अमेरिकी प्रतिनिधि सभा में यह बिल कारोबारियों और चैंबर ऑफ कॉमर्स के विरोध के बावजूद पारित हो गया है. शिनजियांग प्रांत में उइगुर मुसलमानों को जबरन कैंपों में रखने का आरोप है. उइगुरों से जबरन माल तैयार कराया जाता है.
विज्ञापन
कारोबारियों के विरोध के बावजूद यह कानून प्रतिनिधि सभा में सर्वसम्मति से पारित किया गया. शिनजियांग प्रांत में दस लाख उइगुर मुसलमानों को जबरन शिविरों में रखा गया है. संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि वहां कायम शिविरों में कम से कम दस लाख उइगुर और अन्य अल्पसंख्यक मुसलमानों को रखा गया है. शिनजियांग उत्तर पश्चिमी चीन का एक सुदूर इलाका है जहां की मुख्य रूप से मुस्लिम आबादी को चीनी अधिकारियों के हाथों लंबे समय से प्रताड़ित किया जाता रहा है. हाल के सालों में इसमें रिएजुकेशन कैंपों में लंबे समय के लिए नजरबंदी भी शामिल हो गई है.
प्रतिनिधि सभा में कानून को पारित करते हुए सांसदों ने कहा कि वे ऐसा कर उइगुर समुदाय के प्रणालीगत जबरन श्रम को रोकने के लिए प्रयास कर रहे हैं. प्रतिनिधि सभा में उइगुर जबरन श्रम निवारण अधिनियम के पक्ष में 406 मत पड़े जबकि विरोध में 3. कई अमेरिकी कारोबारियों ने इस कदम का विरोध किया था. इस कानून को प्रभावी होने के पहले सीनेट से पास कराना जरूरी है.
अमेरिका और अन्य देश चीन पर लगातार दबाव बना रहे हैं ताकि वह जबरन श्रम शिविर पर कार्रवाई करे. अमेरिकी संसद के निचले सदन हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स की स्पीकर नेन्सी पेलोसी ने कहा, "दुख की बात है कि जबरन श्रम के उत्पाद अकसर अमेरिकी दुकानों और घरों में खपते हैं. हमें बीजिंग को स्पष्ट संदेश देना चाहिए. इस तरह के अत्याचार अब बंद होने चाहिए." अधिकार संगठन के एक शोध के मुताबिक अमेरिका में आने वाले 20 फीसदी से अधिक कपड़ों में इस्तेमाल हुआ कुछ ना कुछ धागा शिनजियांग प्रांत में तैयार होता है.
अमेरिका के चैंबर ऑफ कॉमर्स ने इस कानून की आलोचना की है, यह दावा करते हुए कि कानून जबरन श्रम द्वारा तैयार किए गए उत्पादों के आयात को रोकने के बजाय वैध व्यापार को प्रतिबंधित करेगा. अमेरिका के विदेश विभाग का कहना है कि वह देश की कंपनियों को इस बारे में जागरूक करेगा और प्रांत से आने वाले उत्पादों के बारे में जानकारी देगा.
चीन में इस्लामी चरमपंथ और अलगाववाद से निपटने के लिए मुसलमानों को इस्लाम के रास्ते से हटाकर चीनी नीति और तौर तरीकों का पाठ पढ़ाया जा रहा है. जानिए क्या होता है ऐसे शिविरों में.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/N. H. Guan
बुरी यादें
चीन में मुसलमानों का ब्रेशवॉश करने के शिविरों में ओमिर बेकाली ने जो झेला, उसकी बुरी यादें अब तक उनके दिमाग से नहीं निकलतीं. इस्लामी चरमपंथ से निपटने के नाम पर चल रहे इन शिविरों में रखे लोगों की सोच को पूरी तरह बदलने की कोशिश हो रही है.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/N. H. Guan
यातनाएं
सालों पहले चीन से जाकर कजाखस्तान में बसे बेकाली अपने परिवार से मिलने 2017 में चीन के शिनचियांग गए थे कि पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर ऐसे शिविर में डाल दिया. बेकाली बताते हैं कि कैसे कलाइयों के जरिए उन्हें लटकाया गया और यातनाएं दी गईं.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/N. H. Guan
आत्महत्या का इरादा
बेकाली बताते हैं कि पकड़े जाने के एक हफ्ते बाद उन्हें एक कालकोठरी में भेज दिया गया और 24 घंटे तक खाना नहीं दिया गया. शिविर में पहुंचने के 20 दिन के भीतर जो कुछ सहा, उसके बाद वह आत्महत्या करना चाहते थे.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/N. H. Guan
क्या होता है
बेकाली बताते हैं कि इन शिविरों में रखे गए लोगों को अपनी खुद की आलोचना करनी होती है, अपने धार्मिक विचारों को त्यागना होता है, अपने समुदाय को छोड़ना होता है. चीनी मुसलमानों के अलावा इन शिविरों में कुछ विदेशी भी रखे गए हैं.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/N. H. Guan
इस्लाम के 'खतरे'
बेकाली बताते हैं कि शिविरों में इंस्ट्रक्टर लोगों को इस्लाम के 'खतरों' के बारे में बताते थे. कैदियों के लिए क्विज रखी गई थीं, जिनका सभी जवाब न देने वाले व्यक्ति को घंटों तक दीवार पर खड़ा रहना पड़ता था.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/N. H. Guan
कम्युनिस्ट पार्टी की तारीफ
यहां लोग सवेरे सवेरे उठते हैं, चीनी राष्ट्रगान गाते थे और साढ़े सात बजे चीनी ध्वज फहराते थे. वे ऐसे गीते गाते थे जिनमें कम्युनिस्ट पार्टी की तारीफ की गई हो. इसके अलावा उन्हें चीनी भाषा और इतिहास भी पढ़ाया जाता था.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/How Hwee Young
धन्यवाद शी जिनपिंग
जब इन लोगों को सब्जियों का सूप और डबल रोटी खाने को दी जाती थी तो उससे पहले उन्हें "धन्यवाद पार्टी! धन्यवाद मातृभूमि! धन्यवाद राष्ट्रपति शी!" कहना पड़ता था. कुल मिलाकर उन्हें चीनी राष्ट्रवाद की घुट्टी पिलाई जाती है.
तस्वीर: Getty Images/K. Frayer
नई पहचान
चीन के पश्चिमी शिनचियांग इलाके में चल रहे इन शिविरों का मकसद वहां रखे गए लोगों की राजनीतिक सोच को तब्दील करना, उनके धार्मिक विचारों को मिटाना और उनकी पहचान को नए सिरे से आकार देना है.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/A. Wong
लाखों कैदी
रिपोर्टों के मुताबिक इन शिविरों में हजारों लोगों को रखा गया है. कहीं कहीं उनकी संख्या दस लाख तक बताई जाती है. एक अमेरिकी आयोग ने इन शिविरों को दुनिया में "अल्पसंख्यकों का सबसे बड़ा कैदखाना" बताया है.
तस्वीर: J. Duez
गोपनीय कार्यक्रम
यह कार्यक्रम बेहद गोपनीय तरीके से चल रहा है लेकिन कुछ चीनी अधिकारी कहते हैं कि अलगाववाद और इस्लामी चरमपंथ से निपटने के लिए "वैचारिक परिवर्तन बहुत जरूरी" है. चीन में हाल के सालों में उइगुर चरमपंथियों के हमलों में सैकड़ों लोग मारे गए हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/H. W. Young
खोने को कुछ नहीं
बेकाली तो अब वापस कजाखस्तान पहुंच गए हैं लेकिन वह कहते हैं कि चीन में अधिकारियों ने उनके माता पिता और बहन को पकड़ रखा है. उन्होंने अपनी कहानी दुनिया को बताई, क्योंकि "अब मेरे पास खोने को कुछ" नहीं है.