डीडब्ल्यू को दिए एक इंटरव्यू में पूर्व अफगान राष्ट्रपति मोहम्द नजीबुल्लाह की बेटी हीला नजीबुल्लाह ने कहा कि अफगान लोगों की भलाई अमेरिका की प्राथमिकता नहीं है.
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हीला नजीबुल्लाह ने डॉयचे वेले से बातचीत में कहा कि जब से अमेरिका और अफगानिस्तान के बीच कथित शांति वार्ता शुरु हुई और दोहा समझौता हुआ, तब से हिंसा मानवाधिकार, पत्रकारों, कलाकारों और कार्यकर्ताओं की हत्याएं जैसी घटनाएं बढ़ी हैं.
नजीबुल्लाह ने कहा, "मुझे लगता है कि अमेरिका और तालिबान की बातचीत ने अपना मकसद हासिल कर लिया था जब पिछले साल दोहा समझौते पर दस्तखत हुए थे. इस समझौते का मकसद अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी था. सबको शामिल करने पर अमेरिका का ध्यान ही नहीं था. उन्होंने अफगान सरकार की इच्छाओं को समझे बिना ही समझौते पर दस्तखत कर लिए.”
नजीबुल्लाह ने कहा कि यदि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद अफगानिस्तान की राजनीतिक स्थिति पर किसी सहमति पर नहीं पहुंच पाती है तो देश और क्षेत्र का भविष्य अंधकारमय है और खून-खराबा जारी रहेगा.
गृह युद्ध की चिंता
अमेरिका ने कहा है कि अफगानिस्तान को लेकर उसकी जो कई चिंताएं हैं, गृह युद्ध भी उनमें से एक है.
अप्रैल में अमेरिका ने अफगानिस्तान से अपनी सेनाओं को पूरी तरह वापस बुलाने का फैसला किया था, जिसके बाद देश में हिंसा में तेजी से वृद्धि हुई है. तालिबान तेजी से नए इलाकों पर कब्जा करता जा रहा है और चुन-चुनकर विरोधियों की हत्याओं का सिलसिला भी जारी है.
अफगान सरकार और तालिबान के बीच कतर की राजधानी दोहा में पिछले साल से जारी शांति वार्ता का अब तक कोई ठोस नतीजा नहीं निकला है और देश में हालात लगातार गंभीर होते जा रहे हैं.
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शांति वार्ता अधर में
मंगलवार को अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता नेड प्राइस ने कहा कि तालिबान ने दोहा में जो बातें कही हैं, अगर वह उनसे मुकरता है तो वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खारिज हो जाएगा.
प्राइस ने कहा, "जो उन्होंने कहा है, अगर वे उस पर कायम नहीं रहते हैं तो वे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अछूत हो जाएंगे और हम सबकी कई चिंताओं में से एक यह है कि इसका नतीजा गृह युद्ध होगा.”
तस्वीरों मेंः दानिश सिद्दीकी की मौत
पुलित्जर विजेता भारतीय पत्रकार दानिश सिद्दीकी की मौत
फोटोजर्नलिस्ट दानिश सिद्दीकी की अफगानिस्तान में मौत हो गई है. अफगान सुरक्षा बलों और तालिबान के बीच हिंसक भिड़ंत में उनकी जान चली गई.
तस्वीर: Reuters/D. Siddiqui
पुलित्जर से सम्मानित
हाल ही में अफगानिस्तान के बदलते हालातों और हिंसा के अलावा, उन्होंने इराक युद्ध और रोहिंग्या संकट की भी कई यादगार तस्वीरें ली थीं. सन 2010 से समाचार एजेंसी रॉयटर्स के लिए काम करने वाले दानिश सिद्दीकी को 2018 में रोहिंग्या की तस्वीरों के लिए ही पुलित्जर पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.
तस्वीर: Reuters/D. Siddiqui
अफगान बल के साथ
विदेशी सेनाओं के अफगानिस्तान से निकलने और तालिबान के फिर से वहां कब्जा जमाने के इस दौर में हर दिन हिंसक घटनाएं हो रही हैं. ऐसे में अफगान सुरक्षा बलों के साथ मौजूद पत्रकारों के जत्थे में शामिल सिद्दिकी मरते दम तक अफगानिस्तान से तस्वीरें और खबरें भेजते रहे.
तस्वीर: Danish Siddiqui/REUTERS
कोरोना की नब्ज पर हाथ
हाल ही में भारत में कोरोना संकट की उनकी ली कई ऐसी तस्वीरें देश और दुनिया के मीडिया में छापी गईं. खुद संक्रमित होने का जोखिम उठाकर वह कोविड वॉर्डों से बीमार लोगों के हालात को कैमरे में कैद करते रहे.
तस्वीर: Danish Siddiqui/REUTERS
भगवान का रूप डॉक्टर
कोरोना काल में सिद्धीकी की ऐसी कई तस्वीरें आपने समाचारों में देखी होंगी जिसमें एक फोटो पूरी कहानी कहती है. महामारी के समय दानिश सिद्दीकी की ली ऐसी कई तस्वीरें इंसान की दुर्दशा और लाचारी को आंखों के सामने जीवंत करने वाली हैं.
तस्वीर: Danish Siddiqui/REUTERS
लाशों के ऐसे कई अंबार
जहां एक लाश का सामना किसी आम इंसान को हिला देता है वहीं पत्रकारिता के अपने पेशे में सिद्धीकी ने ना केवल लाशों के अंबार के सामने भी हिम्मत बनाए रखी बल्कि पेशेवर प्रतिबद्धता के बेहद ऊंचे प्रतिमान बनाए. कोरोना की दूसरी लहर के चरम पर दिल्ली के एक श्मशान की फोटो.
तस्वीर: DANISH SIDDIQUI/REUTERS
कश्मीर पर राजनीति
भारत की केंद्र सरकार ने पांच अगस्त 2019 को जब जम्मू-कश्मीर राज्य का विशेष राज्य का दर्जा रद्द कर उसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटा, उस समय भी ड्यूटी कर रहे फोटोजर्नलिस्ट सिद्दीकी ने वहां की सच्चाई पूरे विश्व तक पहुंचाई.
तस्वीर: Reuters/D. Siddiqui
सीएए विरोध के वो पल
केंद्र सरकार के नागरिकता संशोधन कानून के विरोध प्रदर्शनों से उनकी खींची ऐसी कई तस्वीरें दर्शकों के मन मानस पर छा गईं थी. जैसे 30 जनवरी 2020 को पुलिस की मौजूदगी में जामिया यूनिवर्सिटी के बाहर प्रदर्शन करने वालों पर बंदूक तानने वाले इस व्यक्ति की तस्वीर.
तस्वीर: Reuters/D. Siddiqui
समर्पण पर गर्वित परिवार
जामिया यूनिवर्सिटी के शिक्षा विभाग में प्रोफेसर उनके पिता अख्तर सिद्दीकी ने डॉयचे वेले से बातचीत में बताया कि दानिश सिद्दीकी "बहुत समर्पित इंसान थे और मानते थे कि जिस समाज ने उन्हें यहां तक पहुंचाया है, वह पूरी ईमानदारी से सच्चाई को उन तक पहुंचाए." घटना के समय दानिश सिद्दीकी की पत्नी और बच्चे जर्मनी में छुट्टियां मनाने आए हुए थे.
तस्वीर: Mumbairt/CC
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दोहा में जो शांति वार्ता चल रही है उसमें दोनों पक्ष फिलहाल किसी समाधान के करीब नहीं हैं. अमेरिका के विशेष दूत जालमे खलीजाद ने मंगलवार को बताया कि तालिबान सत्ता में बड़ा हिस्सा चाहते हैं.
अफगानिस्तान में हिंसा जारी
मंगलवार को देश की राजधानी काबुल में सबसे सुरक्षित क्षेत्र ग्रीन जोन के करीब एक कार बम धमाका हुआ जिसके बाद गोलीबारी भी हुई. अधिकारियों ने बताया कि इस हमले में तीन नागरिकों की जान चली गई और तीनों हमलावर भी मारे गए.
अमेरिका ने इस हमले की कड़ी निंदा की. नेड प्राइस ने कहा, "इस हमले पर तालिबान की सारी निशानियां मौजूद हैं, जो हमने हाल के हफ्तों में देखी हैं. हम इस हमले की कड़ी निंदा करते हैं.”
देखिएः चले गए अमेरिकी छोड़ गए कचरा
चले गए अमेरिकी, छोड़ गए कचरा
बगराम हवाई अड्डा करीब बीस साल तक अफगानिस्तान में अमेरिकी फौजों का मुख्यालय रहा. अमेरिकी फौज स्वदेश वापस जा रही है और इस मुख्यालय को खाली किया जा रहा है. पीछे रह गया है टनों कचरा...
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जहां तक नजर जाए
2021 में 11 सितंबर की बरसी से पहले अमेरिकी सेना बगराम बेस को खाली कर देना चाहती है. जल्दी-जल्दी काम निपटाए जा रहे हैं. और पीछे छूट रहा है टनों कचरा, जिसमें तारें, धातु और जाने क्या क्या है.
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कुछ काम की चीजें
अभी तो जहां कचरा है, वहां लोगों की भीड़ कुछ अच्छी चीजों की तलाश में पहुंच रही है. कुछ लोगों को कई काम की चीजें मिल भी जाती हैं. जैसे कि सैनिकों के जूते. लोगों को उम्मीद है कि ये चीजें वे कहीं बेच पाएंगे.
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इलेक्ट्रॉनिक खजाना
कुछ लोगों की नजरें इलेक्ट्रोनिक कचरे में मौजूद खजाने को खोजती रहती हैं. सर्किट बोर्ड में कुछ कीमती धातुएं होती हैं, जैसे सोने के कण. इन धातुओं को खजाने में बदला जा सकता है.
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बच्चे भी तलाश में
कचरे के ढेर से कुछ काम की चीज तलाशते बच्चे भी देखे जा सकते हैं. नाटो फौजों के देश में होने से लड़कियों को और महिलाओं को सबसे ज्यादा लाभ हुआ था. वे स्कूल जाने और काम करने की आजादी पा सकी थीं. डर है कि अब यह आजादी छिन न जाए.
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कुछ निशानियां
कई बार लोगों को कचरे के ढेर में प्यारी सी चीजें भी मिल जाती हैं. कुछ लोग तो इन चीजों को इसलिए जमा कर रहे हैं कि उन्हें इस वक्त की निशानी रखनी है.
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खतरनाक है वापसी
1 मई से सैनिकों की वापसी आधिकारिक तौर पर शुरू हुई है. लेकिन सब कुछ हड़बड़ी में हो रहा है क्योंकि तालीबान के हमले का खतरा बना रहता है. इसलिए कचरा बढ़ने की गुंजाइश भी बढ़ गई है.
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कहां जाएगा यह कचरा?
अमेरिकी फौजों के पास जो साज-ओ-सामान है, उसे या तो वे वापस ले जाएंगे या फिर स्थानीय अधिकारियों को दे देंगे. लेकिन तब भी ऐसा बहुत कुछ बच जाएगा, जो किसी खाते में नहीं होगा. इसमें बहुत सारा इलेक्ट्रॉनिक कचरा है, जो बीस साल तक यहां रहे एक लाख से ज्यादा सैनिकों ने उपभोग करके छोड़ा है.
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बगराम का क्या होगा?
हिंदुकुश पर्वत की तलहटी में बसा बगराम एक ऐतिहासिक सैन्य बेस है. 1979 में जब सोवियत संघ की सेना अफगानिस्तान आई थी, तो उसने भी यहीं अपना अड्डा बनाया था. लेकिन, अब लोगों को डर सता रहा है कि अमरीकियों के जाने के बाद यह जगह तालीबान के कब्जे में जा सकती है.
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सोचो, साथ क्या जाएगा
क्या नाटो के बीस साल लंबे अफगानिस्तान अभियान का हासिल बस यह कचरा है? स्थानीय लोग इसी सवाल का जवाब खोज रहे हैं.
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संयुक्त राष्ट्र ने भी हिंसा की निंदा की है. पिछले हफ्ते देश में अपने दफ्तर पर हुए हमले का जिक्र करते हुए एक बयान में संयुक्त राष्ट्र ने कहा, "तालिबान के सैन्य आक्रमणों के चलते अफगानिस्तान में हो रही भारी हिंसा बहुत चिंता की बात है. हम फौरन हिंसा रोकने की अपील करते हैं.”