वर्चुअल टाइम ट्रैवल: पुरानी दुनिया को देखते लो
१० अक्टूबर २०१७समय का इतिहास
लम्हा या वक्त, लगातार हाथ से फिसलता जा रहा है. लेकिन इसका अहसास भी हमें घड़ी ही कराती है. चलिए जानते हैं कि समय के इतिहास को.
समय का इतिहास
लम्हा या वक्त, लगातार हाथ से फिसलता जा रहा है. लेकिन इसका अहसास भी हमें घड़ी ही कराती है. चलिए जानते हैं कि समय के इतिहास को.
सूर्य की दशा
भारत के पौराणिक ग्रंथों में समय का जिक्र मिलता है. ईसा पूर्व से भी हजारों साल पहले भारत में समय को सूर्य की स्थिति से आंका जाता था. तब प्रहर के मानक बनाकर समय की गणना की जाती थी.
सूर्य घड़ी
सूर्य घड़ी का इस्तेमाल प्राचीन मिस्र की सभ्यता ने किया. माना जाता है कि सूर्य घड़ी वैज्ञानिक रूप से समय की गणना करने वाला पहला आविष्कार है. आज भी सूर्य घड़ी देखकर समय का मोटा अंदाजा लग जाता है. लेकिन बादल लगे हों तो सूर्य घड़ी काम नहीं करती.
रेत घड़ी
इस घड़ी का आविष्कार कब और कहां हुआ ये कहना मुश्किल है. लेकिन माना जाता है कि रेत घड़ी अरब में खोजी गई. मध्यकाल के दौरान रेत से कांच बनाने की कला विकसित हुई. कांच को खास बनावट में ढालकर उसके भीतर रेत भरी गई. रेत के एक खाने से दूसरे खाने में आने के समय के मुताबिक वक्त का अंदाजा लगाया जाता था.
जल घड़ी
तस्वीर में भले जल घड़ी का आधुनिक मॉडल हो लेकिन असली वॉटर क्लॉक ईसा पूर्व 16वीं शताब्दी में बनाई गई. यह भी रेत की घड़ी के समान ही थी, लेकिन इसमें रेत की जगह पानी होता था. उसकी टपकती बूंदों से समय का अंदाजा लगाया जाता था.
घंटाघर
18वीं शताब्दी में यूरोप में घड़ी के जरिये दिन को घंटों के हिसाब से बांटने का तरीका खोज लिया गया. फिर बड़ी घड़ियां भी बनाई जाने लगी. तब चर्च सबसे अहम जगह होती थी, इसीलिए चर्च में घड़ियां लगाई गईं. भारत के कुछ शहरों में आज भी घंटाघर वाली इमारतें इसकी गवाह हैं.
पॉकेट वॉच
कहा जाता है कि फ्रांस और स्विट्जरलैंड की सीमा पर बसे गांवों में बेहद गरीबी थी. सर्दियों में वहां रोजगार का कोई मौका नहीं था. इसीलिए वहां लोगों ने लकड़ी की घड़ियां बनानी शुरू कीं. धीरे धीरे वे घड़ी बनाने में माहिर हो गए. इस तरह पॉकेट वॉच का जन्म हुआ.
कलाई की घड़ी
घंटाघर की घड़ी धीरे धीरे सिकुड़ती गई और पॉकेट वॉच में तब्दील हो गई. बेहतर होती तकनीक के साथ ही यूरोपीय देश कलाई की घड़ी बनाने में सफल हुए. धीरे धीरे घड़ियां फैशन और प्रतिष्ठा का प्रतीक बन गईं. घड़ियों के कई बड़े ब्रैंड आज भी इसकी मिसाल हैं.
खास से आम हुई घड़ी
1980 के दशक तक घड़ी पहनना कई देशों में सम्मान की बात होती थी. घड़ियां भी महंगी थीं. लेकिन 1990 के दशक में स्वैच ब्रांड ने सस्ती घड़ियां पेश कीं. इसके साथ ही दुनिया भर में सस्ती घड़ियां बनाने की होड़ छिड़ गई और समय हर कलाई तक पहुंचने लगा.
इलेक्ट्रॉनिक घड़ी
एक तरफ स्विट्जरलैंड, रूस और ब्रिटेन समेत कुछ देश टिक टिक घड़ी बनाने में एक्सपर्ट बनते जा रहे थे. तभी जापान इलेक्ट्रॉनिक घड़ी लेकर आया. वॉटरप्रूफ होने के साथ साथ यह डिजिटल घड़ियां आसानी से समय भी बता देती थी. कांटे वाली घड़ियों में टाइम देखना सीखना पड़ता था.
परमाणु घड़ी
समय की सबसे बेहतर रीडिंग तो परमाणु घड़ी ही देती है. आज पूरी दुनिया का टाइम इन्ही घड़ियों के जरिये सेट किया जाता है. एटॉमिक घड़ी अणु के तापमान और इलेक्ट्रॉनिक ट्रांजिशन फ्रीक्वेंसी के आधार पर काम करती है. सैटेलाइटें, जीपीएस और रेडियो सिग्नल भी इसी घड़ी के आधार पर चलती हैं.
स्मार्ट वॉच
अब घड़ियां सिर्फ समय बताने वाली मशीनें भर नहीं रह गई हैं. स्मार्ट वॉच कही जाने वाली नई घड़ियों में अब एक छोटा कंप्यूटर भी होता है. यह धड़कन, सेहत, मैसेज, कॉल्स, पैदल कदमों की संख्या और नींद के घंटों पर नजर रखता है.