अमेरिका ने कहा है कि वह अरुणाचल प्रदेश को भारत के हिस्से के रूप में मान्यता देता है. मंगलवार को चीन ने भारत के इस पूर्वी प्रदेश को अपना बताया था.
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अमेरिका ने कहा है कि उसकी सरकार अरुणाचल प्रदेश को भारत का हिस्सा मानती है और उस पर अन्य किसी दावे का "पूरी सख्ती से विरोध करती है.” मंगलवार को चीन के रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता कर्नल झांग जियाओगांग ने कहा था कि जिजांग (तिब्बत का चीनी नाम) का दक्षिणी भाग चीन का हिस्सा है.
यहां बदसूरत दिखना परंपरा का हिस्सा है
अरुणाचल प्रदेश की जिरो घाटी में बसे अपातानी जनजाति की महिलाएं बाकी सबसे अलग दिखती आई हैं. कभी किसी और जनजाति के लोगों से अपनी महिलाओं को अपहरण से बचाने के लिए शुरु हुआ यह रिवाज आज आदत का हिस्सा बन चुका है.
तस्वीर: DW/S. Narang
एक विशेष सभ्यता
आकाश से जिरो घाटी का नजारा कुछ ऐसा दिखता है. यहां अपातानी जनजाति के 37,000 से भी अधिक सदस्य बसते हैं. ये लोग प्रक्रियाबद्ध तरीके से खेती की जमीन का इस्तेमाल करते हैं और अपने आसपास की पारिस्थितिकी के प्रबंधन और संरक्षण के बारे में गहरी समझ रखते हैं.
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नाक की ठेपियां
तस्वीर में दिख रही ताडू रेलुंग इस घाटी की सबसे बुजुर्ग महिला हैं. यहां की महिलाएं अपनी नाक में दोनों ओर ठेपियों जैसा स्थानीय लकड़ी से बना एक प्लग सा पहनने के कारण अलग से पहचान में आती हैं, जिसे यापिंग हुलो कहते हैं. इस पर 1970 के दशक के शुरुआत में सरकार ने रोक लगा दी.
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कैसे आया यापिंग हुलो का चलन
कुछ का कहना है कि यह सुंदरता से जुड़ा मामला है. वहीं कुछ मानते हैं कि पहले के समय में किसी और जनजाति के लोगों से अपनी महिलाओं को अपहरण से बचाने के लिए अपनी एक अलग पहचान के तौर पर ऐसे करना शुरु किया गया. यह सब बंद होने के बाद आजकल इस इलाके को यहां किवी के फल से बनी वाइन के लिए जाना जाता है.
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किवी वाइन का कारोबार
हाल के सालों तक अरुणाचल में किवी की खेती करने वाले बहुत किसान नहीं होते थे. लेकिन 2016 में कृषि इंजीनियरिंग पढ़ने वाली इसी जनजाति की एक महिला ताखे रीता ने अपने गांव में वाइनरी का काम शुरु किया. 2017 में उन्होंने नारा-आबा नाम से शुद्ध ऑर्गेनिक किवी वाइन बनाना शुरु किया.
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लंबी है प्रक्रिया
किवी से वाइन बनाने की प्रक्रिया में फरमेंटेशन की प्रक्रिया काफी समय लेती है. इसमें 7 से 8 महीने लगते हैं. अरुणाचल के ऑर्गेनिक फलों से बनी यह वाइन पूर्वोत्तर भारत के दूसरे राज्यों जैसे असम और मेघालय में भी मिलती है. अब इन्हें भारत से बाहर निर्यात किए जाने की योजना पर काम चल रहा है.
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किसानों के लिए आय का जरिया
रीता के इस नए बिजनेस से इलाके के किवी किसानों को काफी बढ़ावा मिला है. वे उन्हें फलों को खरीदने का भरोसा देती हैं और उन्हें इसकी अच्छी खेती के लिए ट्रेनिंग भी देती हैं. किसान कहते हैं कि किवी से वाइन बनाने के कारोबार ने उन्हें अपनी आमदनी बढ़ाने और जीवनस्तर सुधारने की नई संभावना दी है.
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ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा
इस वाइन के कारण जिरो घाटी के कई किसान अब खेती किसानी के अपने मूल पेशे में लौटने लगे हैं. इस घाटी में मिलने वाली अच्छी धूप से यहां फल अच्छे उगते हैं. ऑर्गेनिक तरीक से किवी उगा कर उन्हें अपनी आय का एक स्थाई स्रोत मिल गया है.
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इस पर भारत ने तो प्रतिक्रिया दी ही थी, बुधवार को अमेरिका ने भी चीन के इस दावे को गलत बताते हुए कहा कि भारत के साथ सीमा साझा करने वाला कोई देश अगर कोई एकतरफा दावा करता है, वह उसका विरोध करेगा.
इससे पहले भारतीय विदेश मंत्रालय ने मंगलवार को अरुणाचल प्रदेश पर चीन के दावे को "बेतुका" बताया था.
अमेरिकी विदेश मंत्रालय की ओर से जारी बयान में कहा गया, "अमेरिका अरुणाचल प्रदेश को भारत के अंग के रूप में मान्यता देता है और सैन्य या असैन्य तरीके से लाइन ऑफ कंट्रोल में घुसपैठ या अवैध कब्जे के रूप में किसी भी तरह की एकतरफा कोशिश का विरोध करेगा."
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अमेरिका बीच में क्यों आया?
यह पहली बार नहीं है जब अमेरिका ने अरुणाचल प्रदेश पर भारत के अधिकार का अनुमोदन किया है. पिछले साल जून में जब भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिका दौरे पर गए थे, उसके कुछ ही हफ्ते बाद अमेरिकी कांग्रेस की एक समिति ने इस संबंध में प्रस्ताव पारित किया था, जिसमें अरुणाचल प्रदेश को "भारत का अभिन्न अंग” बताया गया था.
13 जुलाई 2023 को यह प्रस्ताव सेनेटर जेफ मर्कली, बिल हैगर्टी, टिम केन और क्रिस वान होलेन ने पेश किया था. कांग्रेशनल एग्जेक्यूटिव कमीशन ऑन चाइना के उपाध्यक्ष तब सेनेटर मर्कली ने कहा, "दुनियाभर में हमारे संबंधों और गतिविधियों का केंद्र अमेरिका की नियमबद्ध शासन और स्वतंत्रता के मूल्यों पर आधारित नीतियां होनी चाहिए, खासतौर पर तब जबकि चीन एक वैकल्पिक विचार थोपने की कोशिश करे."
अरुणाचल प्रदेश में चीन के इरादों पर भारत चौकस
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पिछले कुछ सालों में अमेरिका ने चीन का प्रभाव कम करने के लिए भारत के साथ अपने संबंधों को बेहतर करने की बड़ी कोशिशें की हैं. अरुणाचल प्रदेश के लिए उसका समर्थन उसी रणनीति का हिस्सा है. हैगर्टी कहते हैं कि जब एक स्वतंत्र भारत-प्रशांत क्षेत्र के लिए चीन बड़ा खतरा बनता जा रहा है, तब अमेरिका को उस क्षेत्र में अपने रणनीतिक साझीदारों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा होने की जरूरत है.
उनके सहयोगी सेनेटर कोरनिन ने कहा, "साझा सीमा को लेकर भारत और चीन में जब तनाव बढ़ रहा है, तब अमेरिका को लोकतंत्र की रक्षा के लिए और आजाद इंडो-पैसिफिक के लिए मजबूत दिखना होगा.”
भारत चीन विवाद
चीन अरुणाचल प्रदेश को जंगान प्रांत के नाम से अपना बताता है. उसका कहना है कि अरुणाचल प्रदेश तिब्बत का दक्षिणी हिस्सा है. लेकिन भारत ऐतिहासिक रूप से इस इलाके को अपना बताता रहा है. 9 मार्च को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अरुणाचल प्रदेश का दौरा किया था और उन्होंने सेला सुरंग का उद्घाटन किया था जो 13 हजार फीट की ऊंचाई पर बनाई गई है. यह दुनिया की सबसे लंबी दोहरी लेन वाली सुरंग है.
भारत-चीन विवाद के कुछ तथ्य
भारत और चीन के सैनिक एक बार फिर झगड़ पड़े. दोनों पक्षों के बीच अरुणाचल सीमा पर उस इलाके में हाथापाई हुई, जिसे दोनों अपना बताते हैं. इस पूरे विवाद से जुड़े कुछ तथ्य...
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3,500 किलोमीटर
चीन और भारत दोनों की सेनाएं हिमालय में कई चौकियों पर आमने-सामने रहती हैं. कई जगह तो यह दूरी कुछ सौ मीटर की है. दोनों देशों के बीच 3,500 किलोमीटर लंबी सीमा है जिसे लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल कहा जाता है.
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कोई सीमा नहीं
भारत-चीन सीमा को कभी आधिकारिक रूप से चिह्नित नहीं किया गया. भारत की आजादी के बाद ऐसा होना था लेकिन दोनों पक्ष इस पर सहमत नहीं हुए और यह सीमा आज भी विवादित है.
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1962 का युद्ध
सीमा विवाद के चलते 1962 में दोनों देश एक युद्ध लड़ चुके हैं. ऐसा तब हुआ जब भारत ने दावा किया कि चीन ने अक्साई चीन इलाके में उसका 38 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र कब्जा लिया है. युद्ध मुख्यतया उसी इलाके में हुआ था.
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बातचीत हुई, लेकिन हल नहीं निकला
उस युद्ध के बाद कई साल तक सीमा पर लगभग शांत बनी रही. दोनों देशों के बीच सीमा विवाद सुलझाने के लिए कुछ बैठकें भी हुईं. 2003 में सीमा विवाद हल करने के लिए दूत नियुक्त किए गए, लेकिन आज तक कोई हल नहीं निकला.
तस्वीर: MONEY SHARMA/AFP/Getty Images
गलवान की झड़प
2020 में दोनों देशों के सैनिकों के बीच गलवान में हाथापाई हुई. भारत के बीस और चीन के कई सैनिकों की जान चली गई. 1962 के युद्ध के बाद यह सबसे बड़ी हिंसा थी. तब से भारत-चीन संबंध लगातार तनाव में हैं.
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अरुणाचल विवाद
चीन अरुणाचल प्रदेश को 'दक्षिणी तिब्बत का इलाका' कहता आया है और भारतीय नेताओं के वहां जाने पर आपत्ति जताता है. चीन ने 2009 में पीएम मनमोहन सिंह और 2014 में पीएम मोदी के दौरे पर आपत्ति जताई थी. 20 जनवरी 1972 को केंद्र शासित प्रदेश अस्तित्व में आया जिसे 1987 को अरुणाचल प्रदेश के रूप में एक अलग राज्य का दर्जा दिया गया.
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क्यों चाहिए तवांग
तवांग में एक चार सौ साल पुराना बौद्ध मठ है जिसे चीन के दावे की एक वजह माना जाता है. बौद्ध लोगों के बीच तवांग की मान्यता और प्रतिष्ठा का इस्तेमाल बुद्ध धर्म पर नियंत्रण के रूप में करने की इच्छा इसे चीन के लिए अहम बना देती है.
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मोदी के दौरे पर चीन ने आपत्ति दर्ज कराई थी. झांग ने कहा कि भारत को "सीमा विवाद को जटिल बनाने वाला कोई कदम नहीं उठाना चाहिए और सीमावर्ती क्षेत्रों में ईमानदारी से शांति और स्थिरता बनाए रखनी चाहिए."
उन्होंने कहा कि सुरंग का उद्घाटन "सीमा पर हालात को शांत बनाने के दोनों पक्षों द्वारा किए गए प्रयासों के विपरीत है."
परमाणु शक्ति-संपन्न भारत और सीमा के बीच तीन हजार किलोमीटर लंबी सीमा है लेकिन इसके अधिकतर हिस्से को लेकर दोनों के बीच विवाद है. यही वजह है कि दोनों देशों के बीच तनाव बना रहता है. 2020 में लद्दाख की गलवान घाटी में भारत और चीन के सैनिकों के बीच हिंसक झड़प हुई थी, जिसमें 20 भारतीय सैनिक और कम से कम चार चीनी सैनिक मारे गए थे.