यूक्रेन ने एक वीडियो शेयर किया है जिसमें मारीउपोल शहर में बच्चों के एक अस्पताल की इमारत में मलबा दिख रहा है. अधिकारियों ने दावा किया है कि रूस ने इस अस्पताल पर हवाई हमले किए.
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अमेरिका ने यूक्रेन में बच्चों के एक अस्पताल रूस द्वारा हमला किए जाने की कड़ी निंदा की है. यूक्रेनी अधिकारियों का कहना है कि मारिउपोल शहर के बच्चों के अस्पताल पर हवाई हमला किया गया, जिसमें एक ऐसी महिला घायल हो गई जो बच्चे को जन्म दे रही थी.
यूक्रेनी नेताओं के मुताबिक यह हमला युद्धविराम के बावजूद हुआ. उधर रूस का कहना है कि यूक्रेन की सेना ने मरीजों समेत सभी आम नागरिकों को अस्पताल से निकालकर दूसरी जगह पहुंचा दिया था और इस इमारत में मोर्चेबंदी कर रखी थी.
समाचार एजेंसी रॉयटर्स के एक सवाल के जवाब में रूसी सरकार के प्रवक्ता दमित्री पेश्कोव ने कहा, "रूसी फौजें नागरिक ठिकानों पर हमला नहीं करतीं.”
उधर यूक्रेन के विदेश मंत्रलाय ने एक वीडियो सोशल मीडिया पर साझा किया है जिसमें एक अस्पताल की इमारत देखी जा सकती है. इस वीडियो में तीन मंजिला इमारत के प्रांगण में मलबा पड़ा है, खिड़कियां टूटी हुई हैं और एक बड़ा सा गड्ढा दिखाई दे रहा है.
डोनेत्स्क क्षेत्र के गवर्नर ने दावा किया कि अस्पताल पर हमले में 17 लोग घायल हो गए. शहर की काउंसिल का कहना है कि इमारत पर कई बार हवाई हमले किए गए.
हमले की निंदा
अमेरिका ने इस हमले को वहशियाना बताया है. व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव जेन साकी ने कहा, "एक संप्रभु देश के आम नागरिकों पर इस तरह फौज का वहशियाना इस्तेमाल देखना भयावह है.”
संयुक्त राष्ट्र ने कहा है कि उसकी मानवाधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था स्थिति की निगरानी कर रही है और मारीउपोल में हताहत लोगों की संख्या की पुष्टि की जा रही है. संस्था की प्रवक्ता लिज थ्रोसेल ने कहा, "यह घटना हमारी उन चिंताओं को और बढ़ाती है कि आबादी वाले इलाकों में हथियारों को बिना सोचे समझे प्रयोग हो रहा है और कई ऐसे क्षेत्रों में नागरिक फंसे हुए हैं, जहां लड़ाई जारी है.”
रूस से जंग के बीच क्या कर रहे हैं यूक्रेन के बच्चे
युद्ध के शुरुआती दो हफ्ते में ही 20 लाख से ज्यादा यूक्रेनी रिफ्यूजी बन गए हैं. शरणार्थियों में मुख्य रूप से महिलाएं और बच्चे ही हैं क्योंकि यूक्रेन में अभी 18 से 60 की उम्र के पुरुषों के देश से जाने पर रोक है.
तस्वीर: Stringer/AA/picture alliance
कितना प्यारा दिल...
8 मार्च तक 12 लाख से ज्यादा शरणार्थी पोलैंड आ चुके थे. इसके अलावा हंगरी, रोमानिया, स्लोवाकिया, चेक रिपब्लिक, मोलदोवा, जर्मनी, फ्रांस, ब्रिटेन, आयरलैंड में भी यूक्रेनी शरणार्थी पहुंच रहे हैं. इस तस्वीर में यूक्रेन से भागकर आया एक रिफ्यूजी बच्चा बुडापेस्ट के युगाति रेलवे स्टेशन पर ट्रांसपोर्ट का इंतजार करते हुए कांच पर अपने हाथ जोड़कर दिल बना रहा है.
तस्वीर: Marton Monus/REUTERS
हर हाल में हंस पड़ना...
यूक्रेन के पड़ोसी देशों ने वहां से आ रहे शरणार्थियों के लिए बड़े स्तर पर इंतजाम किए हैं. रोमानिया ने कहा कि उसकी सीमाएं जरूरतमंदों के लिए खुली हैं. शरणार्थियों को सुरक्षित महसूस करवाने के लिए सरकार हर मुमकिन कोशिश करेगी. इस तस्वीर में एक शरणार्थी बच्ची रोमानिया के अपने कैंप के पास खड़ी होकर मुस्कुरा रही है. कैसे भी हालात में हंस पड़ना, खुश हो जाना...बचपन सच में कितना निर्दोष होता है.
तस्वीर: Cristian Ștefănescu/DW
मदद के नन्हे हाथ
पोलैंड की सरकार ने यूक्रेनी शरणार्थियों के लिए एक अलग फंड बनाने का फैसला किया है. इसके तहत हर एक रिफ्यूजी को एक बार के लिए एक रकम भी दी जाएगी. संयुक्त राष्ट्र ने कहा है कि दूसरे विश्व युद्ध के बाद से यह यूरोप का सबसे तेजी से बढ़ रहा शरणार्थी संकट है. तस्वीर में एक शरणार्थी बच्चा ट्रॉली के साथ.
तस्वीर: Cristian Ștefănescu/DW
बच्ची और बिल्ली
संयुक्त राष्ट्र ने चेताया है कि शरणार्थियों की दूसरी खेप ज्यादा दयनीय स्थिति में हो सकती है. यूएनएचसीआर ने कहा कि अगर युद्ध जारी रहता है, तो बड़ी संख्या में ऐसे शरणार्थी आते रहेंगे जिनके पास ना कोई संसाधन होगा, ना अपना कोई संपर्क. ऐसे में यूरोपीय देशों के लिए जटिल स्थिति होगी. तस्वीर में मरियोपोल से आई एक शरणार्थी बच्ची अपनी बिल्ली के साथ.
तस्वीर: AA/picture alliance
इंतजार
दी इंटरनेशनल रेस्क्यू कमिटी (आईआरसी) ने कहा है कि शरणार्थियों के लिए लंबे समय तक मानवीय सहायता का इंतजाम करना होगा. लोगों के रोजगार का इंतजाम करना होगा. वे किराया दे सकें, सामान्य जीवन जी सकें, अपने पैरों पर खड़े हो सकें, इसके लिए उन्हें मदद देनी होगी. इस तस्वीर में मरियोपोल से आया एक शरणार्थी बच्चा स्कूल की इमारत के भीतर सुरक्षित निकाले जाने का इंतजार कर रहा है.
तस्वीर: Stringer/AA/picture alliance
बदलाव
शरणार्थियों पर हंगरी का रवैया बेहद सख्त रहा है. सात साल पहले उसने शरणार्थियों को अपनी सीमा में घुसने से रोकने के लिए कंटीली बाड़ लगवाई थी और कु्त्ते तैनात किए थे. उसी हंगरी ने अब तक करीब दो लाख यूक्रेनी शरणार्थियों को अपने यहां जगह दी है. तस्वीर में हंगरी का एक अस्थायी शरणार्थी शिविर, जिसे म्यूनिसिपल्टी और बैप्टिस्ट चैरिटी मिलकर चला रहे हैं.
तस्वीर: Anna Szilagyi/AP Photo/picture alliance
आम आबादी भी कर रही है मदद
हंगरी के एक अस्थायी शेल्टर के भीतर स्ट्रोलर में बैठी बच्ची. यूक्रेनी शरणार्थियों की मदद के लिए सरकारी इंतजामों के अलावा आम आबादी भी सामने आ रही है. पड़ोसी देशों में स्थानीय लोग खाने-पीने की चीजों के अलावा बच्चों के लिए जरूरत पड़ने वाली चीजें भी डोनेट कर रहे हैं. बड़ी संख्या में लोग शेल्टर होम्स में वॉलंटियर सर्विस भी दे रहे हैं.
तस्वीर: Anna Szilagyi/AP/picture alliance
जर्मनी में भी शरणार्थियों का स्वागत
यूक्रेनी शरणार्थी बस और ट्रेन से जर्मनी भी आ रहे हैं. बर्लिन में शरणार्थियों को लेने के लिए रेलवे स्टेशन पर आए आम लोगों की तस्वीरें खूब वायरल हुईं. लोग शरणार्थियों को अपने घर में जगह दे रहे हैं. इस तस्वीर में दिख रही बस शरणार्थियों को लेकर पोलैंड के एक रेलवे स्टेशन जा रही है, जहां से उन्हें जर्मनी ले जाया जाएगा.
तस्वीर: Markus Schreiber/AP Photo/picture alliance
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मारीउपोल शहर में करीब दो लाख आम नागरिक हैं, जो शहर से पलायन करना चाहते हैं. आम नागरिकों को सुरक्षित निकलने का रास्ता देने के लिए युद्ध विराम लागू किया गया था. यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने बुधवार को बतया था कि 7,000 नागरिक ही निकल पाए थे.
यूक्रेन ने रूस पर युद्ध विराम के उल्लंघन का आरोप लगाया है. विदेश मंत्री दमित्रो कुलेबा ने ट्विटर पर लिखा, "बमबारी लगातार जारी है.”
मैक्सर कंपनी द्वारा जारी की गईं उपग्रह से खींची तस्वीरों में मारीउपोल के घरों, रिहायशी इमारतों, दुकानों और बाजारों में मलबा फैला देखा जा सकता है. रूस ने युद्ध विराम की विफलता के लिए यूक्रेन को जिम्मेदार ठहराया है.
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बढ़ते शरणार्थी
बच्चों के लिए काम करने वाली यूएन की संस्था यूनिसेफ ने बुधवार को कहा कि यूक्रेन से जो बीस लाख लोग भागे हैं उनमें से दस लाख से ज्यादा बच्चे हैं. यूनिसेफ ने बताया कि अब तक 37 बच्चों की मौत हो चुकी है जबकि 50 घायल हुए हैं.
राष्ट्रपति जेलेंस्की के एक वरिष्ठ सहयोगी के हवाले से इंटरफैक्स यूक्रेन एजेंसी ने कहा है कि मानवीय गलियारों के जरिए लगभग 48,000 यूक्रेनी निकाले गए हैं. अंतरराष्ट्रीय रेड क्रॉस ने कहा है कि पूरे यूक्रेन में घरों को मलबे में बदल दिया गया है. संस्था ने कहा, "लाखों लोग बिना खाना, पानी, हीटिंग, बिजली और स्वास्थ्य सुविधाओं के बिना हैं.”
वीके/एए (रॉयटर्स, एपी)
यूक्रेन युद्ध के बीच खूब याद किया जा रहा है शांति के प्रतीक कबूतर को
प्राचीन काल से कबूतर को शांति के प्रतीक के रूप में माना गया है. यूक्रेन में युद्ध छिड़ने के बाद यह चिड़िया एक बार फिर मित्रता और एकता की अहमियत की याद दिलाने वाला एक जरिया बन गई है. देखिए लोग कैसे इसका इस्तेमाल कर रहे हैं.
तस्वीर: Rolf Vennenbernd/dpa/picture alliance
यूक्रेन के लिए शांति की कामना
जर्मन कलाकार जस्टस बेकर ने फ्रैंकफर्ट में एक इमारत की बाहरी दीवार पर जैतून की एक शाख लिए एक कबूतर का विशाल चित्र बनाया है. जैतून की शाख को यूक्रेन के राष्ट्रीय रंगों नीले और पीले रंग में रंगा गया है. बेकर को यह म्यूरल बनाने में तीन दिन लगे. वो इसके जरिए यूक्रेन के साथ एकजुटता और शांति के लिए उम्मीद का संदेश देना चाहते हैं.
तस्वीर: picture alliance/dpa
सफेद और शुद्ध
प्राचीन काल से ऐसी मान्यताएं रही हैं कि कबूतरों में खास शक्तियां होती हैं. लोगों का मानना था कि इस चिड़िया के शरीर में पित्ताशय या गॉल ब्लैडर नहीं होता है इसलिए इसके व्यवहार में ना कटुता होती है और न दुष्टता. सफेद कबूतर यूनान में प्रेम की देवी एफ्रोडाइटी का साथी माना जाता है.
तस्वीर: picture-alliance/Leemage
बाइबल में उम्मीद का प्रतीक
बाइबल के अनुसार महाप्रलय के बाद अपनी नाव में 40 दिन बिताने के बाद नोआ ने पानी के बीच जमीन खोजने के लिए सबसे पहले कबूतरों को भेजा. जैतून की शाख लिए ये कबूतर न सिर्फ प्रलय के अंत का बल्कि भगवान के साथ फिर से शांति की स्थापना का प्रतीक थे.
तस्वीर: picture alliance / imageBROKER
शांति का आइकॉन
पिकासो द्वारा बनाया कबूतर का चित्र 1950 के दशक में शांति आंदोलन का प्रतीक बन गया था और उसने विश्व इतिहास में अपनी जगह बना ली थी. उसके बाद पिकासो ने कई बार अपने चित्रों में कबूतर को दर्शाया और अपनी बेटी का नाम भी "पालोमा" रखा, जिसका स्पेनिश भाषा में अर्थ कबूतर होता है.
तस्वीर: picture alliance/dpa
भारत में भी कबूतर
पिकासो के चित्र ने जिन कलाकारों को प्रेरणा दी उनमें भारतीय शहर चंडीगढ़ का डिजाइन बनाने वाले आर्किटेक्ट ल कोर्बूजिए भी थे. उन्होंने शहर में यह कलाकृति बनाई, जिसमें एक खुली हथेली को एक कबूतर के आकार में दिखाया गया है. यह कलाकृति अंग्रेजी हुकूमत से भारत की स्वतंत्रता का प्रतीक थी.
तस्वीर: picture alliance / Photononstop
शांति आंदोलन का प्रतीक
शांति प्रदर्शनों में इस्तेमाल होने वाले इस लोगो को 1970 के दशक में फिन्निश ग्राफिक डिजाइनर मीका लौनीस द्वारा ली गई एक कबूतर की तस्वीर से बनाया गया था. अब हर शांति प्रदर्शन में नीले झंडे दिखाए जाते हैं जिन पर यह लोगो बना होता है.
तस्वीर: Daniel Naupold/picture alliance/dpa
एक पुराना संदेश
यूक्रेन युद्ध के खिलाफ प्रतिक्रिया के रूप में जर्मन थिएटर कंपनी बर्लिनर औंसौम्ब्ल ने पिकासो के मशहूर चित्र के साथ इस झंडे को दर्शाया. इस झंडे को सबसे पहले 1950 के दशक में जर्मन थिएटर जगत के दिग्गज बेर्टोल्ट ब्रेक्ट ने स्वतंत्रता के प्रतीक के रूप में लगाया था. बर्लिनर औंसौम्ब्ल ब्रेक्ट की शांति की अपील को फिर से जीवित करना चाहता है और यूक्रेन के साथ एकजुटता दिखाना चाहता है.
तस्वीर: Jens Kalaene/dpa/picture alliance
युद्ध की क्रूरता
इस साल जर्मनी के शहर कोलोन में पारंपरिक रोज मंडे परेड को एक शांति रैली में बदल दिया गया, जिसमें 25,000 लोगों ने हिस्सा लिया. एक झांकी में खून से लथपथ एक कबूतर को और रूस के झंडे को उस कबूतर के आर पार दिखाया गया. (किम-आइलीन स्टरजेल, लैला अब्दल्ला)