ऑस्ट्रेलिया के विक्टोरिया राज्य ने नाजी प्रतीक स्वास्तिक पर प्रतिबंध लगा दिया है. लेकिन हिंदू, जैन, बौद्ध और अन्य कुछ समुदायों को इसके प्रयोग की छूट दी गई है.
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ऑस्ट्रेलिया का विक्टोरिया नाजी स्वास्तिक को प्रतिबंधित करने वाला देश का पहला राज्य बन गया है. देश का सबसे बड़ा राज्य न्यू साउथवेल्स भी इस प्रतीक पर प्रतिबंध लगाने की तैयारी में है. लेकिन देश के हिंदू समुदाय में इसे लेकर बेचैनी है.
करीब एक साल चली बहस और विभिन्न समुदायों के साथ विचार-विमर्श के बाद लाया गया बिल विक्टोरिया राज्य की संसद ने पिछले हफ्ते पास कर दिया जिसके तहत राज्य में नाजी प्रतीकों का प्रदर्शन अपराध बन गया है. समरी ऑफेंसेज अमेंडमेंट (नाजी सिंबल प्रोहिबिशन) बिल 2002 को मंगलवार को संसद की अनुमति मिल गई.
इस बिल के तहत नाजी स्वास्तिक के रूप में जाना जाने वाला प्रतीक चिन्ह हाकेनक्रोएत्स प्रदर्शित करना अपराध होगा और इसके लिए 22,000 ऑस्ट्रेलियाई डॉलर यानी लगभग 12 लाख रुपये का जुर्माना या 12 महीने की कैद अथवा दोनों सजाएं हो सकती हैं.
मंगलवार को इस बिल के पारित होने की घोषणा करते हुए राज्य सरकार ने कहा, "यह पल एक मील का पत्थर है और स्पष्ट संदेश देता है कि नाजी प्रतीक के जरिए नाजी और नियो-नाजी विचारधारा के प्रसार की विक्टोरिया में कोई जगह नहीं है."
विक्टोरिया के बहुसांस्कृतिक मामलों के मंत्री रॉस स्पेंस ने कहा, "ये कानून एंटीसिमेटिजम नफरत और नस्लवादी को चुनौती देने के प्रति हमारी प्रतिबद्धता का ही एक हिस्सा हैं."
हिंदू स्वास्तिक को विशेष छूट
विक्टोरिया के बिल में हिंदू, बौद्ध, जैन और अन्य धर्मों के मानने वालों की भावनाओं को विशेष महत्व दिया गया है और इस बात को माना गया है कि उनके लिए स्वास्तिक चिन्ह का धार्मिक महत्व है. इसलिए यह बात स्पष्ट तौर पर कही गई है कि बिल ‘स्वास्तिक को इस तरह के सांस्कृतिक और धार्मिक प्रायोजनों में इस्तेमाल से प्रतिबंधित नहीं करता है.'
स्वास्तिक पर प्रतिबंध की बात चलने के बाद से ही ऑस्ट्रेलिया में रहने वाले हिंदू, जैन और बौद्ध धर्म के लोगों ने चिंता जाहिर करनी शुरू कर दी थी. ऐसे मामले सामने आ चुके थे जब अपने वाहनों पर स्वास्तिक का निशान बनाने के कारण कुछ हिंदुओं को परेशानी झेलनी पड़ी. इस वजह से जब नाजी स्वास्तिक पर प्रतिबंध लगाने के लिए प्रयास शुरू हुए तो इन समुदायों ने अपनी चिंताएं सरकार से साझा की थीं.
विक्टोरिया सरकार ने सभी समुदायों से लंबी बातचीत की ताकि इस विषय को संवेदनशीलता से समझा जा सके और मसले का हल निकाला जा सके. उस बातचीत में शामिल रहे एक संगठन हिंदूज फॉर ह्यूमन राइट्स के प्रवक्ता कहते हैं कि यह कानून स्वागतयोग्य है क्योंकि यह "नियो नाजीवाद और नस्लवाद से लड़ने का" एक तरीका है.
प्रवक्ता ने कहा, "हम इस बात का आदर करते हैं कि कानून में हिंदू, जैन, बौद्ध और अन्य समुदाय के लोगों के लिए स्वास्तिक के ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व को विशेष स्थान दिया गया है. इसलिए हम सरकार द्वारा इन प्रसंगों में स्वास्तिक के प्रयोग की इजाजत देने का स्वागत करते हैं. हम उम्मीद करते हैं कि यह नपा-तुला फैसला और ज्यादा जागरूकता, संवेदनशीलता और समझ बढ़ाएगा ताकि हम एंटीसेमिटिजम, नफरत और नस्लवाद के खिलाफ मिलकर खड़े हो सकें."
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पहले जागरूकता फिर प्रतिबंध
यह कानून छह मीहने के भीतर लागू हो जाएगा और तब तक इसके बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए अभियान चलाया जाएगा. राज्य सरकार का कहना है कि नफरत के प्रतीक चिन्हों पर नजर रखी जाएगी और भविष्य में ऐसे और प्रतीकों को भी कानून के दायरे में लाया जा सकता है.
राज्य की अटॉर्नी जनरल जैकलिन साइम्स ने कहा, "यह गर्व की बात है कि ऐसे कानून द्वीपक्षीय समर्थन के साथ पास हो रहे हैं. मुझे इस बात की खुशी है कि हम चाहे राजनीति के किसी भी पक्ष में हों, इस बात पर सहमत हो सकते हैं कि नफरत भरा व्यवहार स्वीकार नहीं किया जाएगा."
डूबने से पहले ऐसे थे टाइटैनिक के आखिरी पल
14 अप्रैल, 1912 को जब सूरज ढला, तब उस 882 फीट लंबे जहाज पर सवार लोगों में कोई नहीं जानता था कि यह उस जहाज की आखिरी शाम है. उन्हें नाज था कि वे दुनिया के सबसे आलीशान और अत्याधुनिक जहाज 'आरएमएस टाइटैनिक' पर सवार हैं.
तस्वीर: Disney Pictures/Mary Evans/imago images
गलतियां, लापरवाहियां...
बसंत के महीने में नॉर्थ अटलांटिक के भीतर आइसबर्ग की मौजूदगी आम थी. 14 अप्रैल, 1912 को भी समुद्र जमा हुआ था. कैप्टन एडवर्ड जे स्मिथ जानते थे कि रास्ते में आइसबर्ग मिल सकता है. फिर भी जहाज की रफ्तार धीमी नहीं की गई. तब किसी को आभास नहीं था कि कुछ ही घंटों में टाइटैनिक सागर की ठंडी सतह के नीचे डूब जाएगा. वो मिलेगा, लेकिन 73 साल बाद... 1985 में. करीब 12,500 फुट की गहराई में, समंदर की तलहटी पर.
तस्वीर: Mary Evans Picture Library/ONSLO/picture-alliance
चेतावनियों की अनदेखी
उस शाम 7:30 बजे तक टाइटैनिक को नजदीकी जहाजों से पांच चेतावनियां भी मिलीं, मगर इनपर सजगता नहीं दिखाई गई. रात के 11 बजने में पांच मिनट थे, जब कुछ दूरी से 'कैलिफॉर्नियन' नाम के एक जहाज ने रेडियो पर संदेश भेजा. ऑपरेटर ने बताया कि इतनी बर्फ है कि जहाज को रुकना पड़ा है.
तस्वीर: Disney Pictures/Mary Evans/imago images
"आइसबर्ग, राइट अहेड"
उस रात समंदर पर नजर रखने की ड्यूटी फ्रेडरिक फ्लीट और रेजनल्ड ली की थी. रात करीब 11:40 पर फ्लीट को जहाज के सामने कुछ दिखा, समंदर से भी स्याह. जहाज करीब पहुंचा, तो दिखा कि वह एक विशाल आइसबर्ग था. फ्लीट ने झटपट तीन बार वॉर्निंग बेल बजाई और ब्रिज पर फोन किया. वहां फर्स्ट ऑफिसर विलियम मरडॉक ने रिसीवर उठाकर पूछा, "क्या देखा तुमने?" फ्लीट का जवाब था, "आइसबर्ग, बिल्कुल सामने." (तस्वीर में, कैप्टन स्मिथ)
तस्वीर: picture alliance / Design Pics
बहुत देर हो चुकी थी
ऑफिसर मरडॉक ने इंजन रूम (टेलिग्राफ मॉडल) के हैंडल को झटके से खींचा और रोकने की कोशिश की. बायें जाने का निर्देश दिया. उस निर्णायक घड़ी में आइसबर्ग से भिड़ंत टालने के लिए जो समझ आया, वो निर्देश दिया. अब बारी थी यह देखने की कि कोशिश कामयाब हुई कि नहीं. करीब 30 सेकेंड तक क्रू दम साधे इंतजार करता रहा. उन्हें लगा, बाल-बाल बचे. लेकिन असल में जो हुआ था, वो उनकी आंखें देख नहीं पाई थीं.
तस्वीर: Disney Pictures/Mary Evans/imago images
दो घंटे का वक्त बचा था
आइसबर्ग का बड़ा हिस्सा पानी की सतह से नीचे होता है. यही हिस्सा टाइटैनिक के स्टारबोर्ड हल प्लेट्स से लगा. जहाज के 'वेल डेक' पर बर्फ के टुकड़े गिरे. समझ आ गया कि आइसबर्ग से टक्कर हुई है. फॉरवर्ड बॉइलर और मेल रूम्स में क्रू ने देखा कि कंपार्टमेंटों में पानी घुस रहा है. स्पष्ट हो गया कि एक-एक करके कंपार्टमेंट्स में पानी भरता जाएगा. अनुमान लगाया गया कि अब टाइटैनिक के पास तकरीबन दो घंटे का समय बचा है.
तस्वीर: AFP/Fox/dpa/picture-alliance
सबके लिए नहीं थे लाइफबोट
टाइटैनिक का सफर शुरू होने से पहले ऐसा माना जा रहा था कि अगर इसमें दुर्घटना होती भी है, तो भी यह इतने समय तक पानी पर तैरता रहेगा कि यात्रियों को सुरक्षित बचाने का समय मिल जाएगा. शायद इसीलिए टाइटैनिक पर लाइफबोट का अनुपात यात्रियों के मुकाबले काफी कम था. करीब 2,200 यात्री थे और लाइफबोट और 'कोलैप्सिबल्स' मिलाकर 1,178 की ही जगह थी. तस्वीर में: मारे गए यात्रियों में से एक इजिडोर स्ट्रॉस.
आइसबर्ग को जहाज से टकराए करीब दो घंटे, चालीस मिनट बीते थे कि 'अनसिंकेबल' कहलाने वाले टाइटैनिक का पिछला हिस्सा पानी से बाहर ऊपर की ओर उठा और आगे के हिस्से ने समंदर में डुबकी लगाई. जहाज के पिछले हिस्से में बने आफ्टरडेक को कसकर पकड़े लोग अब समंदर में छलांग लगाने लगे. तस्वीर में: चीन में बनाई जा रही टाइटैनिक की एक प्रतिकृति.
तस्वीर: Noel Celis/AFP/Getty Images
केवल 705 लोग जिंदा बचे
14 और 15 अप्रैल, 1912 की दरम्यानी रात करीब 2:20 बजे टाइटैनिक डूब गया. 1,500 से ज्यादा लोग या तो डूबकर मर गए, या अटलांटिक के ठंडे पानी ने उनकी जान ले ली. अपने इस दुखांत के साथ टाइटैनिक का किस्सा, दुनिया की सबसे मशहूर और नाटकीय कहानियों में शुमार हो गया. तस्वीर में: टाइटैनिक हादसे में मारी गईं एक यात्री ईडा स्ट्रॉस.
ऑस्ट्रेलिया के अन्य राज्य भी नाजी स्वास्तिक को बैन करने के लिए कानून लाने पर विचार कर रहे हैं. देश के सबसे बड़े राज्य न्यू साउथ वेल्स ने तो इस बारे में बिल भी पेश कर दिया है. मंगलवार को ही, जब विक्टोरिया में बिल पारित हुआ, तब न्यू साउथ वेल्स में ऐसा ही बिल पेश किया गया. क्वींसलैंड और तस्मानिया भी ऐसे ही बिल लाने का ऐलान कर चुके हैं.
नाजी स्वास्तिक पर प्रतिबंध के लिए पांच साल से अभियान चला रहे अवमानना-विरोधी आयोग के अध्यक्ष डा. दवीर अब्रामोविच ने इस कानून का स्वागत किया है. मीडिया से बातचीत में उन्होंने कहा, "इस शानदार और बहुत मेहनत के बाद हासिल किए गए क्षण के लिए हमने सालों तक प्रयास किया है. यह भाग्यशाली दिन एक लंबे संघर्ष का परिणाम है." अब्रामोविच ने कहा कि उनका काम अभी पूरा नहीं हुआ है और लोकतंत्र की नींव को मजबूत करने के लिए उन्हें और ऐसी ही कई विजयों का इंतजार है.
नाजी काल की विभीषिका बयान करते हैं ये ग्राफिक उपन्यास
हाल ही में अमेरिका में 1944 की एक कॉमिक स्ट्रिप मिली जिसे होलोकॉस्ट के बारे में सबसे पुरानी कॉमिक्स माना जा रहा है. बीते दशकों में कई कलाकारों ने नाजी काल की दास्तां कॉमिक्स के जरिए बताने की कोशिश की है.
तस्वीर: 2020 Pascal Bresson, Sylvain Dorange, La Boîte à Bulle/Carlsen Verlag GmbH
नाजियों के अत्याचार का चित्रण
डच इतिहासकार किस रिब्बंस को 1944 का यह कॉमिक्स "नाजी डेथ परेड" इंटरनेट पर एक अमेरिकी दुकान की वेबसाइट पर मिली. इसमें मवेशियों के लिए बनी गाड़ी में इंसानों, बाथरूम जैसे दिखने वाले गैस चेम्बरों में हत्याओं और ओवन में जल रही लाशों के चित्र हैं. चित्र चश्मदीद गवाहों के बयानों पर आधारित हैं. रिब्बंस के मुताबिक यह कॉमिक्स नाजी शासन के खिलाफ एक अभियान का हिस्सा था.
तस्वीर: Institut zur Erforschung von Krieg, Holocaust und Völkermord/picture alliance
'माउस': एक सर्वाइवर की कहानी
नाजी काल के बारे में अमेरिकी लेखक आर्ट स्पीगलमैन की विश्व प्रसिद्द कॉमिक्स 1991 में छपी थी. उसमें यहूदियों को चूहों और जर्मनों को बिल्लियों के रूप में दिखाया गया है. पुलित्जर पुरस्कार जीतने वाले इस ग्राफिक उपन्यास में स्पीगलमैन ने आउश्वित्ज कंसंट्रेशन कैंप से बच निकलने वाले अपने पिता की कहानी बताई है. उन्होंने अपनी मां की आत्महत्या और अपने परिवार के तनावपूर्ण रिश्तों के बारे में भी बताया है.
तस्वीर: Artie/Jewish Museum New York/picture alliance
नाजी काल, एक बच्चे की नजर से
लोइस डॉविलिएर की "हिडेन: अ चाइल्ड्स स्टोरी ऑफ द होलोकॉस्ट" (2014) मानवता के लिए एक मर्मस्पर्शी अपील है. एल्सा अपनी दादी डौनिया से पूछती है, "मुझे जब बुरे सपने आते हैं तो मैं मम्मी को उनके बारे में बता देती हूं और उसके बाद मुझे काफी बेहतर लगता है. क्या आप मुझे अपने बुरे सपनों के बारे में बताना चाहती हैं?" यहूदी डौनिया अपनी दशकों पुरानी चुप्पी को तोड़ती हैं और उनके साथ क्या हुआ था एल्सा को बताती हैं.
जर्मनी और मयोरका के बीच
"आंट वुसी" (2016) ग्राफिक उपन्यास भी अर्ध-आत्मकथा शैली में ही है. लेखिका कैटरीन बेचर स्पेन के द्वीप मयोरका में अपनी दादी से मिलने जाती हैं और अपने परिवार के इतिहास के बारे में जानती हैं. परिवार जर्मनी का रहने वाला है जहां कैटरीन की परदादी और उनके परिवार के बाकी सदस्यों को उत्पीड़न का सामना करना पड़ा.
एक नाजी पनडुब्बी बंकर
"वैलेन्टिन" (2019) येंस जेनियर का ग्राफिक उपन्यास है जो एक फ्रांसीसी रेमंड पोर्तेफाश की डायरी पर आधारित है. एक कंसंट्रेशन कैंप में कैद पोर्तेफाश को ब्रेमेन में "वैलेन्टिन" नाम के एक पनडुब्बी बंकर के निर्माण के काम में लगाया गया था. इसे नाजी बनवा रहे थे और इसे बनाने के दौरान 1,000 से भी ज्यादा जबरन मजदूरी कर रहे लोगों की जान चली गई थी.
नाजियों का शिकार करने वाले पति-पत्नी
2020 में छपे पास्कल ब्रेस्सों और सीलवैन दोरांज के कॉमिक्स ने नाजियों का शिकार करने वाली फ्रांस की सबसे मशहूर जोड़ी को अमर कर दिया. सर्ज क्लार्सफेल्ड के पिता की आउश्वित्ज में हत्या हो गई थी. अपनी होने वाली पत्नी बीटे से मिलने के बाद दोनों ने नाजी युद्धकालीन अपराधियों को खोजना शुरू कर दिया. 1968 में बीटे ने जर्मन चांसलर कर्ट जॉर्ज किसिंजर को नाजी कह कर उन्हें एक थप्पड़ लगा दिया था. (सुजैन कॉर्ड्स)
तस्वीर: 2020 Pascal Bresson, Sylvain Dorange, La Boîte à Bulle/Carlsen Verlag GmbH