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राजनीतिउत्तरी अमेरिका

क्या 6 जनवरी को पड़ी फूट से कभी उबर पाएगा अमेरिका?

६ जनवरी २०२२

6 जनवरी 2021 को कैपिटॉल हिल में हुई हिंसा अमेरिकी लोकतंत्र के लिए बड़ा धब्बा साबित हुई. उस घटना के असर से उबरने की राह बहुत मुश्किल नजर आ रही है.

Visual Story 1. Jahrestag der Erstürmung des Kapitols
तस्वीर: Leah Millis/REUTERS

6 जनवरी 2021 की रात. अमेरिकी राजधानी में कैपिटॉल हिल के बाहर 'चुनाव की चोरी' रोकने आए ट्रंप समर्थकों का हुजूम उमड़ा था. फिर कई समर्थक वॉशिंगटन डीसी स्थित कैपिटॉल हिल में घुसे और हंगामे को एक नए चरम पर ले गए. कैपिटॉल में सांसदों को बचाने की कवायदचल रही थी. कुछ को सुरक्षित जगहों पर पहुंचाया गया. कुछ वहीं जमीन पर घुटनों के बल महफूज जगह तलाश रहे थे. ऐसे करीब तीन दर्जन सांसद थे. भीड़ देख-सुनकर वे घरवालों को फोन लगाने लगे, आसपास दिखती चीजों को हथियार बनाने लगे और लड़ने से ज्यादा मरने के लिए मन को तैयार करने लगे.

इराक और अफगानिस्तान तक में सर्विस दे चुके पूर्व आर्मी रेंजर और रेप्रेजेन्टेटिव जेसन याद करते हुए कहते हैं, "मैंने ऊपर देखा, तो अहसास हुआ कि हम फंस गए हैं. वे हाउस फ्लोर खाली करा रहे थे और हमें भूल गए थे." लेकिन, कैपिटॉल हिंसा के पांच महीने बाद जब ट्रंप समर्थकों से सवाल-जवाब किए जा रहे थे, तो उनका कहना था कि वे तो लोकतंत्र को बचाने की असली लड़ाई लड़ रहे थे.

तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के समर्थक घुसे थे कैपिटॉल के अंदर. तस्वीर: Jacquelyn Martin/AP/picture alliance

क्या बंट चुका है अमेरिका का लोकतंत्र?

ये दो पक्ष बताते हैं कि लोकतंत्र के विचार को लेकर अमेरिकी कितनी गहराई से बंट गए हैं. इस विभाजन की एक नजीर 6 जनवरी 2022 को हो रहे कार्यक्रम ही हैं.

पूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप इसी तारीख को लोगों से कुछ कहना चाहते थे. गलत संदेश जाएगा, इस डर से पहले उनकी रिपब्लिकन पार्टी पीछे हटी. फिर वह खुद भी पीछे हट गए. अब जो बोलेंगे, वह मौजूदा राष्ट्रपति जो बाइडेन हैं. वह अमेरिकी लोकतंत्र के भविष्य की बात करेंगे. उनसे उम्मीद की जा रही है कि वह अमेरिकी लोकतंत्र की उस काली तारीख पर कुछ प्रकाश डालेंगे.

इस पहली सालगिरह पर कुछ सांसद मौन रहना चाहते हैं. कुछ मुखर होकर अमेरिकियों को लोकतंत्र का पाठ पढ़ाना चाहते हैं. कुछ ऐसे भी हैं, जो इस हमले को याद ही नहीं करना चाहते हैं. पर गुरुवार को इन कार्यक्रमों में शायद ही कोई रिपब्लिकन शामिल हो. कह पाना मुश्किल है कि उस रात प्रदर्शनकारियों का मुट्ठियां भींचना ज्यादा बुरा थाया आज नेताओं को इतना बंटा हुआ दिखना. अमेरिका में सिविल वॉर से पहले संसद में हिंसा पर 'फील्ड ऑफ ब्लड' किताब लिखने वाले येल के प्रोफेसर जोएन फ्रीमैन इस मौके पर कहते हैं, "6 जनवरी को याद करते हुए लोगों को यह सोचना चाहिए कि लोकतंत्र कितना नाजुक है."

बाइडेन के वादे और समाज में गहरा चुका विभाजन

2020 में 'बराक ओबामा के उत्तराधिकारी' का तमगा लिए जो बाइडेन कह रहे थे कि चुनाव लड़ने के लिए उनकी सबसे प्रेरणा 'देश की आत्मा के लिए लड़ना' है. उन्होंने कहा कि अमेरिकी लोकतंत्र दांव पर है और 6 जनवरी का प्रसंग इसका ट्रेलर है. आज जब बाइडेन बतौर राष्ट्रपति कुछ कहने जा रहे हैं और रिपब्लिकन उससे दूरी बना रहे हैं, तब कइयों की चिंता यह है कि फिर कोई हिंसा न हो जाए. किसी दिन एक वैध चुनाव के नतीजे न बदलने पड़ जाएं. कुछ बाइडेन के बंटे समाज पर मलहम लगाने के वादे पूरे होने के इंतजार में हैं.

तमाम डेमोक्रेट्स और रिपब्लिकंस को लोगों से जुड़ने, उनसे बात करने की जरूरत महसूस हो रही है. इनमें से कई ट्रंप के 'जनमत चोरी कर लिया गया' के आरोप पर यकीन कर चुके हैं. उन्हें लगता है कि 6 जनवरी की घटना बिल्कुल हिंसक नहींथी. दंगे से पहले अमेरिकी लोकतंत्र के खुलेपन की प्रतीक कैपिटॉल में आज के इंतजाम इसके हिंसक होने या न होने की तस्दीक करते हैं. आज इसके तमाम दरवाजे लोगों के लिए इसलिए बंद रहते हैं, क्योंकि इसमें बैठने वाले जनता के प्रतिनिधियों को धमकियां मिलती रहती हैं. सांसद मेटल डिटेक्टर से गुजरते हैं, क्योंकि उनके डेमोक्रेट्स साथियों को भरोसा नहीं है कि वे सदन की कार्यवाही में निहत्थे आएंगे.

कैपिटॉल के अंदर अराजकता के पल.तस्वीर: Manuel Balce Ceneta/AP/picture alliance

ट्रंप के आरोपों का सच और लोकतंत्र की परिभाषाएं

फेडरल और केंद्रीय चुनाव अधिकारी अमेरिकी चुनावों में धांधली से इनकार कर चुके हैं. खुद ट्रंप के अटॉर्नी जनरल का बयान है कि चुनाव में भ्रष्टाचार में आरोपों के कोई पुख्ता सुबूत नहीं हैं. अदालत भी ट्रंप आरोपों को खारिज कर चुकी है. यहां तक कि वे जज भी आरोपों से सहमत नहीं हैं, जिन्हें ट्रंप ने ही नियुक्त किया था. ट्रंप ने छह राज्यों में वोटों की धांधली के आरोप लगाए थे. दि असोसिएटेड प्रेस ने अपने स्तर पर जांच की, तो ढाई करोड़ वोटों में फर्जी मतदान के महज 475 मामले मिले.

जून 2021 में मॉनमाउथ यूनिवर्सिटी ने सर्वे कराया, तो ट्रंप के आधे वोटर्स ने कहा कि दंगे वैध तरीके होने वाले विरोध प्रदर्शन थे. दिसंबर-जनवरी 2021-22 में सीबीएस न्यूज ने सर्वे कराया, तो ट्रंप के 83 फीसदी मतदाताओं ने कहा कि हिंसा के लिए ट्रंप कम या बिल्कुल जिम्मेदार नहींथे. 34 फीसदी ने कहा कि सरकार के खिलाफ कभी-कभी हिंसा जायज है.

सीबीएस न्यूज के सर्वे की दूसरी सूरत यह है कि अमेरिकियों में अपने लोकतंत्र के प्रति गौरव का भाव 2002 में 90 फीसदी से गिरकर अब 54 फीसदी रह गया है. 60 फीसदी मानते हैं कि बाइडेन की जीत पर मुहर लगते समय हुई हिंसा के लिए ट्रंप जिम्मेदार हैं. अलास्का से रिपब्लिकन पार्टी की सेनेटर लीसा मुर्कोव्स्की कहती हैं कि चुनाव में धांधली और जनमत लूटने के आरोप तो अब भी जारी हैं. खतरा तब होता है, जब लोग इसे लेकर उठ खड़े होते हैं.

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ट्रंप और 2024 का चुनाव लड़ने की ख्वाहिशें

ट्रंप अमेरिकी इतिहास के पहले और इकलौते राष्ट्रपति हैं, जिन पर दो बार महाभियोग लगाया गया. सीबीएस के सर्वे में 26 फीसदी अमेरिकी मानते हैं कि ट्रंप को 2024 में चुनाव लड़ना चाहिए. एक सुर में हिंसा का विरोध करने के बाद कई रिपब्लिकन ट्रंप के वफादार बने रहे. उनके साथी कहते हैं कि इस साल मध्यावधि चुनावों में वह अपनी दावेदारी मजबूत करेंगे.

समर्थकों की करतूतों के बाद ट्रंप का पार्टी से बाहर होना तय माना जा रहा था, लेकिन एक साल बाद पार्टी पर उनकी पकड़ बमुश्किल ही कमजोर है. वह रिपब्लिकन पार्टी के शीर्षस्थ नेता हैं और 2024 के स्वाभाविक उम्मीदवार भी. 6 जनवरी की घटना में अपनी भूमिका मानने के बजाय वह कहते रहे हैं कि असल राजद्रोह 6 जनवरी नहीं, 3 नवंबर 2020 को हुआ था. इसी दिन जो बाइडेन इलेक्टोरल कॉलेज में 306-232 के अंतर और पॉपुलर वोट में 70 लाख के अंतर से विजेता करार दिए गए थे.

इंसाफ की सूरत क्या होगी

6 जनवरी की हिंसा में पांच लोग मारे गए. सैकड़ों पर मुकदमे हुए और लाखों डॉलर की संपत्तियां बर्बाद हुईं. एफबीआई ने सीसीटीवी कैमरों, यूट्यूब वीडियो और फोन से बनाए गए वीडियोज के आधार पर 727 लोगों पर मुकदमा दर्ज किया. इन पर सरकारी काम में बाधा डालने, खतरनाक हथियारों के इस्तेमाल और हमले करने के आरोप हैं. दोषी पाए गए लोगों में से कुछ पर संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने के जुर्म में 500 डॉलर जैसे मामूली जुर्माने लगाए गए. पुलिस अफसरों पर हमले के दोषी पाए गए लोगों को पांच साल तक जेल की सजा सुनाई गई है. हिंसा के पोस्टर बॉय बने जैकब चैन्स्ली को 41 महीने जेल की सजा सुनाई गई.

हाउस ऑफ रेप्रेजेन्टेटिव्स की एक चयन समिति ने विरोध के लिए उकसाने और इसे आयोजित करनेवालों की जिम्मेदारी तय करने के लिए कई महीनों तक काम किया. ट्रंप के करीबियों से सीमित सहयोग मिलने के बावजूद समिति ने 300 से ज्यादा इंटरव्यू किए और हजारों दस्तावेज इकट्ठे किए. समिति के अध्यक्ष और सांसद बेनी थॉम्पसन ने बताया कि उनके हाथ लगी चीजें बताती हैं कि कुछ लोग अमेरिकी लोकतंत्र की अखंडता कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं. पर सवाल यह है कि 6 जनवरी 2021 को अमेरिकी समाज में जो दरार पड़ी थी, क्या वो इन सजाओं से भरेगी. और क्या किसी के पास 9/11 के हमले के बाद की तरह इससे सामाजिक विभाजन से उबरने की योजना है?

विशाल शुक्ला (रॉयटर्स, एपी)

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