अमेरिका ने अपने नागरिकों को दी यूक्रेन छोड़ने की सलाह
२४ जनवरी २०२२
अमेरिका ने यूक्रेन में तैनात अपने राजनयिकों के परिवारों को वापस लौट आने का आदेश दिया है. यूक्रेन में मौजूद सभी अमेरिकी नागरिकों को तुरंत देश छोड़ने की हिदायत दी गई है. क्या युद्ध का खतरा बहुत नजदीक है?
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यूक्रेन में रूस की सैन्य कार्रवाई के खतरे का हवाला देते हुए अमेरिका ने अपने राजनयिकों के परिजनों को फौरन देश छोड़ने का आदेश दिया है. रविवार को अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने आदेश जारी कर कहा कि सभी परिजनों को तुरंत निकलना शुरू करना है.
अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने अपने नागरिकों को यूक्रेन की यात्रा ना करने की भी हिदायत दी है. यात्रा संबंधी एक सार मंत्रालय की वेबसाइट पर प्रकाशित की गई है. इसमें कहा गया है कि ऐसी सूचनाएं मिली हैं कि रूस यूक्रेन के खिलाफ सैन्य कार्रवाई की तैयारी कर रहा है.
टाइम बम जैसे विवाद
दुनिया भर में कुछ ऐसे विवाद हैं जो कभी भी युद्ध भड़का सकते हैं. ये सिर्फ दो देशों को ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया को लड़ाई में खींच सकते हैं.
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दक्षिण चीन सागर
बीते दशक में जब यह पता चला कि चीन, फिलीपींस, वियतनाम, ताइवान, ब्रुनेई, इंडोनेशिया, सिंगापुर और कंबोडिया के बीच सागर में बेहद कीमती पेट्रोलियम संसाधन है, तभी से वहां झगड़ा शुरू होने लगा. चीन पूरे इलाके का अपना बताता है. वहीं अंतरराष्ट्रीय ट्राइब्यूनल चीन के इस दावे के खारिज कर चुका है. बीजिंग और अमेरिका इस मुद्दे पर बार बार आमने सामने हो रहे हैं.
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पूर्वी यूक्रेन/क्रीमिया
2014 में रूस ने क्रीमिया प्रायद्वीप को यूक्रेन से अलग कर दिया. तब से क्रीमिया यूक्रेन और रूस के बीच विवाद की जड़ बना हुआ है. यूक्रेन क्रीमिया को वापस पाना चाहता है. पश्चिमी देश इस विवाद में यूक्रेन के पाले में है.
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कोरियाई प्रायद्वीप
उत्तर और दक्षिण कोरिया हमेशा युद्ध के लिए तैयार रहते हैं. उत्तर कोरिया भड़काता है और दक्षिण को तैयारी में लगे रहना पड़ता है. दो किलोमीटर का सेनामुक्त इलाका इन देशों को अलग अलग रखे हुए हैं. उत्तर को बीजिंग का समर्थन मिलता है, वहीं बाकी दुनिया की सहानुभूति दक्षिण के साथ है.
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कश्मीर
भारत और पाकिस्तान के बीच बंटा कश्मीर दुनिया में सबसे ज्यादा सैन्य मौजूदगी वाला इलाका है. दोनों देशों के बीच इसे लेकर तीन बार युद्ध भी हो चुका है. 1998 में करगिल युद्ध के वक्त तो परमाणु युद्ध जैसे हालात बनने लगे थे.
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साउथ ओसेटिया और अबखासिया
कभी सोवियत संघ का हिस्सा रहे इन इलाकों पर जॉर्जिया अपना दावा करता है. वहीं रूस इनकी स्वायत्ता का समर्थन करता है. इन इलाकों के चलते 2008 में रूस-जॉर्जिया युद्ध भी हुआ. रूसी सेनाओं ने इन इलाकों से जॉर्जिया की सेना को बाहर कर दिया और उनकी स्वतंत्रता को मान्यता दे दी.
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नागोर्नो-काराबाख
नागोर्नो-काराबाख के चलते अजरबैजान और अर्मेनिया का युद्ध भी हो चुका है. 1994 में हुई संधि के बाद भी हालात तनावपूर्ण बने हुए हैं. इस इलाके को अर्मेनिया की सेना नियंत्रित करती है. अप्रैल 2016 में वहां एक बार फिर युद्ध जैसे हालात बने.
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पश्चिमी सहारा
1975 में स्पेन के पीछे हटने के बाद मोरक्को ने पश्चिमी सहारा को खुद में मिला लिया. इसके बाद दोनों तरफ से हिंसा होती रही. 1991 में संयुक्त राष्ट्र के संघर्षविराम करवाया. अब जनमत संग्रह की बात होती है, लेकिन कोई भी पक्ष उसे लेकर पहल नहीं करता. रेगिस्तान के अधिकार को लेकर तनाव कभी भी भड़क सकता है.
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ट्रांस-डिनिएस्टर
मोल्डोवा का ट्रांस-डिनिएस्टर इलाका रूस समर्थक है. यह इलाका यूक्रेन और रूस की सीमा है. वहां रूस की सेना तैनात रहती है. विशेषज्ञों के मुताबिक पश्चिम और मोल्डोवा की बढ़ती नजदीकी मॉस्को को यहां परेशान कर सकती है.
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अमेरिका ने कीव स्थित अपने दूतावास के कर्मचारियों को भी कहा है कि अगर वे चाहें तो लौट सकते हैं. समाचार एजेंसी एपी के अनुसार कर्मचारियों का लौटना उनकी इच्छा पर छोड़ा गया है लेकिन वे लौटने का फैसला करते हैं तो सरकार इसका खर्च देगी.
मदद जारी रहेगी
विदेश मंत्रालय की एडवाइजरी के मुताबिक, "रूस अधिकृत क्रीमिया और रूसी नियंत्रण वाले पूर्वी यूक्रेन में सुरक्षा हालात काफी नाजुक हैं और बहुत कम समय में स्थिति बिगड़ सकती है. यूक्रेन में नियमति रूप से होने वाले प्रदर्शन अक्सर हिंसक हो सकते हैं.”
समाचार एजेंसी एपी ने अमेरिकी विदेश मंत्रालय के अधिकारियों के हवाले से लिखा है कि दूतावास खुला रहेगा और इस घोषणा का अर्थ वहां से लोगों को बचाकर निकाला जाना नहीं है. यह भी स्पष्ट किया गया है कि इस घोषणा के बावजूद अमेरिका की यूक्रेन को मदद जारी रहेगी.
रविवार देर रात जारी एक अन्य अडवाइजरी में अमेरिका ने अपने नागरिकों को रूस ना जाने की भी सलाह दी है. लोगों को रूस से यूक्रेन सड़क के रास्ते यात्रा ना करने की भी हिदायत दी गई है.
यूक्रेन में कैसे हैं हालात?
अमेरिका की यह घोषणा तब हुई है जबकि यूक्रेन पर रूसी हमले का खतरा लगातार बना हुआ है. शनिवार को ही ब्रिटेन के विदेश मंत्रालय ने दावा किया था कि रूस यूक्रेन में अपनी कठपुतली सरकार स्थापित करना चाहता है. हालांकि रूस ने इस दावे को गलत बताया है.
क्लस्टर बम यानी मौत की बारिश
क्लस्टर म्युनिशन कोएलिशन की रिपोर्ट से पता चला कि 2015 में क्लस्टर बमों की वजह से 400 लोग मारे गए. ज्यादातर मौतें सीरिया, यमन और यूक्रेन में हुईं. इन बमों के बारे में क्या जानते हैं आप?
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पहली बार
क्लस्टर बमों का इस्तेमाल सबसे पहले 1943 में सोवियत और जर्मन फौजों ने किया था. तब से अब तक 200 तरह के क्लस्टर बम बनाए जा चुके हैं.
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कैसे मारते हैं
एक क्लस्टर बम असल में सैकड़ों छोटे छोटे बमों का संग्रह होता है. इन्हें जब हवा से फेंका जाता है तो ये बीच रास्ते में फट कर सैकड़ों बमों में बदल जाते हैं और बहुत बड़े इलाके तबाह करते हैं.
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किसने चलाए
2016 की क्लस्टर म्युनिशन रिपोर्ट के मुताबिक सीरिया और सऊदी अरब की फौजों ने सीरिया और यमन में क्लस्टर बम चलाए.
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सबसे घातक
युद्धों में 2015 में कुल जितने असैन्य नागरिक मारे गए हैं उनमें से 97 फीसदी की मौत क्लस्टर बमों का शिकार होकर हुई है.
तस्वीर: AP/Human Rights Watch
अब तक 20 हजार
1960 के दशक से अब तक क्लस्टर बम 20 हजार से ज्यादा जानें ले चुके हैं. क्लस्टर बमों से अब तक कुल 55 हजार जानें जाने का अनुमान है.
तस्वीर: AP
सबसे पीड़ित कौन
क्लस्टर बमों ने सबसे ज्यादा तबाही वियतनाम और लाओस में मचाई है. उसके बाद इराक और कंबोडिया का नंबर है. अब तक 24 देशों के लोग इनसे प्रभावित हुए हैं.
तस्वीर: Universität von Belgrad
बैन की रणनीति
30 मई 2008 को 100 से ज्यादा देशों के बीच एक समझौता हुआ जिसके तहत क्लस्टर बमों का निर्माण, संग्रहण और इस्तेमाल तक बैन कर दिया गया.
तस्वीर: picture-alliance / dpa
अब तक 119
क्लस्टर बमों को बैन करने के समझौते पर अब तक 119 देशों ने दस्तखत किए हैं. लेकिन अमेरिका, चीन, रूस, ब्राजील, वेनेजुएला, अर्जेन्टीना, इस्राएल, ग्रीस, मिस्र और ईरान जैसे बड़े देश इस समझौते से बाहर हैं.
तस्वीर: US Army
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जर्मनी की विदेश मंत्री क्रिस्टीन लांब्रेष्ट ने शनिवार को दिए एक इंटरव्यू में सभी पक्षों से संयम बरतने और तनाव घटाने की अपील की थी. उन्होंने यह भी कहा कि जर्मनी यूक्रेन को हथियार सप्लाई नहीं करेगा.
शुक्रवार को अमेरिका और रूस के बीच हुई बातचीत में कोई विशेष तरक्की नहीं हुई थी.