अमेरिकी सीमा पर एक और बच्चे की मौत से उठे सवाल
२७ दिसम्बर २०१८जन्मभूमि हर किसी को प्यारी होती है. लेकिन हिंसा, भुखमरी और तंगहाली के कारण अक्सर लोगों को अपना घर छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ता है. देखिए ऐसे ही कुछ लोगों का सफर.
दर दर भटकते लोगों की दास्तान
जन्मभूमि हर किसी को प्यारी होती है. लेकिन हिंसा, भुखमरी और तंगहाली के कारण अक्सर लोगों को अपना घर छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ता है. देखिए ऐसे ही कुछ लोगों का सफर.
गरीबी और ठंड से संघर्ष
ये लोग बोस्निया हर्जगोविना से क्रोएशिया जा रहे हैं. बोस्निया हर्जगोविना की आर्थिक हालत खस्ता है. वहीं क्रोएशिया यूरोपीय संघ का हिस्सा है. बेहतर भविष्य की तलाश में लोग कड़ाके की सर्दी में मीलों पैदल चलकर बॉर्डर पार करने की कोशिश करते हैं. इस दौरान कुछ लोग बर्फीले तूफान में दम भी तोड़ देते हैं.
उम्मीदों का ट्रक
यह तस्वीर मध्य अमेरिका की है. हिंसा और भुखमरी के चलते लोग होंडूरास, निकारागुआ, अल सल्वाडोर और ग्वाटेमाला छोड़ रहे हैं. उनकी मंजिल अमेरिका है. लेकिन वहां अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने अवैध अप्रवासन के खिलाफ अभियान छेड़ा हुआ है. किसी तरह अमेरिका पहुंचने की कोशिश में ज्यादातर मेक्सिको सीमा में ही फंसे रह जाते हैं.
बिखर गए सपने
ऑस्ट्रेलिया की सरकार नहीं चाहती कि उनके यहां रिफ्यूजी आएं. वहां से बड़ी संख्या में शरणार्थियों को वापस उनके देश भेजा जा रहा है. डिपोर्टेशन को लेकर ऑस्ट्रेलिया ने प्रशांत क्षेत्र के कई देशों से समझौता भी किया है. वापस भेजने से पहले रिफ्यूजियों को कैंप में रखा जाता है. जान जोखिम में डालकर ऑस्ट्रेलिया पहुंचे ऐसे लोग इन कैंपों में बड़ी बुरी मनोदशा में होते हैं.
कोई सुध बुध लेने वाला नहीं
हुसैन आबो शानान 80 साल के हैं. वह कई दशकों से जॉर्डन में बतौर फलस्तीनी रिफ्यूजी रह रहे हैं. जॉर्डन की आबादी की करीब एक करोड़ है, जिसमें रिफ्यूजियों की संख्या 23 लाख है. कुछ तो 1948 से वहां रह रहे हैं. उन्हें अपनी मिट्टी पर लौटने की कोई उम्मीद नहीं है और जॉर्डन में दशकों बाद भी उन्हें पूरे अधिकार नहीं मिले हैं.
तेल से समृद्ध देश के गरीब नागरिक
वेनेजुएला के पास बड़ी मात्रा में तेल और गैस के भंडार हैं. लेकिन कारोबारी प्रतिबंधों के चलते देश आर्थिक तंगी, दवाओं की कमी और महंगाई का सामना कर रहा है. ज्यादातर नागरिक देश छोड़ने की फिराक में हैं. उनका आखिरी ठिकाना कोलंबिया होता है.
सबसे बड़ा रिफ्यूजी कैंप
दुनिया का सबसे बड़ा रिफ्यूजी कैंप बांग्लादेश के कुतुपलोंग में है. म्यांमार से भागने वाले ज्यादातर रोहिंग्या मुस्लिम यहीं रहते हैं. बांग्लादेश आर्थिक रूप से बहुत मजबूत नहीं है, रिफ्यूजी संकट ने उसकी अर्थव्यवस्था पर गहरा असर डाला है.
पड़ोस की अशांति का असर
मध्य अफ्रीकी देश सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक खनिजों से भरा है. वहां की जमीन भी उपजाऊ है. लेकिन पड़ोसी देशों में छिड़े युद्ध, जातीय हिंसा और आतंकवाद ने राजधानी बांगी को विस्थापितों से भर दिया है.
गरीब देश पर और बोझ
लंबे समय तक गृहयुद्ध ने युगांडा को झुलसाए रखा. लेकिन अब अन्य अफ्रीकी देशों के मुकाबले वहां हालात काफी सामान्य हुए हैं. इसी वजह से युगांडा अब दक्षिणी सूडान के लोगों का ठिकाना सा बन गया है. जान बचाने के लिए हजारों सूडानी नागरिक युगांडा में रिफ्यूजी की जिंदगी जी रहे हैं.
पहुंच गए यूरोप
स्पेन के मलागा पहुंचे इन रिफ्यूजियों को रेड क्रॉस प्राथमिक उपचार दे रहा है. अफ्रीका से भागकर यूरोप आने वाले ये लोग जान जोखिम में डालकर समंदर पार करते हैं. पहले वे लीबिया के रास्ते आते थे. सैकड़ों रिफ्यूजियों के लीबिया में कैद होने के बाद अब नए रिफ्यूजी अल्जीरिया या मोरक्को के रास्ते यूरोप के लिए निकलते हैं. (रिपोर्ट: कार्स्टन ग्रुन/ओएसजे)