उत्तर प्रदेश के कासगंज में एक मुस्लिम युवक के पुलिस स्टेशन में संदिग्ध हालात में मृत पाए जाने का मामला सामने आया है. पुलिस 21 साल के अल्ताफ को एक महिला से जबरन विवाह से जुड़े मामले में पूछताछ के लिए पुलिस स्टेशन लाई थी.
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मीडिया में आई खबरों में बताया जा रहा है कि पुलिस अल्ताफ को सोमवार आठ नवंबर को पुलिस स्टेशन ले कर गई थी. अगले दिन पुलिस उसे अस्पताल लेकर गई जहां उसे मृत घोषित कर दिया गया.
अल्ताफ के पिता चाहत मियां ने पत्रकारों को बताया कि जब किसी महिला को अगवा करने के आरोप में पुलिस उनके बेटे को ढूंढते हुए उनके घर पहुंची तो उन्होंने अल्ताफ को पुलिस को सौंप दिया.
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नल से फांसी?
लेकिन जब वो मामले के बारे में और जानने के लिए पुलिस स्टेशन गए तो उन्हें वहां से भगा दिया गया. उसके बाद अगले दिन उन्हें उनके बेटे की मौत की खबर मिली. चाहत मियां ने पुलिस पर ही उनके बेटे की मौत की जिम्मेदारी का आरोप लगाया है. लेकिन पुलिस ने इन आरोपों से इनकार किया है.
कासगंज जिले के पुलिस अधीक्षक बोतरे रोहन प्रमोद ने एक बयान में कहा कि पुलिस स्टेशन में पूछताछ के दौरान जब अल्ताफ ने शौचालय जाने की इच्छा जाहिर की तो उसे एक हवालात के शौचालय में जाने दिया गया.
प्रमोद ने कहा कि अल्ताफ ने शौचालय में अपनी जैकेट में लगे एक नाड़े का इस्तेमाल करते हुए शौचालय के नल से खुद को फांसी लगाने की कोशिश की. उन्होंने बताया कि पुलिस ने अल्ताफ को बेहोशी की हालत में अस्पताल में भर्ती कराया जहां 5-10 मिनट के प्राथमिक उपचार के बाद उसकी मौत हो गई.
पुलिस ने बस इतना माना है कि मामले में लापरवाही हुई है, जिसके लिए पुलिस अधीक्षक ने पांच पुलिसकर्मियों को निलंबित कर दिया है. मांग उठ रही है कि मामले की निष्पक्ष जांच होनी चाहिए.
क्या कहते हैं आंकड़े
पुलिस हिरासत में लोगों की मौत भारत में एक बड़ी समस्या है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक अकेले 2020 में पूरे देश में पुलिस की हिरासत में 76 लोगों की मौत हो गई. इनमें से 31 मामले हिरासत में आत्महत्या के और 34 उपचार के दौरान अस्पताल में मौत के थे.
जानकारों का कहना है कि ये आंकड़े भी असली स्थिति नहीं बता पाते हैं क्योंकि कई अन्य मामले आधिकारिक रिकॉर्डों तक पहुंच नहीं पाते हैं. पुलिस के खिलाफ शिकायत भी बहुत ही कम मामलों में दर्ज हो पाती है.
2020 में पूरे देश में हिरासत में मौत के लिए पुलिसकर्मियों के खिलाफ कुल सात मामले दर्ज किए गए, जिनमें से सिर्फ दो में जांच की रिपोर्ट प्रस्तुत की गई और सिर्फ एक में पुलिसकर्मी को चार्जशीट किया गया. मामले में अदालत का फैसला अभी भी लंबित है.
इन सात मामलों में चार पुलिसकर्मियों को गिरफ्तार किया गया और सिर्फ तीन को चार्जशीट किया गया. इस समस्या का समाधान निकालने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल दिसंबर में देश में सभी पुलिस स्टेशनों के अंदर नाइट विजन और ऑडियो रिकॉर्डिंग वाले सीसीटीवी कैमरा लगाने का आदेश दिया था.
लेकिन अभी तक इस आदेश का पालन नहीं हो पाया है. राज्यों के पुलिस विभाग और केंद्रीय एजेंसियां अभी इसे लागू करने की तैयारी ही कर रही हैं और उधर पुलिस हिरासत में लोगों के मरने का सिलसिला जारी है.
बढ़ती जा रही है जेलों में विचाराधीन कैदियों की संख्या
एनसीआरबी के ताजा आंकड़े दिखाते हैं कि देश की जेलों में ऐसे कैदियों की संख्या हर साल बढ़ती जा रही है जिनके खिलाफ आरोपों पर सुनवाई अभी चल ही रही है. जानिए और क्या बताते हैं ताजा आंकड़े.
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कितनी जेलें
2019 में देश में कुल 1,350 जेलें थीं, जिनमें सबसे ज्यादा (144) राजस्थान में थीं. दिल्ली में सबसे ज्यादा (14) केंद्रीय जेलें हैं. कम से कम छह राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में एक भी केंद्रीय जेल नहीं है.
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जेलों में भीड़
इतनी जेलें भी बंदियों की बढ़ती संख्या के लिए काफी नहीं हैं. ऑक्यूपेंसी दर 2018 में 117.6 प्रतिशत से बढ़ कर 2019 में 118.5 प्रतिशत हो गई. सबसे ज्यादा ऊंची दर जिला जेलों (129.7 प्रतिशत) है. राज्यों में सबसे ऊंची दर दिल्ली में है (174.9 प्रतिशत).
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महिला जेलों का अभाव
'पूरे देश में सिर्फ 31 महिला जेलें हैं और वो भी सिर्फ 15 राज्यों/केंद्रीय शासित प्रदेशों में हैं. देश की सभी जेलों में कुल 4,78,600 कैदी हैं, जिनमें 19,913 महिलाएं हैं.
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कर्मचारियों का भी अभाव
2019 में जेल स्टाफ की स्वीकृत संख्या थी 87,599 लेकिन वास्तविक संख्या थी सिर्फ 60,787. सबसे बड़ा अभाव प्रोबेशन अधिकारी, कल्याण अधिकारी, मनोवैज्ञानिक, मनोचिकित्सक आदि जैसे सुधार कर्मियों का था.
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कैदियों पर खर्च
2019 में देश में कैदियों पर कुल 2060.96 करोड़ रुपए खर्च किए गए, जो कि जेलों के कुल खर्च का 34.59 प्रतिशत था. इसमें से 47.9 प्रतिशत (986.18 करोड़ रुपए) भोजन पर खर्च किए गए, 4.3 प्रतिशत (89.48 करोड़ रुपए) चिकित्सा संबंधी खर्च पर, 1.0 प्रतिशत (20.27 करोड़ रुपए) कल्याणकारी गतिविधियों पर, 1.1 प्रतिशत (22.56 करोड़ रुपए) कपड़ों पर और 1.2 प्रतिशत (24.20 करोड़ रुपए) शिक्षा और ट्रेनिंग पर किया गया.
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70 प्रतिशत कैदियों के मामले विचाराधीन
2019 में देश की सभी जेलों में अपराधी साबित हो चुके कैदियों की संख्या (1,44,125) ऐसे कैदियों की संख्या से ज्यादा थी जिनके खिलाफ मामले अभी अदालतों में विचाराधीन ही हैं (3,30,487). एक साल में विचाराधीन कैदियों की संख्या में 2.15 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. इनमें से लगभग आधे कैदी जिला जेलों में हैं और 36.7 प्रतिशत केंद्रीय जेलों में.
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न्याय के इंतजार में
विचाराधीन कैदियों में 74.08 प्रतिशत कैदी (2,44,841) एक साल तक की अवधि तक, 13.35 प्रतिशत कैदी (44,135) एक से दो साल की अवधि तक, 6.79 प्रतिशत (22,451) दो से तीन सालों तक, 4.25 प्रतिशत (14,049) तीन से पांच सालों तक और 1.52 प्रतिशत कैदी (5,011) पांच साल से भी ज्यादा अवधि से जेल में बंद थे.
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शिक्षा का स्तर
सभी कैदियों में 27.7 प्रतिशत (1,32,729) अशिक्षित थे, 41.6 प्रतिशत (1,98,872) दसवीं कक्षा तक भी नहीं पढ़े थे, 21.5 प्रतिशत (1,03,036) स्नातक के नीचे तक पढ़े थे, 6.3 प्रतिशत (30,201) स्नातक थे, 1.7 प्रतिशत 8,085 स्नातकोत्तर थे और 1.2% प्रतिशत (5,677) कैदियों के पास टेक्निकल डिप्लोमा/डिग्री थी.
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मृत्युदंड वाले कैदी
सभी कैदियों में कुल 400 कैदी ऐसे थे जिन्हें मौत की सजा सुना दी गई थी. इनमें से 121 कैदियों को 2019 में मृत्युदंड सुनाया गया था. 77,158 कैदियों (53.54 प्रतिशत) को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी.
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जेल में मृत्यु
2018 में 1,845 कैदियों के मुकाबले 2019 में 1,775 कैदियों की जेल में मृत्यु हुई. इनमें से 1,544 कैदियों की मौत प्राकृतिक कारणों से हुई. अप्राकृतिक कारणों से मरने वाले कैदियों की संख्या 10.74 प्रतिशत बढ़ कर 165 हो गई. इनमें से 116 कैदियों की मौत आत्महत्या की वजह से हुई, 20 की मौत हादसों की वजह से हुई और 10 की दूसरे कैदियों द्वारा हत्या कर दी गई. कुल 66 मामलों में मृत्यु का कारण पता नहीं चल पाया.
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पुनर्वास
2019 में कुल 1,827 कैदियों का पुनर्वास कराया गया और 2,008 कैदियों को रिहाई के बाद वित्तीय सहायता दी गई. कैदियों द्वारा कुल 846.04 करोड़ रुपए मूल्य के उत्पाद भी बनाए गए.