejnow/SOPA Images/ZUMAPRESS.com/picture alliance
'मैं हूं शार्ली'
जनवरी 2015 में फ्रांसीसी व्यंग्य पत्रिका शार्ली एब्दो के दफ्तर पर किए गए एक हमले में 12 लोग मारे गए थे. तब पूरी दुनिया में सैकड़ों लोगों ने अभिव्यक्ति और प्रेस की आजादी के लिए "मैं हूं शार्ली" हैशटैग के साथ विरोध प्रदर्शन किया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
बर्लिन में तुर्क पत्रकार पर हमला
सात जुलाई 2021 को बर्लिन-स्थित तुर्क पत्रकार एर्क अकारेर पर उनके अपार्टमेंट में तीन लोगों ने हमला कर दिया. एर्क तुर्की के राष्ट्रपति रैचेप तैयप एर्दोआन के कड़े आलोचक हैं. उन्होंने ट्विटर पर लिखा, "मुझ पर बर्लिन में मेरे घर के अंदर चाकुओं और मुक्कों से हमला किया गया." तीनों संदिग्धों ने उन्हें धमकी भी दी कि अगर उन्होंने रिपोर्टिंग बंद नहीं की तो वे वापस आएंगे.
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प्रेस के काम में बाधा
ऐसा नहीं है कि पत्रकारों को हमेशा उनकी जान की चिंता ही लगी रहती है. लेकिन उनके काम की रास्ते में अड़चनें डालने का चलन बढ़ता का रहा है, चाहे ये काम प्रदर्शनकारी करें, पुलिस करे या सुरक्षाबल करें. इस तस्वीर में फ्रांस की दंगा-विरोधी पुलिस नए सुरक्षा कानून के खिलाफ प्रदर्शनों के दौरान एक पत्रकार से भिड़ रही है. (बुराक उनवेरेन)
तस्वीर: Siegfried Modola/Getty Images
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उसके बाद अप्रैल में एमनेस्टी इंडिया के प्रमुख आकार पटेल को तब विदेश जाने से रोक लिया गया जब वह बेंगालूरु से अमेरिका की फ्लाइट में चढ़ने वाले थे. पटेल ने ट्विटर पर बताया, "बेंगलुरू एयरपोर्ट पर भारत से बाहर जाने से रोक दिया गया. सीबीआई अफसर ने फोन करके बताया कि मेरे खिलाफ लुक-आउट नोटिस है क्योंकि मोदी सरकार ने एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया पर मुकदमा किया हुआ है.”
मट्टू को रोके जाने की घटना के बाद एमनेस्टी इंटरनेशनल ने एक बयान जारी कर भारत से ‘मनमाने यात्रा प्रतिबंधों' का इस्तेमाल ना करने का आग्रह किया है. एमनेस्टी ने कहा, "स्वतंत्र आलोचकों की आवाजें दबाने के लिए भारतीय अधिकारियों द्वारा मनमाने यात्रा प्रतिबंधों को एक औजार के रूप में इस्तेमाल करने की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं.
इन मनमाने फैसलों का अधिकार किसी अदालत का आदेश, वॉरंट या लिखित रूप से दी गई वजह नहीं होता, इसलिए कार्यकर्ताओं और पत्रकारों द्वारा इन्हें अदालत में चुनौती भी नहीं दे पाते. इसलिए अधिकारी असहमति को दबाने के लिए लगातार यात्रा प्रतिबंधों का इस्तेमाल कर रहे हैं. यह मानवाधिकारों का खुल्लमखुल्ला उल्लंघन है और फौरन बंद होना चाहिए.”