मणिपुर में आदिवासी हितों पर टकराव पुराना है
२८ अप्रैल २०२३![Indien | Gewalt und Brandstiftung in Manipur](https://static.dw.com/image/65461171_800.webp)
इंडीजीनस ट्राइबल लीडर्स फोरम (आईएलटीएफ) के नेतृत्व में आदिवासियों की भीड़ ने मुख्यमंत्री बीरेन सिंह के कार्यक्रम से पहले बने मंच और एक जिम में आग लगा दी. मुख्यमंत्री को शुक्रवार को इसका उद्घाटन करना था. संगठन ने शुक्रवार को आठ घंटे बंद भी बुलाया है. हिंसा और आगजनी के बाद इलाके में धारा 144 लागू कर इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी गई हैं. इलाके में भारी तादाद में पुलिस और सुरक्षा बल के जवानों को तैनात कर दिया गया है.
क्यों नाराज हैं आदिवासी
शुक्रवार को मणिपुर के मुख्यमंत्री एन.बीरेन सिंह को जिले के न्यू लुमका स्थित पीटी स्पोर्ट्स परिसर में एक नए बने जिम का उद्घाटन करना था. लेकिन उससे पहले ही उत्तेजित आदिवासियों ने बृहस्पतिवार की रात को मुख्यमंत्री की सभा के लिए बने मंच और इस जिम में आग लगा दी. उसके बाद पुलिस प्रशासन ने इलाके में धारा 144 लागू करते हुए इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी. चूड़ाचांदपुर जिला आदिवासी बहुल है.
आईएलटीएफ का दावा है कि सरकार ने हाल में रिजर्व फॉरेस्ट इलाके में रहने वाले किसानों और आदिवासियों को वहां से उजाड़ने का अभियान शुरू किया है. बार-बार ज्ञापन देने के बावजूद सरकार की तरफ से स्थानीय लोगों की समस्याओं पर ध्यान नहीं दिया है. आईएलटीएफ ने शुक्रवार को जारी एक बयान में कहा है कि मांगों पर सरकार की ओर से कोई ध्यान नहीं दिए जाने की वजह से उसने मजबूरन सरकार के खिलाफ असहयोग अभियान शुरू किया है. इसके तहत फोरम तमाम सरकारी कार्यक्रमों का विरोध करेगा.
मणिपुर में पूर्व सैन्य अधिकारी की किताब पर पाबंदी क्यों लगी
दरअसल, इस इलाके में बीती 20 फरवरी से ही तनाव है. उस दिन वन विभाग के कर्मचारियों ने पुलिस की सहायता से के.सोनजांग नाम के कूकी बहुल गांव में अतिक्रमण हटाने का अभियान चलाया था. आइटीएलएफ का दावा है कि सरकार ने तीन चर्चों को तोड़ दिया है. लेकिन सरकार की दलील है कि वह तीनों चर्च अवैध रूप से कब्जा की गई जमीन पर बनाये गये थे.
कूकी छात्र संघ (केएसओ) ने भी आदिवासियों के प्रति राज्य सरकार के कथित सौतेले रवैए के दावे पर फोरम का समर्थन किया है. संगठन की ओर से जारी बयान में कहा गया है, "सरकार आदिवासी हितों और अधिकारों की अनदेखी कर रही है. उनके धर्मस्थलों को ढहाया जा रहा है और आदिवासी लोगों को जबरन विस्थापित किया जा रहा है. ऐसे में हमारी मांगें पूरी नहीं होने तक असहयोग अभियान जारी रहेगा.”
शांति प्रक्रिया पर अनिश्चिता के कारण
मणिपुर की भौगोलिक स्थिति
मणिपुर को मुख्यतः दो भागों में बांटा जा सकता है, पर्वतीय और मैदानी इलाका. पर्वतीय इलाका आदिवासी बहुल है. राज्य के नौ में से पांच जिले इसी इलाके में हैं. आदिवासी लोग सदियों से जमीन पर अपना कब्जा होने का दावा करते रहे हैं. उनका दावा है कि इस जमीन का मालिकाना हक उनके पूर्वजों के पास था. इसमें वन क्षेत्र भी शामिल है. राज्य के आदिवासी तबके में जमीन पर पीढ़ी दर पीढ़ी मालिकाना हक की परंपरा बहुत पुरानी है. ऐसे में इस जमीन पर सरकारी हस्तक्षेप का हमेशा विरोध होता रहा है. फोरम की दलील है कि भारत के संविधान में भी आदिवासियों के हक को मान्यता दी गई है.
संसद ने वर्ष २००६ में द शेड्यूल ट्राइब्स एंड अदर ट्रेडिशनल फारेस्ट ड्वेलर्स (रीग्नीशन ऑफ़ फारेस्ट राइट्स) एक्ट पारित किया था. इसका मकसद खासकर वन क्षेत्र में स्थित जमीन का मालिकाना हक तय करना था. यह लोग सदियों से उन इलाको में रह तो रहे थे. लेकिन उनका नाम सरकारी रिकार्ड में दर्ज नहीं हो सका था. मणिपुर में यह अधिनियम आदिवासी संगठनों के विरोध के कारण कभी लागू नहीं किया जा सका. अब जब-जब इसके तहत सर्वेक्षण की बात उठती है, आदिवासी संगठन इसके विरोध में सड़कों पर उतर जाते हैं. यही वजह है कि राज्य में वन क्षेत्र की जमीन का मालिकाना हक तय नहीं हो सका है.
मूल निवासी के मुद्दे पर बीजेपी सरकार से खफा लोग
ट्राइबल रिसर्च के पूर्व संयुक्त निदेशक के. दैमाई का कहना है कि आदिवासी इलाको में किसी विकास परियोजना को लागू करने से पहले संबंधित ग्राम परिषद की सहमति और मंजूरी ली जानी चाहिए. इसकी वजह यह है कि अब तक विकास परियोजनाओं के नाम पर मूल बाशिंदों को विस्थापित कर उनको अपनी ही जमीन पर अतिक्रमणकारी बना दिया गया है.