निर्यात चीन की अर्थव्यवस्था का अहम आधार है. क्या बिना निर्यात के चीन डूबने लगेगा?
चीनी सरकार के सामने देश में घरेलू खपत बढ़ाने की अहम चुनौती है तस्वीर: Yan Yan/Xinhua/picture alliance
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चीन अपनी अर्थव्यवस्था को चलाए रखने के लिए निर्यात पर बहुत ज्यादा निर्भर है. अगले हफ्ते स्टॉकहोम में होने जा रही अमेरिका-चीन व्यापार वार्ता में यह मुद्दा सबसे अहम होगा. हालांकि इसकी कम ही संभावना है कि अमेरिका के साथ व्यापार डील हो जाने के बावजूद चीन तुरंत अपनी अर्थव्यवस्था को फिर से संतुलित कर लेगा.
अमेरिका के वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट ने कहा है कि उन्हें चीन के साथ निर्यात के मुद्दे पर बातचीत की उम्मीद है. इसके साथ ही चीन के रूस और ईरान से तेल खरीदने पर भी बातचीत हो सकती है. क्योंकि इससे अमेरिका की ओर से रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों का असर कम होता है.
अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप एक हफ्ते के अंदर जापान, इंडोनेशिया और फिलीपींस के साथ व्यापार डील की घोषणा कर चुके हैं. इसके बाद से चीन के साथ डील होने की उम्मीदें भी बढ़ी हुई हैं.
अमेरिका की चीन से दो मांगें
अमेरिका चाहता है कि चीन दो सहूलियतें दे. पहली, उस क्षमता में कटौती करे, जिसे लेकर अमेरिका और यूरोपीय संघ दोनों ही मानते हैं कि चीन के पास कई उद्योगों, मसलन स्टील और इलेक्ट्रिक गाड़ियों के मामले में आवश्यकता से अधिक उत्पादन की क्षमता है. और दूसरी बात यह कि चीन निर्यात पर कम निर्भर रहे. और ऐसे कदम उठाए कि चीनी ग्राहक ज्यादा खर्च करें और चीन की घरेलू मांग बढ़े.
600 रुपये में बाघ का पेशाब बेच रहा है यह चिड़ियाघर
चीन का एक मशहूर चिड़ियाघर इन दिनों खूब चर्चा में है. लेकिन यहां मौजूद जानवरों की वजह से नहीं बल्कि बाघ का पेशाब बेचने की वजह से. क्या है पूरा किस्सा आइए जानते हैं.
तस्वीर: Nicolas Asfouri/AFP/Getty Images
600 रुपये में बाघ का पेशाब
चीन के सिचुआन प्रांत में मौजूद येन बाइफेंक्सिया वाइल्डलाइफ जू सोशल मीडिया पर इन दिनों चर्चा में है. एक यूजर ने जानकारी दी कि ये चिड़ियाघर 50 युआन (करीब 600 रुपये) में साइबेरियन बाघ का पेशाब बेच रहा है.
चिड़ियाघर की तरफ से ऐसा दावा किया गया है कि बाघ के पेशाब का इस्तेमाल करके गठिया, मोच और मांसपेशियों के दर्द को ठीक किया जा सकता है. चिड़ियाघर ने बोतलों पर बाकायदा लेबल लगाकर 250 ग्राम पेशाब की ये कीमत तय की है.
तस्वीर: Oleksandr Lapin/Ukrinform/IMAGO
वाइन में मिलाना होगा
चिड़ियाघर की तरफ से बताया गया है कि बाघ के पेशाब को सफेद वाइन में मिलाकर अदरक के टुकड़े के साथ लगाने से फायदा मिल सकता है. हालांकि किसी भी तरह की एलर्जी होने पर इसका इस्तेमाल नहीं करने की सलाह भी दी गई है.
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कैसे इकट्ठा करते हैं पेशाब
स्थानीय मीडिया को दी गई जानकारी के अनुसार चिड़ियाघर के कर्मचारियों ने बताया है कि बाघों के पेशाब करने के बाद उसे एक बर्तन में इकट्ठा किया जाता है. हालांकि बिक्री से पहले उसे साफ किए जाने को लेकर कोई जानकारी नहीं दी गई है.
तस्वीर: Waltraud Grubitzsch/dpa/picture-alliance
नहीं हुई ज्यादा बिक्री
इस अनोखी पेशकश के बावजूद फिलहाल इन बोतलों की बिक्री बहुत कम है. रिपोर्ट्स के अनुसार दिन भर में बस दो बोतलें ही बिक पा रही हैं. इस चिड़ियाघर ने 2014 में एक रियलिटी शो के विजेताओं को पुरस्कार के रूप में बाघ का पेशाब दिया था.
माडिया को दी गई जानकारी के अनुसार एक फार्मासिस्ट ने बाघ के पेशाब को पारंपरिक दवा मानने से इनकार कर दिया है. उनका कहना है, "बिना किसी सबूत के इसके बारे में अफवाहें फैलाने से न सिर्फ पारंपरिक चिकित्सा की छवि खराब होती है बल्कि बाघों के संरक्षण को भी नुकसान पहुंचता है."
तस्वीर: I. Beliatski/IFAW/dpa/picture-alliance
नहीं हुआ असर
चिड़ियाघर से बाघ का पेशाब खरीदने वाले एक शख्स ने अपना अनुभव बताते हुए कहा कि मैंने अपने पिता के लिए एक बोतल खरीदी थी लेकिन इसका उन पर कोई असर नहीं हुआ, इसलिए मुझे नहीं लगता यह काम करता है. वहीं एक अन्य शख्स ने इससे बैक्टीरिया फैलने का डर भी बताया है.
तस्वीर: Robert Michael/dpa/picture alliance
बहादुरी और ताकत का प्रतीक बाघ
चीनी संस्कृति में बाघ को बहादुरी और ताकत का प्रतीक बताया गया है. कुछ चीनी ग्रंथों में बाघ की हड्डियों से गठिया और मिर्गी जैसी बीमारियों के इलाज का दावा किया गया है लेकिन चीन की सरकार ने इसके इस्तेमाल को प्रतिबंधित कर दिया है.
तस्वीर: Ondrej Prosicky/BIA/imago images
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अमेरिकी वित्त मंत्री बेसेंट ने वित्तीय समाचार नेटवर्क सीएनबीसी से कहा, "हम कमरे में जो हाथी है, उसके बारे में भी बातचीत कर सकते हैं, यानी उस अहम रीबैलेंसिंग के बारे में जो चीन को करने की जरूरत है." उन्होंने बताया कि वैश्विक मैन्युफैक्चरिंग निर्यात में चीन का हिस्सा करीब 30 फीसदी है. ये इससे बड़ा नहीं हो सकता, इसे सिकुड़ना पड़ेगा.
सरकारी सब्सिडी से सामान बन रहा सस्ता
चीन निर्यात पर अधिक निर्भरता के इस मामले से घरेलू बाजार में निपट भी रहा है. वर्षों से चीन इस पर काम करना चाहता है. हालांकि इसके पीछे चीन का मकसद अमेरिका और अन्य देशों के साथ अपने ट्रेड सरप्लस को कम करने के बजाए घरेलू अर्थव्यवस्था को मजबूत करना है.
बेसेंट से पहले अमेरिका की वित्त मंत्री रहीं जेनेट येलेन ने दुनिया के बाजारों में आई ‘कृत्रिम तरीके से सस्ते बनाए गए चीनी उत्पादों‘ की बाढ़ के लिए चीन में मिलने वाली सरकारी मदद को जिम्मेदार ठहराया था. बीते गुरुवार यूरोपीय संघ और चीनी नेताओं के बीच बैठक हुई. इस बैठक में भी यूरोपीय संघ ने चीन की इलेक्ट्रिक गाड़ियों पर ईयू में लगाए गए टैरिफ के लिए चीनी सरकारी मदद को ही जिम्मेदार ठहराया.
चीन अमेरिका से कौन से कृषि उत्पाद खरीदता है
अमेरिका द्वारा चीनी आयातों पर लगाया अतिरिक्त 10 प्रतिशत शुल्क लागू होने वाला है, जिससे कुल शुल्क 20 प्रतिशत हो जाएगा. चीन ने भी पलटवार की धमकी दी है. चीन अमेरिका से कई उत्पाद खरीदता है, जिनकी बिक्री पर असर पड़ सकता है.
तस्वीर: Kevin Lamarque/REUTERS
अमेरिकी सामान का चीन में गिरता आयात
अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के पहले कार्यकाल में ही अमेरिका और चीन का व्यापार युद्ध शुरू हो गया था. तब से चीन द्वारा आयात किए जाने वाले अमेरिकी कृषि उत्पादों में काफी गिरावट आई है. अब ट्रंप द्वारा लगाए गए नए सीमा-शुल्क के जवाब में चीन भी ऐसी ही कार्रवाई कर सकता है. ऐसे में अंदेशा है कि दोनों देशों के बीच व्यापार में और गिरावट आएगी.
तस्वीर: AFP/Getty Images
अमेरिकी उत्पादों पर असर
चीन के सरकारी मीडिया ग्लोबल टाइम्स ने कहा है कि चीन की जवाबी कार्रवाई में सीमा-शुल्क के अलावा अन्य कदम भी होंगे. इसका अमेरिकी कृषि उत्पादों और खाद्य उत्पादों पर काफी असर पड़ सकता है.
तस्वीर: Dmitri Lovetsky/AP/picture alliance
चीन अभी भी सबसे बड़ा बाजार
चीन ने 2024 में 29.25 अरब डॉलर मूल्य के अमेरिकी कृषि उत्पादों का आयात किया. यह 2023 के मुकाबले 14 प्रतिशत की गिरावट थी. चीन में अमेरिकी निर्यात 2018 से गिर रहा है. इसके बावजूद चीन अभी भी अमेरिकी कृषि उत्पादों का सबसे बड़ा निर्यात बाजार है.
तस्वीर: STRSTR/AFP/Getty Images
सोयाबीन
सोयाबीन चीन में सबसे ज्यादा निर्यात किया जाने वाला अमेरिकी कृषि उत्पाद है. 2024 में करीब आधा अमेरिकी सोयाबीन चीन भेजा गया था, जिससे अमेरिका की 12.8 अरब डॉलर की कमाई हुई थी. लेकिन चीन अब अमेरिका पर अपनी निर्भरता घटाने के लिए ब्राजील से सोयाबीन ले रहा है. इस वजह से चीन में अमेरिकी सोयाबीन की हिस्सेदारी 2016 में 40 प्रतिशत से 2024 में 21 प्रतिशत पर आ गई.
तस्वीर: Ivan Bueno/APPA
मक्का
अमेरिका दशकों तक चीन का बड़ा मक्का सप्लायर था, लेकिन 2022 में चीन ने ब्राजील से मक्का लेना शुरू कर दिया. चीन में अमेरिकी मक्के का आयात जहां 2023 में 2.6 अरब डॉलर मूल्य का था, वहीं 2024 में गिर कर 56.10 करोड़ डॉलर पर आ गया. ब्राजील ने तेजी से इस मामले में अमेरिका को पीछे छोड़ दिया है.
तस्वीर: Mark E. Atkinson/Blend Image/Tetra/IMAGO
मांस
चीन अमेरिका से चिकन की टांगें, पोर्क के कान और पशुओं के खाए जाने वाले अंदरूनी अंगों (ओफल) के निर्यात का बड़ा बाजार है. इन चीजों की अमेरिका में मांग बहुत कम है. 2021 में चीन ने अमेरिका से 4.11 अरब डॉलर मूल्य का मांस और ओफल खरीदा लेकिन 2024 में यह घट कर 2.54 अरब डॉलर पर आ गया.
तस्वीर: Zoonar/picture alliance
कपास
अमेरिकी कॉटन का करीबी एक चौथाई निर्यात चीन जाता है. 2023 में 1.57 अरब डॉलर मूल्य का कपास अमेरिका से चीन गया, लेकिन 2024 में इसका मूल्य घट कर 1.49 अरब डॉलर पर आ गया.
तस्वीर: OLYMPIA DE MAISMONT/AFP
ज्वार
अमेरिकी जवार का चीन में आयात थोड़ा बढ़ा है, लेकिन इस मामले में चीन अमेरिका पर अपनी निर्भरता को कम करने की कोशिश कर रहा है. 2014 में चीन ने 1.52 अरब डॉलर मूल्य का ज्वार अमेरिका से आयात किया. 2024 में यह बढ़कर 1.73 अरब डॉलर मूल्य का हो गया.
तस्वीर: AFP
गेहूं
चीन ने 2024 में करीब 60 करोड़ डॉलर मूल्य का अमेरिकी गेहूं आयात किया. लेकिन हाल के महीनों में चीन ने गेहूं का आयात कम कर दिया है और अपना उत्पादन बढ़ा दिया है. इससे अमेरिकी उत्पादों पर असर पड़ सकता है. (रॉयटर्स)
तस्वीर: Farooq Azam
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जापान की याद दिला रहा मामला
चीनी सामानों का यह मामला 1980 के दशक की याद दिलाता है. जब अमेरिका ने जापान पर घरेलू मांग को बढ़ाने का दबाव डाला था. दरअसल उस समय अमेरिकी बाजार, जापान की कंपनियों जैसे टोयोटा और सोनी के उत्पादों से पट गया था.
चीनी ग्राहकों की ओर से किया जाने वाला खर्च चीन की अर्थव्यवस्था के 40 फीसदी से भी कम है. अमेरिका में यह 70 फीसदी और जापान में 54 फीसदी है. चीनी नेता भी इस मुद्दे पर बोल चुके हैं. उनके हिसाब से फैक्ट्रियों की अधिक उत्पादन क्षमता और ग्राहकों की ओर से कम खर्च करना, लंबे दौर की समस्याएं हैं. उनके मुताबिक चीन की अर्थव्यवस्था को मैन्युफैक्चरिंग और बांध, सड़क, रेलवे और अन्य ढांचागत सुधारों से दूर ले जाकर संतुलित करने में 20 साल से ज्यादा समय लगेगा.
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गुणवत्ता और सुरक्षा को पहुंच रहा नुकसान
चीन में दामों को कम रखने की प्रतिस्पर्धा के बीच ऐसी रिपोर्ट्स भी आई हैं, जिनमें बताया गया है कि चीनी कंपनियां इसके लिए गुणवत्ता और कई बार तो सुरक्षा नियमों की भी अनदेखी कर रही हैं. चीनी सरकार की आर्थिक मदद की बदौलत विदेशों तक पहुंच गई चीनी कंपनियां, वहां भी ऊंचे दाम वसूलते हुए वहां के स्थानीय प्रतिस्पर्धियों को नुकसान पहुंचा रही हैं. और इसके चलते दुनिया के कई हिस्सों में चीन के राजनीतिक विरोध का कारण बन रही हैं.
अर्थशास्त्री मानते हैं कि चीन की समस्याओं का हल तभी हो सकता है, जब वह घरेलू ग्राहकों पर आधारित अर्थव्यवस्था बना सके. चीनी बाजार में प्रतिस्पर्धा और दामों को घटाने की दौड़ के बीच, चीन डिफ्लेशन में जा फंसा है. ऐसे में चीजों के दाम गिर रहे हैं. जब कंपनियों को अपने उत्पादों से कम कमाई हो रही है, तो वो आगे के उत्पादन में कम निवेश भी करना चाह रही हैं. इसके फलस्वरूप नौकरियों में छंटनी, सैलरी कम होना, बिजनेस गतिविधियों और खर्च करने की क्षमता कम होना जैसे असर सामने आ सकते हैं जो कि चीन के लंबे दौर के लक्ष्य, मसलन ग्राहकों की ओर से किए जाने वाले खर्च और पूरी अर्थव्यवस्था को बढ़ाने के लक्ष्य से उलट है.
चीनी में कई अहम कंपनियों को होने वाले मुनाफे में लगातार कमी देखी जा रही हैतस्वीर: Russian Foreign Ministry/AFP
नए सामान की खरीद पर दी जा रही छूट
इससे निपटने के लिए चीन सरकार उन लोगों को छूट देने के लिए अरबों खर्च कर रही है, जो अपनी कारों या घरेलू उपकरणों को नई कारों या उपकरणों से बदल रहे हैं.
हालांकि अर्थशास्त्रियों का कहना है कि खपत को बढ़ाने और चीजों की अधिकता से निपटने के लिए और ज्यादा बुनियादी बदलावों की जरूरत होगी. ऐसे बदलाव एक झटके में किए भी नहीं जा सकते. प्राइवेट चीनी कंपनियां और विदेशों में निवेश करने वाली कंपनियां ही यहां ज्यादातर नौकरियां पैदा करती हैं. लेकिन वो महामारी के बाद से ही नीतियों में आए बदलावों और व्यापार युद्ध के दबावों को झेल रही हैं.
दौड़ में इंसान ने रोबोट को हरा दिया
चीन में हुए एक मैराथन में रोबोट, इंसानों से हार गए. इतना ही नहीं, दौड़ के बीच इंसानों की ही तरह रोबोटों को भी आराम की जरूरत पड़ी. ब्रेक में इंसानों ने तो पानी पीया, रोबोटों ने क्या किया?
तस्वीर: Pedro Pardo/AFP/Getty Images
दौड़ में इंसान ने रोबोट को हरा दिया
कई लोगों को फिक्र होती है कि एक दिन रोबोट उनकी जगह ले लेंगे. खासकर आर्टिफिशयल इंटेलिजेंस के आने के बाद यह डर और बढ़ गया है. वैसे तो ये मुद्दा बड़ा जटिल है और इसकी कई परतें हैं, लेकिन फिलहाल एक अच्छी खबर है. चीन में हुए एक हालिया मैराथन में रोबोट, इंसानों से हार गए.
तस्वीर: Tingshu Wang/REUTERS
रोबोट बनाम इंसान
चीन की राजधानी बीजिंग में ह्यूमनॉइड रोबोट हाफ मैराथन का आयोजन हुआ. इसमें 10,000 लोगों और 21 अलग-अलग तरह के रोबोटों ने हिस्सा लिया. इसमें 120 सेंटीमीटर से लेकर 1.8 मीटर तक की लंबाई वाले रोबोट शामिल थे.
तस्वीर: Tingshu Wang/REUTERS
कौन जीता, कौन हारा
21 किलोमीटर लंबी इस हाफ मैराथन को टियानगॉन्ग रोबोट ने खत्म किया 2 घंटे 40 मिनट में. लेकिन मैराथन की फिनिश लाइन तक एक इंसान पहुंच गया महज एक घंटे, 11 मिनट और 7 सेकंड के अंदर. वक्त के फासले को देखें, तो इस रेस में रोबोट बस हारा नहीं. वह बुरी तरह पिछड़ गया.
तस्वीर: Pedro Pardo/AFP/Getty Images
मैराथन के बीच में रोबोट को भी लेना पड़ा ब्रेक
जाहिर सी बात है कि इतनी लंबी रेस में शामिल प्रतिभागियों को ब्रेक की भी जरूरत पड़ी. इंसानों ने जब ब्रेक लिया, तो उन्होंने पानी पीया या कुछ हल्का-फुल्का स्नैक खाया. सिर्फ इंसानों को ही नहीं, बल्कि रोबोटों को भी आराम की जरूरत पड़ी. उन्हें पानी या स्नैक की नहीं, बल्कि मरम्मत की जरूरत पड़ी. उनके साथ आए उनके निर्माताओं ने ब्रेक के दौरान जांचा कि कहीं उनके कोई पुर्जे ढीले तो नहीं पड़ गए.
तस्वीर: Ng Han Guan/AP Photo/picture alliance
आयोजकों को रोबोट के जीतने की उम्मीद भी नहीं थी
मैराथन के आयोजकों को इस बात की उम्मीद भी नहीं थी कि रोबोट इस रेस को जीत पाएंगे. उनके मुताबिक, इस प्रतियोगिता में रोबोट का शामिल होना सिर्फ तकनीक का प्रदर्शन था.
तस्वीर: Pedro Pardo/AFP/Getty Images
तकनीक के मामले में अमेरिका से आगे बढ़ने की रेस में चीन
यह मैराथन चीन की सरकार की उस कोशिश का हिस्सा है, जिसके तहत वह अपनी एआई काबिलियत और तकनीक को अमेरिका से बेहतर करना चाहता है.
तस्वीर: Pedro Pardo/AFP/Getty Images
अर्थव्यवस्था को मिलेगी रोबोट से मजबूती
चीन को उम्मीद है कि रोबोटिक्स में निवेश उसकी अर्थव्यवस्था को और मजबूत कर सकता है. इसलिए चीन इसमें निवेश को बढ़ावा देना चाहता है.
तस्वीर: Kevin Frayer/Getty Images
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सामाजिक बदलावों से भी गुजर रहा चीन
साथ ही चीन की जनसंख्या में आ रहे बदलाव भी एक चुनौती हैं. आबादी बुजुर्ग हो रही है और जनसंख्या में कमी आ रही है. ऐसे में कई जानकार चीन को सोशल सेफ्टी नेट, स्वास्थ्य बीमा, पेंशन और अन्य तरह की सामाजिक सहायताओं को बढ़ाने की सलाह देते हैं ताकि लोग किसी मेडिकल इमरजेंसी या रिटायरमेंट के लिए पैसे जोड़ते रह जाने के बजाए ज्यादा खुलकर खर्च कर सकें.
पेकिंग यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर यान से ने चेतावनी दी है कि अगर चीन ने लोककल्याणकारी फायदों को नहीं बढ़ाया. हालिया डिफ्लेशन आगे चलकर एक लंबे दौर की समस्या बन जाएगा.
अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की नीतियां चीन विरोधी रही हैंतस्वीर: Kevin Lamarque/REUTERS
बाहरी खतरों के चलते आत्मनिर्भरता जरूरी
बाहरी भू-राजनीतिक खतरों को देखते हुए चीन ज्यादा से ज्यादा आत्मनिर्भर बनना चाहता है. गुआंगहुआ स्कूल ऑफ मैनेजमेंट के डीन लियु कियाओ कहते हैं कि अगर चीन में स्थानीय सरकारी अफसरों को आर्थिक बढ़त के लक्ष्य हासिल करने के बजाए खपत या घरेलू आय बढ़ाने के लिए इनाम दिए जाने लगें तो एक संभावना बनती दिखती है. वो कहते हैं कि इस तरीके को पूरे देश में तुरंत लागू करना संभव नहीं लेकिन एक प्रांत में इसे आजमाकर देखा जाना चाहिए.
चीनी नेता शी जिनपिंग ने देश को एक टेक्नोलॉजी सुपरपावर बनाने को अपनी प्राथमिकता बना लिया है. उनके इस लक्ष्य की आवश्यता भी महसूस की जा रही है क्योंकि अमेरिका ने चीन की अति उन्नत सेमीकंडक्टरों और अन्य उच्च तकनीकों तक पहुंच को सीमित कर दिया है. हाईटेक उत्पादों का निर्माण बढ़ रहा है बल्कि कई बार तो इनका क्षमता से ज्यादा निर्माण हो रहा है. सौर पैनलों और पवनचक्कियों के निर्माण के मामले में ऐसा ही हुआ.
बड़ी सेना वाली ताकतों को सिर के बल खड़ा कर देने वाले ड्रोन
07:00
बड़े बदलाव जरूरी
बहुत से उद्योग जिसमें इलेक्ट्रिक गाड़ियां भी शामिल हैं, उन्होंने इस समस्या से निपटने का वादा किया है लेकिन कुछ स्थानीय सरकारें घाटे में चल रहे उद्योगों को भी जिंदा रखने पर आमादा हैं. क्योंकि वो उनसे आने वाले टैक्स के पैसों और उनके दी नौकरियों को खोना नहीं चाहतीं और अपने आर्थिक तरक्की के लक्ष्यों को पाने में नाकाम नहीं होना चाहतीं.
ऐसे में आगे सरकार आर्थिक विकास की नीतियों के बीच और बेहतर सामंजस्य की राह देख रही हैं. खासकर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसे क्षेत्रों में, ताकि सारे ही प्रांत एक ही तकनीक पर फोकस ना करें. लेकिन सरकार उन उद्योगों पर अपनी पकड़ मजबूत बनाने जा रही है, जहां अधिक क्षमता से जुड़ी समस्या है और पिछले वर्षों में जिन सेक्टर में अर्थव्यवस्था का हिस्सा गिर रहा है.
हाल ही में चीन की अर्थव्यवस्था पर जारी की गई एक रिपोर्ट में वर्ल्ड बैंक ने कहा है कि घरेलू खपत में धीरे-धीरे लेकिन लगातार होने वाले सुधारों के लिए बदलाव के ज्यादा बड़े लक्ष्यों की जरूरत होगी.