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राजनीतिसंयुक्त राज्य अमेरिका

भगवद् गीता के जरिये प्रचार कर रहे हैं विवेक रामास्वामी

७ अगस्त २०२३

अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों में रिपब्लिकन पार्टी की ओर से उम्मीदवारी के दावेदार विवेक रामास्वामी का समर्थन धीरे-धीरे बढ़ रहा है.

बायोटेक उद्यमी और राजनेता विवेक रामास्वामी
क्या अमेरिका के पहले हिंदू राष्ट्रपति बन सकते हैं विवेक रामास्वामी?तस्वीर: Brian Cahn/ZUMA Wire/IMAGO

रिपब्लिकन पार्टी की ओर से 2024 में राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बनने के लिए दावेदारी करने वाले विवेक रामास्वामी के सामने डॉनल्ड ट्रंप और रॉन डे सांतिस जैसे प्रतिद्वन्द्वी हैं. लेकिन बाइबिल और गीता की शिक्षाओं का इस्तेमाल अपने प्रचार में करने वाले विवेक रामास्वामी का समर्थन लगातार बढ़ रहा है.

37 साल के बायोटेक उद्यमी रामास्वामी हिंदू धर्म को मानते हैं. वह अपने प्रचार में बाइबिल और गीता की कहानियां सुनाते हैं. माना जाता है कि रिपब्लिकन पार्टी पर रूढ़िवादी ईसाइयों का ज्यादा प्रभाव है. बहुत से चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों में उन्हें ट्रंप और डे सांतिस के बाद तीसरे नंबर पर आंका गया है. 23 अगस्त को होने वाली पहली रिपब्लिकन डिबेट के लिए क्वॉलिफाई करने वाले छह उम्मीदवारों में जगह बनाने में रामास्वामी कामयाब रहे हैं.

अमेरिका में राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी के लिए दावेदारी करने वाले रामास्वामी दूसरे हिंदू हैं. उनसे पहले हवाई की पूर्व सांसद तुलसी गबार्ड ने 2020 में डेमोक्रैट पार्टी की ओर से दावादारी की थी.

धर्म से प्रचार

रामास्वामी ने अपने प्रचार अभियान के लिए दस नियम बताये हैं. उनमें से सबसे पहला हैः ईश्वर वास्तविक है. उसके बाद वह कहते हैं: लिंग दो ही हैं.

2021 में रामास्वामी की ‘वर्क इंकः इनसाइड कॉरपोरेट अमेरिकाज सोशल जस्टिस स्कैम' नाम की किताब खासी मशहूर हुई थी. इस किताब में उन्होंने बताया था कि कैसे अमेरिकी कंपनियां सामाजिक न्याय की व्यवस्था का इस्तेमाल अपनी मुनाफाखोर नीतियों को आगे बढ़ाने के लिए करती हैं.

वह फॉक्स न्यूज और अन्य रूढ़िवादी समाचार माध्यमों के लिए नियमित रूप से लिखते रहे हैं. इनमें वह पूंजीवाद और मेरिट आधारित व्यवस्था का समर्थन करते हैं जबकि आरक्षण, मास्क नीति और खुली सीमाओं की तीखी आलोचना करते हैं. वह अबॉर्शन के खिलाफ हैं और मानते हैं कि लिंग परिवर्तन जैसी सोच का मानसिक रोग के रूप में इलाज किया जाना चाहिए.

रामास्वामी दुनिया के अन्य दक्षिणपंथी नेताओं जैसे भारत के नरेंद्र मोदीऔर इटली की गिऑर्गिया मेलनी का समर्थन कर चुके हैं.

अपने प्रचार अभियान के दौरान वह धर्म के प्रति अपने रुझान को खुलकर जाहिर करते हैं. वह कहते हैं कि उनके हिंदू धर्म और उन यहूदी-ईसाई मूल्यों में बहुत कुछ एक जैसा है, "जिनके आधार पर इस देश की नींव रखी गयी थी.”

क्या ईसाई साथ देंगे?

समाचार एजेंसी एपी को दिये इंटरव्यू में उन्होंने कहा, "धार्मिक स्वतंत्रता का मैं कट्टर समर्थक हूं. इसका मैं और जोर-शोर से समर्थन करूंगा क्योंकि कोई भी कोई भी मुझ पर ईसाई-राष्ट्रवादी होने का इल्जाम नहीं लगा सकता.”

इन तमाम कोशिशों के बावजूद इस बात पर संदेह जताये जाते रहे हैं कि रामास्वामी ईसाई मतदाताओं का समर्थन पाने में कामयाब होंगे. हालांकि उन्हें इसका पूरा यकीन है. वह कहते हैं कि किसी भी धर्म को मानने वालों के साथ उनकी अधार्मिक लोगों की तुलना में कहीं ज्यादा समानताएं हैं.

रामास्वामी ने कहा, "मैं एक ऐसे धर्म में पला-बढ़ा हूं, जो कहता है कि एक ही सच्चा ईश्वर है जो हम सबको शक्ति देता है. हम हिंदू धर्म में कहते हैं कि ईश्वर सबके अंदर रहता है. ईसाइयत में कहा जाता है कि हम सब ईश्वर की छवि हैं.”

भारत से अमेरिका रहने गये दक्षिण भारतीय माता-पिता की संतान रामास्वामी सिनसिनाटी स्थित अपने घर में तमिल बोलते हुए बड़े हुए हैं. उनके आस्थावान माता-पिता नियमित पूजा करते थे. उन्होंने तमाम हिंदू पौराणिक कथाएं सुनी हैं. वह रोज पूजा-पाठ करते हैं और नियमित मंदिर जाते हैं. उनकी पत्नी अपूर्वा एक डॉक्टर है और अपने दोनों बेटों को भी हिंदू धर्म के अनुसार ही पाल-पोस रहे हैं.

ईसाइयत से प्रभावित

रामास्वामी कहते हैं कि वह ईसाइयत से बहुत प्रभावित रहे हैं. सिनसिनाटी के सेंट जेवियर कैथलिक कॉलेज की पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने अबॉर्शन के खिलाफ अपना मत बनाया था और दस साल तक पियानो सीखने के दौरान अपने शिक्षक से ‘प्रोटेस्टेंट मूल्य' सीखे.

रामास्वामी कहते हैं, "हिंदू होने के नाते आप जो शिक्षाएं ग्रहण करते हैं, वे यहूदी-ईसाई मूल्यों के बहुत समान होती हैं, जैसे कि त्याग, फल की इच्छा बिना कर्म करना और यह मानना कि कार्य करने वाले हम लोग सिर्फ माध्यम हैं, कर कोई और रहा है.”

फिर भी, ट्रंप कट्टर समर्थक रामास्वामी की आलोचना करते हैं. हाल ही में एक प्रवचन के दौरान नेब्रास्का में ट्रंप समर्थक एक ईसाई धर्मगुरु हैंक कुनेमन ने कहा, "हम क्या कर रहे हैं? क्या आप किसी को बाइबिल के अलावा किसी चीज पर हाथ रखने दोगे? क्या आप उसके अजीब देवताओं को व्हाइट हाउस में पहुंचने दोगे?”

कुनेमन के विचारों को रामास्वामी खारिज करते हुए कहते हैं कि अधिकतर अमेरिकी ईसाई ऐसा नहीं सोचते. वह कहते हैं, "ऐसा भाषण सुनकर पहले तो खीज होती है लेकिन सच यह है कि मैं पूरे देश का नेतृत्व करने के लिए चुनाव लड़ रहा हूं. उन लोगों का भी, जो मुझसे असहमत हैं.”

वीके/एए (एपी)

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