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कोरोना वैक्सीन को ले कर भी ट्रंप का "अमेरिका फर्स्ट"

१६ मार्च २०२०

जर्मनी के एक अखबार ने रविवार को यह खबर छापी की अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप एक जर्मन कंपनी से कोरोना का टीका खरीदने की कोशिश कर रहे हैं. ट्रंप इसे केवल अमेरिका के लिए हासिल करना चाहते हैं.

US-Präsident Donald Trump
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/A. Brandon

जर्मनी के जानेमाने अखबार "वेल्ट अम जॉनटाग" ने रविवार को खबर छापी कि डॉनल्ड ट्रंप ने एक जर्मन कंपनी को कोरोना के खिलाफ वैक्सीन के लिए भारी रकम देने की पेशकश की है. इस कंपनी का नाम क्यूरवैक है और यह नॉवल कोरोना वायरस का टीका बनाने पर काम कर रही है. अखबार के अनुसार ट्रंप इस टीके के सारे अधिकार खरीदना चाहते हैं ताकि इसका इस्तेमाल सिर्फ और सिर्फ अमेरिका में किया जा सके. 

अखबार में खबर छपने के बाद कंपनी ने अपनी सफाई देते हुए ट्विटर के माध्यम से अपना प्रेस रिलीज जारी किया और लिखा कि यह वैक्सीन दुनिया भर के लोगों के लिए होगी और कंपनी अपनी तकनीक के बेचे जाने की खबरों का खंडन करती है. 

31 दिसंबर 2019 को चीन के वुहान से कोरोना के पहले मामले विश्व स्वास्थ्य संगठन के पास दर्ज किए गए थे. जनवरी से ही जर्मनी की इस कंपनी ने वायरस के खिलाफ वैक्सीन बनाने पर काम शुरू कर दिया था. कंपनी का दावा है कि गर्मियों की शुरुआत से पहले वैक्सीन क्लिनिकल ट्रायल के लिए तैयार हो जाएगी. यह कंपनी जर्मनी के ट्यूबिंगन में स्थित है. लेकिन अमेरिका के बॉस्टन में इसकी एक शाखा भी है. 

11 मार्च को खबर आई कि डानिएल मिनिषेला को कंपनी के सीईओ के पद से हटाया गया. इसके बाद 15 मार्च को वेल्ट अम जॉनटाग ने लिखा कि 2 मार्च को मिनिषेला ने ट्रंप से मुलाकात की थी और इस मुलाकात के दौरान ट्रंप ने कथित तौर पर कंपनी की सारी रिसर्च को बॉस्टन लाने का प्रस्ताव दिया था. अखबार ने एक सरकारी सूत्र के हवाले से लिखा कि ट्रंप वैक्सीन को अमेरिका में लाने की "हर मुमकिन कोशिश" कर रहे हैं और वे चाहते हैं कि यह सिर्फ अमेरिका के लिए ही हो. 

वहीं अमेरिकी सरकार के एक प्रतिनिधि ने समाचार एजेंसी एएफपी से बात करते हुए जर्मन अखबार में छपी खबर को "बढ़ा चढ़ा कर" लिखा गया बताया. उन्होंने बताया कि अमेरिका कम से कम 25 ऐसी कंपनियों से संपर्क कर चुका है जो वायरस के खिलाफ टीका बनाने पर काम कर रही हैं उनके अनुसार बहुत सी कंपनियों को तो अमेरिका आर्थिक मदद भी मुहैया करा चुका है. एएफपी को दिए बयान में उन्होंने कहा, "हम आगे भी हर उस कंपनी से बात करेंगे जो मदद करने के लिए तैयार होगी. और जो भी समाधान निकलेगा उसे पूरी दुनिया के साथ साझा करेंगे."

क्यूरवैक के एमडी क्रिस्टोफ हेट्टिष ने अखबार वेल्ट अम जॉनटाग से कहा कि अमेरिका के साथ इस तरह के समझौते का कोई सवाल ही नहीं उठता. उन्होंने कहा, "हम पूरी दुनिया के लिए वैक्सीन तैयार करना चाहते हैं, किसी एक विशेष देश के लिए नहीं.. लोग हमारी कंपनी, वहां काम करने वाले रिसर्चरों और खास कर ट्यूबिंगन से उम्मीदें लगाए हुए हैं." 

जर्मनी के राजनीतिक दलों ने अमेरिका की इस कोशिश की निंदा की है. एसपीडी पार्टी के प्रवक्ता ने कहा, "पैंडेमिक के दौरान सारा ध्यान लोगों पर होता है, अमेरिका फर्स्ट पर नहीं." एफडीपी ने इसे अपमानजनक बताया है, तो लेफ्ट पार्टी का कहना है कि वैक्सीन को अरबों के सौदे में तब्दील नहीं किया जा सकता. उधर जर्मनी के शोध मंत्रालय ने भी साफ किया है कि क्यूरवैक की रिसर्च में जर्मन सरकार पहले ही काफी निवेश कर चुकी है और उसका ध्यान इस ओर केंद्रित है कि इस तरह की दवाएं और टीके जर्मनी और यूरोप में ही बनें.  

जर्मनी में अब तक करीब छह हजार लोग नॉवल कोरोना वायरस कोविड-19 से संक्रमित हैं और 11 लोगों की इससे जान जा चुकी है. रविवार को जर्मनी ने फ्रांस, स्विट्जरलैंड, ऑस्ट्रिया, डेनमार्क और लक्जमबर्ग से अपनी सीमाओं को बंद कर लिया है. देश भर में स्कूल भी बंद हैं और अधिकतर जगहों पर रेस्तरां, स्विमिंग  पूल, जिम इत्यादि भी बंद कर दिए गए हैं. जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल कह चुकी हैं कि देश की 60 से 70 फीसदी आबादी इस वायरस से संक्रमित हो सकती है. इसका सबसे ज्यादा असर 65 से ज्यादा उम्र के लोगों पर देखा जा रहा है. ऐसे में कोरोना वैक्सीन का बेसब्री से इंतजार हो रहा है. 

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