आज विश्व भर में परमाणु ऊर्जा न्यूक्लियर फिशन से पैदा की जाती है. इसमें काफी ऊर्जा खपती है और इससे सेहत और पर्यावरण की कई चिंताएं भी जुड़ी हैं. अब अमेरिका न्यूक्लियर फ्यूजन से असीम ऊर्जा पैदा करने वाले रिएक्टर ला रहा है.
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कई दशकों से वैज्ञानिकों ने न्यूक्लियर फ्यूजन (नाभिकीय संलयन) पर आधारित रिएक्टरों को लेकर खूब प्रयोग किए हैं. हालांकि अब तक कोई अच्छा व्यावहारिक मॉडल विकसित नहीं हो सका है. अब पहली बार अमेरिका में रिसर्चरों ने इस मामले में बड़ी सफलता हासिल की है. अमेरिका के ऊर्जा विभाग ने रविवार को कहा है कि वे इसी हफ्ते न्यूक्लियर फ्यूजन रिसर्च पर एक 'अहम वैज्ञानिक सफलता' की घोषणा करेंगे.
इसके पहले ही ब्रिटिश अखबार फायनेंशियल टाइम्स ने खबर छापी है कि अमेरिका ने न्यूक्लियर फ्यूजन पर आधारित रिएक्टर बना लिया है. रिपोर्ट के मुताबिक इससे साफ, सुरक्षित और इतनी प्रचुर मात्रा में ऊर्जा बनेगी जिससे हम इंसानों की हर तरह के जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता ही खत्म हो जाएगी. जीवाश्म ईंधनों को जलाना हमारी पृथ्वी पर जलवायु संकट को बढ़ाने की बड़ी वजह मानी जाती है.
फ्यूजन और फिशन में फर्क
कैलिफोर्निया की लॉरेंस लिवरमोर नेशनल लैबोरेट्री में एक ऐसा न्यूक्लियर फ्यूजन रिएक्टर बनाया है जिसमें "नेट एनर्जी गेन" होता है. इसका मतलब हुआ कि उस रिएक्टर को एक्टिवेट करने में जितनी ऊर्जा लगती है, उससे ज्यादा ऊर्जा पैदा होती है. आज तक के रिएक्टरों में ऐसा कभी नहीं हुआ है. दुनिया भर के परमाणु संयंत्रों प्लांटों में फिशन करवाया जाता है यानि नाभिकीय विखंडन कराया जाता है. एक भारी परमाणु के केंद्र को तोड़ कर उससे ऊर्जा बनाई जाती है.
वहीं फ्यूजन यानि नाभिकीय संलयन में दो हल्के हाइड्रोजन परमाणुओं को जोड़कर एक भारी हीलियम परमाणु बनाया जाता है, जिस दौरान बहुत ज्यादा ऊर्जा मुक्त होती है. आकाश के तारों में प्राकृतिक रूप से यही प्रक्रिया चल रही होती है. मिसाल के तौर पर, हमारे सौर मंडल के केंद्र में मौजूद तारे सूर्य की असीम ऊर्जा का भी यही राज है. हमें धरती पर फ्यूजन रिएक्टर को चलाने के लिए हाइड्रोजन को बहुत ज्यादा ऊंचे तापमान तक गर्म करना होता है और वो भी खास उपकरणों के अंदर.
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अमेरिका का तरीका
लॉरेंस लिवरमोर लैब के रिसर्चरों ने इसके लिए विशाल नेशनल इग्निशन फेसिलिटी का इस्तेमाल किया, जो तीन फुटबॉल के मैदानों के बराबर आकार की है. इसमें 192 महाशक्तिशाली लेजर लगाए गए जो कि हाइड्रोजन से भरे एक छोटे से सिलिंडर पर गिराये जाते हैं. इस प्रयोग में रिएक्टर को एक्टिवेट करने में 2.1 मेगाजूल ऊर्जा खर्च करने से 2.5 मेगाजूल ऊर्जा पैदा हुई जो कि लागत का 120 फीसदी है. ऐसे नतीजों से उस सिद्धांत की पुष्टि होती है जो दशकों पहले फ्यूजन रिसर्चरों ने दिया था.
फिशन की ही तरह, न्यूक्लियर फ्यूजन के दौरान भी कार्बन का उत्सर्जन नहीं होता. दोनों प्रक्रियाओं में कई फर्क भी हैं. जैसे कि फ्यूजन के कारण परमाणु आपदा का कोई खतरा नहीं है और इससे रेडियोएक्टिव कचरा भी काफी कम निकलता है. अगर ये तरीका इस्तेमाल में आ जाता है तो धरती पर असीम ऊर्जा का एक ऐसा जरिया हाथ लग जाएगा जो कि तमाम परंपरागत ऊर्जा स्रोतों का साफ और सुरक्षित विकल्प होगा.
धरती और पर्यावरण के लिए अच्छा
अमेरिका के सफल प्रयोग से एक रास्ता तो खुला है लेकिन इसे औद्योगिक स्तर तक लाने का रास्ता अभी लंबा है. जानकारों का कहना है कि इससे निकलने वाली ऊर्जा को अभी कई गुना बढ़ाने और प्रक्रिया को सस्ता बनाने की जरूरत है. मोटे तौर पर अंदाजा लगाया जा रहा है कि इसमें 20 से 30 साल और लग जाएंगे. वहीं लगातार गंभीर होते जलवायु परिवर्तन के संकट को देखते हुए पर्यावरण विशेषज्ञ इसे जल्द से जल्द करने की जरूरत पर बल देते हैं.
अमेरिका के अलावा विश्व के कुछ और देश फ्यूजन आधारित परमाणु रिएक्टर बनाने की तकनीक पर काम कर रहे हैं. इसमें 35 देशों के सहयोग से चल रहे अंतरराष्ट्रीय प्रोजेक्ट ITER का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है, जो फ्रांस में चल रहा है. ITER इस तरीके में डोनट के आकार वाले चैंबर में मथे हुए हाइड्रोजन प्लाज्मा पर मैग्नेटिक कनफाइनमेंट तकनीक आजमाई जा रही है.
आरपी/एनआर (एएफपी)
बिजली उत्पादन के विभिन्न तरीके
रोटी, कपड़ा और मकान की तरह ही बिजली भी लोगों की मूलभूत आवश्यकता बन चुकी है. घर रोशन करने से लेकर ट्रेन चलाने तक हर जगह बिजली की जरूरत होती है. एक नजर बिजली उत्पादन के तरीकों पर.
तस्वीर: picture-alliance/imageBROKER/W. Diederich
कोल पावर प्लांट
कोल पावर प्लांट बिजली उत्पादन का परंपरागत तरीका है. इसमें कोयले की मदद से पानी गर्म किया जाता है. इससे बनी भाप के उच्च दाब से टरबाइन तेजी से घूमता है और बिजली का उत्पादन होता है.
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हाइड्रो इलेक्ट्रिसिटी पावर प्लांट
हाइड्रो इलेक्ट्रिसिटी पावर प्लांट ऐसी जगहों पर बनाए जाते हैं जहां तेजी से पानी का प्रवाह होता है. सबसे पहले बांध बना कर नदी के पानी को रोका जाता है. यह पानी तेजी से नीचे गिरता है. इसकी मदद से टरबाइन को घुमाया जाता है और बिजली उत्पादन होता है.
तस्वीर: Yi Chang/dpa/picture alliance
सौर ऊर्जा
सौर ऊर्जा प्लांट की स्थापना उन क्षेत्रों में की जाती है जहां पूरे साल सूरज की रोशनी पहुंचती है. सूर्य की किरणों को बिजली में बदलने के लिए फोटोवोल्टिक सेलों का उपयोग होता है. इससे एक बैटरी जुड़ी होती है जिसमें बिजली जमा होती है. सोलर फोटोवोल्टिक सेल से पैदा होने वाली बिजली दिष्ट धारा (डायरेक्ट करंट) के रूप में होती है.
तस्वीर: Imago Images/Le Pictorium
पवन चक्की
पवन चक्की का इस्तेमाल उन क्षेत्रों में किया जाता है जहां हवा की गति तेज होती है. पवन चक्की लगाने के लिए एक टावर के ऊपर पंखे लगाए जाता है. यह पंखा हवा की वजह से घूमता है. पंखे के साथ शाफ्ट की मदद से एक जेनेरेटर जुड़ा होता है. जेनरेटर के घूमने से बिजली उत्पादन होता है.
तस्वीर: Martin Bernetti/AFP
न्यूक्लियर पावर प्लांट
इस प्लांट में यूरेनियम-235 को ईंधन के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. यूरेनियम के परमाणुओं को विखंडित करने के लिए एटॉमिक रिएक्टर का इस्तेमाल होता है. इससे पैदा होने वाली उष्मा से भाप बनाई जाती है. इसी भाप से टरबाईन को घुमाया जाता है जिससे बिजली का उत्पादन होता है. एक किलो यूरेनियम 235 से उत्पन्न ऊर्जा 2700 क्विंटल कोयले जलाने से पैदा हुई ऊर्जा के बराबर होती है.
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डीजल पावर प्लांट
डीजल पावर प्लांट की स्थापना उन जगहों पर की जाती है जहां कोयले और पानी की उपलब्धता पर्याप्त मात्रा में नहीं होती है. डीजल मोटर की मदद से जेनरेटर चलाया जाता है जो बिजली का उत्पादन करता है. यह एक तरह का वैकल्पिक साधन है. सिनेमा हॉल, घर, शादी-विवाह या किसी कार्यालय में आपात स्थिति में बिजली की आपूर्ति के लिए इसका इस्तेमाल होता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/F. Kraufmann
नैचुरल गैस पावर प्लांट
नैचुरल गैस पावर प्लांट कोल थर्मल पावर प्लांट की तरह ही होता है. फर्क बस इतना है कि इसमें पानी को गर्म करने के लिए कोयले की जगह नैचुरल गैस का इस्तेमाल होता है. पानी गर्म होने के बाद भाप बनता है. उच्च दाब वाले भाप से टरबाइन घूमता है. और इससे बिजली उत्पादन होता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
समुद्री लहर
समुद्र की लहरों से बिजली पैदा की जाती है. समुद्र किनारे दीवार या चट्टान में जेनरेटर और टरबाइन लगाया जाता है. (एक हौज बनाया जाता है जहां टरबाइन और जेनरेटर लगे होते हैं. लहरें जब हौज के भीतर आती है उसमें मौजूद पानी ऊपर उठता-गिरता है. इससे हौज के ऊपरी हिस्से में बनी जगह पर हवा तेजी से ऊपर-नीचे आती है.) लहरों के आने जाने पर टरबाइन दबाव से घूमता है और जेनरेटर चलने लगता है. बिजली पैदा होती है.
तस्वीर: Lauren Frayer
समुद्री तरंग
इस तरीके में लोहे के बड़े-बड़े पाइपों को स्प्रिंग के माध्यम से एक साथ जोड़ा जाता है. ये समुद्र की सतह पर तैरते रहते हैं. इनका आकार रेलगाड़ी के पांच डिब्बों के बराबर होता है. इनके अंदर मोटर तथा जेनरेटर लगे होते हैं. तरंगों की वजह से पाइप जब ऊपर नीचे होते हैं तो अंदर मौजूद मोटर चलने लगती है. मोटर से जेनेरेटर चलता है और बिजली उतपन्न होती है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
बायोमास से बिजली निर्माण
खेती, पशुपालन, उद्योग या वन क्षेत्र के उपयोग में काफी मात्रा में बायोमास सामग्री इकट्ठा होती है. कोल थर्मल पावर प्लांट की तरह ही इसका भी प्लांट होता है. फर्क ये है कि यहां कोयले की जगह बायोमास को जलाया जाता है और पानी को गर्म किया जाता है. पानी गर्म से होने से जो भाप बनती है उससे टरबाइन घूमता है और बिजली उत्पादन होता है.
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जियो थर्मल पावर प्लांट
जैसे-जैसे पृथ्वी की गहराई में जाते हैं, धरती गर्म होती जाती है. एक स्थान वह भी आता है जहां गर्मी की वजह से सारे पदार्थ पिघल जाते हैं जिसे लावा कहते हैं. धरती के अंदर मौजूद इसी ताप के इस्तेमाल से बिजली बनाई जाती है. इसके लिए जमीन में कुएं खोदे जाते हैं. अंदर के गर्म पानी और उसकी भाप का अलग-अलग तरह से इस्तेमाल कर टरबाइन घुमाया जाता है और बिजली बनाई जाती है.