अमेरिकी मानवाधिकार रिपोर्ट में भारत की तीखी आलोचना
२१ मार्च २०२३पिछले साल ही अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन ने कहा था कि भारत में कुछ सरकारी, पुलिस और जेल अधिकारियों द्वारा किए जा रहे मानवाधिकार उल्लंघन पर उनकी सरकार नजर बनाए हुए है. इस टिप्पणी पर तीखी प्रतिक्रिया हुई थी क्योंकि आमतौर पर अमेरिका द्वारा भारत की आलोचना से बचा जाता रहा है. विशेषज्ञ मानते हैं कि ऐसा इसलिए है क्योंकि अमेरिका भारत में अपने आर्थिक हित देखता है और दक्षिण एशिया में चीन के दबदबे को कम करने के लिए भारत को अपने साथ बनाए रखना चाहता है.
इसके बावजूद अमेरिकी विदेश मंत्रालय की मानवाधिकारों पर सालाना रिपोर्ट में पहले भी भारत में उल्लंघनों पर चिंता जताई जाती रही है. इस साल की रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार या इसके एजेंटों द्वारा गैर-न्यायिक हत्याएं की जा रही हैं, लोगों को यातनाएं दी जा रही हैं, पुलिस या जेल अधिकारियों द्वारा लोगों के साथ क्रूरतापूर्ण व्यवहार किया जा रहा है, पत्रकारों और राजनीतिक विरोधियों को बेवजह गिरफ्तार किया जा रहा है और उन्हें जेल में परेशान किया जा रहा है.
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अमेरिकी रिपोर्ट में कहा गया, "नागरिक संगठनों ने इस बात पर चिंता जताई है कि केंद्र सरकार कई बार मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और पत्रकारों को हिरासत में लेने के लिए अनलॉफुल एक्टीविटीज प्रिवेंशन एक्ट (यूएपीए) का इस्तेमाल करती है.”
सोमवार को जारी अमेरिकी विदेश मंत्रालय की रिपोर्ट कहती है, "भारत के मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि बुलडोजरों का इस्तेमाल करके सरकार ऐसे मुसलमानों को निशाना बना रही है जो उसकी नीतियों के आलोचक हैं और उनके घर और आजीविका के साधनों को बर्बाद किया जा रहा है.”
धार्मिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा
मानवाधिकार संगठन कहते रहे हैं कि हाल के सालों में भारत में मानवाधिकारों की स्थिति काफी खराब हुई है. पिछले नौ साल में देश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है और कई मानवाधिकार कार्यकर्ता आरोप लगाते हैं कि इस दौरान अल्पसंख्यकों व असहमतों को यातनाएं देने की घटनाएं बढ़ी हैं.
मानवाधिकार संगठन ह्यूमन राइट्स वॉच ने कहा है कि भारत सरकार की नीतियां और गतिविधियां मुस्लिम समुदाय के खिलाफ काम कर रही हैं. उसका कहना है कि भारत की हिंदुत्वादी सरकार ने 2014 में सत्ता संभालने के बाद से धार्मिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा दिया है.
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इस आरोप के समर्थन में 2019 के नागरिकता कानून का उदाहरण दिया जाता है, जिसे संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार कार्यालय ने भी "मूलभूत रूप से भेदभावपूर्ण” बताया है. इस कानून के तहत भारत ने मुसलमानों को छोड़कर बाकी सभी धर्मों के ऐसे लोगों को अपने यहां नागरिकता देने का प्रावधान किया है, जिन्हें उसके पड़ोसी देशों में अल्पसंख्यक होने के कारण यातनाएं झेलनी पड़ी हों. अन्य उदाहरणों में धर्म परिवर्तन विरोधी कानून और 2019 में भारतीय कश्मीर के विशेष दर्जे को खत्म किए जाने जैसी कार्रवाइयों का जिक्र किया गया है.
भारत इन आरोपों का खंडन करता रहा है. भारत सरकार का कहना है कि उसकी नीतियों का लक्ष्य सभी समुदायों का विकास है.
लगातार खराब होती स्थिति
2022 में भारतीय अधिकारियों ने कई प्रदेशों में ऐसे लोगों के घर और दुकानें गिरा दीं, जो कथित तौर सत्ता विरोधी आंदोलनों में शामिल हुए. जिनके घर गिराए गए उनमें अधिकतर मुसलमान थे. आलोचक कहते हैं कि यह कार्रवाई देश के 20 करोड़ मुसलमानों को डराने के मकसद से की जा रही है. अधिकारी कहते हैं कि सारी कार्रवाई कानून के तहत की जा रही है.
2014 में बीजेपी सरकार के सत्ता में आने के बाद से वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में भारत की सालाना रैंकिंग 140 से लुढ़क कर पिछले साल 150 पर आ गई थी, जो अब तक की उसकी सबसे खराब रैंकिंग है. एक्सेस नाउ नामक संस्था के मुताबिक इंटरनेट पर पाबंदी लगाने के मामले में भी भारत पांच साल से दुनिया का अव्वल देश बना हुआ है.
वीके/एए (रॉयटर्स, एएफपी)