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मंदिर बनने के बावजूद उत्तर प्रदेश में कैसे बिखर गई बीजेपी?

समीरात्मज मिश्र
४ जून २०२४

सियासी लिहाज से देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में बीजेपी को करारी हार का सामना करना पड़ा है. यहां कांग्रेस और एसपी के गठबंधन की आंधी में कई दिग्गज उड़ गए. आखिर यूपी में ऐसा क्या हुआ?

Indien Uttar Pradesh Raebareli | Wahlkampf Rahul Gandhi
2019 के लोकसभा चुनाव में एसपी ने पांच और कांग्रेस ने महज एक सीट जीती थी.तस्वीर: PAWAN KUMAR/AFP/Getty Images

यह लेख लिखे जाने तक यूपी में एसपी 36 सीटें जीत चुकी है और एक सीट पर बढ़त बनाए हुए है. इस सीट पर भी शीर्ष दो उम्मीदवारों में इतना अंतर है कि रुझान नतीजे में ही बदलेगा. वहीं इंडिया गठबंधन की दूसरी पार्टी कांग्रेस यूपी में छह सीटें जीतने में कामयाब रही.

2019 के चुनाव में एसपी ने पांच और कांग्रेस ने महज एक सीट जीती थी. इस बार एसपी ने यूपी में 62 कांग्रेस ने 17 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे. वहीं 2019 में 62 सीटें जीतने वाली बीजेपी ने इस बार 33 सीटें जीती हैं. यानी 2019 की तुलना में लगभग आधी.

एसपी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने सोशल मीडिया पर जनता का शुक्रिया अदा करते हुए लिखा, "जनता को प्रणाम, जनमत को सलाम! यूपी की जागरूक जनता ने देश को एक बार फिर से नई राह दिखाई है, नई आस जगाई है." इंडिया गठबंधन के बारे में अखिलेश ने कहा, "यह इंडिया गठबंधन और पीडीए की एकता की जीत है. सबको हृदय से धन्यवाद, दिल से शुक्रिया!"

कौन से मंत्री नहीं बचा पाए अपनी सीटें

यूपी में इंडिया गठबंधन की इस आंधी में बीजेपी के कई दिग्गज नेता उड़ गए. इनमें वे नेता भी हैं, जो पिछले चुनाव में भारी अंतर से जीते थे. यहां तक कि खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वाराणसी सीट पर महज डेढ़ लाख वोटों से जीत दर्ज कर पाए. यह वाराणसी से उनका तीसरा चुनाव था और तीनों चुनावों में यह जीत का सबसे कम अंतर है. बीजेपी के कई मंत्री भी चुनाव हार गए. इनमें सबसे अहम हार केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी की रही, जिन्हें अमेठी में कांग्रेस उम्मीदवार किशोरीलाल शर्मा ने 1.60 लाख से भी ज्यादा वोटों से हराया.

वहीं रायबरेली में राहुल गांधी ने बीजेपी उम्मीदवार दिनेश प्रताप सिंह को करीब चार लाख वोटों से हराया. लखनऊ में केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह एक लाख वोटों के अंतर से जीत पाए, जबकि फतेहपुर से साध्वी निरंजन ज्योति, खीरी से अजय मिश्र टेनी, मोहनलालगंज से कौशल किशोर, चंदौली से महेंद्र नाथ पांडेय, मुजफ्फरनगर से संजीव बालियान और जालौन से भानुप्रताप सिंह जैसे केंद्रीय मंत्रियों को हार का सामना करना पड़ा है.

राजनाथ सिंह के अलावा मिर्जापुर से अनुप्रिया पटेल, आगरा से एसपी सिंह बघेल और महाराजगंज से पंकज चौधरी ही ऐसे केंद्रीय मंत्री रहे, जो अपनी सीटें बचाने में कामयाब हुए. वहीं एसपी के प्रमुख अखिलेश यादव के अलावा उनकी पत्नी डिंपल यादव और आजमगढ़ से उनके चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव भी चुनाव जीतने में कामयाब रहे.

केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह भी लखनऊ से अपना चुनाव करीब एक लाख वोटों से जीत पाएतस्वीर: Indraneel Chowdhury/NurPhoto/picture alliance

मंदिर से बीजेपी को नहीं मिली अपेक्षित सफलता

यह स्थिति तब है, जब दो दिन पहले ही आए अलग-अलग एक्जिट पोल बीजेपी और उसकी सहयोगी पार्टियों को यूपी 70 से भी ज्यादा सीटें दे रहे थे. लेकिन, इंडिया गठबंधन के घटक दलों ने उन सारे एक्जिट पोल को नकार दिया और अपने समर्थकों से नतीजों इंतजार करने को कहा. साथ ही, उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं को यह हिदायत भी दी कि स्ट्रॉन्ग रूम की रखवाली की जाए और किसी भी अप्रिय स्थिति की आशंका पर नजर रखी जाए.

बड़ी हैरानी की बात यह रही कि अयोध्या में बना भव्य राम मंदिर इस लोकसभा चुनाव में मुद्दा नहीं बन पाया और बीजेपी को पिछली सफलता हासिल करने जितने वोट नहीं दिला पाया. जबकि 1980 के दशक में बीजेपी के गठन के समय से ही यह उसका चुनावी मुद्दा रहा है. बीजेपी को उम्मीद थी कि मंदिर बन जाने का उसे सीधा लाभ मिलेगा, जबकि स्थिति यह रही कि अयोध्या शहर जिस फैजाबाद लोकसभा सीट के तहत आता है, उस सीट पर बीजेपी को करारी हार का सामना करना पड़ा. बीजेपी के मौजूदा सांसद लल्लू सिंह को सपा के अवधेश प्रसाद ने मात दी है.

यही नहीं, अवध के इलाके की कई अन्य सीटें भी इंडिया गठबंधन जीतने में कामयाब रहा. हां, बहुचर्चित कैसरगंज सीट बीजेपी ने जरूर जीत ली, जहां मौजूदा सांसद बृजभूषण शरण सिंह के बेटे करण भूषण सिंह बीजेपी के उम्मीदवार थे.

वोटिंग से पहले माना जा रहा था कि राम मंदिर का निर्माण बीजेपी को सियासी फायदा पहुंचाएगातस्वीर: Ritesh Shukla/Getty Images

किन मुद्दों पर था पार्टियों का ध्यान

चुनाव में बीजेपी ने राम मंदिर और हिंदू-मुसलमान जैसे मुद्दों पर ज्यादा ध्यान दिया, जबकि कांग्रेस के नेतृत्व में इंडिया गठबंधन ने रोजगार, महंगाई, शिक्षा और पेपर लीक जैसे मुद्दों को हवा दी. कांग्रेस के सत्ता में आते ही अग्निपथ योजना खत्म करने जैसे वादों ने भी युवाओं को गठबंधन के प्रति आकर्षित किया.

इसके अलावा चुनाव में बीएसपी के लगभग गैर-मौजूद रहने ने भी इस बार इंडिया गठबंधन को काफी मदद पहुंचाई. यूपी की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के नेतृत्व वाली बीएसपी 80 में से एक भी सीट पर कोई खास वोट हासिल नहीं कर पाई, जीतना तो दूर की बात है.

बीएसपी के मतदाताओं ने बीजेपी के खिलाफ उन आशंकाओं के चलते इंडिया गठबंधन को वोट दिया कि यदि बीजेपी दोबारा बहुमत के साथ सत्ता में आई, तो वह 'संविधान बदल देगी'. इस मुद्दे को इंडिया गठबंधन के सहयोगी दलों ने तो जोर-शोर से उठाया ही. आजाद समाज पार्टी के नेता चंद्रशेखर रावण ने भी इसे मुद्दा बनाया और इसी के बूते उन्होंने नगीना सीट बड़े अंतर से जीत ली. इस सीट पर बीएसपी उम्मीदवार को चौथे नंबर पर संतोष करना पड़ा.

वोटों की गिनती शुरू, रुझानों पर नजरें

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