अमेरिका सरकार के अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग ने भारत को लगातार तीसरी बार चिंताजनक स्थिति वाले देशों में रखने की सिफारिश की है. आयोग ने भारत सरकार पर तल्ख टिप्पणियां की हैं.
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अमेरिका के विदेश मंत्रालय को विभिन्न देशों में धार्मिक आजादी की स्थिति पर सलाह देने वाली संस्था यूएस कमीशन ऑन इंटरनेशनल रिलीजियस फ्रीडम ने कहा है कि भारत को चिंताजनक स्थिति वाले देशों में रखा जाना चाहिए. इस संस्था ने अफगानिस्तान को ‘सबसे बुरों में भी सबसे खराब' की सूची में डालने की सिफारिश की है.
सोमवार को जारी अपनी सालाना रिपोर्ट में अमेरिकी कमीशन (USCIRF) ने कहा कि अफगानिस्तान में धार्मिक अल्पसंख्य आबादी "प्रताड़ना, हिरासत यहां तक कि अपने विश्वास के कारण मार दिए जाने” जैसे हालात का सामना कर रही है. अफगानिस्तान की सत्ता पर पिछले साल सुन्नी मत को मानने वाले इस्लामिक संगठन तालिबान ने कब्जा कर लिया था.
अमेरिकी सरकार की आलोचना
कमीशन ने 15 देशों की सूची बनाई है, जो उसके मुताबिक अमेरिकी विदेश मंत्रालय के लिए ‘चिंताजनक स्थिति वाले' होने चाहिए. इन देशों में चीन, इरिट्रिया, ईरान, म्यांमार, उत्तर कोरिया, पाकिस्तान, रूस, सऊदी अरब, ताजिकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान तो पहले से ही थे. जिन नए देशों को जोड़ने की सिफारिश की गई है, वे हैं अफगानिस्तान, भारत, नाइजीरिया, सीरिया और वियतनाम.
अपनी रिपोर्ट में कमीशन ने कहा कि इन देशों की सरकारें ‘धार्मिक आजादी के व्यवस्थागत, घोर और लगातार उल्लंघन' में शामिल हैं या उसे होने दे रही हैं. इस कमीशन की स्थापना अमेरिका के धार्मिक स्वतंत्रता कानून के तहत 1998 में की गई थी. इसका काम संसद और सरकार को विभिन्न देशों की स्थिति के बारे में सिफारिशें देना हैं लेकिन वे सिफारिशें बाध्यकारी नहीं होतीं.
ये हैं 2022 के सबसे बड़े खतरे
वर्ल्ड इकनॉमिक फोरम ने 2022 में दुनिया की सबसे बड़ी चुनौतियों पर अपनी सालाना रिपोर्ट ‘ग्लोबल रिस्क्स रिपोर्ट 2022’ जारी की है. इसमें बताए गए सबसे बड़े खतरे कौन से हैं, जानिए...
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भारत के निराश युवा
वर्ल्ड इकनॉमिक फोरम के मुताबिक भारत के लिए सबसे बड़े खतरों में मतिभ्रम से जूझ रहे युवा भी हैं. इसके अलावा राज्यों के खराब होते आपसी रिश्ते, तकनीक आधारित प्रशासन की विफलता, बढ़ता कर्ज और डिजिटल असमानता भारत के सामने सबसे बड़े खतरे हैं.
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सबसे बड़े अंतरराष्ट्रीय खतरे
इस रिपोर्ट में दुनिया के लिए जो सबसे बड़े खतरे बताए गए हैं, वे हैं पर्यावरण का संकट, बढ़ती सामाजिक असमानता, साइबर असुरक्षा और कोविड से दुनिया के अलग-अलग हिस्सों का असमान उबार.
रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया के सामने जो दस सबसे बड़े खतरे हैं उनमें से छह तो जलवायु परिवर्तन से ही जुड़े हैं. उत्सर्जन को कम करने वाली तकनीक का इस्तेमाल ना कर पाने का दुनिया को बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है.
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बढ़ती असमानता
रिपोर्ट कहती है कि दुनिया की समरसता खतरे में हैं क्योंकि गैरबराबरी बढ़ रही है. आय में असमानता और वैक्सीन तक पहुंच में इतनी अधिक गैरबराबरी है कि एक हिस्सा दूसरे से बहुत ज्यादा पीछे है.
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विस्थापन
लोगों के लिए ना चाहते हुए भी प्रवासन के लिए मजबूर होना एक बड़ा खतरा माना गया है. यह भी पर्यावरण परिवर्तन से जुड़ा है जो लोगों को अपनी बसी-बसाई जिंदगी छोड़ दूसरी जगह जाने पर मजबूर कर रहा है.
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बढ़ता कर्ज
कोरोनावायरस महामारी ने पूरी दुनिया में ही उद्योग-धंधों को प्रभावित किया है. इस कारण महंगाई और कर्ज बढ़ा है जो एक बड़े खतरे के रूप में सामने आया है क्योंकि इससे लौटना मुश्किल होता जा रहा है.
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पिछले सालों में अमेरिकी सरकार ने कई बार आयोग की सिफारिशों को स्वीकार किया है लेकिन हर बार नहीं. जैसे कि बाइडेन सरकार ने नाइजीरिया को पिछले साल सूची से बाहर कर दिया था. अपनी रिपोर्ट में आयोग ने इस कदम के लिए बाइडेन सरकार की आलोचना की है.
भारत पर तल्ख टिप्पणी
2021 में भारत में धार्मिक पर हमले को लेकर आयोग ने काफी तल्ख टिप्पणियां की हैं. रिपोर्ट कहती है कि सालभर में भारत सरकार ने अपने हिंदू-राष्ट्रवादी नीतियों को और मजबूत करने के लिए कई नीतियां अपनाई हैं जो मुसलमान, ईसाई, सिख, दलित और अन्य अल्पसंख्यकों के खिलाफ काम कर रही हैं. रिपोर्ट कहती है कि भारत सरकार व्यवस्थागत तरीके से मौजूदा और नए कानूनों के जरिए अपने हिंदू-राष्ट्रवाद के दर्शन को आगे बढ़ाने पर काम कर रही है.
रिपोर्ट में कहा गया है, "2021 में भारत सरकार ने आलोचना करने वाली आवाजों, खासकर धार्मिक अल्पसंख्यकों और उनके लिए बोलने वालों कों यातनाओं, जांच-पड़ताल, हिरासत और यूएपीए (UAPA) जैसे कानूनों के जरिए परेशान करके दबाया गया.”
कहां की पुलिस सबसे भरोसेमंद
स्टैटिस्टा के आंकड़ों की मानें तो 2021 में भारत में पुलिस पर भरोसा करने वाले लोगों की तादाद बहुत कम है. लेकिन तब भी, दुनिया में उसका 14वां नंबर है.
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स्वीडन की पुलिस सबसे भरोसेमंद
स्वीडन में 60 प्रतिशत लोग पुलिस पर भरोसा करते हैं.
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नंबर 2 पर दो मुल्क
नीदरलैंड्स और अमेरिका दोनों में ही 53 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वे पुलिस पर भरोसा करते हैं.
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नंबर 3 पर दो मुल्क
52 प्रतिशत लोगों का भरोसा जीतकर तुर्की और ऑस्ट्रेलिया की पुलिस दुनिया में तीसरे नंबर पर है.
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नंबर 4 पर दो मुल्क
फ्रांस और ब्रिटेन में 48 प्रतिशत लोग पुलिस पर भरोसा करते हैं.
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नंबर 5 पर तीन मुल्क
जर्मनी, इटली और स्पेन तीनों इस सूची में पांचवें नंबर पर हैं. यहां 47 प्रतिशत लोगों ने भरोसा जताया.
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भारत से ऊपर
कनाडा (44), मलेशिया (40) और जापान (38) की पुलिस पर भी लोगों का भरोसा भारत से ज्यादा है.
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नंबर 14
बेल्जियम के साथ भारत इस सूची में 14वें नंबर पर है, जहां 37 प्रतिशत लोग ही पुलिस पर भरोसा करते हैं.
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आयोग ने आदिवासी अधिकारों के लिए काम करने वाले दिवंगत पादरी स्टैन स्वामी का भी जिक्र किया जिनकी पिछले साल 84 वर्ष की आयु में हिरासत के दौरान मौत हो गई थी. उन्हें यूएपीए के तहत गिरफ्तार किया गया था. ऐसे आरोप लगे थे कि स्वामी को मूलभूत सुविधाएं भी उपलब्ध नहीं कराई गईं और यातनाएं दी गईं.
यह लगातार तीसरी बार है जब आयोग ने भारत को चिंताजनक स्थिति वाले देशों में रखने की सिफारिश की है. हालांकि पिछले दोनों बार ट्रंप और फिर बाइडेन सरकार ने इस सिफारिश को नहीं माना था.
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अफगानिस्तान पर चिंता
आयोग ने अपनी रिपोर्ट में अफगानिस्तान की हालत पर खासी चिंता जताई है. आयोग कहता है कि तालिबान के सत्ता पर काबिज होने के बाद बड़ी संख्या में यहूदी, हिंदू और सिख अल्पसंख्यकों ने देश छोड़ दिया है. आयोग ने कहा है कि अहमदिया मुसलमान, बहाई और ईसाई लोग यातनाओं के डर से छिपकर पूजा करने को मजबूर हैं.
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तालिबान ने पिछले साल अगस्त में काबुल पर कब्जा किया था जिसके बाद वहां के राष्ट्रपति देश से भाग गए थे. तालिबान ने सत्ता पर कब्जा कर लिया और अपनी सरकार बनाई. उसके बाद बड़ी संख्या में लोग देश छोड़ गए थे. इनमें हिंदू और सिख भी शामिल थे जो भारत या अन्य देशों को चले गए. कुछ सिख अब भी काबुल में रहते हैं.
आयोग ने ह्यूमन राइट्स वॉच की रिपोर्ट का भी हवाला दिया है जिसमें कहा गया कि शिया समुदाय के लोगों पर हमले की बात कही गई. एमनेस्टी इंटरनेशनल ने 2021 में अपनी रिपोर्ट में भी यही बात कही थी.
अफगानिस्तान को 30 साल पीछे ले कर जा रहा है तालिबान
बीते कुछ दिनों में तालिबान ने अफगानिस्तान में ऐसे आदेश जारी किए हैं जिनसे देश 30 साल पीछे की तरफ लौटने लगा है. तालिबान सत्ता हासिल करते समय किए गए अपने वादों से मुकर रहा है.
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लड़कियां नहीं जा सकती स्कूल
छठी कक्षा से ऊपर की लड़कियों के स्कूल जाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है. शुरू में तालिबान ने वादा किया था कि लड़कियां स्कूल जाती रहेंगी लेकिन अब वो अपने वादे से पीछे हट गया है.
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पुरुष का साथ जरूरी
महिलाओं के बिना किसी पुरुष रिश्तेदार (महरम) को साथ लिए हवाई जहाज में यात्रा करने पर भी प्रतिबंध लगा दिया है. महिलाओं के सड़क मार्ग से बिना किसी पुरुष रिश्तेदार को साथ लिए एक शहर से दूसरे शहर जाने पर पहले से प्रतिबंध था.
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पार्कों में भी अलग अलग
पुरुषों और महिलाओं को एक साथ ही सार्वजनिक पार्कों में जाने की अनुमति नहीं है. दोनों अलग अलग दिन ही पार्कों में जा सकते हैं.
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टेलीफोन भी वर्जित
विश्वविद्यालयों में मोबाइल फोन के इस्तेमाल को वर्जित कर दिया गया है.
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मीडिया पर प्रतिबंध
अंतरराष्ट्रीय मीडिया प्रसारण पर रोक लगा दी गई है. इसमें बीबीसी की पश्तो और फारसी भाषाएं भी शामिल हैं. इसके अलावा विदेशी टीवी कार्यक्रमों पर भी रोक लगा दी गई है.
तालिबान के नैतिकता मंत्रालय के सदस्य पारंपरिक पगड़ी नहीं पहनने वाले और दाढ़ी नहीं रखने वाले सरकारी अधिकारियों को घर वापस भेज रहे हैं. ऐसे अधिकारियों का कहना है कि उन्हें पता नहीं है कि वो काम पर वापस लौट भी पाएंगे या नहीं.
तस्वीर: Ahmad Sahel Arman/AFP/Getty Images
हैबतुल्लाह अखुंदजादा का आदेश
माना जा रहा है कि ये सब फैसले हाल ही में कंधार में हुई तालिबान की एक तीन दिवसीय बैठक में लिए गए. बताया जा रहा है कि कंधार में रहने वाले तालिबान के सर्वोच्च नेता हैबतुल्लाह अखुंदजादा ने इन नए नियमों के पालन का आदेश दिया. (एपी से जानकारी के साथ)
तस्वीर: Social Media/REUTERS
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कमीशन की अध्यक्ष नदीन माएंज ने एक इंटरव्यू में कहा, "तालिबान ने वादा किया था कि वे एक समावेशी सरकार बनाएंगे जो पहले से अलग होगी लेकिन उन्होंने जो किया वो एकदम उलट था. यहां तक कि सुन्नी समुदाय के जो लोग सरकार का समर्थन नहीं करते और तालिबान की इस्लामिक कानून की व्याख्या से सहमत नहीं हैं, उन पर भी सख्तियां थोपी जा रही हैं.”