अपनी फौजों को अफगानिस्तान से वापस बुला लेने के बाद अमेरिकी सरकार अफगानिस्तान की उन महिलाओं को वीजा देने पर विचार कर रही है, जो संभावित तालिबानी कब्जे में खतरे में पड़ सकती हैं.
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अमेरिका की बाइडेन सरकार विचार कर रही है अफगानिस्तान की राजनेताओं, पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं जैसी खतरे झेल रहीं महिलाओं के लिए वीजा प्रक्रिया तेज की जाए. मानवाधिकार कार्यकर्ता लंबे समय से मांग कर रहे हैं कि महिला अधिकारों के लिए काम करने वालीं और अन्य क्षेत्रों में सक्रिय कम से कम दो हजार महिलाओं को अफगानिस्तान से बचाकर निकाला जाना चाहिए.
अमेरिका के 90 प्रतिशत सैनिक पहले ही अफगानिस्तान छोड़ चुके हैं और बाकी सेना के अगले कुछ हफ्तों में चले जाने की संभावना है. जर्मनी समेत बाकी कई नाटो देशों की सेनाएं पहले ही अफगानिस्तान से जा चुकी हैं. इस बीच तालिबान के देश के विभिन्न हिस्सों पर तेजी से हो रहे कब्जे की खबरें आ रही हैं, जिन्होंने मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, खासकर महिलाओं को चिंतित कर रखा है.
खतरे में कौन-कौन
अमेरिका ने अपनी फौज के साथ काम कर रहे बहुत से अफगान नागरिकों को अपने यहां शरण देने की योजना बना रखी है. इनमें अनुवादक जैसे सहयोगी शामिल हैं. लेकिन 2002 में तालिबान की सरकार के सत्ता से बाहर किए जाने से पहले महिलाओं के अधिकारों पर लगी कड़ी पाबंदियों की यादें देश की महिलाओं को परेशान कर रही हैं. कई मानवाधिकार संस्थाओं ने इनके भविष्य को लेकर चिंता जताई है.
एक अमेरिकी अधिकारी ने बताया है कि सरकार सिर्फ उन महिलाओं के बारे में विचार नहीं कर रही है, जो खतरे में हैं, बल्कि खतरनाक पेशों में काम करने वाले पुरुषों और अल्पसंख्यकों की परिस्थितियों पर भी विमर्श किया जा रहा है.
महिला अधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था मीना'ज लिस्ट की अडवोकेसी डायरेक्टर टेरेसा कैसेल कहती हैं कि जिंदगियां खतरे में हैं. वह बताती हैं, "तालिबान चुन चुनकर महिला नेताओं को मार रहा है. हर रोज ऐसी महिलाओं को जान से मारे जाने की धमकियां मिल रही हैं.”
तस्वीरों मेंः चले गए अमेरिकी, छोड़ गए कचरा
चले गए अमेरिकी, छोड़ गए कचरा
बगराम हवाई अड्डा करीब बीस साल तक अफगानिस्तान में अमेरिकी फौजों का मुख्यालय रहा. अमेरिकी फौज स्वदेश वापस जा रही है और इस मुख्यालय को खाली किया जा रहा है. पीछे रह गया है टनों कचरा...
तस्वीर: Adek Berry/Getty Images/AFP
जहां तक नजर जाए
2021 में 11 सितंबर की बरसी से पहले अमेरिकी सेना बगराम बेस को खाली कर देना चाहती है. जल्दी-जल्दी काम निपटाए जा रहे हैं. और पीछे छूट रहा है टनों कचरा, जिसमें तारें, धातु और जाने क्या क्या है.
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कुछ काम की चीजें
अभी तो जहां कचरा है, वहां लोगों की भीड़ कुछ अच्छी चीजों की तलाश में पहुंच रही है. कुछ लोगों को कई काम की चीजें मिल भी जाती हैं. जैसे कि सैनिकों के जूते. लोगों को उम्मीद है कि ये चीजें वे कहीं बेच पाएंगे.
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इलेक्ट्रॉनिक खजाना
कुछ लोगों की नजरें इलेक्ट्रोनिक कचरे में मौजूद खजाने को खोजती रहती हैं. सर्किट बोर्ड में कुछ कीमती धातुएं होती हैं, जैसे सोने के कण. इन धातुओं को खजाने में बदला जा सकता है.
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बच्चे भी तलाश में
कचरे के ढेर से कुछ काम की चीज तलाशते बच्चे भी देखे जा सकते हैं. नाटो फौजों के देश में होने से लड़कियों को और महिलाओं को सबसे ज्यादा लाभ हुआ था. वे स्कूल जाने और काम करने की आजादी पा सकी थीं. डर है कि अब यह आजादी छिन न जाए.
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कुछ निशानियां
कई बार लोगों को कचरे के ढेर में प्यारी सी चीजें भी मिल जाती हैं. कुछ लोग तो इन चीजों को इसलिए जमा कर रहे हैं कि उन्हें इस वक्त की निशानी रखनी है.
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खतरनाक है वापसी
1 मई से सैनिकों की वापसी आधिकारिक तौर पर शुरू हुई है. लेकिन सब कुछ हड़बड़ी में हो रहा है क्योंकि तालीबान के हमले का खतरा बना रहता है. इसलिए कचरा बढ़ने की गुंजाइश भी बढ़ गई है.
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कहां जाएगा यह कचरा?
अमेरिकी फौजों के पास जो साज-ओ-सामान है, उसे या तो वे वापस ले जाएंगे या फिर स्थानीय अधिकारियों को दे देंगे. लेकिन तब भी ऐसा बहुत कुछ बच जाएगा, जो किसी खाते में नहीं होगा. इसमें बहुत सारा इलेक्ट्रॉनिक कचरा है, जो बीस साल तक यहां रहे एक लाख से ज्यादा सैनिकों ने उपभोग करके छोड़ा है.
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बगराम का क्या होगा?
हिंदुकुश पर्वत की तलहटी में बसा बगराम एक ऐतिहासिक सैन्य बेस है. 1979 में जब सोवियत संघ की सेना अफगानिस्तान आई थी, तो उसने भी यहीं अपना अड्डा बनाया था. लेकिन, अब लोगों को डर सता रहा है कि अमरीकियों के जाने के बाद यह जगह तालीबान के कब्जे में जा सकती है.
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सोचो, साथ क्या जाएगा
क्या नाटो के बीस साल लंबे अफगानिस्तान अभियान का हासिल बस यह कचरा है? स्थानीय लोग इसी सवाल का जवाब खोज रहे हैं.
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मीना'ज लिस्ट और अन्य कई संगठनों ने सिफारिश की है कि उन अफगानिस्तानियों की वीजा प्रक्रिया को तेज किया जाए, जिनकी जान को खतरा हो सकता है. इन संगठनों ने अमेरिकी विदेश मंत्रालय से आग्रह किया है कि एक विशेष त्वरित योजना बनाई जाए ताकि अमेरिकी अधिकारी लोगों को जल्द से जल्द सुरक्षित जगहों पर पहुंचा सकें.
अफगानिस्तान की महिला अधिकार कार्यकर्ताओं को अधिक संख्या में वीजा देने के बारे में तो वाइट हाउस ने फिलहाल कोई टिप्पणी नहीं की है लेकिन गुरुवार को अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन अमेरिकी सेना की अफगानिस्तान से वापसी के मुद्दे पर अपनी बात रखने वाले हैं और उम्मीद की जा रही है कि वह महिला अधिकारों पर भी बोलेंगे.
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तालिबान का डर
अफगानिस्तान में नाटो फौजों की वापसी शुरू होने के बाद से कई महिला पुलिस अधिकारी, मीडियाकर्मी, जज और स्वास्थ्यकर्मियों की हत्याएं हो चुकी हैं. ह्यूमन राइट्स वॉच ने अप्रैल में एक रिपोर्ट में कहा था कि टीवी और रेडियो में काम करने वाली महिलाएं बहुत ज्यादा खतरे में हैं.
ह्यूमम राइट्स वॉच की रिपोर्ट में कहा गया कि "महिला पत्रकारों को सिर्फ अपनी रिपोर्टिंग के लिए खतरा नहीं है, बल्कि उन्हें इसलिए भी निशाना बनाया जा सकता है कि वे उन सामाजिक मानकों को चुनौती दे रही हैं जो महिलाओं को सामाजिक जीवन में सक्रिय होने से और घर के बाहर काम करने से रोकते हैं.”
देखिए, तालिबान से पहले कैसा था अफगानिस्तान
तालिबान से पहले ऐसा दिखता था अफगानिस्तान
आज जब अफगानिस्तान का जिक्र होता है तो बम धमाके, मौतें, तालिबान और पर्दे में रहने वाली औरतों की छवी सामने उभर कर आती है. लेकिन अफगानिस्तान 60 दशक पहले ऐसा नहीं था.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
डॉक्टर बनने की चाह
यह तस्वीर 1962 में काबुल विश्वविद्यालय में ली गई थी. तस्वीर में दो मेडिकल छात्राएं अपनी प्रोफेसर से बात कर रही हैं. उस समय अफ्गान समाज में महिलाओं की भी अहम भूमिका थी. घर के बाहर काम करने और शिक्षा के क्षेत्र में वे मर्दों के कंधे से कंधा मिला कर चला करती थीं.
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सबके लिए समान अधिकार
1970 के दशक के मध्य में अफगानिस्तान के तकनीकी संस्थानों में महिलाओं का देखा जाना आम बात थी. यह तस्वीर काबुल के पॉलीटेक्निक विश्वविद्यालय की है.
तस्वीर: Getty Images/Hulton Archive/Zh. Angelov
कंप्यूटर साइंस के शुरुआती दिन
इस तस्वीर में काबुल के पॉलीटेक्निक विश्वविद्यालय में एक सोवियत प्रशिक्षक को अफगान छात्राओं को तकनीकी शिक्षा देते हुए देखा जा सकता है. 1979 से 1989 तक अफगानिस्तान में सोवियत हस्तक्षेप के दौरान कई सोवियत शिक्षक अफगान विश्वविद्यालयों में पढ़ाया करते थे.
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काबुल की सड़कों पर स्टाइल
काबुल में रेडियो काबुल की बिल्डिंग के बाहर ली गई इस तस्वीर में इन महिलाओं को उस समय के फैशनेबल स्टाइल में देखा जा सकता है. 1990 के दशक में तालिबान का प्रभाव बढ़ने के बाद महिलाओं को बुर्का पहनने की सख्त ताकीद की गई.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
बेबाक झलक
1981 में ली गई इस तस्वीर में महिला को अपने बच्चों के साथ लड़क पर बिना सिर ढके देखा जा सकता है. लेकिन आधुनिक अफगानिस्तान में ऐसा कुछ दिखाई देना संभव नहीं है.
तस्वीर: Getty Images/AFP
पुरुषों संग महिलाएं
1981 की यह तस्वीर दिखाती है कि महिलाओं और पुरुषों का एक साथ दिखाई देना उस समय संभव था. 10 साल के सोवियत हस्तक्षेप के खत्म होने के बाद देश में गृहयुद्ध छिड़ गया जिसके बाद तालिबान ने यहां अपनी पकड़ मजबूत कर ली.
तस्वीर: Getty Images/AFP
सबके लिए स्कूल
सोवियतकाल की यह तस्वीर काबुल के एक सेकेंडरी स्कूल की है. तालिबान के आने के बाद यहां लड़कियों और महिलाओं के शिक्षा हासिल करने पर पाबंदी लग गई. उनके घर के बाहर काम करने पर भी रोक लगा दी गई.
तस्वीर: Getty Images/AFP
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तालिबान के राज में महिलाओं को पढ़ने या काम करने की मनाही थी. उन्हें अपने शरीर को पूरी तरह ढक कर रखना होता था और वे किसी पुरुष के साथ ही घर से निकल सकती थीं. इन कथित नैतिक नियमों का उल्लंघन करने पर कोड़ों या पत्थरों से मारे जाने की सजाएं मिलती थीं.