ट्रेड डील में अमेरिका से किए वादे पूरे करने में पीछे चीन
९ फ़रवरी २०२२
2017 में ट्रेड वॉर शुरू होने के बाद चीन ने अमेरिका के साथ एक ट्रेड डील की थी. हालांकि, आंकड़े बताते हैं कि वह इस समझौते के वादे पूरे करने में कहीं पीछे है. आइए देखते हैं कि आंकड़े क्या कहते हैं.
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दो साल पहले डॉनल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति रहते अमेरिका और चीन के बीच एक ट्रेड डील हुई थी. इस समझौते के तहत चीन ने 'फेज 1' के तहत दो साल में अमेरिका से जितना सामान खरीदने का वादा किया था, दिसंबर में उसमें भारी कमी आई है.
अमेरिकी सेंसस ब्यूरो ने बताया है कि 2021 में अमेरिका का चीन के साथ व्यापार घाटा 45 अरब डॉलर बढ़ गया. व्यापार घाटे में 14.5 फीसदी की इस बढ़ोतरी के साथ अब कुल घाटा 355.3 अरब डॉलर का हो गया है. यह साल 2018 में दर्ज किए गए रिकॉर्ड 418.2 अरब डॉलर के व्यापार घाटे के बाद से सबसे ज्यादा है.
साल 2020 में दोनों के बीच व्यापार में अंतर 310.3 अरब डॉलर का था. यह बीते 10 बरसों में सबसे ज्यादा अंतर था, लेकिन इसमें कोरोना वायरस महामारी भी एक बड़ी वजह थी. पूरी दुनिया की बात करें, तो 2021 में अमेरिका का व्यापार घाटा पिछले साल के मुकाबले 27 फीसदी बढ़कर कुल 859.1 अरब डॉलर हो गया है.
क्या होता है व्यापार घाटा
व्यापार घाटा यानी किसी देश के आयात और निर्यात के बीच होने वाला अंतर. जैसे अगर कोई देश अपना 80 रुपए का सामान बाकी देशों को बेचता यानी निर्यात करता है और बाकी दुनिया से 100 रुपये का सामान खरीदता यानी आयात करता है, तो उसका व्यापार घाटा 20 रुपये होगा. वजह, उसे अपने सामान के बदले दुनिया से 80 रुपये मिल रहे हैं, लेकिन बाकी दुनिया के सामान के बदले वह 100 रुपये चुका रहा है.
अमेरिका का दुनिया को निर्यात 18 फीसदी बढ़कर 25 खरब डॉलर से भी ज्यादा हो गया है, लेकिन आयात इससे भी ज्यादा 21 फीसदी बढ़कर करीब 34 खरब डॉलर हो गया है. इसकी एक वजह कोरोना महामारी भी बताई जा रही है, क्योंकि एक तरफ घर में बैठे लोगों का बाहर खाने, फिल्में देखने और कॉन्सर्ट जाने का खर्च हवा हो गया, लेकिन फोन, घर का सामान और फर्नीचर खरीदने पर खर्च बढ़ गया.
अमेरिका को पछाड़ चीन बना दुनिया का सबसे अमीर देश
अमेरिका को पछाड़ते हुए चीन दुनिया का सबसे अमीर देश बन गया है. मैकंजी एंड कंपनी ने दुनिया की कुल आय के 60 प्रतिशत का प्रतिनिधित्व करने वाले 10 देशों की बैलेंस शीट से यह रिपोर्ट तैयार की है.
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वैश्विक धन तीन गुना
पिछले दो दशकों में वैश्विक धन तीन गुना हो गया है, जिसमें चीन सबसे आगे है. चीन ने अमेरिका को पछाड़ते हुए दुनिया के सबसे अमीर देश का स्थान हासिल कर लिया है.
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चीन की कितनी दौलत
चीन की दौलत पिछले दो दशकों में तेजी से बढ़ी है. साल 2000 में चीन की कुल दौलत 520.59 लाख करोड़ रुपये थी, जो 2020 में बढ़कर 8,924 लाख करोड़ रुपये हो गई.
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पिछड़ गया अमेरिका
मैनेजमेंट कंसल्टेंट मैकंजी एंड कंपनी की रिसर्च के मुताबिक अमेरिका की संपत्ति दो दशक में दोगुना बढ़कर 90 खरब डॉलर पर पहुंच गई. चीन और अमेरिका दोनों ही दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएं हैं.
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कुछ अमीरों के पास दौलत
मैकंजी एंड कंपनी की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया में सबसे ज्यादा धन वाले चीन और दूसरे नंबर पर मौजूद अमेरिका में भी दौलत का बड़ा हिस्सा कुछ ही अमीर परिवारों के पास है. इनकी हिस्सेदारी लगातार बढ़ रही है.
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कमाई वाले देश
दुनिया की 60 फीसदी से अधिक कमाई इन्हीं देशों से आती है. इनमें चीन, अमेरिका, जर्मनी, फ्रांस, ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, जापान, मेक्सिको और स्वीडन शामिल हैं.
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रिएल एस्टेट में संपत्ति
मैकंजी की गणना के अनुसार वैश्विक कुल संपत्ति का 68 प्रतिशत अचल संपत्ति के रूप में है. बाकी की संपत्ति बुनियादी ढांचे, मशीनरी और उपकरण जैसी चीजों में हैं.
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दुष्प्रभाव भी
रिपोर्ट के मुताबिक अचल संपत्ति मूल्यों में वृद्धि के कारण आम लोगों के घर खरीदने का सपना पूरा होना मुश्किल हो जाएगा. रिपोर्ट के मुताबिक ब्याज कम होने से संपत्ति के दाम बढ़े हैं.
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चीन नहीं खरीद रहा अतिरिक्त सामान
अमेरिका का डाटा बताता है कि चीन को अमेरिका से अतिरिक्त 200 अरब डॉलर की कीमत का खेती से जुड़ा और उत्पादन किया हुआ सामान, ऊर्जा और सेवाएं खरीदनी थीं. वादे के तहत चीन को साल 2017 के स्तर से ज्यादा सामान खरीदना था, लेकिन इसे पूरा करने में वह कहीं पीछे रहा.
साल 2017 ही वह साल है, जब दुनिया की इन दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच ट्रेड वॉर शुरू हुआ था. इसके बाद दोनों देशों के बीच हुआ यह समझौता ही ट्रंप की फेज 1 ट्रेड डील का केंद्र था. ट्रेड वॉर के दौरान दोनों देशों के बीच खरीदी-बेची जाने वाली कई चीजों पर टैरिफ बढ़ा दिए गए थे और कई चीजों पर टैरिफ बढ़ाने की धमकियां दी जा रही थीं. फिर फरवरी 2020 में यह समझौता लागू होने के बाद ही यह खींचतान थमी थी.
क्या कहता है विश्लेषण
पीटरसन इंस्टीट्यूट फॉर इंटरनेशनल इकोनॉमिक्स के अर्थशास्त्री चैड बॉन ने पूरे 2021 के सेंसस ट्रेड डाटा का विश्लेषण किया है. उनकी रिपोर्ट बताती है कि चीन ने दो साल में जितना सामान और सेवाएं खरीदने का लक्ष्य रखा था, उसका सिर्फ 57 फीसदी ही पूरा किया है.
उन्होंने कहा कि चीन ने समझौते के फेज 1 के लक्ष्य के तहत अमेरिका से जितना सामान, ऊर्जा और सेवाएं खरीदी हैं, वह 2017 जितना भी नहीं है. 2017 में चीन अमेरिका से बहुत कम सामान आयात कर रहा था, जिसके बाद अमेरिका ने 2018 और 2019 में उस पर कई टैरिफ लाद दिए थे.
एक साथ कई कूटनीतिक विवादों में फंसा है चीन
भारत के साथ सीमा-विवाद हो, हॉन्ग कॉन्ग को लेकर आलोचना हो या महामारी के फैलने के पीछे उसकी भूमिका को लेकर जांच की मांग, चीन इन दिनों कई मोर्चों पर कूटनीतिक विवादों में फंसा हुआ है. आइए एक नजर डालते हैं इन विवादों पर.
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कोरोनावायरस
अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया समेत कई देशों ने मांग की है कि चीन जिस तरह से कोरोनावायरस को रोकने में असफल रहा उसके लिए उसकी जवाबदेही सिद्ध की जानी चाहिए. कोरोनावायरस चीन के शहर वुहान से ही निकला था. चीन पर कुछ देशों ने तानाशाह जैसी "वायरस डिप्लोमैसी" का भी आरोप लगाया है.
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अमेरिका
विश्व की इन दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के आपसी रिश्ते पिछले कई दशकों में इतना नीचे नहीं गिरे जितने आज गिर गए हैं. दोनों देशों के बीच व्यापार और तकनीक को लेकर विवाद तो चल ही रहे हैं, साथ ही अमेरिका के बार बार कोरोनावायरस के फैलने के लिए चीन को ही जिम्मेदार ठहराने से भी दोनों देशों के बीच मतभेद बढ़ गए हैं. चीन भी अमेरिका पर हॉन्ग कॉन्ग के प्रदर्शनों को समर्थन देने का आरोप लगाता आया है.
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हॉन्ग कॉन्ग
हॉन्ग कॉन्ग अपने आप में चीन के लिए एक बड़ी कूटनीतिक समस्या है. चीन ने वहां राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लागू करना चाहा लेकिन अमेरिका और दूसरे पश्चिमी देशों ने इसका विरोध किया. हॉन्ग कॉन्ग कभी ब्रिटेन की कॉलोनी था और चीन के नए कदमों के बाद ब्रिटेन ने कहा है कि हॉन्ग कॉन्ग के ब्रिटिश नेशनल ओवरसीज पासपोर्ट धारकों को विस्तृत वीजा अधिकार देगा.
चीन ने लोकतांत्रिक-शासन वाले देश ताइवान पर हमेशा से अपने आधिपत्य का दावा किया है. अब चीन ने ताइवान पर उसका स्वामित्व स्वीकार कर लेने के लिए कूटनीतिक और सैन्य दबाव बढ़ाना शुरू कर दिया है. लेकिन भारी मतों से दोबारा चुनी गई ताइवान की राष्ट्रपति ने चीन के दावों को ठुकराते हुए कह दिया है कि सिर्फ ताइवान के लोग उसके भविष्य का फैसला कर सकते हैं.
तस्वीर: Office of President | Taiwan
भारत
भारत और चीन के बीच उनकी विवादित सीमा पर गंभीर गतिरोध चल रहा है. सुदूर लद्दाख में दोनों देशों के सैनिक एक दूसरे पर अतिक्रमण का आरोप लगा रहे हैं. दोनों में हाथापाई भी हुई थी.
तस्वीर: Reuters/Handout
शिंकियांग
चीन की उसके अपने पश्चिमी प्रांत में उइगुर मुसलमानों के प्रति बर्ताव पर अमेरिका और कई देशों ने आलोचना की है. मई में ही अमेरिका के हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स ने उइगुरों के उत्पीड़न के लिए जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ प्रतिबंध लागू करने वाले एक विधेयक को बहुमत से पारित किया.
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हुआवेई
अमेरिका ने चीन की बड़ी टेलीकॉम कंपनी हुआवेई को लेकर सुरक्षा संबंधी चिंताएं व्यक्त की थीं. उसने अपने मित्र देशों को चेतावनी दी थी कि अगर वो अपने मोबाइल नेटवर्क में उसका इस्तेमाल करेंगे तो उनके इंटेलिजेंस प्राप्त की जाने वाली संपर्क प्रणालियों से कट जाने का जोखिम रहेगा. हुआवेई ने इन आरोपों से इंकार किया है.
तस्वीर: picture-alliance/NurPhoto/J. Porzycki
कनाडा
चीन और कनाडा के रिश्ते तब से खराब हो गए हैं जब 2018 में कनाडा ने हुआवेई के संस्थापक की बेटी मेंग वानझाऊ को हिरासत में ले लिया था. उसके तुरंत बाद चीन ने कनाडा के दो नागरिकों को गिरफ्तार कर लिया था और केनोला बीज के आयात को ब्लॉक कर दिया था. मई 2020 में मेंग अमेरिका प्रत्यर्पित किए जाने के खिलाफ दायर किया गया एक केस हार गईं.
तस्वीर: Reuters/J. Gauthier
यूरोपीय संघ
पिछले साल यूरोपीय संघ के विदेश मंत्रियों ने आपस में तय किया कि वो चीन के प्रति अपनी रण-नीति और मजबूत करेंगे. संघ हॉन्ग कॉन्ग के मुद्दे पर चीन की दबाव वाली कूटनीति को ले कर चिंतित है. संघ उसकी कंपनियों के चीन के बाजार तक पहुंचने में पेश आने वाली मुश्किलों को लेकर भी परेशान रहा है. बताया जा रहा है कि संघ की एक रिपोर्ट में चीन पर आरोप थे कि वो कोरोनावायरस के बारे में गलत जानकारी फैला रहा था.
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ऑस्ट्रेलिया
मई 2020 में चीन ने ऑस्ट्रेलिया से जौ (बार्ली) के आयत पर शुल्क लगा दिया था. दोनों देशों के बीच लंबे समय से झगड़ा चल रहा है. दोनों देशों के रिश्तों में खटास 2018 में आई थी जब ऑस्ट्रेलिया ने अपने 5जी ब्रॉडबैंड नेटवर्क से हुआवेई को बैन कर दिया था. चीन ऑस्ट्रेलिया की कोरोनावायरस की स्वतंत्र जांच की मांग को लेकर भी नाराज है.
तस्वीर: Imago-Images/VCGI
दक्षिण चीन सागर
दक्षिण चीन सागर ऊर्जा के स्त्रोतों से समृद्ध इलाका है और चीन के इस इलाके में कई विवादित दावे हैं जो फिलीपींस, ब्रूनेई, विएतनाम, मलेशिया और ताइवान के दावों से टकराते हैं. ये इलाका एक महत्वपूर्ण व्यापार मार्ग भी है. अमेरिका ने आरोप लगाया है कि चीन इस इलाके में अपनी मौजूदगी बढ़ाने के लिए कोरोनावायरस के डिस्ट्रैक्शन का फाय उठा रहा है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/T. Aljibe
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'वादे से पीछे रहा चीन'
बॉन कहते हैं, "इसी बात को दूसरे शब्दों में कहूं, तो चीन ने डॉनल्ड ट्रंप के साथ हुए समझौते में जो 200 अरब डॉलर का अतिरिक्त सामान खरीदने का वादा किया था, उसके तहत चीन ने कुछ भी नहीं खरीदा है." उनका विश्लेषण बताता है कि चीन खेती से जुड़ी खरीद में 2017 के स्तर से ऊपर तो गया, लेकिन यह दो साल में 73.9 अरब डॉलर की खरीद के लक्ष्य के 83 फीसदी ही करीब पहुंच पाया.
अमेरिका के पास चीन को सेवाओं का निर्यात करने का सुनहरा मौका था, लेकिन महामारी की वजह से चीन का पर्यटन गिरने और अमेरिका में व्यापारिक यात्राएं कम होने से यह मुंह के बल गिरा. चीन के कई छात्रों को अमेरिकी विश्वविद्यालयों में भी जाना था, लेकिन कोरोना की वजह से तय लक्ष्य के सिर्फ 52 फीसदी बच्चे ही अमेरिका पहुंच पाए.