वैज्ञानिकों का मानना है कि कोरोना वायरस का भारतीय वैरियंट भले ही बाकियों से अलग हो लेकिन उस पर वैक्सीन का असर उतना ही कारगर हो रहा है जितना दुनिया बाकी हिस्सों में मिले वैरियंट्स पर.
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डॉ. लाउटरबाख ने ट्विटर पर एक नए अध्ययन का जिक्र करते हुए यह बात कही है. उन्होंने ब्रिटेन में हुए एक नए अध्ययन का भी हवाला दिया है जिसमें कहा गया है कि वैक्सीनेशन से इन्फेक्शन का खतरा दो तिहाई तक कम हो जाता है. इस अध्ययन में पाया गया कि वैक्सीनेशन के बाद भी जिन लोगों को संक्रमण हो जाता है, उन्हें खतरा दो तिहाई तक कम होता है.
कोरोनावायरस का B.1.617 वैरियंट वैज्ञानिकों के लिए सिर दर्द बना हुआ था क्योंकि यह एक डबल म्युटेंट था. ऐसा इसलिए था क्योंकि यह एक ही बार दो गुना हो जाता है. लेकिन वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि दोहरे म्युटेशन का अर्थ यह नहीं है कि यह फैलता भी दोगुनी तेजी है और दोगुना खतरनाक है.
कोरोना वायरस का B.1.617 वैरियंट सबसे पहले भारत में मिला था. इसमें दो जेनेटिक टुकड़े
E484Q और L452R पाए गए. E484Q तो ब्रिटेन, ब्राजील और अफ्रीका वाले वैरियंट E484K जैसा ही था. L452R कैलिफॉर्निया वाले वैरियंट CAL.20C से मिलता-जुलता है. लेकिन भारतीय वैरियंट के साथ परेशानी यह है कि दोनों म्युटेशन एक साथ हो रही हैं. इसलिए इसे डबल म्युटेंट कहा जाता है.
भारत में कोरोना वायरस के 17.3 मिलियन मामले मिल चुके हैं जो अमेरिका के बाद दुनिया में सबसे ज्यादा हैं. वहां दो लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. भारी संख्या में मरीजों को संभालने में देश की स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा गई है इसलिए भी मौतें ज्यादा हुई हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने B.1.617 ‘वैरियंट ऑफ इंटरेस्ट' घोषित किया है. इसके मुकाबले अन्य देशों में मिले वैरियंट्स को ‘वैरियंट ऑफ कन्सर्न' कहा गया है.
ये वैरियंट्स ज्यादा आसानी से फैलते हैं और इनके कारण बीमारी ज्यादा लंबी वह ज्यादा खतरनाक होती है. ये शरीर की रोगों से लड़ने की क्षमता को आसानी से पार कर जाते हैं और वैक्सीन की क्षमता को भी कम करते हैं. बाजल यूनिवर्सिटी के बायोसेंटर के रिचर्ड नेहर कहते हैं कि भारतीय वैरियंट पर निगाह रखने की जरूरत है लेकिन "इस पर बाकी वैरियंट्स से अतिरिक्त ध्यान देने की आवश्यकता नहीं है.”
बर्लिन के शार्टी अस्पताल में वायरोलॉजिस्ट क्रिस्टियान ड्रोस्टन को भारतीय वैरियंट को लेकर जरूरत से ज्यादा परेशान होने का कोई कारण नहीं लगता. वह कहते हैं, "वैक्सीन की अगली पीढ़ी थोड़ी आधुनिक होगी लिहाजा ज्यादातर म्युटेंट पर कारगर होगी.”
वायरस के आगे हारती जिंदगी
भारत में कोरोना वायरस के संकट का सबसे अधिक प्रभाव देश के कब्रिस्तानों और श्मशान घाटों में महसूस किया जा रहा है. लाशों का अंतिम संस्कार भी लोग सही ढंग से नहीं कर पा रहे हैं. कब्रिस्तान और श्मशान में जगह कम पड़ रही है.
तस्वीर: Altaf Qadri/AP/dpa/picture alliance
अंतिम संस्कार
देश के कई बड़ों शहरों के श्मशान घाटों में लोगों को अपने परिजनों के अंतिम संस्कार के लिए घंटों इंतजार करना पड़ रहा है. लोग शव को अस्पताल से सीधे श्मशान घाट लाते हैं और फिर वहीं उनका अंतिम संस्कार कर दिया जाता है. बस कुछ ही लोग अंतिम दर्शन कर पाते हैं.
तस्वीर: Danish Siddiqui/REUTERS
यह कैसी मौत
कोरोना से जिन लोगों की मौत हो जाती है, अस्पताल प्रशासन शव को परिजन को सौंप देता है. उसके बाद परिजन सीधे उसे कब्रिस्तान या श्मशान घाट ले जाते हैं. प्रशासन की तरफ से अंतिम संस्कार के लिए बनाए गए प्रोटोकॉल का पालन करना होता है.
तस्वीर: Mukhtar Khan/AP Photo/picture alliance
अभूतपू्र्व संकट
भारत इस वक्त अभूतपूर्व संकट से गुजर रहा है. देश ने कभी सोचा नहीं था कि उसके कांधे पर इतना बड़ा दुखों का पहाड़ आ जाएगा. बच्चे, बुजुर्ग और जवान कोरोना वायरस के शिकार हो रहे हैं.
दिल्ली के सबसे बड़े कब्रिस्तान के कर्मचारी मोहम्मद शमीम कहते हैं कि महामारी के बाद से 1,000 लोगों को यहां दफनाया गया है. वे कहते हैं, "पिछले साल की तुलना में कई और शवों को दफनाने के लिए लाया जा रहा है. जल्द ही यह जगह कम हो जाएगी."
तस्वीर: Danish Siddiqui/REUTERS
लाचार अस्पताल
अस्पतालों में हालात जस के तस हैं. डॉक्टर मरीजों को देख-देख थक चुके हैं. संक्रमण की इस लहर में अस्पतालों में नए मरीजों का आना जारी है. कई बार रोगियों के रिश्तेदारों को चिकित्सा उपकरण और दवाएं खरीदने में बहुत कठिनाई होती है. इन उपकरणों और दवाओं को बाजार में बहुत अधिक कीमत पर अवैध रूप से बेचा जा रहा है.
तस्वीर: Adnan Abidi/REUTERS
ऑक्सीजन के लिए भटकते परिजन
अस्पतालों में जिन मरीजों को ऑक्सीजन के सहारे रखा गया है, कई बार उनके रिश्तेदारों को ही अस्पताल की तरफ से ऑक्सीजन का इंतजाम करने को कहा जाता है. परिवार के सदस्य और दोस्त सुबह से लेकर शाम तक कतार में खड़े रहते हैं ताकि ऑक्सीजन सिलेंडर भरा जा सके. कई बार वे मायूस होकर लौटते हैं और अस्पताल में प्रियजन ऑक्सीजन की कमी से दुनिया को अलविदा कह देता है.
भारत से जैसी तस्वीरें पिछले कुछ दिनों में आई हैं वैसी शायद कभी नहीं आई होंगी. देर रात तक श्मशान घाटों पर अंतिम संस्कार हो रहा है और कब्रिस्तानों में भी सुबह से लेकर रात तक कब्र खोदी जा रही हैं और शवों को दफनाया जा रहा है. कई परिवारों में कोरोना के कारण एक से ज्यादा मौतें हुई हैं.