चीन के बारे में क्या सोचते हैं अलग-अलग देशों के लोग
१० जुलाई २०२४
प्यू रिसर्च सेंटर के एक नए सर्वेक्षण के अनुसार, चीन के बारे में अमीर और मध्यम आय वाले देशों के लोगों के बीच राय बंटी हुई है. सर्वेक्षण में 35 देशों के लोगों से बात की गई.
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अमेरिकी सर्वेक्षण संस्था प्यू रिसर्च सेंटर ने 35 देशों के लोगों के बीच एक सर्वे में यह जानने की कोशिश की कि वहां के लोग चीन के बारे में क्या सोचते हैं. सर्वेक्षण में धनी और मध्यम आय वाले देश शामिल थे. 18 धनी देशों में से 15 के लोगों ने चीन के प्रति नकारात्मक राय जाहिर की.
जापान और ऑस्ट्रेलिया में 80 फीसदी से अधिक लोगों ने चीन को नकारात्मक रूप में देखा. इसके उलट, 17 मध्यम-आय वाले देशों में से 14 के लोगों ने चीन के प्रति सकारात्मक राय जाहिर की. थाईलैंड में 80 फीसदी वयस्कों ने चीन के प्रति अच्छी राय जाहिर की.
चाय पीने और बेचने में बहुत पीछे है भारत
चाय को भारतीयों का सबसे पसंदीदा पेय कहा जाता है. लेकिन आंकड़ों के मामले में भारत चाय के मामले में दुनिया के कई मुल्कों से पीछे है.
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चाय में चीन सबसे ऊपर
पिछले साल के आंकड़े बताते हैं कि चीन में चाय का सबसे ज्यादा उत्पादन, खपत और निर्यात हुआ है. 2023 में वहां के चाय का बाजार 111 अरब डॉलर का रहा.
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भारत से छह गुना ऊपर चीन
उत्पादन और खपत में भारत दुनिया में दूसरे नंबर पर रहा लेकिन वहां का बाजार 16.6 अरब डॉलर का रहा और चीन उससे छह गुना ऊपर रहा.
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पहले पांच बड़े बाजार
चीन और भारत के बाद चाय के सबसे बड़े बाजार हैं जापान, अमेरिका और ब्राजील. जापान का 16.2 अरब डॉलर का बाजार भारत के आसपास ही है, जबकि अमेरिका का बाजार 14.9 अरब डॉलर और ब्राजील का 13.2 अरब डॉलर का है.
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चाय पीने में भी आगे नहीं
स्टैटिस्टा कंज्यूमर सर्वे में विभिन्न देशों में लोगों से पूछा गया कि वे चाय पीते हैं या नहीं. इस मामले भी भारत दुनिया में पांचवें नंबर पर रहा, जहां हर दस में से सात लोगों ने कहा कि वे चाय पीते हैं.
इस सर्वेक्षण के मुताबिक दुनिया में सबसे ज्यादा चाय तुर्की में पी जाती है जहां 87 फीसदी लोगों ने कहा कि वे चाय पसंद करते हैं. उसके बाद केन्या (83 फीसदी), पाकिस्तान (82 फीसदी) और मोरक्को (79) का नंबर है.
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पानी के बाद चाय का नंबर
दुनिया में पानी के बाद चाय दुनिया में सबसे ज्यादा पिया जाने वाला पेय है. 2022 में दुनिया में 67 लाख टन चाय का उत्पादन हुआ था. चीन के बाद भारत, केन्या और श्रीलंका इसके सबसे बड़े उत्पादक हैं.
यह रिपोर्ट मंगलवार को जारी की गई जब नाटो देशों के नेता वॉशिंगटन में यूक्रेन युद्ध और चीन को लेकर चिंता व्यक्त करने के लिए जमा हुए. पश्चिमी देशों का सैन्य गठबंधन नाटो खासतौर पर जापान, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के साथ सहयोग को गहरा करना चाहता है क्योंकि ये देश चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकने में उसकी मदद कर सकते हैं.
इंडो-पैसिफिक के लोग ज्यादा चिंतित
अमेरिका इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए समान विचारधारा वाली सरकारों के साथ गठबंधन बना रहा है. प्यू की रिपोर्ट के अनुसार, क्षेत्र के कई देश चीन के क्षेत्रीय विवादों को लेकर चिंतित हैं.
उदाहरण के लिए फिलीपींस का दक्षिण चीन सागर में सेकंड थॉमस शोल को लेकर चीन से विवाद चल रहा है. वहां के लोग चीन को लेकर सबसे ज्यादा नकारात्मक राय रखते हैं. लगभग 90 फीसदी फिलीपीनी नागरिकों ने चिंता व्यक्त की.
चीन की पांडा-डिप्लोमेसी
चीन के प्रधानमंत्री ली चियांग ऑस्ट्रेलिया गए तो उन्होंने पांडा भेजने का वादा किया. मूल रूप से चीन में पाए जाने वाले पांडा उसके के लिए कूटनीति का एक औजार रहे हैं. देखिए, कैसे काम करती है चीन की पांडा-कूटनीति.
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क्या है चीन की पांडा डिप्लोमेसी?
पांडा भालू चीन में ही पाए जाते हैं. अक्सर चीन इन्हें विदेशों को तोहफे में देता है. इसे चीन की तरफ से दोस्ती का हाथ बढ़ाने के प्रतीक के तौर पर देखा जाता है.
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कब शुरू हुई यह कूटनीति?
1949 में पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की स्थापना के बाद से ही चीन ने पांडा कूटनीति का इस्तेमाल किया है. 1957 में चीनी नेता माओ त्से तुंग ने सोवियत संघ की 40वीं वर्षगांठ पर पांडा भेंट किए थे. 1972 में जब अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन चीन की ऐतिहासिक यात्रा पर गए थे, तो उन्हें भी पांडा भेंट किए गए.
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अब उपहार नहीं
1984 के बाद चीन ने पांडा उपहार में देना बंद कर दिया क्योंकि उनकी आबादी घट रही थी. अब ये विदेशी चिड़ियाघरों को उधार पर दिए जाते हैं. अक्सर यह उधार 10 साल के लिए होता है और एक जोड़ा पांडा एक साल रखने के लिए चीन 10 लाख डॉलर तक लेता है.
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खुश करने के लिए
2013 में ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी ने एक अध्ययन में कहा था कि चीन पांडा कूटनीति का इस्तेमाल व्यापारिक साझीदारों को खुश करने के लिए करता है. जैसे कि कनाडा, फ्रांस और ऑस्ट्रेलिया को जब पांडा उपहार में दिए गए तो उस वक्त उन देशों से चीन ने यूरेनियम को लेकर समझौता किया था.
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नाराजगी जाहिर करने के लिए
2010 में चीन ने अमेरिका में जन्मे दो पांडा, ताई शान और माई लान को वापस बुला लिया. उसके बाद उसने तत्कालीन अमरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की तिब्बत के नेता दलाई लामा के साथ मुलाकात पर आपत्ति जताई.
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बढ़ रही है आबादी
एक वक्त चीन में पांडा की प्रजाति खतरे में पड़ गई थी. लेकिन पिछले सालों में उनकी संख्या में वृद्धि हुई है. 1980 के दशक में वहां 1,100 पांडा थे जो 2023 में बढ़कर 1,900 हो गए. अन्य देशों में फिलहाल 728 पांडा हैं.
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दक्षिण कोरिया और जापान में भी इतने ही प्रतिशत लोगों ने चिंता जाहिर की. ऑस्ट्रेलिया में लगभग 80 फीसदी लोगों की चीन के बारे में नकारात्मक राय है. ये तीनों देश इंडो-पैसिफिक में नाटो के चार साझीदारों के एक अनौपचारिक समूह के सदस्य हैं. चौथा देश, न्यूजीलैंड, प्यू के सर्वेक्षण का हिस्सा नहीं था.
इन तीन देशों के साथ-साथ भारत भी एशिया-प्रशांत क्षेत्र के सर्वेक्षण में शामिल ऐसे देशों में से है, जहां के लोग मानते हैं कि वैश्विक शांति और स्थिरता में चीन का योगदान सबसे कम है. भारत में 78 फीसदी लोगों ने चीन के योगदान पर संदेह जताया. भारत और चीन के बीच भी सीमा विवाद के कारण तनाव है. हाल ही में दोनों देशों के विदेश मंत्रियों ने इस विवाद को सुलझाने के लिए कोशिश करने पर सहमति जताई थी.
कोयले से सबसे ज्यादा बिजली बनाने वाले देश
जलवायु परिवर्तन में कोयले का योगदान सबसे ज्यादा है. इसके बावजूद इसका इस्तेमाल कम नहीं हो रहा है. 2023 में दुनिया के कुल बिजली उत्पादन में कोयले का इस्तेमाल 35 फीसदी रहा. ये रहे कोयले पर सबसे ज्यादा निर्भर देशः
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रिकॉर्ड वृद्धि
ब्रिटेन के थिंक टैंक एंबर के मुताबिक 2023 में कोयले से बिजली बनाने की दर सबसे अधिक ऊंचाई पर (35 फीसदी) पहुंच गई. इसमें 2022 के मुकाबले 1.4 फीसदी की वृद्धि हुई.
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दक्षिण अफ्रीका और भारत सबसे ऊपर
कोयले से बिजली बनाने में दक्षिण अफ्रीका सबसे ऊपर रहा. उसके कुल बिजली उत्पादन का 81.1 फीसदी कोयले से हुआ. 75 फीसदी बिजली उत्पादन कोयले से कर भारत दुनिया में दूसरे नंबर पर था.
तस्वीर: AFP
फिलीपींस पहली बार चीन से ऊपर
कोयले से सबसे ज्यादा बिजली उत्पादन करने वाले देशों में तीसरे नंबर पर कजाखस्तान है जो अपनी 66.7 फीसदी बिजली कोयले से बनाता है. उसके बाद फिलीपींस (61.9 फीसदी), इंडोनेशिया (61.8 फीसदी), पोलैंड (61 फीसदी), चीन (60.7 प्रतिशत), वियतनाम (46.8 प्रतिशत), ऑस्ट्रेलिया (46.4 फीसदी) और ताइवान (43.7 प्रतिशत) का नंबर है.
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चार देश सबसे ज्यादा जिम्मेदार
रिपोर्ट कहती है कि चीन, भारत, अमेरिका और जापान 2023 में कोयले से दुनिया की सबसे ज्यादा बिजली बनाने के लिए जिम्मेदार थे. दुनिया में कोयले से कुल बिजली उत्पादन का 79 फीसदी इन्हीं चार देशों में हुआ.
तस्वीर: ROBERTO SCHMIDT/AFP
कुल बिजली उत्पादन में चीन सबसे ऊपर
मात्रा के हिसाब से कोयले से कुल बिजली बनाने के मामले में चीन सबसे ऊपर है जबकि भारत दूसरे नंबर पर है. चीन ने 5,742 टेट्रावाट घंटे बिजली का उत्पादन कोयले से किया, जबकि भारत का उत्पादन 1,480 टेट्रावाट घंटे रहा.
तस्वीर: Kevin Frayer/Getty Images
विकसित देशों में गिरावट
एंबर की रिपोर्ट के मुताबिक 2023 में ओईसीडी देशों में यानी अधिक आय वाले देशों में कोयले से बिजली उत्पादन में गिरावट आई. सबसे ज्यादा गिरावट यूरोपीय संघ और अमेरिका में हुई.
तस्वीर: Ina Fassbender/AFP
14 फीसदी कटौती की जरूरत
इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी के मुताबिक 2030 तक कोयले से बिजली के कुल उत्पादन में 14 फीसदी गिरावट की जरूरत है ताकि जलवायु परिवर्तन रोकने के लिए तय किए गए लक्ष्य हासिल किए जा सकें. एजेंसी का कहना है कि 2040 तक विकसित देशों को कोयले का इस्तेमाल पूरी तरह बंद कर देना होगा.
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थाईलैंड, जिसका चीन के साथ कोई क्षेत्रीय विवाद नहीं है, सबसे कम चिंतित है. वहां के लगभग 40 फीसदी लोगों ने चीन के क्षेत्रीय विवादों पर चिंता जताई. 80 प्रतिशत थाई लोगों ने कहा कि चीन वैश्विक शांति और स्थिरता में योगदान देता है.
एशिया-प्रशांत क्षेत्र में समग्र रूप से, जापान, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया, फिलीपींस और भारत ने चीन के प्रति सबसे अधिक नकारात्मक दृष्टिकोण रखा, जबकि थाईलैंड, सिंगापुर, मलेशिया और श्रीलंका ने चीन के प्रति सबसे अधिक सकारात्मक राय जाहिर की.
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शी जिनपिंग पर कितना भरोसा
इस क्षेत्र में विभाजन के एक और संकेत के रूप में, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग को उनके पड़ोसी देशों में सबसे अधिक और सबसे कम रेटिंग मिली. जापान में 90 फीसदी लोगों ने कहा कि उन्हें शी जिनपिंग पर "बहुत कम" या "जरा भी" भरोसा नहीं है कि वह वैश्विक मामलों में सही काम करेंगे.
थाईलैंड और सिंगापुर ने शी जिनपिंग पर तुलनात्मक रूप से ज्यादा भरोसा दिखाया. वहां के लगभग 60 फीसदी लोगों ने कहा कि चीनी नेता पर सही काम करने के लिए भरोसा किया जा सकता है. थाईलैंड और सिंगापुर की रेटिंग सर्वेक्षण किए गए देशों में सबसे अधिक थी.
चीन में बढ़ रहा कुत्तों की शादियों का चलन
चीन में पालतू जानवरों की लोकप्रियता और उन्हें सजाने-संवारने और उनकी शादी करवाने में लोगों की रुचि खूब बढ़ रही है.
तस्वीर: Nicoco Chan/REUTERS
ब्री और बॉन्ड की शादी
ब्री और बॉन्ड की शादी किसी सेलिब्रिटी की शादी से कम नहीं थी. गोल्डन रिट्रीवर ब्री और बॉन्ड की शादी के लिए खास इंतजाम किए गए. ब्री ने सफेद लेस वाली गाउन पहनी थी. शादी के मौके के लिए स्वादिष्ट केक भी रखा गया था.
तस्वीर: Nicoco Chan/REUTERS
एक साथ रहने का वादा
ब्री के मालिक राई लिंग ने कहा, "लोग शादियां करते हैं. कुत्तों की शादियां क्यों नहीं हो सकतीं?" दोनों ने शादी के बंधन में बंधते हुए साथ खेलने और खाने-पीने का वादा किया.
तस्वीर: Nicoco Chan/REUTERS
शादी की तैयारी
लिंग और उनकी गर्लफ्रेंड गिगी चैन ने कहा कि उन्हें शादी करने की कोई जल्दी नहीं है. लेकिन उन्होंने अपने पालतू कुत्ते के विवाह समारोह की योजना बहुत सावधानी से बनाई. शादी के लिए पेशेवर फोटोग्राफरों को रखा गया. शादी के लिए डिजाइनर कार्ड बनाए गए.
तस्वीर: Nicoco Chan/REUTERS
शादी के लिए खास केक
यांग ताओ शंघाई में एक बेकरी चलाती हैं, जो पालतू जानवरों के लिए खास केक भी बनाती है. यांग कहती हैं कि शुरुआत में उन्हें आश्चर्य हुआ जब ग्राहकों ने उनसे अपने कुत्तों के लिए शादी के केक बनाने के लिए कहा. उन्होंने कहा, "मुझे लगता है कि कुत्ते और बिल्ली की शादी का चलन बढ़ता रहेगा."
तस्वीर: Nicoco Chan/REUTERS
पालतू जानवरों पर खर्च करते चीनी
पालतू जानवरों की लोकप्रियता और उन पर पैसे खर्च करने की बढ़ती इच्छा इस ट्रेंड को बढ़ावा दे रही है. चीनी उद्योग के आंकड़ों से पता चलता है कि 2023 में कुत्तों और बिल्लियों पर खर्च एक साल पहले की तुलना में 3.2 प्रतिशत बढ़कर 38.41 अरब डॉलर हो गया.
तस्वीर: Nicoco Chan/REUTERS
शादी कम कर रहे लोग
चीन के तेजी से बूढ़े होते समाज में विवाह दर में लगातार गिरावट को रोकने और जन्म दर बढ़ाने की सरकारी नीतियां विफल हो रही हैं.
तस्वीर: picture alliance / CFOTO
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धनी और मध्यम आय वाले देशों के बीच चीन को लेकर राय कितनी बंटी हुई है, यह इस साल के सर्वे में और ज्यादा स्पष्ट हुआ है जबकि 35 देशों में से 17 मध्यम आय वाले देश थे. पिछले साल के 24 देशों में केवल आठ मध्यम-आय वाले देश शामिल थे.
उत्तरी अमेरिका और यूरोप में, सर्वेक्षण किए गए 12 देशों में से ग्रीस को छोड़कर सभी ने चीन को अधिक नकारात्मक रूप में देखा. अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में, सभी 10 देशों के लोगों ने कहा कि उनका चीन के प्रति रवैया कुछ हद तक सकारात्मक है.