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राजनीतिउत्तरी अमेरिका

अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के 5 ज्वलंत मुद्दे

कार्ला ब्लाइकर
२३ अक्टूबर २०२०

3 नवंबर को अमेरिकी जनता अपने लिए नया राष्ट्रपति चुनने वाली है. डॉनल्ड ट्रंप या जो बाइडेन में से वे किसे अपना वोट देंगे यह इस पर निर्भर करता है कि वे इन पांच अहम मुद्दों के बारे में क्या सोचते हैं.

USA Wisconsin | Protest Jacob Blake
अमेरिकी चुनाव में वोटरों के लिए नस्लवादी तनाव और हिंसा एक अहम मुद्दा रहने वाला है. तस्वीर: picture-alliance/AA/T. Coskun

कोरोना वायरस

इस साल की शुरुआत तक जिस अमेरिका में किसी ने कोरोना का नाम भी नहीं सुना था, वहीं 10 महीने बाद इसी महामारी के मुद्दे पर देश के अमेरिकी चुनाव में सबसे ज्यादा बहस छिड़ी हुई है. डीडब्ल्यू से बातचीत में यूनिवर्सिटी ऑफ इंडियानापोलीस में राजनीतिशास्त्र की असिस्टेंट प्रोफेसर लॉरा मेरीफील्ड विल्सन कहती हैं कि "2020 के चुनावों के लिए सबसे बड़ा मुद्दा शायद यही है."

अमेरिका में कोविड-19 वायरस ने 220,000 से भी अधिक लोगों की जान ले ली है. 20 अक्टूबर तक देश में संक्रमित लोगों की तादाद 83 लाख को पार कर चुकी है. खुद राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप कोरोना पॉजिटिव थे और दो हफ्तों से भी कम समय में इलाज करा कर वापस आ गए. देश में तमाम लोग आज भी मास्क नहीं पहनने के लिए प्रदर्शन कर रहे हैं और डॉक्टरों की सुझाई सावधानियों तक को लेकर राजनीतिक बहस छिड़ी हुई है.

राष्ट्रपति ट्रंप ने महामारी से निपटने में कैसा प्रदर्शन किया इसे लेकर लोगों की राय भी कहीं ना कहीं उनकी राजनीतिक सोच से जुड़ी दिख रही है. जैसे कि न्यू यॉर्क स्थित कोलंबिया यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर में असिस्टेंट प्रोफेसर और चिकित्सक डॉक्टर अश्विन वासन कहते हैं कि यह चुनाव "पिछले आठ-नौ महीनों में इसी बारे में उनके प्रदर्शन पर रेफरेंडम होगा."

जहां ट्रंप समर्थक कंजर्वेटिव खेमे का मानना है कि ट्रंप के कदमों के बिना हालात और खराब होते. वहीं लिबरल खेमे को लगता है कि अगर प्रशासन जल्दी हरकत में आया होता, हेल्थ एक्सपर्ट्स की सुनी होती और सख्ती से पाबंदियां लागू करवाई होतीं तो हजारों जानें बचाई जा सकती थीं.

डेमोक्रैट उम्मीदवार जो बाइडेन कोरोना महामारी से निपटने में ट्रंप सरकार की विफलताओं पर निशाना साधते रहे हैं.तस्वीर: Chip Somodevilla/Getty Images

हेल्थ केयर

सेहत से जुड़ा एक और मुद्दा वोटरों के लिए बेहद अहम है. अमेरिका की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट में राष्ट्रपति चुनाव सम्पन्न होने के बाद सबसे पहले एफोर्डेबल केयर एक्ट को रद्द किए जाने के मामले की सुनवाई होनी है. सुप्रीम कोर्ट में हाल ही में राष्ट्रपति ट्रंप ने एमी कॉनी बैरेट को शामिल करवाया है और इस एक्ट को हटवाने की कोशिश वह अपने पूरे कार्यकाल में करते रहे हैं.

कॉनी बैरेट खुद भी पहले इस एक्ट की आलोचना कर चुकी हैं लेकिन अब वह साफ नहीं कर रहीं कि क्या वह खुद इसे रद्द किए जाने के पक्ष में हैं. ऐसे में आम अमेरिकी अपने स्वास्थ्य बीमा से खुश हैं या नहीं और वे ओबामाकेयर को रखना चाहते हैं या नहीं - इससे भी चुनाव के दिन पड़ने वाले मतों पर बड़ा असर पड़ेगा.

अर्थव्यवस्था

विल्सन कहती हैं कि अर्थव्यवस्था अमेरिकी वोटरों के लिए बेहद अहम है, खासकर तब "जब उसकी हालत अच्छी ना हो." और फिलहाल वह अच्छी नहीं है. महामारी के फैलने से पहले ट्रंप के शासन काल में तीन साल तक अर्थव्यवस्था बहुत अच्छा कर रही थी. लेकिन मार्च में लॉकडाउन के शुरु होते ही पूरे देशे में छोटे कारोबारियों का काम काज बंद हो गया और अप्रैल के मध्य तक आते आते 2.3 करोड़ अमेरिकी काम से बाहर हो गए. श्रम मंत्रालय के आंकड़े दिखाते हैं कि इन दो महीनों के दौरान ही बेरोजगारी दर 3.5 प्रतिशत से उछल कर 14.7 प्रतिशत पर पहुंच गई.

राष्ट्रपति ट्रंप के लिए यह बुरा खबर लेकर आ सकती है. अब वह वोटरों से अपील कर रहे हैं कि अर्थव्यवस्था को वापस पटरी पर लाने के लिए वही सबसे सही इंसान हैं लेकिन डेमोक्रैटिक उम्मीदवार जो बाइडेन के लिए ट्रंप को इस हाल के लिए जिम्मेदार ठहराना कहीं ज्यादा आसान है. वह वोटरों से वादा कर रहे हैं कि उनके पास अर्थव्यवस्था को "वापस बेहतर बनाने" की कहीं बेहतर योजना है और वे मध्यमवर्गीय अमेरिकियों के जीवनस्तर को ऊपर उठा सकते हैं.

रिपब्लिकन उम्मीदवार और अमेरिका के वर्तमान राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप.तस्वीर: Mike Segar/Reuters

नस्लीय तनाव

मई में मिनियापोलीस में पुलिस के हाथों जॉर्ज फ्लॉयड की मौत ने देश में ब्लैक लाइव्स मैटर्स के आंदोलन में फिर से जान फूंक दी. अमेरिका में नस्लीय तनाव और हिंसा का काफी लंबा इतिहास रहा है लेकिन इस बार ना केवल अश्वेत बल्कि श्वेत अमेरिकी भी पुलिस हिंसा के अलावा देश में फैले नस्लवाद के खिलाफ साथ सड़कों पर उतरे दिखाई दिए.

कंजर्वेटिव विरोधी इन आंदोलनों के दौरान हुए विरोध प्रदर्शनों में हिंसा और शहरों को हुए नुकसान की ओर ध्यान दिलाते हैं. उनके नेता ट्रंप इस आंदोलन को ही "घृणा का प्रतीक" बताते हैं और अपने समर्थकों से सड़कों पर कानून-व्यवस्था को लौटाने का वादा कर चुके हैं. लिबरल खेमा कहता है कि राष्ट्रपति के रूप में ट्रंप को लोगों को करीब लाने का काम करना चाहिए लेकिन इसके उलट वह तनाव को और भड़काते हैं.

गर्भपात

यह एक ऐसा विषय है जो ट्रंप के एक बहुत बड़े समर्थक दल श्वेत प्रोटेस्टेंट ईसाइयों के लिए सबसे अहम है.अमेरिकी आबादी का 15 फीसदी यही लोग हैं और यह मतदान में भी बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते हैं. 2016 के चुनाव में कुल अमेरिकी वोटरों में एक चौथाई हिस्सा इन्हीं का था. तमाम कंजर्वेटिव ईसाइयों को ट्रंप का खुद अपने निजी जीवन में तलाक देना और कई शादियां करना नागवार गुजरता है लेकिन गर्भपात जैसे मुद्दे पर वह ट्रंप के रुख का पुरजोर समर्थन करते हैं. ट्रंप गर्भपात के खिलाफ हैं.

दूसरी तरफ लिबरल वोटरों के लिए भी गर्भपात का मुद्दा बहुत अहम है. डेमोक्रैटिक पार्टी गर्भ को रखने या गिराने का चुनाव लोगों के हाथ में देने के पक्ष में है. ट्रंप की चुनी कॉनी बैरेट को वे अमेरिकी अदालत के ऐतिहासिक 'रो वर्सेज वेड' मामले के लिए खतरा मानते हैं जिसने 47 साल पहले अमेरिकी महिलाओं को सुरक्षित और वैध गर्भपात का अधिकार दिया था.

आरपी/एनआर

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