इराक में रहने वाली अजहर उन महिलाओं को कानूनी सहायता प्रदान करती हैं जो घरेलू हिंसा की शिकार होती हैं. उस हिंसा से वे खुद अच्छी तरह से वाकिफ हैं. उनके क्रूर पति के साथ अजहर का कुछ ऐसा ही अनुभव रहा है.
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परिवार के दबाव में शादी के लिए मजबूर की गई अजहर ने अपने पति से तलाक के लिए एक लंबी लड़ाई लड़ी है. 56 वर्षीय अजहर ने उस आदमी को तलाक देने के लिए लगभग एक दशक तक अदालत में लड़ाई लड़ी, जो उनकी पिटाई करता था.
पति द्वारा हमले को याद करते हुए अजहर कहती हैं, "मुझे यकीन था कि मैं मरने जा रही हूं." उनके पास शरीर पर चोटों की पुरानी तस्वीरें हैं जो वह दिखा रही हैं.
अजहर कहती हैं, "यही वह क्षण था जब मैंने अपनी जंजीरों को तोड़ने का फैसला किया." आखिरकार अजहर ने अपनी आजादी पाई और इस लड़ाई ने उन्हें कानून का अध्ययन करने के लिए प्रेरित किया. वे याद करती हैं, "मुझे लगता था कि मैं न्याय प्रणाली के सामने कमजोर हूं."
अजहर अब इराक में एक गैर-सरकारी संगठन की प्रमुख है जो हिंसा के शिकार लोगों को कानूनी सहायता प्रदान करता है और यह संगठन इराकी महिला नेटवर्क गठबंधन का हिस्सा है. अजहर कहती हैं, "मैं किसी भी महिला की मदद करती हूं जो हिंसा की शिकार है या जिन्हें कानूनी सहायता की जरूरत है, ताकि ये महिलाएं अपने अधिकारों के बारे में जागरूक हो सकें और अपना बचाव कर सकें."
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नाबालिगों की शादी भी एक समस्या
नाबालिगों की शादी से लेकर आर्थिक दबाव तक अधिकार कार्यकर्ता अत्यधिक पितृसत्तात्मक देश में महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए संघर्ष करते हैं. वे प्रमुख बाधाओं के रूप में दमनकारी कानूनों और अधिकारियों की उदासीनता का हवाला देते हैं.
करीब चार करोड़ की आबादी वाले देश में साल 2021 में घरेलू हिंसा के 17,000 मामले दर्ज किए गए थे. एक सरकारी सर्वेक्षण के अनुसार इराक में नाबालिगों की शादी बढ़ रही है. 18 साल से कम उम्र की लड़कियों की शादी पिछले साल बढ़कर 25.5 फीसदी हो गई, जो 2011 में 21.7 फीसदी थी.
सुरक्षा कारणों से अजहर अपना पूरा नाम नहीं बताना चाहती हैं, वे कहती हैं जब उनकी पहली शादी हुई तो उनकी उम्र 20 साल के करीब थी, लेकिन वह जल्द ही विधवा हो गई और सात साल बाद फिर से शादी के लिए मजबूर हो गई. उन्होंने आखिरकार अपने आठ बच्चों के साथ अपने अपमानजनक दूसरे पति को छोड़ दिया और तलाक के लिए अर्जी दी. उन्होंने बताया कि पहला जज उसके पति को जानता था और तीन चिकित्सा प्रमाणपत्रों में उसकी चोटों को साबित करने के बावजूद अर्जी को खारिज कर दिया. वो याद करती हैं कि कैसे जज ने उनसे कहा, "मैं प्रमाणपत्रों के आधार पर परिवार को नहीं तोड़ूंगा. तो क्या हुआ अगर एक आदमी अपनी पत्नी को पीटता है?"
घरेलू हिंसा पर क्या कहती हैं भारतीय महिलाएं
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के डेटा से पता चलता है घरेलू हिंसा के बारे में महिलाओं की क्या सोच है और वे इसे कितना जायज मानती हैं.
तस्वीर: picture-alliance/PIXSELL/Puklavec
घरेलू हिंसा जायज?
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) के ताजा सर्वे के मुताबिक तीन राज्यों तेलंगाना (84 प्रतिशत), आंध्र प्रदेश (84 प्रतिशत) और कर्नाटक में (77 प्रतिशत) से अधिक महिलाओं ने पुरुषों द्वारा अपनी पत्नियों की पिटाई को सही ठहराया.
तस्वीर: imago images/Pacific Press Agency
महिलाओं और पुरुषों की राय
एनएफएचएस ने 14 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के पुरुषों और महिलाओं की घरेलू हिंसा पर राय ली. तेलंगाना और आंध्र प्रदेश की 83 प्रतिशत से अधिक महिलाओं ने खुद माना है कि पति द्वारा उनके खिलाफ हिंसा सही है. कर्नाटक की 80 प्रतिशत महिलाओं का ऐसा ही मानना है.
तस्वीर: picture-alliance/E.Topcu
पिटाई पर पुरुषों का पक्ष
घरेलू हिंसा पर इसी सवाल के जवाब में सबसे अधिक कर्नाटक में (81.9 प्रतिशत) पुरुषों ने इसको जायज माना है. पत्नियों की पिटाई को सबसे कम (14.2 प्रतिशत) हिमाचल प्रदेश के पुरुषों ने जायज माना.
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हिमाचल में सबसे कम सहमति
पतियों द्वारा पिटाई को जायज ठहराने वाली महिलाओं की सबसे कम संख्या हिमाचल प्रदेश में 14.8 प्रतिशत थी.
तस्वीर: picture-alliance/PIXSELL/Puklavec
क्या था सवाल?
इस सर्वे में सवाल किया गया था: "आपकी राय में पति का अपनी पत्नी को पीटना या मारना जायज है?" इस सर्वे में कई तरह की परिस्थितियों को भी शामिल किया गया था.
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घरेलू हिंसा का आम कारण
सर्वे के मुताबिक घरेलू हिंसा को सही बताने वाले सबसे आम कारणों का हवाला दिया गया. सबसे आम कारण जो सामने आए वे थे ससुराल वालों का अनादर करना और घर व बच्चों की उपेक्षा करना.
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घरेलू हिंसा एक वैश्विक समस्या
भारत ही नहीं कई विकसित देशों में भी घरेलू हिंसा आम समस्या है. अमेरिका और यूरोपीय देशों में भी महिलाएं इसकी शिकार होती हैं. हर साल 25 नवंबर को अंतरराष्ट्रीय महिला हिंसा उन्मूलन दिवस मनाया जाता है. इस दिन को दुनिया भर में महिला हिंसा के खिलाफ जागरूकता बढ़ाने के लिए मनाया जाता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
हिंसा की शिकार होतीं महिलाएं
लैंगिक बराबरी के लिए काम करने वाली संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूएन वीमेन के मुताबिक दुनिया भर में हर तीसरी महिला के साथ शारीरिक या यौन हिंसा हुई है.
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परिवार संरक्षण इकाई के प्रमुख ब्रिगेडियर अली मोहम्मद ने कहा कि घरेलू दुर्व्यवहार के मामलों में जज अक्सर "सुलह" पर जोर देते हैं. अल-अमल संगठन की प्रमुख हाना एडवर कहती हैं "यह पीड़ित महिलाएं हैं जो कीमत चुकाती हैं." वे कहती हैं, "महिलाओं से जुड़े मामलों के लिए न्याय प्रणाली का विचार न्यायाधीशों के दिमाग पर हावी होने वाले तंत्र की तुलना में बहुत कमजोर है."
इराक में महिलाओं के खिलाफ हिंसा से निपटने के लिए कोई विशेष कानून नहीं है. 1969 की दंड संहिता में एक धारा है जो बलात्कारियों को सजा से बचने की अनुमति देती है अगर वे अपने पीड़ित से शादी करने के लिए सहमत होते हैं.
अधिकार समूह घरेलू दुर्व्यवहार पर एक मसौदा कानून के संसद के समर्थन की मांग कर रहे हैं, लेकिन इसे 2010 से इस्लामी दलों द्वारा अवरुद्ध कर दिया गया है.
एए/सीके (एएफपी)
पाकिस्तान में बेड़ियां तोड़ती यह आदिवासी महिला
पाकिस्तान के उत्तर-पश्चिमी आदिवासी इलाके में महिलाओं को राजनीति में हिस्सा लेने की इजाजत नहीं है. लेकिन दुनिया बीबी ने कई चुनौतियों से पार पाते हुए स्थानीय काउंसिल में सीट जीती है.
तस्वीर: Saba Rahman/DW
मर्दों की दुनिया में दुनिया बीबी की जीत
दुनिया बीबी 58 साल की हैं. पढ़ना-लिखना तो वह नहीं जानतीं लेकिन गांव-देश की राजनीतिक हलचलों से पूरी तरह वाकिफ रहती हैं. हर सुबह उनके पति उन्हें अखबार पढ़कर सुनाते हैं. बीबी ने हाल ही में मोहमांद जिले की याकामंद काउंसिल में चुनाव जीता है. उन्होंने बड़े राजनीतिक दलों की उम्मीदवारों को हराया.
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मर्दों का अधिपत्य
बीबी उस इलाके में राजनीति कर रही हैं जहां मर्दों की चलती है. महिलाओं को तो पुरुषों के बिना घर से बाहर जाने तक की इजाजत नहीं है. उन्होंने डॉयचेवेले को बताया कि एक महिला के लिए यहां का प्रतिनिधि होना जरूरी था.
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महिला शिक्षा है प्राथमिकता
दोपहर बाद बीबी अपने पोते-पोतियों के साथ चाय पीती हैं और उनसे उनकी पढ़ाई के बारे में पूछती हैं. वह कहती हैं कि पाकिस्तान के आदिवासी इलाके की तरक्की के लिए शिक्षा जरूरी है. वह कहती हैं, “हमारे इलाके में लड़कियों को स्कूल जाने की इजाजत नहीं है इसलिए वे अपने फैसले खुद नहीं ले पातीं. मैं इसे बदलना चाहती हूं.”
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पति का साथ मिला
बीबी के पति अब्दुल गफ्फूर ने अपनी पत्नी का भरपूर साथ दिया है. वह कहते हैं कि इलाके में महिलाओं के मुद्दों के बारे में पुरुष ज्यादा नहीं जानते, इसलिए मैंने अपनी पत्नी को चुनाव लड़ने के प्रोत्साहित किया.
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बच्चों को गर्व है
बीबी के बच्चों को अपनी मां पर गर्व है. उनका बेटा अली मुराद नेशनल कॉलेज ऑफ आर्ट्स से ग्रैजुएट है. मुराद कहते हैं, “आमतौर पर लोग सोचते हैं कि आदिवासी महिलाओं का घर के बाहर क्या काम. मेरी मां ने यह सोच बदली है.”
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घर-बाहर दोनों की संभाल
बीबी घर के सारे काम बराबर संभालती हैं. लकड़ी लाने से लेकर कपड़े धोने और खाना बनाने तक सारे काम करते हुए वह कहती हैं कि काम-काज उन्हें सेहतमंद रखता है.
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तालिबान से अपील
बीबी पड़ोसी देश में तालिबान सरकार से अपील करती हैं कि वे भी महिलाओं को सशक्त करें, उनकी पढ़ाई पर ध्यान दें. वह कहती हैं, “अगर वे ऐसा करेंगे तो ना सिर्फ अफगानिस्तान बल्कि पाकिस्तान के कबायली इलाकों में भी स्थिरता आएगी."