प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिकी कंपनियों को भारत में निवेश करने का न्योता दिया है. मोदी ने इंडिया आइडियाज शिखर सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान देश में 20 अरब डॉलर का विदेशी निवेश हुआ.
विज्ञापन
अमेरिका-भारत व्यापार परिषद की ओर से आयोजित इंडिया आइडियाज समिट में बोलते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि इस वक्त दुनिया भारत की तरफ देख रही है, क्योंकि भारत खुलेपन, अवसरों और तकनीक का बेहतरीन मिश्रण है. मोदी ने कहा हम सभी इस बात से सहमत हैं कि दुनिया को बेहतर भविष्य की जरूरत है. मोदी ने कहा, "मेरा मानना है कि भविष्य के लिए हमारी कोशिश मुख्य रूप से अधिक मानव केंद्रित होनी चाहिए." उन्होंने कारोबारियों को बताया कि किस तरह से भारत ने एफडीआई की सीमाओं में ढील देकर निवेश के दरवाजे खोले हैं. मोदी ने बताया कि इस साल अप्रैल और जुलाई के बीच भारत ने 20 अरब डॉलर से अधिक का विदेशी निवेश आकर्षित किया है.
मोदी ने अमेरिकी निवेशकों से स्वास्थ्य, रक्षा और ऊर्जा समेत अन्य क्षेत्रों में निवेश के अवसर गिनाए, इस दौरान उन्होंने कहा कि भारत अवसरों की भूमि के रूप में उभर रहा है. मोदी के मुताबिक, "भारत आपको वित्त और बीमा क्षेत्र में निवेश के लिए आमंत्रित करता है. बीमा में 49 प्रतिशत एफडीआई की सीमा को बढ़ाकर भारत ने सौ प्रतिशत कर दिया है. इंडिया आपको डिफेंस और स्पेस सेक्टर में निवेश के लिए आमंत्रित करता है. भारत में रक्षा उपकरणों के निर्माण को प्रोत्साहित करने के लिए दो रक्षा गलियारे भी बनाए हैं."
अपने संबोधन में मोदी ने अमेरिकी निवेशकों से कहा कि वे देश के बुनियादी ढांचे में निवेश करें. उन्होंने कहा, "हमारा राष्ट्र हमारे इतिहास में सबसे बड़ा बुनियादी ढांचा निर्माण अभियान देख रहा है. लाखों लोगों के लिए आवास बनाने में भागीदार बनें, या हमारे देश में सड़कों, राजमार्गों और बंदरगाहों का निर्माण करें." साथ ही प्रधानमंत्री ने ऊर्जा के क्षेत्र में निवेश के मौके भी गिनाए. उन्होंने कहा क्लीन एनर्जी सेक्टर में भी अमेरिकी कंपनियों के लिए अवसरों की भरमार होगी.
दूसरी ओर अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पेयो ने बुधवार को इस समिट में बोलते हुए कहा कि भारत को चीनी उत्पादों पर अपनी निर्भरता कम करनी होगी. हाल के दिनों में अमेरिका और चीन के बीच तनाव बढ़ा है. पोम्पेयो ने नई दिल्ली को वाशिंगटन का नैचुरल पार्टनर करार दिया. उन्होंने भारत को "कुछ भरोसेमंद, समान विचारधारा वाले देशों में से एक" बताया. समिट को संबोधित करते हुए पोम्पेयो ने कहा, "भारत के पास ग्लोबल सप्लाई चेन आकर्षित करने और अन्य क्षेत्र जैसे कि दूरसंचार, चिकित्सा आपूर्ति आदि में चीनी कंपनियों पर अपनी निर्भरता को कम करने का मौका है."
पोम्पेयो ने कहा भारत इस स्थिति में इसलिए है क्योंकि उसने अमेरिका समेत दुनिया भर के कई देशों का विश्वास अर्जित किया है. समिट में मोदी ने कहा कि दोनों देशों के बीच व्यापार वायरस से प्रभावित विश्व अर्थव्यवस्था को वापस पटरी पर लाने में मदद करेगा.
इंडिया आइडियाज समिट का इस साल का विषय "बिल्डिंग ए बेटर फ्यूचर" है. इस साल भारत-अमेरिका बिजनेस काउंसिल की स्थापना के 45 साल पूरे हो चुके हैं. इस वर्चुअल समिट को भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण, रेल मंत्री पीयूष गोयल के साथ-साथ दोनों देशों के कई बड़े अफसर भी संबोधित करेंगे. कोरोना वायरस के बाद के हालात से उबरने के लिए इस वर्चुअल समिट की अहम भूमिका बताई जा रही है.
कैसे अमेरिका को चुनौती देने वाली महाशक्ति बन गया चीन
सोवियत संघ के विघटन के बाद से अमेरिका अब तक दुनिया की अकेली महाशक्ति बना रहा. लेकिन अब चीन इस दबदबे को चुनौती दे रहा है. एक नजर बीते 20 साल में चीन के इस सफर पर.
तस्वीर: Colourbox
मील का पत्थर, 2008
2008 में जब दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था आर्थिक मंदी से खस्ताहाल हो रही थी, तभी चीन अपने यहां भव्य तरीके ओलंपिक खेलों का आयोजन कर रहा था. ओलंपिक के जरिए बीजिंग ने दुनिया को दिखा दिया कि वह अपने बलबूते क्या क्या कर सकता है.
तस्वीर: AP
मंदी के बाद की दुनिया
आर्थिक मंदी के बाद चीन और भारत जैसे देशों से वैश्विक अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की उम्मीद की जाने लगी. चीन ने इस मौके को बखूबी भुनाया. उसके आर्थिक विकास और सरकारी बैंकों ने मंदी को संभाल लिया.
तस्वीर: Getty Images/AFP/I. Mukherjee
ग्लोबल ब्रांड “मेड इन चाइना”
लोकतांत्रिक अधिकारों से चिढ़ने वाले चीन ने कई दशकों तक बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा करने में खूब संसाधन झोंके. इन योजनाओं की बदौलत बीजिंग ने खुद को दुनिया का प्रोडक्शन हाउस साबित कर दिया. प्रोडक्शन स्टैंडर्ड के नाम पर वह पश्चिमी उत्पादों को टक्कर देने लगा.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
मध्य वर्ग की ताकत
बीते दशकों में जहां, दुनिया के समृद्ध देशों में अमीरी और गरीबी के बीच खाई बढ़ती गई, वहीं चीन अपने मध्य वर्ग को लगातार बढ़ाता गया. अमीर होते नागरिकों ने चीन को ऐसा बाजार बना दिया जिसकी जरूरत दुनिया के हर देश को पड़ने लगी.
चीन के आर्थिक विकास का फायदा उठाने के लिए सारे देशों में होड़ सी छिड़ गई. अमेरिका, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस और ब्रिटेन समेत तमाम अमीर देशों को चीन में अपने लिए संभावनाएं दिखने लगीं. वहीं चीन के लिए यह अपने राजनीतिक और आर्थिक प्रभाव को विश्वव्यापी बनाने का अच्छा मौका था.
तस्वीर: picture-alliance/ZUMAPRESS.com/Tang Ke
पश्चिम के दोहरे मापदंड
एक अरसे तक पश्चिमी देश मानवाधिकारों और लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए चीन की आलोचना करते रहे. लेकिन चीनी बाजार में उनकी कंपनियों के निवेश, चीन से आने वाली मांग और बीजिंग के दबाव ने इन आलोचनाओं को दबा दिया.
तस्वीर: picture-alliance/Imagechina
शी का चाइनीज ड्रीम
आर्थिक रूप से बेहद ताकतवर हो चुके चीन से बाकी दुनिया को कोई परेशानी नहीं थी. लेकिन 2013 में शी जिनपिंग के चीन का राष्ट्रपति बनने के बाद नजारा बिल्कुल बदल गया. शी जिनपिंग ने पहली बार चीनी स्वप्न को साकार करने का आह्वान किया.
तस्वीर: Getty Images/Feng Li
शुरू हुई चीन से चुभन
आर्थिक विकास के कारण बेहद मजबूत हुई चीनी सेना अब तक अपनी सीमा के बाहर विवादों में उलझने से बचती थी. लेकिन शी के राष्ट्रपति बनने के बाद चीन ने सेना के जरिए अपने पड़ोसी देशों को आँखें दिखाना शुरू कर दिया. इसकी शुरुआत दक्षिण चीन सागर विवाद से हुई.
तस्वीर: picture alliance/Photoshot/L. Xiao
लुक्का छिप्पी की रणनीति
एक तरफ शी और दूसरी तरफ अमेरिका में बराक ओबामा. इस दौरान प्रभुत्व को लेकर दोनों के विवाद खुलकर सामने नहीं आए. दक्षिण चीन सागर में सैन्य अड्डे को लेकर अमेरिकी नौसेना और चीन एक दूसरे चेतावनी देते रहे. लेकिन व्यापारिक सहयोग के कारण विवाद ज्यादा नहीं भड़के.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/H. Guan
कमजोर पड़ता अमेरिका
इराक और अफगानिस्तान युद्ध और फिर आर्थिक मंदी, अमेरिका आर्थिक रूप से कमजोर पड़ चुका था. चीन पर आर्थिक निर्भरता ने ओबामा प्रशासन के पैरों में बेड़ियों का काम किया. चीन के बढ़ते आक्रामक रुख के बावजूद वॉशिंगटन कई बार पैर पीछे खींचता दिखा.
तस्वीर: AFP/Getty Images/S. Marai
संघर्ष में पश्चिम और एकाग्र चीन
एक तरफ जहां चीन दक्षिण चीन सागर में अपना प्रभुत्व बढ़ा रहा था, वहीं यूरोप में रूस और यूरोपीय संघ बार बार टकरा रहे थे. 2014 में रूस ने क्रीमिया को अलग कर दिया. इसके बाद अमेरिका और उसके यूरोपीय साझेदार रूस के साथ उलझ गए. चीन इस दौरान अफ्रीका में अपना विस्तार करता गया.
तस्वीर: imago stock&people
इस्लामिक स्टेट का उदय
2011-12 के अरब वसंत के कुछ साल बाद अरब देशों में इस्लामिक स्टेट नाम के नए आतंकवादी गुट का उदय हुआ. अरब जगत के राजनीतिक और सामाजिक संघर्ष ने पश्चिम को सैन्य और मानवीय मोर्चे पर उलझा दिया. पश्चिम को आईएस और रिफ्यूजी संकट से दो चार होना पड़ा.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/
वन बेल्ट, वन रोड
2016 चीन ने वन बेल्ट वन रोड परियोजना शुरू की. जिन गरीब देशों को अपने आर्थिक विकास के लिए विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से कड़ी शर्तों के साथ कर्ज लेना पड़ता था, चीन ने उन्हें रिझाया. चीन ने लीज के बदले उन्हें अरबों डॉलर दिए और अपने विशेषज्ञ भी.
तस्वीर: Getty Images/AFP/T. Chhin Sothy
हर जगह चीन ही चीन
चीन बेल्ट एंड रोड प्रोजेक्ट सहारे अफ्रीका, दक्षिण अमेरका, पूर्वी एशिया और खाड़ी के देशों तक पहुचना चाहता है. इससे उसकी सीधी पहुंच पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह तक भी होगी और अफ्रीका में हिंद और अटलांटिक महासागर के तटों पर भी.
तस्वीर: Reuters/T. Mukoya
सीन में ट्रंप की एंट्री
जनवरी 2017 में अरबपति कारोबारी डॉनल्ड ट्रंप ने अमेरिका के नए राष्ट्रपति का पद संभाला. दक्षिणपंथी झुकाव रखने वाले ट्रंप ने अमेरिका फर्स्ट का नारा दिया. ट्रंप ने लुक्का छिप्पी की रणनीति छोड़ते हुए सीधे चीन टकराने की नीति अपनाई. ट्रंप ने आते ही चीन के साथ कारोबारी युद्ध छेड़ दिया.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/A. Young-joon
पड़ोसी मुश्किल में
जिन जिन पड़ोसी देशों या स्वायत्त इलाकों से चीन का विवाद है, चीन ने वहाँ तक तेजी से सेना पहुंचाने के लिए पूरा ढांचा बैठा दिया. विएतनाम, ताइवान और जापान देशों के लिए वह दक्षिण चीन सागर में है. और भारत के लिए नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका में.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo
सहयोगियों में खट पट
चीन की बढ़ते वर्चस्व को रोकने के लिए ट्रंप को अपने यूरोपीय सहयोगियों से मदद की उम्मीद थी, लेकिन रक्षा के नाम पर अमेरिका पर निर्भर यूरोप से ट्रंप को निराशा हाथ लगी. नाटो के फंड और कारोबारियों नीतियों को लेकर मतभेद बढ़ने लगे.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/P. Nicholls
दूर बसे साझेदार
अब वॉशिंगटन के पास चीन के खिलाफ भारत, ब्रेक्जिट के बाद का ब्रिटेन, जापान, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया और वियतनाम जैसे साझेदार हैं. अब अमेरिका और चीन इन देशों को लेकर एक दूसरे से टकराव की राह पर हैं.
तस्वीर: Colourbox
कोरोना का असर
चीन के वुहान शहर ने निकले कोरोना वायरस ने दुनिया भर में जान माल को भारी नुकसान पहुंचाया. कोरोना ने अर्थव्यवस्थाओं को भी चौपट कर दिया है. अब इसकी जिम्मेदारी को लेकर विवाद हो रहा है. यह विवाद जल्द थमने वाला नहीं है.
तस्वीर: picture-alliance/Ritzau Scanpix/I. M. Odgaard
चीन पर निर्भरता कम करने की शुरुआत
अमेरिका समेत कई देश यह जान चुके हैं कि चीन को शक्ति अपनी अर्थव्यवस्था से मिल रही है. इसके साथ ही कोरोना वायरस ने दिखा दिया है कि चीन ऐसी निर्भरता के क्या परिणाम हो सकते हैं. अब कई देश प्रोडक्शन के मामले में दूसरे पर निर्भरता कम करने की राह पर हैं.