क्या ट्रंप को खुश करने में कामयाब होगा जापान?
२७ अक्टूबर २०२५
राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप अपनी पांच दिनों की एशिया यात्रा के दूसरे चरण में जापान पहुंचे हैं. यहां राजधानी टोक्यो के इंपीरियल पैलेस में वह सम्राट नारुहीतो से मिले.
सम्राट नारुहीतो को 2019 में गद्दी मिली थी. तब से पहली बार वह किसी विदेशी राष्ट्राध्यक्ष से मिले हैं. नारुहीतो की भूमिका सांकेतिक है. असल कूटनीति होगी, ट्रंप और प्रधानमंत्री सनाए ताकाइची की मीटिंग में.
जापान की नई प्रधानमंत्री ताकाइची की यह ट्रंप से पहली मुलाकात होगी. यह बैठक टोक्यो के अकासाका पैलेस में हो रही है. छह साल पहले जब शिंजो आबे के कार्यकाल में ट्रंप जापान आए थे, तब भी यही मुलाकात हुई थी. आबे की ट्रंप से अच्छी दोस्ती थी. ट्रंप के पहले कार्यकाल में वह अमेरिकी राष्ट्रपति के पसंदीदा वर्ल्ड लीडरों में से एक थे.
क्या-क्या है जापान की 'आयरन लेडी'- सनाए ताकाइची के एजेंडे में
आबे, सनाए ताकाइची के मेंटर थे. ट्रंप और आबे की आपसी केमेस्ट्री, मुमकिन है ताकाइची को शुरुआती मदद दे. जैसा कि जापान जाते हुए 'एयर फोर्स वन' पर पत्रकारों से बातचीत में ट्रंप ने कहा भी कि उन्होंने पीएम ताकाइची के बारे में "अद्भुत चीजें" सुनी हैं और वह इस मुलाकात के लिए उत्सुक हैं. ट्रंप ने कहा, "ताकाइची, शिंजो आबे की अहम सहयोगी और दोस्त थीं. वह मेरे दोस्त थे."
पीएम ताकाइची की बड़ी कूटनीतिक परीक्षा
ट्रंप की राजनीतिक शैली के मद्देनजर यह मीटिंग ताकाइची के लिए कार्यकाल की शुरुआत में ही एक बड़ी कूटनीतिक परीक्षा मानी जा रही है. खबरों के मुताबिक, ताकाइची की कोशिश रहेगी कि वह ट्रंप के साथ एक दोस्ताना रिश्ता बना सकें. उन्होंने ट्रंप को एक हंसमुख इंसान बताया.
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ट्रंप की यात्रा से पहले ही जापान की सरकार ने उन्हें संतुष्ट करने का होमवर्क शुरू कर दिया था. ट्रंप प्रशासन को शिकायत थी कि अमेरिकी गाड़ियों को जापानी बाजार से दूर रखा जाता है. अब जापान ने फोर्ड-150 ट्रकों का एक बेड़ा खरीदने का प्रस्ताव रखा है. ट्रंप यह सुनकर खुश हुए और उन्होंने कहा, "उनकी (ताकाइची) पसंद बहुत अच्छी है. वो एक हॉट ट्रक है."
जापानी मीडिया के मुताबिक, सरकार परिवहन मंत्रालय के लिए इन ट्रकों को खरीदना चाहती है. ट्रकों को सड़कों व बुनियादी ढांचों की निगरानी में इस्तेमाल करने की योजना है. हालांकि, फोर्ड ट्रक जापान में कितने फायदेमंद साबित होंगे, यह भी एक सवाल है.
कैसी होगी शिंजो आबे के बाद जापान की विदेश नीति
जापान की सड़कें आमतौर पर संकरी होती हैं. यातायात भी काफी ज्यादा होता है. ऐसे में कई विशेषज्ञ फोर्ड-150 ट्रकों को जापानी सड़कों के लिए अव्यावहारिक बता रहे हैं. इसके अलावा, जापानी अधिकारी अमेरिका से ज्यादा सोयाबीन, एलएनजी और गाड़ियां आयात करने की संभावना पर भी विचार कर रहे हैं.
ट्रंप की उम्मीद, जापान की प्राथमिकताएं
दूसरे विश्व युद्ध के बाद से जापान, अमेरिका का अहम सहयोगी रहा है. मगर, ट्रंप के टैरिफ अभियान और अप्रत्याशित तौर-तरीकों के कारण स्थितियां बदली हैं. ट्रंप चाहते हैं कि करीबी दोस्तों और सहयोगियों समेत दूसरे देश अमेरिका से ज्यादा सामान खरीदें. साथ ही, वो अमेरिका में बड़ा निवेश भी करें.
इस रणनीति के तहत ट्रंप ने जापानी उत्पादों पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगाने की चेतावनी दी थी. टैरिफ को घटाने की चाहत में जापान ने अमेरिका के साथ एक बड़ा व्यापार समझौता किया. इसके तहत जापान 55,000 करोड़ डॉलर का निवेश करने के लिए भी तैयार हुआ.
हालांकि, जापान चाहता है कि यह रकम उसकी कंपनियों को फायदा पहुंचाए. वहीं, ट्रंप चाहते हैं कि इससे अमेरिकी फैक्ट्रियों और एक गैस पाइपलाइन समेत अन्य परियोजनाओं को निवेश मिले.
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मीडिया में सूत्रों के हवाले से आ रही खबरों के मुताबिक, ट्रंप की वर्तमान यात्रा में दोनों देशों के बीच एक एमओयू (मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग) पर दस्तखत होना है. यह जापान के निवेश संबंधी आश्वासन का हिस्सा होगा.
रक्षा पर खर्च बढ़ाएगा जापान
वर्तमान यात्रा में ट्रंप और ताकाइची की बैठक में टैरिफ, क्षेत्रीय सुरक्षा और जापान के रक्षा खर्च पर प्रमुखता से बात होने का अनुमान है. जापान के पूर्व प्रधानमंत्री फूमियो किशिदा ने साल 2027 तक रक्षा खर्च को बढ़ाकर जीडीपी का दो प्रतिशत करने का संकल्प लिया था.
अमेरिकी दबाव और चीन के बढ़ते सैन्य प्रभाव को देखते हुए ताकाइची इस प्रक्रिया को तेज करना चाहती हैं. ट्रंप की यात्रा से ऐन पहले, अपनी नीतियों को सामने रखते हुए ताकाइची ने एलान किया कि वह मौजूदा वित्त वर्ष में ही डिफेंस पर जीडीपी का दो प्रतिशत खर्च करेंगी.
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विशेषज्ञों के मुताबिक, ट्रंप की अपेक्षाओं को देखते हुए यह भी काफी नहीं होगा. अमेरिका चाहता है कि जापान खर्च और बढ़ाए, वो खुद को जीडीपी के पांच प्रतिशत खर्च के पास लाए, जिसका संकल्प नाटो सदस्यों ने लिया है.
एक तरफ चीन की चुनौती, तो दूसरी ओर ट्रंप का रवैया
जापान, चीन की इलाकाई सैन्य उपस्थिति को शंका से देखता है. साल 2022 में जारी डिफेंस पेपर में जापान ने चीन को "सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा" बताया था. हालांकि, चीन उसका सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार भी है.
कार्यभार संभालने के बाद पीएम ताकाइची ने कहा है कि वह अमेरिका और जापान के रिश्तों को नई ऊंचाई पर ले जाना चाहती हैं. उन्होंने अमेरिका के साथ गहरे संबंधों को जापान की सुरक्षा और विदेश नीति का आधार बताया.
निर्यात के बिना भी मजबूत बनी रह पाएगी चीनी अर्थव्यवस्था?
हालांकि, कई विशेषज्ञों के मुताबिक ट्रंप की अमेरिकी हितों पर आधारित नीतियों ने अमेरिका के सबसे करीबी सहयोगियों में भी भविष्य के लिए आशंकाएं पैदा की हैं. ऐसे में, चीन और अमेरिका के बीच संतुलन बनाकर चलना जरूरत भी है और चुनौती भी.
ट्रंप और शी की मीटिंग, ट्रेड डील के फ्रेमवर्क पर सहमति बनी
जापान के बाद ट्रंप दक्षिण कोरिया जाएंगे. वहां वह बुसान शहर में एशिया-पैसिफिक इकॉनमिक कोऑपरेशन (एपीईसी) में हिस्सा लेंगे. 30 अक्तूबर को यहीं ट्रंप और शी जिनपिंग की मुलाकात होनी है. इस बैठक पर दुनियाभर के बाजारों की नजर है.
ट्रंप का चीन से होने वाले आयात पर भारी-भरकम टैरिफ लगाना और चीन का रेअर अर्थ एक्सपोर्ट पर मुट्ठी भींचना, इन मुद्दों का समाधान हो पाएगा या नहीं, यह बड़ा सवाल है. पत्रकारों से बात करते हुए ट्रंप ने भी भरोसा जताया है, "मुझे लगता है कि हमारा चीन के साथ समझौता हो जाएगा." ट्रंप ने कहा, "यह चीन के लिए बहुत अच्छा होगा, हमारे लिए बहुत अच्छा होगा."
ट्रंप के मलेशिया पहुंचने से पहले ही अमेरिका और चीन में उच्च स्तरीय बातचीत शुरू हो गई थी. 26 अक्तूबर को बताया गया कि ट्रंप और शी की वार्ता के मद्देनजर संभावित व्यापारिक समझौते के लिए फ्रेमवर्क तैयार कर लिया है.
चीन के उप वाणिज्य मंत्री ली चेनगांग ने बताया कि अमेरिका के साथ एक शुरुआती सहमति बन गई है और अब दोनों ही पक्ष अपने यहां इनपर सहमति जानेंगे. ली ने कहा, "अमेरिका का रुख सख्त रहा है, वहीं चीन अपने हितों और अधिकारों की रक्षा के लिए दृढ़ है."
शी और ट्रंप की बैठक में क्या होंगे अहम मुद्दे?
1 नवंबर से चीनी उत्पादों पर ट्रंप का लगाया 100 प्रतिशत टैरिफ लागू होने वाला था. ट्रंप के वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट ने कहा है कि वार्ता के कारण फिलहाल टैरिफ लागू नहीं होगा. उन्होंने यह उम्मीद भी जताई कि चीन रेअर अर्थ मिनरल्स के निर्यात पर अभी रोक नहीं लगाएगा.
दुनिया में इन खनिज संसाधनों की आपूर्ति में चीन का दबदबा है. 90 फीसदी से ज्यादा की सप्लाई पर उसका नियंत्रण है. इलेक्ट्रिक गाड़ियों से लेकर सेमीकंडक्टर और मिसाइल निर्माण, हाई-टेक मैन्यूफैक्चरिंग के लिए रेअर अर्थ जरूरी हैं.
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बेसेंट ने यह आशा भी जताई कि चीन, अमेरिकी सोयाबीन की खरीद फिर शुरू कर देगा. व्यापारिक तनाव के बीच, चीन ने सितंबर में अमेरिका से सोयाबीन नहीं खरीदा. इसकी जगह उसने ब्राजील और अर्जेंटीना से सोयाबीन आयात किया. बेसेंट ने संकेत दिया है कि इस मसले पर भी सहमति बन गई है.
एक टेलीविजन प्रोग्राम में बेसेंट ने कहा कि एक बार समझौते की शर्तों का एलान हो जाए, तो अमेरिका के सोयाबीन किसान "इस साल की अपनी पैदावार और आने वाले कई सालों की फसल" के लिए बहुत खुश होंगे.
अमेरिकी और चीनी अधिकारियों ने बताया कि रेअर अर्थ के अलावा व्यापार में वृद्धि, अमेरिकी बंदरगाहों में प्रवेश शुल्क और टिक टॉक की बिक्री भी प्रमुख मुद्दों में शामिल है.