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समाज

यूपी: किन्नर बच्चे को मिलेगा पैतृक कृषि भूमि में अधिकार 

आमिर अंसारी
९ सितम्बर २०२०

भारत में किन्नर समुदाय के सदस्य कई साल से हाशिए पर हैं. उनके पास रोजगार के अवसर ना के बराबर हैं. कई लोगों के पास डिग्रियां तो हैं लेकिन वे नौकरी पाने में नाकाम रहते हैं. अब वे मुख्य धारा में आना चाहते हैं.

तस्वीर: AP

उत्तर प्रदेश में एक नए कानून के तहत किन्नर समुदाय के लोगों को पैतृक खेतिहर जमीन पर हक मिलेगा. पिछले महीने ही योगी आदित्यनाथ कैबिनेट ने उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता (संशोधन) विधेयक, 2020 को मंजूरी दी थी और ये दोनों सदनों से पारित हो चुका है, जिसके बाद किन्नर बच्चे को भी पैतृक खेतिहर भूमि पर हक मिलेगा. संशोधित विधेयक में किन्नर संतान के भी पैतृक खेतिहर जमीन पर अधिकार की परिभाषा को स्पष्ट कर दिया गया है. इससे पहले तक प्रदेश में पैतृक कृषि भूमि पर सिर्फ बेटा, बेटी, विवाहित-अविवाहित पुत्री और विधवा को ही संपत्ति में अधिकार मिलता आया था. अब राज्य सरकार ने पुत्र और पुत्रियों के साथ ही थर्ड जेंडर संतानों को भी पारिवारिक सदस्य माना है. 

आगरा की रहने वाली किन्नर देवेंद्र एस मंगलामुखी कहती हैं कि उनके समुदाय के लोगों को सरकारों को मुख्य धारा में लाने के लिए बड़े पैमाने पर काम करने की जरूरत है. मंगलामुखी देश की पहली किन्नर हैं, जिन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में डॉक्टरेट किया है. वे कहती हैं कि 99 फीसदी किन्नर अपनी मर्जी से घर छोड़कर चले जाते हैं जबकि उनका पुश्तैनी संपत्ति पर अधिकार बनता है. मंगलामुखी डीडब्ल्यू से कहती हैं, "मैं भीख नहीं मांगना चाहती हूं. मैं नौकरी करना चाहती हूं. हम जहां नौकरी के लिए जाते हैं वहां हमें देखकर ही हमें किनारे कर दिया जाता है." मंगलामुखी शिकायत भरे लहजे में कहती हैं, "2014 में ट्रांसजेंडर बिल आने के बावजूद हम लोगों की स्थिति बहुत दयनीय है. कभी-कभी तो मुझे लगता है कि इतने सालों में हमारे लिए कुछ भी नहीं बदला है और मुझे भी सड़क पर उतरकर भीख मांगनी चाहिए."

भारत में किन्नर समुदाय की स्थिति

2014 में सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसले के तहत किन्नरों को तीसरे लिंग श्रेणी का दर्जा दिया था. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि सरकार किन्नरों को सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़ा समुदाय माने और उन्हें नौकरी और शिक्षा के क्षेत्र में आरक्षण दिया जाए. साथ ही कोर्ट ने केंद्र और प्रदेश की सरकारों से इस समुदाय से आने वाले किन्नरों को अलग-अलग कल्याणकारी योजनाओं में शामिल करने को कहा था. हालांकि इस फैसले को छह साल हो गए हैं लेकिन किन्नरों की स्थिति कुछ खास नहीं बदली है.

2011 की जनगणना के मुताबिक देशभर में किन्नरों की संख्या करीब 20 लाख है. यह समाज हमेशा से ही मुख्य धारा से कटा हुआ रहता है और कई बार इनके साथ यौन शोषण और भेदभाव के गंभीर मामले भी सामने आ चुके हैं. अधिकार कार्यकर्ता और किन्नर समुदाय से जुड़े लोगों का कहना है कि सरकारों को उनके अधिकारों की रक्षा करने के बारे में कदम उठाना चाहिए. नौकरी, शिक्षा के जरिए उन्हें भी अन्य लोगों की तरह आगे बढ़ने का मौका दिया जाना चाहिए. 

भारत में अन्य देशों की तरह किन्नरों के जीवन में सुधार लाने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं. किन्नरों को ऐसे समाज से सामना करना पड़ता है जो पूर्वाग्रहों से ग्रसित है और वे हमेशा से किन्नरों के प्रति अलग नजरिया रखता आया है. आमतौर पर किन्नर भीख मांगकर, शादी या बच्चे के जन्म होने की खुशी पर नाच गाकर जीवन यापन करते हैं. कुछ किन्नरों को देह बेच कर भी मजबूरी में पैसे कमाने पड़ते हैं. घर या समाज में होते तिरस्कार को देख किन्नर बच्चे या तो खुद ही घर से चले जाते हैं या फिर उनके माता पिता "गुरुओं की शरण" में छोड़ आते हैं.

21वीं सदी के भारत में किन्नरों के साथ अब भी भेदभाव हो रहा है और वे अवसरों से वंचित हैं. ऑल ओडिशा थर्ड जेंडर वेलफेयर ट्रस्ट की चेयरपर्सन मीरा परीदा कहती हैं कि कोरोना वायरस के कारण भी किन्नरों का जीवन प्रभावित हुआ है और उन तक सरकारी सुविधाएं नहीं पहुंच पा रही हैं. परीदा कहती हैं, "कुछ सरकारी योजनाओं का लाभ उन्हें मिला है जिनमें पेंशन और राशन शामिल हैं लेकिन अन्य सुविधाएं उन तक नहीं पहुंची है."

हाल ही में केंद्र सरकार ने थर्ड जेंडर समुदाय के लोगों से जुड़ी हुई नीतियां, कानून, कार्यक्रम और परियोजना बनाने के लिए राष्ट्रीय परिषद का गठन किया है. इसका मकसद समुदाय से जुड़े लोगों को बराबरी और समाज में मान्यता दिलाना है.

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