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मानवाधिकारसंयुक्त राज्य अमेरिका

'नाराज भारतीय' की बनाई जॉब एड पर फंस गई अमेरिकी कंपनी

२९ मई २०२४

अमेरिका में एक तकनीकी कंपनी को एक नस्लवादी विज्ञापन के लिए हजारों डॉलर का मुआवजा देना पड़ा है. कंपनी का कहना है कि यह विज्ञापन भारत में बैठे एक नाराज रिक्रूटर ने बनाया था.

अमेरिकी न्याय मंत्रालय
अमेरिका में नस्ली भेदभाव के मामलेतस्वीर: Mark Lennihan/AP/picture alliance

अमेरिका के उत्तरी वर्जीनिया में स्थित एक टेक कंपनी ने एक नस्लवादी विज्ञापन के लिए 38,500 डॉलर का मुआवजा दिया है. कंपनी पर आरोप थे कि उसने कर्मचारियों की भर्ती के लिए जो विज्ञापन निकाला था, वह नस्ली आधार पर भेदभावपूर्ण था.

बिजनस एनालिस्ट के पद के लिए जारी इस विज्ञापन में लिखा गया था कि अमेरिका में जन्मे श्वेत व्यक्ति की जरूरत है. गुरुवार को अमेरिका के न्याय मंत्रालय ने बताया कि आर्थर ग्रैंड टेक्नोलॉजी नाम की इस कंपनी के साथ समझौता हो गया है और कंपनी मुआवजा देने को राजी हो गई है.

कंपनी ने मार्च 2023 में बिजनस एनालिस्ट के पद के लिए यह विज्ञापन जारी किया था. इसमें कहा गया थाः "सिर्फ अमेरिका में जन्मे (श्वेत) लोग, जो डैलस के 60 मील के दायरे में रहते हैं."

शर्मनाक मिसाल

अमेरिकी न्याय मंत्रालय के असिस्टेंट अटॉर्नी जनरल क्रिस्टन क्लार्क ने कहा कि यह विज्ञापन एक शर्मनाक मिसाल है. उन्होंने कहा, "यह शर्मनाक है कि 21वीं सदी में भी हम ऐसे नौकरीदाता देख रहे हैं जो सिर्फ श्वेत या सिर्फ अमेरिका में जन्मे जैसे विज्ञापन देते हैं और उन योग्य लोगों को दायरे से बाहर कर देते हैं जो किसी अन्य रंग के हैं."

क्लार्क ने कहा कि वह इस विज्ञापन को लेकर लोगों के गुस्से को समझ सकते हैं. उन्होंने कहा, "मैं आर्थर ग्रैंड के नागरिकता, राष्ट्रीयता, रंग और नस्ल के आधार पर उम्मीदवारों पर भयानक और भेदभावपूर्ण प्रतिबंध को लेकर जनता के गुस्से से सहमत हूं."

कंपनी ने एक बयान में सफाई दी कि यह विज्ञापन "भारत में मौजूद एक व्यक्ति ने बनाया था जो कंपनी से नाराज था और कंपनी को शर्मिंदा करना चाहता था." कंपनी ने कहा कि उसकी ऐसे लोगों को अप्लाई करने से रोकने की कोई मंशा नहीं थी, जो नागरिक नहीं हैं.

कर्मचारियों की ट्रेनिंग होगी

इस विज्ञापन को लेकर न्याय विभाग ने जांच शुरू की थी लेकिन कंपनी मुआवजा देने को राजी हो गई. उसने 38,500 डॉलर यानी लगभग 32 लाख रुपये का मुआवजा देने पर समझौता किया है. इसमें से 31,500 डॉलर उन लोगों को दिए जाएंगे जिन्होंने श्रम मंत्रालय में इस विज्ञापन की शिकायत की थी. बाकी 7,500 डॉलर न्याय विभाग को मिलेंगे.

समझौते के तहत कंपनी को अपने कर्मचारियों को नए सिरे से ट्रेनिंग देनी होगी और देश के भर्ती व भेदभाव से जुड़े कानूनों व नीतियों की जानकारी देनी होगी.

यह पहला मामला नहीं है जब किसी अमेरिकी कंपनी ने भेदभावपूर्ण विज्ञापन जारी किया. 2019 में वर्जीनिया की ही एक और कंपनी साइनेट सिस्टम्स ने भी ऐसे ही एक विज्ञापन के लिए माफी मांगी थी. उसने फ्लोरिडा में एक अकाउंट मैनेजर के पद के लिए विज्ञापन जारी किया था जिसमें कहा गया था कि ‘कॉकेशियन उम्मीदवारों को तरजीह' दी जाएगी.

विशेषज्ञ कहते हैं कि अक्सर विज्ञापनों में यह भेदभाव स्पष्ट नहीं बल्कि छिपा हुआ होता है. 2023 में हार्वर्ड बिजनस रिव्यू पत्रिका ने एक अध्ययन में कहा कि जो विज्ञापन पहली बार देखने में भेदभावपूर्ण नजर नहीं आते, उनमें भी भाषा आदि के जरिए भेदभाव छिपा होता है. ऐसा अक्सर महिलाओं के खिलाफ सबसे ज्यादा होता है.

नौकरी में रंग, लिंग, नस्ल, राष्ट्रीयता या शारीरिक योग्यता आदि के आधार पर भेदभाव करना संयुक्त राष्ट्र और कई मुल्कों के कानूनों के मुताबिक मानवाधिकारों का उल्लंघन है.

वीके/एए (एपी, रॉयटर्स)

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