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विवादयूरोप

रूस की मदद करने क्रीमिया पहुंचे ईरान के सैन्य अधिकारी

२१ अक्टूबर २०२२

अमेरिका का कहना है कि ईरान ने अपने मिलिट्री ट्रेनर क्रीमिया भेजे हैं. ट्रेनरों ने यूक्रेन पर ड्रोन हमले के करने में रूस की मदद की. इस पर इस्राएल ने भी गंभीर चिंता जताई है.

ईरान का मिलिट्री ड्रोन
तस्वीर: Iranian Army Office/ZUMA/IMAGO

यूक्रेन पर हो रहे ड्रोन हमलों में ईरान की भूमिका को लेकर नई जानकारियां सामने आ रही हैं. पहले यह पता चला कि कीव और यूक्रेन के अन्य शहरों पर हमला कर रहे ड्रोन, ईरान के हैं. यूक्रेन का दावा है कि उसने अभी तक कम से कम 233 ड्रोन गिराए हैं. इन ड्रोनों की छानबीन करने करने के बाद ही ईरान पर रूस की मदद करने के आरोप लगाए जा रहे हैं. गुरुवार को मीडिया से बात करते हुए अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता नेड प्राइस ने कहा, "हम कंफर्म कर सकते हैं कि क्रीमिया में तैनात रूसी सैनिक ईरानी यूएवी (अनमैंड एरियल व्हीकल) को ऑपरेट कर रहे हैं और पूरे यूक्रेन पर औचक हमले करने के लिए इन्हें इस्तेमाल कर रहे हैं."

अमेरिकी विदेश मंत्रालय का यह भी कहना है कि ईरान ने सिर्फ ड्रोन ही नहीं, बल्कि अपने ट्रेनर भी भेजे हैं. प्राइस ने कहा, "हमें पता चला है कि ईरानी सैनिक भी क्रीमिया में थे और उन्होंने इन अभियानों में रूस की मदद की." प्रवक्ता ने दावा किया कि अमेरिका के पास इस बारे में "विश्वसनीय जानकारी" है, लेकिन उन्होंने प्रेस के सामने कोई सबूत पेश नहीं किए.

रूस ने बीते दो हफ्तों में यूक्रेन पर बहुत ही ज्यादा मिसाइल और ड्रोन हमले किए हैं. रूसी सेना यूक्रेन के ऊर्जा ढांचे को निशाना बना रही हैं. कीव के मुताबिक, इन हमलों की वजह से एक तिहाई ऊर्जा ढांचा तबाह हो गया है.

यूक्रेन के कई शहरों पर रूसी मिसाइलों और रॉकेटों का हमला

कीव में एक ड्रोन का मलबातस्वीर: Vladyslav Musiienko/REUTERS

क्रीमिया में ईरानी ड्रोन

रूस ने 2014 में यूक्रेन के प्रायद्वीप क्रीमिया को अपने कब्जे में ले लिया. तब से क्रीमिया में रूसी सेना का बड़ा बेस है. इसी बेस से रूस दक्षिणी यूक्रेन पर हमले करता रहा है. यूक्रेन से नजदीकी और बीच में काला सागर होने होने के कारण हमले करने वाले ड्रोन भी क्रीमिया से आसानी से ऑपरेट किए जा रहे हैं. यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की का दावा है कि रूस ने ईरान को 2,400 ड्रोनों का ऑर्डर दिया है.

रूस और ईरान दोनों ने इन आरोपों को खारिज किया है. तेहरान का कहना है कि यूक्रेन में गिराए गए ड्रोन "मेड इन ईरान" नहीं हैं. वहीं रूस ने भी ईरानी ड्रोनों का इस्तेमाल करने से इनकार किया है.

अमेरिकी राष्ट्रपति कार्यालय के प्रवक्ता जॉन किर्बी का दावा है कि वे हर तरह से यूक्रेन युद्ध में ईरान की भूमिका का पर्दाफाश करेंगे.

इन दावों के साथ ही ईरान पर और कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाने की तैयारी भी हो रही है. अमेरिका के साझेदार यूरोपीय संघ के सदस्य भी तेहरान पर नये प्रतिबंध लगाने पर सहमत हैं. ब्रिटेन ने ईरान के वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों पर प्रतिबंध लगा दिए हैं, साथ ही ईरानी ड्रोनों से जुड़ी एक कंपनी को भी ब्लैकलिस्ट कर दिया है.

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कीव पर हमला करने पहुंचा एक ड्रोनतस्वीर: Yasuyoshi Chiba/AFP/Getty Images

रूस और ईरान की लंबी साझेदारी

यह पहला मौका नहीं है जब किसी युद्ध में रूस और ईरान का गठजोड़ सामने आया है. सीरिया के 11 साल लंबे गृहयुद्ध में भी मॉस्को और तेहरान ने मिलकर सीरियाई राष्ट्रपति बशर अल असद की मदद की. रूस ने जहां अपनी सेना और मिशनरी लड़ाके सीरिया भेजे, वहीं ईरान ने हथियार और उग्रवादियों के जरिए असद विरोधियों को निशाना बनाया.

जॉन किर्बी कहते हैं, "ईरान और रूस, दुनिया से झूठ बोल सकते हैं, लेकिन वे तथ्यों को नहीं छुपा सकते, और यहां मामला ऐसा ही है: तेहरान अब सीधे तौर पर युद्ध भूमि में शामिल है."

जेलेंस्की के मुताबिक रूस ने ईरान से मांगे 2,400 ड्रोनतस्वीर: Ukrainian Presidency/abaca/picture alliance

ईरान के बाद अब इस्राएल की बारी?

यूक्रेन के विदेश मंत्री दिमित्रो कुलेबा ने सोशल नेटवर्किंग साइट ट्विटर पर कहा कि उन्होंने इस्राएल के प्रधानमंत्री याइर लापिड के साथ विस्तार से बातचीत की है. कुलेबा के मुताबिक उन्होंने इस्राएल से एयर एंड मिसाइल डिफेंस सिस्टम और तकनीक की देने की दरख्वास्त की है. इस्राएल के प्रधानमंत्री कार्यालय ने भी ईरान और रूस के सैन्य गठजोड़ पर "गंभीर चिंता" जताई है.

ईरान पर और कड़े प्रतिबंधों से तेहरान के परमाणु कार्यक्रम में और तेजी आ सकती है. ईरान बार बार कहता है कि उसका परमाणु कार्यक्रम ऊर्जा बनाने के लिए है. हालांकि इस्राएल, अमेरिका, सऊदी अरब और यूएई को लगता है कि ईरान चुपचाप परमाणु हथियार विकसित करने कोशिश कर रहा है.

ईरान के पास कई किस्म के मिलिट्री ड्रोनतस्वीर: Iranian Army/Zuma/picture alliance

ईरान के पास कहां से आए ड्रोन

1979 की इस्लामिक क्रांति के बाद से ज्यादातर समय आर्थिक प्रतिबंध झेलने वाले ईरान ने ये ड्रोन खुद विकसित किए हैं. कुछ विशेषज्ञों के मुताबिक तेहरान ने ड्रोन प्रोग्राम 1990 के दशक में शुरू किया और देश मामूली किस्म के ड्रोन ही बना सका. लेकिन 2001 में जब अमेरिकी और नाटो सेनाएं अफगानिस्तान पहुंचीं तो मामला बदल गया. 20 साल के अफगानिस्तान युद्ध में अमेरिका ने हजारों ड्रोन हमले किए, लेकिन इस दौरान उसके कई ड्रोन क्रैश हुए.

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ईरानी ड्रोन कार्यक्रम पर काम कर चुके विशेषज्ञों को लगता है कि क्रैश हुए कुछ अमेरिकी ड्रोनों का मलबा किसी तरह ईरान तक पहुंचाया गया. इसी मलबे का पुर्जा पुर्जा खोल रिवर्स इंजीनियरिंग की मदद से ईरान ने अपने ड्रोन कार्यक्रम को नई तेजी दी.

ईरान और फारस के इलाके में सुरक्षा से जुड़े मसलों पर नजर रखने वाले फारजिन नादिमी के मुताबिक, तकनीक ज्ञान हासिल करने के बाद तेहरान ने प्रतिबंधों को गच्चा देते हुए चीन, जापान और यूरोपीय बाजारों से जरूरी पुर्जे खरीद कर अपने ड्रोन हथियारों को और उन्नत कर लिया. बीच बीच में ईरान ने फारस की खाड़ी के आस पास कुछ अमेरिकी ड्रोनों को गिराया और इस तरह तेहरान को तकनीकी अपडेट भी मिलते रहे.

ओएसजे/एनआर (एएफपी, रॉयटर्स)

 

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