1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

मणिपुर में सुरक्षाबलों पर बढ़ रहे हैं हमले

प्रभाकर मणि तिवारी
२७ अप्रैल २०२४

बीते करीब एक साल से जातीय हिंसा से जूझ रहे पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर में लोकसभा चुनाव से ठीक पहले नए सिरे से जो हिंसा शुरू हुई थी वह चुनाव के बाद भी जारी है.

चोट दिखाता एक जवान
इस साल जनवरी से ही सुरक्षा बलों पर हिंसा की घटनाएं बढ़ी हैंतस्वीर: Prabhakar Mani Tiwari/DW

पहले दौर के मतदान के दौरान भी कई इलाकों से ईवीएम में तोड़-फोड़, वोटरों को धमकाने और हिंसा की कई खबरें सामने आई थी. इन घटनाओं के कारण 11 मतदान केंद्रों पर दोबारा मतदान कराया गया था. अब दूसरे दौर का मतदान खत्म होते ही उपद्रवियों के हमले में सीआरपीएफ के दो जवानों की मौत हो गई है और कई अन्य घायल हैं. राज्य में केंद्रीय सुरक्षा बल के जवानों पर हमले की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं. विश्लेषकों का कहना है कि लोगों में पुलिस और केंद्रीय बलों की भूमिका के प्रति भारी नाराजगी है. लोगों में उनके प्रति घटते भरोसे के कारण उन पर हमले की घटनाएं बढ़ रही हैं. पहले भी कई जगह महिलाओं ने केंद्रीय बल के जवानों को अपने इलाके में नहीं घुसने दिया था.

बीते साल शुरू हुई हिंसा के बाद अब तक हत्या और आगजनी के आरोप में छह हजार से ज्यादा मामले दर्ज हुए हैं और करीब दो सौ लोग गिरफ्तार किए गए हैं. फिलहाल इस छोटे-से पर्वतीय राज्य में 36 हजार सुरक्षाकर्मी और 40 आईपीएस अधिकारियों को तैनात किया गया है. इसके अलावा 129 सुरक्षा चौकियों की भी स्थापना की गई है.

हिंसा से बढ़ी चिंताएं

मणिपुर में बहुसंख्यक मैतेई तबके को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की हाईकोर्ट की सिफारिश के बाद राज्य में बड़े पैमाने पर हिंसा भड़क गई थी. तब से अब तक इस हिंसा में कम-से-कम 219 लोगों की जान जा चुकी है. इसमें करोड़ों की संपत्ति का नुकसान हुआ जबकि हजारों लोग बेघर हो चुके हैं. कम से कम 50 हजार लोग बीते साल से ही राजधानी इंफाल समेत विभिन्न स्थानों पर बने राहत शिविरों में दिन काट रहे हैं. चुनाव आयोग ने ऐसे लोगों के मतदान के लिए खास इंतजाम किया था.

राज्य में लोकसभा चुनाव की अधिसूचना जारी होने के बाद नए सिरे से हिंसा शुरू हो गई थी. उसके बाद लोकसभा चुनाव पर सवाल खड़े हो गए थे. राजनीतिक हलकों में पूछा जा रहा था कि जब इतनी बड़ी तादाद में केंद्रीय बलों की तैनाती के बावजूद अगर हिंसा पर अंकुश नहीं लगाया जा सका है तो फिर तटस्थ और हिंसा-मुक्त चुनाव कैसे कराया जा सकता है. पहले दौर के मतदान से महज पांच दिन पहले ही हिंसा की एक घटना में कुकी समुदाय के दो लोगों की मौत हो गई थी. उससे पहले कांग्रेस की एक चुनावी बैठक में हुई फायरिंग में तीनलोग घायल हो गए थे. हिंसा में कुकी समुदाय के दो लोगों की हत्या के विरोध में कमेटी ऑन ट्राइबल यूनिटी ने कांगपोक्पी जिले में 13 अप्रैल को 24 घंटे का बंद भी बुलाया था.

सुरक्षा बलों पर बढ़ते हमले

इस साल जनवरी से ही राज्य में सुरक्षाबलों पर हमले की घटनाएं भी बढ़ रही हैं. म्यांमार की सीमा से सटे राज्य के मोरे इलाके में बीती 17 जनवरी को उग्रवादियों की ओर सेसुरक्षाबलों की गाड़ी पर हुए एक हमले में दो जवानों की मौत हो गई थी. इस झड़प में अलावा वहां कुकी समुदाय की एक महिला की भी मौत हो गई थी. पुलिस के मुताबिक, कुकी समुदाय के उग्रवादियों ने मोरे में सुरक्षाबलों की एक चौकी पर बम फेंके और फायरिंग की थी. उसके बाद बीती 15 फरवरी को मणिपुर के चूड़ाचांदपुर जिले में होने वाली हिंसा में भी दो लोगों की मौत हो गई थी. तब एक पुलिस कॉन्स्टेबल को सस्पेंड करने के विरोध में सैकड़ों लोगों की भीड़ ने देर रात जिला उपायुक्त और पुलिस अधीक्षक के दफ्तर पर धावा बोल दिया था. भीड़ ने पथराव और आगजनी भी की. परिस्थिति पर काबू पाने के लिए पुलिस की ओर से की गई फायरिंग में दो लोगों की मौत हो गई और करीब 50 लोग घायल हुए थे. चूड़ाचांदपुर कुकी बहुल इलाका है.

उसके बाद 27 फरवरी को एक कट्टरपंथी मैतेई संगठन आरामबाई टेनग्गोल ने अपने कुछ सदस्यों की गिरफ्तारी के विरोध में अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक के सरकारी आवास पर धावा बोलकर उनको और एक अन्य पुलिसकर्मी का अपहरण कर लिया था. बाद में बड़े पैमाने पर तलाशी अभियान के बाद उनको बचा लिया गया था. लेकिन इस घटना ने राज्य पुलिस में बगावत के आसार पैदा हो गए थे. तमाम सुरक्षाकर्मियों ने अपने हथियार जमीन पर रख कर इस घटना के प्रति विरोध जताया था.

राज्य के तमाम मतदान केंद्रों को अति संवेदनशील की श्रेणी में रखा गया था.तस्वीर: Bullu Raj/AP Photo/picture alliance

चुनावी समीकरण

राज्य में लोकसभा की दो सीटें हैं—इनर मणिपुर और आउटर मणिपुर. बीते साल से जारी जातीय हिंसा को ध्यान में रखते हुए राज्य के तमाम मतदान केंद्रों को अति संवेदनशील की श्रेणी में रखा गया था. आउटर मणिपुर इलाका कुकी और नागा बहुल है जबिक इनर मणिपुर में मैतेई समुदाय के लोग ही ज्यादा है. पिछली बार बीजेपी ने इनर मणिपुर सीट जीती थी. लेकिन आदिवासी बहुल आउटर मणिपुर सीट पर नागा पीपुल्स फ्रंट (एनपीएफ) उम्मीदवार की जीत हुई थी. राज्य में असामान्य हालात की वजह से आदिवासियों के लिए आरक्षित आउटर मणिपुर सीट पर दो चरणों में 19 और 26 अप्रैल को मतदान हुआ. इनर मणिपुर सीट के लिए 19 अप्रैल को एक चरण में ही वोट डाले गए थे. लेकिन सबसे ज्यादा हिंसा और धांधली उसी दौरान हुई.

बीजेपी ने इनर मणिपुर सीट पर इस बार पिछली बार के विजेता डॉ. राजकुमार सिंह के बदले टी. बसंत कुमार सिंह को टिकट दिया था. लेकिन आउटर मणिपुर सीट पर उसने अपने सहयोगी नागा पीपुल्स फ्रंट (एनपीएफ) का समर्थन करने का एलान किया था. बीजेपी की सहयोगी एनपीएफ ने आउटर मणिपुर सीट पर भारतीय राजस्व सेवा के पूर्व अधिकारी के.टिमोथी जिमिक को उम्मीदवार बनाया था. कांग्रेस ने इनर मणिपुर सीट पर जेएनयू के प्रोफेसर ए. बिमल अकोईजम और आउटर मणिपुर सीट पर पूर्व विधायक अल्फ्रेड कंगम आर्थर को मैदान में उतारा था.

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि मणिपुर में फिलहाल चुनाव के लायक माहौल नहीं था. तमाम राजनीतिक दलों और सामाजिक संगठनों ने राज्य में चुनाव टालने की अपील की थी. लेकिन इसका कोई असर नहीं पड़ा. अब इस चुनाव ने नए सिरे से हिंसा और अशांति पैदा कर दी है.

जिन हाथों ने कभी छुई भी नहीं बंदूक, वे हो रहे लड़ने को तैयार

03:34

This browser does not support the video element.

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें