पत्रकार राजीव की मौत को पुलिस ने किस आधार पर दुर्घटना बताया?
१ अक्टूबर २०२५
उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में स्थानीय पत्रकार राजीव प्रताप 18 सितंबर को अपने दोस्त की कार लेकर निकले थे. अगले दिन, यानी 19 सितंबर को उनकी कार भागीरथी नदी में गैंगोरी के नजदीक मिली. एसडीआरएफ और पुलिस ने जब कार को बाहर निकाला, तो कार में कोई व्यक्ति या ड्राइवर नहीं मिला. सिर्फ एक चप्पल मिली.
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गुमशुदा होने के 10 दिन बाद, 28 सितंबर को राजीव का शव भागीरथी नदी के जोशियारा बैराज से बरामद किया गया. पुलिस ने पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के हवाले से इसे दुर्घटना बताया. मगर, राजीव के परिजनों का आरोप है कि यह दुर्घटना नहीं बल्कि हत्या है. उनका दावा है कि रिपोर्टिंग की वजह से राजीव को धमकियां मिल रही थीं.
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने राजीव प्रताप की मौत पर दुख व्यक्त करते हुए घटना की जांच के आदेश दिए हैं.
उत्तराखंड के पुलिस महानिदेशक दीपम सेठ ने मीडिया को बताया, "राजीव प्रताप की मौत के मामले की जांच के लिए उत्तरकाशी के पुलिस उपाधीक्षक की अध्यक्षता में एक टीम गठित की गई है. यह टीम मामले से जुड़े सभी पहलुओं की जांच करते हुए जल्द-से-जल्द रिपोर्ट सौंपेगी. सीसीटीवी फुटेज को एकबार फिर खंगाला जाएगा और उनकी क्षतिग्रस्त गाड़ी का तकनीकी मूल्यांकन भी किया जाएगा."
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परिवार के आरोपों का जिक्र करते हुए दीपम सेठ ने कहा, "राजीव प्रताप के परिजनों ने उन्हें धमकी भरे फोन आने के बारे में भी बताया है. हालांकि, इस संबंध में उत्तरकाशी के पुलिस अधीक्षक या अन्य किसी अधिकारी से कोई शिकायत नहीं की गई है, लेकिन जांच दल इस बिंदु की भी गहन जांच करेगा."
राजीव प्रताप की पत्नी ने बताया, "उन्हें धमकियां मिल रही थीं"
राजीव स्थानीय मुद्दों पर रिपोर्टिंग करने वाले एक युवा पत्रकार थे. वह खुद का यूट्यूब चैनल चलाते थे. 20 सितंबर को उनके चाचा कृपाल सिंह ने उत्तरकाशी कोतवाली में एक शिकायत दर्ज कराई. इसमें अपहरण और किडनैपिंग के आरोप लगाए गए थे.
लापता होने से ठीक दो दिन पहले राजीव ने अपने यूट्यूब चैनल पर उत्तरकाशी जिला अस्पताल में अव्यवस्थाओं और गंदगी को लेकर एक वीडियो पोस्ट किया था. उन्होंने वीडियो में स्वास्थ्य व्यवस्था पर सवाल उठाए थे. राजीव की पत्नी मुस्कान का कहना है कि उन्होंने घटना वाली रात करीब 11 बजे उनसे बात की थी, लेकिन इसके बाद राजीव से कोई संपर्क नहीं हो पाया.
डीडब्ल्यू से बातचीत में मुस्कान ने बताया, "राजीव ने 16 सितंबर को अपने यूट्यूब चैनल 'दिल्ली उत्तराखंड लाइव' पर उत्तरकाशी जिला अस्पताल और एक स्कूल की रिपोर्ट अपलोड की थी. उसके बाद से ही उन्हें धमकियां मिल रही थीं. उन्होंने बताया था कि वीडियो को चैनल से हटाने का दबाव बनाया जा रहा था. कई लोग उन्हें फोन कर रहे थे और कह रहे थे कि वीडियो नहीं हटाए, तो उन्हें मार देंगे. मुझे पूरा यकीन है कि उन्हें किसी ने अगवा किया. ये दुर्घटना नहीं हो सकती."
मुस्कान का कहना है कि राजीव ने धमकी देने वाले किसी व्यक्ति का नाम नहीं बताया था और न ही पुलिस में इसकी शिकायत की थी. वह बताती हैं, "हमने कहा भी कि जो लोग फोन कर रहे हैं, उनके खिलाफ कोई एक्शन लेना चाहिए लेकिन राजीव ने बात को हल्के में लिया और कहा कि पत्रकारिता में इस तरह की धमकियां मिलती रहती हैं."
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राजीव प्रताप के परिजनों का ये भी कहना है कि वह अपने दोस्त की कार लेकर अचानक घर से रवाना हुए थे. परिजनों के मुताबिक, उस रात वहां जाने की कोई वजह नहीं थी और न ही कोई बात उन्होंने परिवार को बताई थी. परिवार वालों को इसलिए दुर्घटना वाले एंगल पर और ज्यादा संदेह हो रहा है.
गुमशुदा होने के 10 दिन बाद मिला शव
राजीव की कार भागीरथी नदी में मिलने के बाद एसडीआरफ की टीम ने कई दिनों तक नदी और आस-पास के इलाकों में खोजबीन की. आखिरकार रविवार 28 सितंबर को जोशियारा बैराज में राजीव का शव मिला.
पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के आधार पर पुलिस का कहना है कि राजीव की मौत दुर्घना की वजह से हुई है. उत्तरकाशी की पुलिस अधीक्षक सरिता डोबाल ने मीडिया को बताया कि शव पर चोट के निशान नहीं पाए गए हैं. उन्होंने बताया, "पोस्टमार्टम रिपोर्ट में राजीव की छाती और पेट के हिस्से में आंतरिक चोटों को मौत का कारण बताया गया है. डॉक्टरों के मुताबिक, ऐसी चोटें दुर्घटना के दौरान लग जाती हैं."
राजीव के परिजनों ने इसे दुर्घटना मानने से साफ इनकार किया है. उनके भाई आलोक का कहना है कि यह दुर्घटना नहीं है, बल्कि इसके पीछे गहरी साजिश है. आलोक के मुताबिक, "पोस्टमार्टम रिपोर्ट में पसलियां टूटने की बात कही जा रही है, लेकिन भाई के शरीर पर चोट के कोई निशान नहीं थे. यहां तक कि उनके शरीर पर कपड़े भी नहीं थे."
पत्रकारों की सुरक्षा पर सवाल
राजीव प्रताप की मौत ने एक बार फिर भारत में पत्रकारों की सुरक्षा और मीडिया की आजादी पर सवाल खड़े कर दिए हैं. कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने राजीव की मौत को दुखद बताते हुए तत्काल इसकी जांच की मांग की. राहुल गांधी ने 'एक्स' पर एक पोस्ट में लिखा, "राजीव जी की मौत की अविलंब निष्पक्ष व पारदर्शी जांच होनी चाहिए और पीड़ित परिवार को बिना देरी न्याय मिलना चाहिए."
पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर आवाज उठाने वाली संस्था कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स (सीपीजे) ने भी स्वतंत्र और पारदर्शी जांच की मांग की है.
इसी साल छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले में स्थानीय पत्रकार मुकेश चंद्राकर की मौत ने भी पत्रकारिता जगत को झकझोर कर रख दिया था. मुकेश चंद्राकर 1 जनवरी को लापता हुए थे. 3 जनवरी को उनका शव एक सेप्टिक टैंक से बरामद किया गया था.
मुकेश चंद्राकर की हत्या के पीछे एक स्थानीय ठेकेदार सुरेश चंद्राकर का हाथ बताया गया, जो सड़क निर्माण में भ्रष्टाचार की एक खबर को लेकर मुकेश चंद्राकर से नाराज थे. जिस सेप्टिक टैंक से मुकेश का शव बरामद हुआ था, वह सुरेश चंद्राकर के ही परिसर में था.
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मार्च में यूपी के सीतापुर जिले के महोली में पत्रकार राघवेंद्र वाजपेयी की हत्या कर दी गई थी. करीब एक महीने बाद पुलिस ने इस मामले में मंदिर के एक पुजारी समेत तीन लोगों को गिरफ्तार किया था.
12 जुलाई को ओडिशा के मलकानगिरि जिले में स्थानीय पत्रकार नरेश कुमार की बेरहमी से हत्या कर दी गई थी.
छोटे शहरों में पत्रकारिता ज्यादा खतरनाक?
छोटे शहरों और कस्बों में पत्रकारों को अक्सर धमकी, गिरफ्तारी इत्यादि का सामना करना पड़ता है. पिछले दिनों आई एक रिपोर्ट इस बात की ओर इशारा करती है कि छोटे शहरों या कस्बों में काम करने वाले पत्रकारों की गिरफ्तारी या उन्हें दी जाने वाली धमकी या फिर जान पर खतरे की संभावना, बड़े शहरों में काम करने वालों की तुलना में कहीं अधिक रहती है.
तीन साल में दर्जनों पत्रकारों को एजेंसियां बना चुकी हैं निशाना
क्लूनी फाउंडेशन फॉर जस्टिस, नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी दिल्ली और कोलंबिया लॉ स्कूल के ह्यूमन राइट्स इंस्टिट्यूट द्वारा संयुक्त रूप से तैयार की गई रिपोर्ट 'प्रेसिंग चार्जेज: अ स्टडी ऑफ क्रिमिनल केसेज अगेंस्ट जर्नलिस्ट्स एक्रॉस स्टेट्स इन इंडिया' में इस विषय पर विस्तार से चर्चा की गई है.
यही नहीं, पिछले 16 वर्षों में भारत की रैंकिंग 'ग्लोबल प्रेस फ्रीडम इंडेक्स' में लगातार गिर रही है. यह इंडेक्स 'रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स' नामक मीडिया निगरानी संस्था द्वारा जारी की जाती है. साल 2009 में भारत इस सूची में 105वें स्थान पर था. साल 2025 में भारत इस रैंकिंग में 151वें स्थान पर आ गया.
पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर संस्था का कहना है, "भारत में हर साल औसतन दो से तीन पत्रकार अपने काम की वजह से मारे जाते हैं. इस वजह से भारत पत्रकारों के लिए दुनिया के सबसे खतरनाक देशों में शामिल हो गया है, जहां मीडिया के लिए काम करना बेहद जोखिम भरा है."