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राजनीतिऑस्ट्रेलिया

अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया मिलकर करेंगे जासूसी

१ अगस्त २०२३

अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जासूसी के लिए एक साझा सैन्य शाखा बनाकर साथ काम करने पर सहमत हुए हैं.

ऑस्ट्रेलिया की सेना
ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के सैन्य संबंध बहुत पुराने हैंतस्वीर: DARREN ENGLAND/AAP/IMAGO

ऑस्ट्रेलिया की सेना की जासूसी शाखा डिफेंस इंटेलिजेंस ऑर्गेनाइजेशन (डीआईओ) में अब अमेरिका के अफसर भी काम करेंगे. दोनों देशों ने ऐलान किया है कि ‘कंबाइंड इंटेलिजेंस ऑर्गनाइजेशन - ऑस्ट्रेलिया‘ (CIOA) नाम से डीआईओ की एक विशेष शाखा स्थापित की जाएगी, जिसका काम एशिया प्रशांत क्षेत्र में निगरानी को और चाक-चौबंद करना होगा. अगले साल तक यह शाखा काम करना शुरू कर देगी.

अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया पहले भी गोपनीय सूचनाएं साझा करते रहे हैं. इसके अलावा फाइव आइज नाम से भी एक तंत्र काम करता है, जिसमें ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन और न्यूजीलैंड सूचनाएं साझा करते हैं. इसे एक कदम और आगे ले जाते हुए अब अमेरिकी अफसर सीधे ऑस्ट्रेलिया के अफसरों के साथ मिलकर काम करेंगे.

महत्वपूर्ण कदम

अमेरिका के रक्षा मंत्री के ऑस्ट्रेलिया दौरे पर इस बारे में समझौता हुआ है. ऑस्ट्रेलिया के रक्षा मंत्री रिचर्ड मार्ल्स ने कहा कि इंटेलिजेंस के क्षेत्र में दोनों देशों के संबंध पहले ही काफी करीबी हैं और वे एक दूसरे के साथ बड़े पैमाने पर सूचनाएं साझा करते हैं. उन संबंधों को "निर्बाध” बनाने की दिशा में सीआईओए एक बेहद महत्वपूर्ण कदम है.

मार्ल्स ने कहा, "यह हमें मिलकर काम करने की शक्ति देता है और इसके जरिये और ज्यादा साझा काम सामने आएगा. यह एक ऐसी यूनिट होगी जो दोनों देशों की सेनाओं के लिए सूचनाएं जुटाएगी, जो मेरे हिसाब से बहुत महत्वपूर्ण है. इससे अमेरिकी व्यवस्था के बारे में हमें अमेरिकी नजरिया मिलेगा, जो कोई छोटी बात नहीं है.”

हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सक्रियता

हालांकि मार्ल्स ने यह नहीं बताया कि असल में यह नयी शाखा किस तरह की सूचनाओं पर काम करेगी लेकिन बीते सप्ताहांत पर हुई आउसमिन (AUSMIN) बैठक के बाद जारी साझा बयान में कहा गया है कि यह शाखा ‘हिंद-प्रशांत क्षेत्र में साझा रणनीतिक चिंताओं के विश्लेषण‘ की दिशा में काम करेगी. विशेषज्ञों का मानना है कि इस शाखा का मकसद क्षेत्र में चीन की सैन्य मौजूदगी पर नजर रखना हो सकता है.

हाल ही में चीन ने एशिया-प्रशांत क्षेत्र में मौजूद छोटे देशों के साथ संबंध मजबूत करने और खासकर सैन्य समझौते करने की दिशा में काफी काम किया है. सोलोमन द्वीप के साथ उसका सैन्य समझौता अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया को खासा परेशान करता रहा है. हालांकि मार्ल्स ने इस बात से साफ इनकार किया कि सीआईओए के रूप में अमेरिका ने यह कदम पिछले साल हुए उस समझौते के जवाब में उठाया है. चीन और सोलोमन द्वीप के बीच हुए समझौते के बारे में ऑस्ट्रेलिया को कोई जानकारी नहीं मिल सकी थी, जिससे पश्चिमी जगत हैरान था.

पिछले हफ्ते अमेरिका के विदेश और रक्षा मंत्री ऑस्ट्रेलिया में थे और दोनों देशों के नेताओं के बीच कई दौर की बातचीत हुई. अमेरिकी रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन और ऑस्ट्रेलियाई रक्षा मंत्री रिचर्ड मार्ल्स लावारैक बैरक्स में अमेरिकी और ऑस्ट्रेलियाई सैनिकों से भी मिले. वहां हजारों सैनिक साझा सैन्य अभ्यास कर रहे हैं जिसे ऑपरेशन तालिस्मान साबरे नाम दिया गया है. ऑस्ट्रेलिया को अमेरिका से पनडुब्बियां मिलने का समझौता भी हुआ है.

ताइवान पर तनातनी

ताइवान भी एक ऐसा मुद्दा है जिसे लेकर अमेरिका और चीन के बीच तनातनी जारी है. मंगलवार को ही चीन ने अमेरिका से शिकायत की है कि वह ताइवान को हथियार सप्लाई कर रहा है जो ‘ना सिर्फ गलत है बल्कि खतरनाक भी' है. शुक्रवार को ही अमेरिकी कांग्रेस ने ताइवान को 34.5 करोड़ डॉलर के राहत पैकेज और एक अरब डॉलर के हथियारों की सप्लाई के प्रस्ताव को पारित किया है.

चीन के रक्षा मंत्रालय के एक प्रवक्ता टैन केफाई ने कहा कि अमेरिका को ताइवान के साथ हर तरह की सैन्य साझेदारी रोक देनी चाहिए. उन्होंने कहा, "ताइवान का मुद्दा चीनी हितों के केंद्र में है और एक ऐसी सीमा-रेखा है जिसे अमेरिका-चीन संबंधों में पार नहीं किया जाना चाहिए.”

वीके/एए (रॉयटर्स, एएफपी)

 

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