पिछले साल बनाए गए नए रक्षा समूह आकुस में शामिल अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन मिलकर हाइपरसोनिक हथियार बनाएंगे. चीन ने इस पर चेतावनी दी है.
पिछले साल सितंबर में हुई थी आकुस की घोषणातस्वीर: Mick Tsikas/AP/picture alliance
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अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया मिलकर हाइपरसोनिक हथियार बनाएंगे और इलेक्ट्रॉनिक युद्धक क्षमताएं बढ़ाएंगे. इन तीनों देशों ने पिछले साल आकुस (AUKUS) नाम का एक संगठन बनाया था, जिसे चीन से संभावित खतरे के खिलाफ तैयारी के रूप में देखा जा रहा है.
तीनों देशों ने कहा है कि हाइपरसोनिक हथियार बनाने का यह संयुक्त उपक्रम उन कोशिशों में और ज्यादा ऊर्जा लाएगा, जो तीनों देशों ने आकुस के रूप में पिछले साल सितंबरमें शुरू की थीं. एक साझा बयान में आकुस ने कहा, "हमने आज एक नए त्रिशंकु सहयोग की शुरुआत की है, जो हाइपरसोनिक और काउंटर-हाइपरसोनिक और इलेक्ट्रॉनिक युद्धक क्षमताओं को बढ़ाने में होगा. साथ ही, हम सूचनाएं साझा करने और रक्षा नवोन्मेष में भी सहयोग बढ़ाएंगे.”
आकुस ने पहले ही साइबर सुरक्षा, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, क्वॉन्टम टेक्नोलॉजी और समुद्र की सतह के नीचे की क्षमताओं में सहयोग का समझौता कर लिया था और मंगलवार की घोषणा इस समझौते का नया आयाम होगी. साझा बयान के मुताबिक, "जैसे-जैसे इन महत्वपूर्ण रक्षा और सुरक्षा क्षमताओं पर हमारा काम बढ़ेगा, हम अन्य सहयोगियों और साझीदारों को भी शामिल करेंगे.”
इस घोषणा को चीन ने आग में घी डालने जैसी हरकत बताया है. संयुक्त राष्ट्र में चीन के राजदूत जांग जुन ने चेतावनी दी कि ऐसी गतिविधियों से बचा जाना चाहिए जो दुनिया के अन्य हिस्सों में यूक्रेन जैसे विवाद भड़का सकती हैं. उन्होंने कहा, "जो भी यूक्रेन जैसा संकट और ज्यादा नहीं देखना चाहता, उसे ऐसा कुछ भी करने से बचना चाहिए जिससे दुनिया के दूसरे हिस्सों में ऐसा ही संकट भड़क सकता है. चीन में एक कहावत है कि जो आपको खुद पसंद नहीं, वह दूसरों पर भी मत थोपो.”
क्या है हाइपरसोनिक तकनीक?
मंगलवार की घोषणा को हाल ही मेंरूस द्वारा यूक्रेन पर पहली हाइपरसोनिक मिसाइलदागने के संदर्भ में भी देखा जा रहा है. रूस, चीन और अमेरिका के अलावा उत्तर कोरिया भी हाइपरसोनिक मिसाइलों का परीक्षण कर चुका है. पारपंरिक बैलिस्टिक मिसाइलों की तरह हाइपरसोनिक मिसाइल भी परमाणु हाथियारों को दागने में सक्षम होती हैं. ये ध्वनि की गति से पांच गुना ज्यादा रफ्तार से उड़ सकती हैं.
बैलेस्टिक और क्रूज मिसाइल में क्या है फर्क
मिसाइल आधुनिक समय में युद्ध के अहम हथियार बनते जा रहे हैं. आम तौर पर मिसाइल को उनके प्रकार, लॉन्च मोड, रेंज, संचालन शक्ति, वॉरहेड और गाइडेंस सिस्टम के आधार पर बांटा जाता है. एक नजर मिसाइलों के प्रकार पर.
तस्वीर: picture-alliance/Zumapress/Department of Defense
क्रूज और बैलेस्टिक
मिसाइल मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं. एक क्रूज मिसाइल होता है जिसके तहत सबसोनिक, सुपरसोनिक और हाईपर सोनिक क्रूज मिसाइल आते हैं. ब्रह्मोस सुपरसोनिक मिसाइल है और ब्रह्मोस 2 हाइपरसोनिक मिसाइल है. वहीं दूसरा बैलेस्टिक मिसाइल होता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
क्रूज मिसाइल
क्रूज मिसाइल एक मानवरहित स्व-चालित वाहन है जो एयरोडायनामिक लिफ्ट के माध्यम से उड़ान भरता है. इसका काम एक लक्ष्य पर विस्फोटक या विशेष पेलोड गिराना हैं. यह जेट इंजन की मदद से पृथ्वी के वायुमंडल के भीतर उड़ान भरते हैं. इनकी गति काफी तेज होती है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Tass/Ministry of Defence of the Russian Federation
बैलेस्टिक मिसाइल
बैलिस्टिक मिसाइल एक ऐसी मिसाइल है जो अपने स्थान पर छोड़े जाने के बाद तेजी से ऊपर जाती है और फिर गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव से नीचे आते हुए अपने लक्ष्य को निशाना बनाती है. बैलेस्टिक मिसाइल को बड़े समुद्री जहाज या फिर संसाधनों से युक्त खास जगह से छोड़ा जाता है. पृथ्वी, अग्नि और धनुष भारत के बैलिस्टिक मिसाइल हैं.
तस्वीर: Reuters/Courtesy Israel Ministry of Defense
सरफेस टू सरफेस मिसाइल
लॉन्च मोड के आधार पर भी मिसाइलों को कई तरह से बांटा गया है. सरफेस टू सरफेस मिसाइल एक निर्देशित लक्ष्य पर वार करती है. इसे वाहन पर रखकर या किसी जगह पर इंस्टॉल कर लॉन्च किया जाता है. आमतौर पर इसमें रॉकेट मोटर लगा होता है या फिर कभी-कभी लॉन्च प्लेटफॉर्म से विस्फोटक के माध्यम से छोड़ा जाता है.
तस्वीर: Reuters
सरफेस टू एयर मिसाइल
इस मिसाइल का उपयोग जमीन से हवा में किसी निशाने को भेदने के लिए किया जाता है, जैसे कि हवाईजहाज, हेलिकॉप्टर या फिर बैलेस्टिक मिसाइल. इस मिसाइल को आमतौर पर एयर डिफेंस सिस्टम कहते हैं क्योंकि ये दुश्मनों के हवाई हमले को रोकते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/H. Ammar
लैंड टू सी मिसाइल
इस मिसाइल को जमीन से छोड़ा जाता है जो दुश्मनों की समुद्री जहाज को निशाना बनाते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/E. Noroozi
एयर टू एयर मिसाइल
एयर टू एयर (हवा से हवा में मार करने वाली) मिसाइल को किसी एयरक्राफ्ट से छोड़ा जाता है, जो दुश्मनों के एयरक्राफ्ट को नष्ट कर देती है. इसकी गति 4 मैक (करीब 4800 किलोमीटर प्रतिघंटा) होती है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/AP Photo/File/Lt. Col.. Leslie Pratt, US Air Force
एयर टू लैंड मिसाइल
एयर टू लैंड मिसाइल को सेना के विमान से छोड़ा जाता है जो समुद्र, जमीन या दोनों जगहों पर निशाना लगाती है. इस मिसाइल को जीपीएस सिग्नल के माध्यम से लेजर गाइडेंस, इफ्रारेड गाइडेंस या ऑप्टिकल गाइडेंस से निर्देशित किया जाता है.
तस्वीर: Getty Images/J. Moore
सी टू सी मिसाइल
इस मिसाइल को इस तरह से डिजाइन किया जाता है कि यह समुद्र में मौजूद अपने दुश्मनों के जहाज या पनडुब्बियों को नष्ट कर देती है. इसे समुद्री जहाज से ही लॉन्च किया जाता है.
तस्वीर: picture-alliance/ZUMAPRESS/U.S Navy
सी टू लैंड मिसाइल
इस तरह के मिसाइल को समुद्र से लॉन्च किया जाता है जो सतह पर मौजूद अपने दुश्मन के ठिकानों को नष्ट कर देती है.
तस्वीर: AP
एंटी टैंक मिसाइल
एंटी टैंक मिसाइस वह होती है जो दुश्मनों के सैन्य टैंकों और अन्य युद्ध वाहनों को नष्ट कर देती है. इसे एयरक्राफ्ट, हेलिकॉप्टर, टैंक या कंधे पर रखे जाने वाले लांचर से भी छोड़ा जा सकता है.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/Militant Photo
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बैलिस्टिक मिसाइल अपने लक्ष्य पर पहुंचने से पहले हवा में काफी अधिक ऊंचाई तक जाती है और एक चाप बनाती हुई लक्ष्य तक पहुंचती है. इसके उलट, हाइपरसोनिक मिसाइल वातावरण में कम ऊंचाई पर जाती है और लक्ष्य तक ज्यादा तेजी से पहुंच सकती है.
हाइपरसोनिक मिसाइल के मामले में एक अहम बात यह मानी जाती है कि इनका रास्ता बदला जा सकता है, जिस वजह से इनका पता लगाना और इनसे बच पाना ज्यादा मुश्किल हो जाता है.
हाइपरसोनिक मिसाइलों के क्षेत्र में रूस को सबसे आगेमाना जाता है जबकि अमेरिकी संसद की कांग्रेशनल रिसर्च सर्विस (CRS) के अनुसार चीन भी इस तकनीक को पूरी आक्रामकता से विकसित करने में लगा है. सीआरएस का कहना है कि भारत, जर्मनी, फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया और जापान भी हाइपरसोनिक मिसाइल बनाने में लगे हुए हैं जबकि ईरान, इस्राएल और दक्षिण कोरिया ने इस तकनीक पर शुरुआती काम कर लिया है.
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क्या है आकुस?
सितंबर में अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और युनाइटेड किंग्डम ने मिलकर एक नया रक्षा समूह बनाने की घोषणा की थी जो विशेषकर हिंद-प्रशांत क्षेत्र पर केंद्रित होगा. इस समूह के समझौते के तहत अमेरिका और ब्रिटेन अपनी परमाणु शक्तिसंपन्न पनडुब्बियों की तकनीक ऑस्ट्रेलिया के साथ साझा करेंगे.
सिर्फ 6 देशों के पास हैं परमाणु पनडुब्बियां
आकुस समझौते के तहत ऑस्ट्रेलिया में परमाणु ऊर्जा से चलने वाली पनडुब्बी बनाई जाएगी. इसके तैयार हो जाने पर वह सातवां ऐसा देश बन जाएगा जिसके पास परमाणु पनडुब्बी है. अब तक यह क्षमता हासिल कर चुके देश हैं..
तस्वीर: Reuters/S. Andrade
ऑस्ट्रेलिया होगा 7वां देश
2016 की इस तस्वीर में फ्रांसीसी पनडुब्बी है जो ऑस्ट्रेलिया को मिलनी थी. अब फ्रांस की जगह वह अमेरिका से परमाणु पनडुब्बी लेकर सातवां देश बन जाएगा. बाकी छह देशों में भारत भी है. लेकिन सबसे ज्यादा पनडुब्बियां किसके पास हैं? अगली तस्वीर में जानिए...
तस्वीर: Getty Images/AFP/T. Blackwood
अमेरिका
अमेरिका के पास सबसे ज्यादा 68 परमाणु पनडुब्बियां हैं. इनमें से 14 ऐसी हैं जो बैलिस्टिक मिसाइल दाग सकती हैं.
तस्वीर: Amanda R. Gray/U.S. Navy via AP/picture alliance
रूस
रूस के पास 29 परमाणु पनडुब्बियां हैं जिनमें से 11 में बैलिस्टिक मिसाइल से हमला करने की क्षमता है.
तस्वीर: Peter Kovalev/TASS/dpa/picture alliance
चीन
चीन के पास 12 परमाणु पनडुब्बियां हैं जिनमें से आधी ऐसी हैं जो बैलिस्टिक मिसाइल दाग सकती हैं. बाकी छह परमाणु ऊर्जा से चलने वाली पनडुब्बियां हैं.
तस्वीर: Imago Images/Xinhua/L. Ziheng
ब्रिटेन
ब्रिटेन 11 परमाणु पनडुब्बियों के साथ इस सूची में चौथे नंबर पर है. उसकी 4 पनडुब्बियां बैलिस्टिक मिसाइल दागने की क्षमता रखती हैं.
तस्वीर: James Glossop/AFP/Getty Images
फ्रांस
फ्रांस के पास भी बैलिस्टिक मिसाइल दाग सकने वाली चार परमाणु पनडुब्बियां हैं. हालांकि उसकी कुल पनडुब्बियों की संख्या 8 है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/DCNS Group
भारत
भारत इस सूची में एक पनडुब्बी के साथ शामिल है. भारत की परमाणु ऊर्जा संपन्न यह पनडुब्बी मिसाइल भी दाग सकती है.
तस्वीर: Reuters/S. Andrade
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अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन के साथ ऑनलाइन बैठक के बाद नए गठबंधन का ऐलान एक वीडियो के जरिए किया था जिसने चीन के अलावा अमेरिका के सहयोगी फ्रांस को भी नाराज कर दिया था.
नए समझौते के तहत अमेरिका परमाणु ऊर्जा से चलने वाली पनडुब्बी बनाने की तकनीक ऑस्ट्रेलिया को देगा जिसके आधार पर ऐडिलेड में नई पनडुब्बियों का निर्माण होगा. ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन के एक प्रवक्ता ने बताया कि नए समझौते के चलते फ्रांस की जहाज बनाने वाली कंपनी नेवल ग्रुप का ऑस्ट्रेलिया के साथ हुआ समझौता खत्म हो गया है. इससे फ्रांस नाराज हो गया थाऔर उसने कैनबरा से अपने राजदूत को वापस बुला लिया था.