इंसान को क्रमिक विकास सिखाने वाले गालापागोस द्वीप समूह का सबसे ऊंचा पर्वत फट पड़ा है. उससे बहता खौलता लावा प्रशांत महासागर में समा रहा है और भारी राख आकाश को ढक रही है.
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इक्वाडोर के जियोफिजियल इंस्टीट्यूट के मुताबिक गालापागोस द्वीप समूह के सबसे बड़े द्वीप इसाबेल आइलैंड का ज्वालामुखी फट रहा है. ज्वालामुखी ने स्थानीय समय के मुताबिक बुधवार शाम को लावा उगलना शुरू किया. वोल्फ नाम के इस ज्वालामुखी की राख आकाश में 3,793 मीटर की ऊंचाई तक पहुंच चुकी है.
ज्वालामुखी विस्फोट से कितना खतरा
इक्वाडोर के अधिकारियों को कहना है कि फिलहाल दूसरे द्वीपों में रहने वाले लोगों को कोई खतरा नहीं है. ज्वालामुखी के आस पास नेशनल पार्क है. स्थानीय अधिकारियों के मुताबिक पार्क में काम कर रहे आठ गार्डों और वैज्ञानिकों सुरक्षित निकाल लिया गया है. वैज्ञानिक दल वहां ज्वालामुखी की ढलान पर मिलने वाले दुर्लभ गुलाबी गिरगिट पर रिसर्च कर रहा था.
गुलाबी गिरगिट सिर्फ गालापागोस में ही पाए जाते हैं. इसाबेला आइलैंड में इनकी संख्या करीब 211 है. इनके अलावा ज्वालामुखी के करीब गालापागोस के विशाल कछुए और पीले गिरगिट भी पाए जाते हैं. ज्वालामुखी विस्फोट के बाद इन दुर्लभ प्रजातियों की पुख्ता जानकारी नहीं मिली है.
कहां हैं गालापागोस द्वीप?
गालापागोस द्वीप समूह दक्षिण अमेरिकी देश इक्वाडोर के तट से करीब 1000 किलोमीटर दूर प्रशांत महासागर में है. विषुवत रेखा के करीब और कम इंसानी दखल के कारण इन द्वीप समूहों में आज भी अनोखे जीव और पौधे पाए जाते हैं. वन्य जीवों और पौधों की कई ऐसी प्रजातियां हैं जो सिर्फ गालापागोस द्वीप समूहों में पाई जाती है. ये द्वीप समूह यूनेस्को विश्व धरोहर भी हैं.
गालापागोस में कई ज्वालामुखी सक्रिय हैं. 1,701 मीटर ऊंचा वोल्फ ज्वालामुखी भी इनमें से एक है. 33 साल तक शांत रहने के बाद 2015 में वोल्फ ज्वालामुखी सक्रिय हुआ. इसाबेला द्वीप पर चार और सक्रिय ज्वालामुखी हैं.
गालापागोस का विज्ञान से रिश्ता
1831 में इंग्लैंड के चार्ल्स डार्विन एक बड़े जहाज पर सवार होकर पांच साल की लंबी यात्रा पर निकले थे. दक्षिण अमेरिका के तटों का सर्वेक्षण करने के बाद 1835 में उनका जहाज गालापागोस में रुका. इस दौरान 22 साल के चार्ल्स डार्विन ने देखा कि इन सभी द्वीपों में जीवों की एक जैसी प्रजातियां रहती हैं, लेकिन सभी प्रजातियां अपने परिवेश के मुताबिक अलग अलग व्यवहार कर रही हैं. इस यात्रा ने एक नाकाम मेडिकल स्कॉलर माने जाने वाले चार्ल्स डार्विन को गालापागोस ने बदल दिया.
1836 में यात्रा खत्म होने तक डार्विन ने हजारों पन्नों के दस्तावेज तैयार कर दिए. इनमें जीवों, वनस्पतियों का डाटा भी था और कई विचार भी. 1859 में कई साल की मेहनत के बाद चार्ल्स डार्विन ने प्रकृति में क्रमिक विकास और अनुकूलन के सिद्धांत का दावा किया. मौजूदा जीव और वनस्पति विज्ञान आज भी इसी सिद्धांत पर चलता है.
ओएसजे/एडी (एएफपी, एपी, डीपीए)
गालापागोस द्वीप
1831 में चार्ल्स डार्विन समुद्री यात्रा कर प्रशांत महासागर के गालापागोस द्वीपों पर पहुंचे. यहां से वह कई पौधों और जानवरों के सैम्पल्स अपने साथ ले गए. आज भी यह द्वीप जीव विज्ञानियों के लिए दिलचस्प हैं..
तस्वीर: James Frankham
अकेला उदास जॉर्ज
लोनसम जॉर्ज नाम के इस कछुए की 8 जुलाई 2012 को मृत्यु हो गई. यह पिंटा आइलैंड जायंट टॉरटॉइज प्रजाति का आखिरी कछुआ था. माना जाता है कि इस कछुए ने कई दशक लातिन अमेरिका के पास गालापागोस आरकीपेलागो द्वीप पर अकेले गुजारे जिस कारण वह उदास हो गया. इसीलिए उसका नाम लोनसम जॉर्ज रखा गया.
तस्वीर: James Frankham
जॉर्ज का परिवार
वैज्ञानिकों का मानना है कि अकेले और उदास रहने के कारण जॉर्ज संबंध बनाना नहीं सीख पाया. जॉर्ज को लम्बे समय तक दो मादा कछुओं के साथ रखा गया. करीब एक दशक बाद उसने एक मादा से संबंध बनाए जिससे तेरह अंडे पैदा हुए, लेकिन उन अंडों से बच्चे पैदा नहीं हो सके.
तस्वीर: James Frankham
इंसानों से खतरा
गालापागोस यानी स्पैनिश भाषा में कछुए. 1535 में जब स्पेन के नाविक यहां आए तो कछुओं के कारण ही द्वीप को यह नाम दे दिया. इंसानों के यहां आने के बाद हालात बदल गए. 17वीं शताब्दी से मांस के लिए इनका शिकार किया जाता रहा है. अब इनके लुप्त होने का खतरा बना हुआ है.
तस्वीर: James Frankham
ज्वालामुखीय द्वीप
यहां पहुंच सके. इस इलाके का तेज तापमान इस लावा छिपकली जैसे जीवों के लिए अनुकूल है. ऐसी छिपकलियां खुद को गर्मी से बचाने के लिए जब अपने दो पैर ऊपर उठाती हैं तो ऐसा लगता है जैसे नाच रही हों.
तस्वीर: James Frankham
खतरनाक छिपकली
मरीन इगुआना नाम की ये छिपकलियां दिखने में भले ही खतरनाक लगें, लेकिन ये केवल समुद्री शैवाल ही खाती है. माना जाता है कि इस इलाके में ऐसी लाखों छिपकलियां हैं. लेकिन कछुओं की ही तरह इंसानी गतिविधियों से इन पर भी लुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है.
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जॉर्ज के पड़ोसी
इस इलाके में फ्रिगेट बर्ड भी पाए जाते हैं. नर पक्षी मादा का ध्यान खींचने के लिए अपनी गर्दन के नीचे लाल रंग की थैली को फुला लेते हैं, वे पंख फड़फाड़ते हैं और गाते भी हैं.
तस्वीर: James Frankham
बदलाव
एक समय था जब यहां परभक्षी बहुत ही कम हुआ करते थे. इसलिए वन्य जीवन को कोई बड़ा खतरा नहीं था. लेकिन इंसानों के यहां आने से ऐसे जीव भी आए हैं जो इस इलाके के हैं ही नहीं. चूहे अब कछुयों के अंडे खा जाते हैं. पक्षियों को भी अपने खाने का सही इंतजाम करना पड़ता है.
तस्वीर: James Frankham
खूबसूरत फ्लेमिंगो
गुलाबी रंग के खूबसूरत फ्लेमिंगो इस द्वीप की शान बढ़ाते हैं. हर साल ये हजारों पर्यटकों का ध्यान इन द्वीपों की ओर खींचते हैं. ये समुद्री पौधे और झींगे खाते हैं. झीगों से ही इन्हें यह रंग भी मिलता है.
तस्वीर: James Frankham
मिल गया खाना
इस विशाल कछुए को अपना खाना मिल गया है. अधिकतर बकरियां पौधे और घास खा जाती हैं, वह भी जड़ से. इसलिए कछुओं के लिए ठीक से कुछ बचता ही नहीं है. ये जायंट टॉरटोइज सबसे लम्बे समय तक जिंदा रह सकते हैं. अनुकूल परिस्थितियों में ये सौ साल से भी ज्यदा जी सकते हैं.
तस्वीर: James Frankham
बढ़ती आबादी
कछुओं को लुप्त होने वाले जीवों की सूची में रखा गया है. चार्ल्स डार्विन फाउंडेशन के शुरू किए एक कार्यक्रम के तहत कछुओं की संख्या को बढ़ाने में मदद मिली है. 1974 में कछुओं की संख्या केवल तीन हजार थी. अब वह बीस हजार से अधिक हो चुकी है.