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फोक्सवागन कर्मचारियों ने और बढ़ाई जर्मन कार कंपनी की परेशानी

इंसा व्रेडे
११ अक्टूबर २०२४

फोक्सवागन गाड़ियों की गिरती बिक्री को देखते हुए कंपनी हर तरफ खर्च में कटौती कर रही है. वहीं, इसके कर्मचारी ज्यादा वेतन और नौकरी की सुरक्षा की मांग कर रहे हैं. देखना होगा कि जर्मन कार कंपनी इन परेशानियों से कैसे निपटेगी.

कंपनी प्रबंधन से वेतन बढ़ाने की मांग करते कर्मचारी
सितंबर तक कर्मचारियों को उम्मीद थी कि उनका वेतन बढ़ेगा लेकिन अब तो उन्हें अपनी नौकरी के बने रहने का भी भरोसा नहीं रहातस्वीर: Moritz Frankenberg/AFP

करीब एक साल पहले फोक्सवागन (वीडब्ल्यू) वर्क्स काउंसिल की अध्यक्ष डानिएला कैवालो ने चेतावनी दी थी कि यूरोप की सबसे बड़ी कार निर्माता कंपनी ‘बड़े तूफान की ओर बढ़ रही है.' जाहिर है, यह तूफान अब आया है, जब वीडब्ल्यू प्रबंधन ने घोषणा की है कि घटती बिक्री की वजह से उसे जर्मनी में एक या दो कार संयंत्र बंद करने और हजारों नौकरियों में कटौती करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा.

यह घोषणा सितंबर के अंत में वेतन वृद्धि को लेकर होने वाली बातचीत से ठीक पहले की गई. तब तक कई कर्मचारियों को यह उम्मीद थी कि उनका वेतन बढ़ जाएगा, लेकिन इसके बजाय अब जर्मनी में वीडब्ल्यू में कार्यरत 1,20,000 कर्मचारियों को अपने भविष्य की चिंता सता रही है.

इस बीच, यूरोप की सबसे बड़ी कार निर्माता कंपनी वीडब्ल्यू की तनावपूर्ण स्थिति जर्मन राजनीति पर भी असर डाल सकती है. वजह यह है कि वीडब्ल्यू के 20 फीसदी शेयर लोअर सैक्सनी राज्य के पास हैं. इसी राज्य में वीडब्ल्यू स्थित है और यहीं से अपनी मुख्य फैक्ट्री संचालित करता है.

बदल रहा है समय

कई दशकों में, राजनेताओं की मदद से प्रबंधन और श्रमिक संघों ने एक विशेष संबंध बनाया है. पहले इस कार निर्माता कंपनी पर सरकार का मालिकाना हक था, लेकिन 1960 में इसका आंशिक निजीकरण हुआ और इसे शेयर बाजार में सूचीबद्ध किया गया. इसके बाद, प्रभावशाली मेटलवर्कर्स यूनियन आईजी मेटाल ने एक समझौता किया.

इसके तहत, उसे जर्मन उद्योग में आम तौर पर उद्योग-व्यापी सामूहिक सौदेबाजी समझौते से बाहर निकलने की अनुमति मिली. सामान्य शब्दों में कहें, तो जर्मनी में आम तौर पर सभी कंपनियां एक ही तरह का समझौता करती हैं, लेकिन इस यूनियन को अलग तरीके से समझौता करने की अनुमति मिली.

भारत में भविष्य खोजतीं जर्मन कार कंपनियां

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तब से, वीडब्ल्यू के कर्मचारियों का वेतन अन्य कार निर्माताओं की तुलना में काफी अधिक रहा है. 1990 के दशक में कर्मचारी प्रतिनिधियों ने 35 साल की नौकरी की गारंटी हासिल की. इस वजह से 2029 तक नौकरी में कटौती की संभावना को खारिज कर दिया गया.

नौकरी की इस गारंटी को अब वीडब्ल्यू प्रबंधन ने ‘विशेष रूप से महत्वपूर्ण चुनौतियों', जैसे कि बढ़ती लागत से कंपनी के मुनाफे में कटौती का हवाला देते हुए एकतरफा रूप से खत्म कर दिया है.

सितंबर की शुरुआत में कर्मचारियों को भेजे गए नोट में फोक्सवागन ने कहा, "मौजूदा स्थिति में, वाहन का उत्पादन और कलपुर्जे बनाने वाली इकाइयों के संयंत्र बंद होने की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता है.”

यूरोप में कार मंदी के दौरान आया वीडब्ल्यू का संकट

2023 में, 10 अलग-अलग ब्रांड वाले इस कार समूह ने 18 अरब यूरो से अधिक का मुनाफा कमाया और शेयरधारकों को 4.5 अरब यूरो का लाभांश दिया. इसके बावजूद, वीडब्ल्यू प्रबंधन ने पिछले साल कार्यक्षमता कार्यक्रम शुरू किया. इसका उद्देश्य प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने के लिए 2026 तक 10 अरब यूरो की बचत करना था.

हालांकि, अगस्त 2024 में प्रबंधन ने कहा कि निराशाजनक नतीजे मिलने के बाद बचत से जुड़े अन्य उपायों की जरूरत थी. कंपनी ने बताया कि उसकी कुल बिक्री कम होकर 320 अरब यूरो पर पहुंच गई, जो कि पिछले साल की तुलना में 2 अरब यूरो कम है.

जर्मनी के वुल्फ्सबुर्ग में स्थित है कार निर्माता कंपनी फोक्सवागन की मुख्य फैक्ट्री और कैंपसतस्वीर: Moritz Frankenberg/dpa/picture alliance

यह गिरावट इसलिए आयी है, क्योंकि पूरे यूरोप में कोरोना महामारी से पहले की तुलना में, कारों की बिक्री में 20 लाख वाहनों की गिरावट दर्ज की गई है. वीडब्ल्यू के आर्थिक मामलों के प्रमुख आर्नो अनटिल्त्स ने सितंबर में कंपनी के आंकड़े जारी करते हुए कहा कि वीडब्ल्यू के लिए इसका मतलब यह है कि लगभग पांच लाख कारें कम बिक रही हैं. यह संख्या लगभग दो संयंत्रों की उत्पादन क्षमता के बराबर है. 

जर्मनी के बेर्गिश-ग्लाडबाख में सेंटर ऑफ ऑटोमोटिव मैनेजमेंट (सीएएम) के संस्थापक और निदेशक श्टेफान ब्रात्सेल का कहना है कि सभी जर्मन कार निर्माताओं के लिए ओवरकैपेसिटी एक समस्या है, क्योंकि उनके कारखाने वर्तमान में अपनी अधिकतम उत्पादन क्षमता के लगभग दो-तिहाई पर ही काम कर रहे हैं. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया कि किसी भी संयंत्र से मुनाफा तब हासिल किया जा सकता है, जब मॉडल के आधार पर ‘उत्पादन का स्तर आदर्श रूप से 80 फीसदी से अधिक हो.'

ब्रात्सेल ने कहा कि फ्रांस, इटली और यूके में मौजूद कार निर्माता भी इसी तरह के संकट का सामना कर रहे हैं. जबकि, स्पेन, तुर्की, स्लोवाकिया और चेक गणराज्य में स्थित कार निर्माता कम उत्पादन लागत के कारण अभी भी लगभग 79 फीसदी की क्षमता पर काम कर रहे हैं. 

इसके बावजूद, कार उद्योग से जुड़े हालिया डेटा के मुताबिक, जर्मनी ने 2023 में किसी भी अन्य यूरोपीय देश की तुलना में अधिक कारों का उत्पादन किया. हालांकि, जर्मन इकोनॉमिक इंस्टीट्यूट (आईडब्ल्यू) के परिवहन विशेषज्ञ थॉमस पल्स का कहना है कि हाल के वर्षों में जर्मनी में कार उत्पादन में लगातार गिरावट आई है. यह 2018 की तुलना में लगभग 25 फीसदी कम हो गया है. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया कि पिछले साल जर्मनी में बेची गई कुल 40 लाख कारों में से इलेक्ट्रिक वाहनों की हिस्सेदारी सिर्फ एक चौथाई थी.

चीन की मजबूती से बदल गया जर्मन कार उद्योग का परिदृश्य

जर्मन ऑटो इंडस्ट्री एसोसिएशन ‘वीडीए' की रिपोर्ट के अनुसार, पूरी दुनिया की तुलना में जर्मनी में कर्मचारियों को सबसे ज्यादा वेतन दिया जाता है. 2023 में यह रकम औसतन 62 यूरो प्रति घंटे से अधिक थी. वहीं, स्पेन में प्रति घंटा 29 यूरो, चेक गणराज्य में 21 यूरो और रोमानिया में सिर्फ 12 यूरो है.

जर्मन कार निर्माता अपने हाई-एंड प्रीमियम मॉडल की वजह से उत्पादन की लागत को मैनेज कर पाए हैं. इन प्रीमियम मॉडल में से लगभग तीन-चौथाई विदेशों में निर्यात किए जाते हैं. हाल के वर्षों में, यहां से उत्पादित कारों में से कम से कम 20 फीसदी कार चीन भेजे गए हैं.

आईडब्ल्यू थिंक टैंक ने लिखा है कि जर्मनी में कम मार्जिन वाले सस्ते मॉडल बनाना संभव नहीं है. यही वजह है कि फ्रांस और इटली के कार निर्माताओं ने बहुत पहले ही बड़े पैमाने पर कारों का उत्पादन करने के लिए अपने संयंत्रों को सस्ती जगहों पर स्थानांतरित कर दिया था.

ऑटो विशेषज्ञ ब्रात्सेल का भी मानना है कि जर्मनी में किफायती वाहन, खास तौर पर किफायती इलेक्ट्रिक वाहन का उत्पादन करना बहुत कठिन है. ऐसा करने का प्रयास करने वाली आखिरी जर्मन ईवी निर्माता कंपनी का नाम e.Go था और वह हाल ही में दिवालिया हो गई.

जर्मन कार निर्माताओं के लिए उत्पादन की ज्यादा लागत से अधिक चिंताजनक बात यह है कि उनके चीनी प्रतिद्वंद्वियों ने तकनीकी बढ़त हासिल कर ली है, खासकर ईवी बाजार में. सरकार से मिली भारी सब्सिडी और कानूनी सहायता की बदौलत, उन्होंने बैटरी जैसे प्रमुख ईवी कॉम्पोनेंट में काफी ज्यादा तकनीकी बढ़त हासिल की है, जिसे वे अब सस्ते में बना सकते हैं.

आईडब्ल्यू की रिपोर्ट के मुताबिक, "तकनीकी बदलाव ने नए प्रतिस्पर्धियों के लिए दरवाजा खोल दिया है. वे बैटरी और इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग के मामले में मजबूत स्थिति में पहुंच गए हैं. इसलिए, दुनिया भर में उत्पादित सभी कारों में से लगभग एक तिहाई अब चीनी कारखानों से आती हैं, जहां उत्पादन लागत काफी कम है.” स्टीफन ब्रात्सेल का कहना है कि चीनी कार निर्माता ईवी के मामले में बेहतर स्थिति में हैं, क्योंकि उन्हें काफी ज्यादा अनुभव हो गया है और उन्होंने परफॉर्मेंस को भी बेहतर बनाया है.

चीन ने कार बनाने की दिशा में जो उपलब्धि हासिल की है वह यूरोपीय कार उत्पादन के आंकड़ों में साफ तौर पर दिख रहा है. इन आंकड़ों से पता चलता है कि यूरोप में वर्ष 2000 से अब तक कार के उत्पादन में 40 फीसदी की गिरावट आयी है. फ्रांस और इटली में तो करीब 50 फीसदी की गिरावट देखने को मिल रही है. आईडब्ल्यू ने पाया कि सिर्फ जर्मन कार निर्माता ही अपनी स्थिति को कुछ हद तक बनाए रखने में कामयाब रहे हैं.

उत्सर्जन से जुड़ा लक्ष्य यूरोपीय कार निर्माताओं के लिए अंतिम झटका

यूरोप में कुछ कार निर्माता अब यह भी चेतावनी दे रहे हैं कि अगर वे ई.वी. की बिक्री में गिरावट के कारण ई.यू. के महत्वाकांक्षी जलवायु लक्ष्यों को पूरा नहीं कर पाते हैं, तो उन्हें अरबों यूरो का जुर्माना भरना पड़ सकता है. दरअसल, उत्सर्जन से जुड़ा मौजूदा औसत लक्ष्य प्रति किलोमीटर यात्रा पर 115.1 ग्राम सीओ2 है. यह 2025 में 19 फीसदी कम होकर 93.6 ग्राम/किमी हो जाएगा.

रेनॉ कंपनी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी लुका डी मेओ ने सितंबर में फ्रांस इंटर रेडियो को बताया कि यूरोपीय कार उद्योग को ‘15 अरब यूरो तक का जुर्माना' लग सकता है. यूरोपीय कार उद्योग निकाय ‘एसीईए' पहले से ही 2025 में लागू होने वाले उत्सर्जन नियमों की ‘तत्काल समीक्षा' की मांग कर रहा है.

एसीईए बोर्ड में रेनॉ, निसान और टोयोटा के मुख्य कार्यकारी शामिल हैं. बोर्ड ने एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि कार निर्माताओं को ‘या तो अरबों यूरो के जुर्माने की भयावह आशंका का सामना करना पड़ रहा है या उत्पादन में अनावश्यक कटौती, नौकरी में कमी और कमजोर यूरोपीय आपूर्ति और मूल्य श्रृंखला का सामना करना पड़ रहा है.'

इन चुनौतियों के बीच, वीडब्ल्यू प्रबंधन अब अपने कर्मचारियों पर शिकंजा कसने की कोशिश कर रहा है. जबकि कर्मचारी 7 फीसदी वेतन वृद्धि, छंटनी न करने और प्लांट बंद न करने की मांग कर रहे हैं. 

बातचीत के पहले दौर के बाद, यूनियन के प्रतिनिधियों ने कहा कि वीडब्ल्यू के प्रबंधन ने उच्च श्रम लागत से जुड़े ‘जर्मन अर्थदंड' को दिखाने वाले चार्ट दिखाए. हालांकि, उन्होंने कहा कि कार निर्माता के लिए श्रम लागत ही एकमात्र मुद्दा नहीं है, क्योंकि प्रबंधन की गलतियां, गलत निर्णय और डीजल से होने वाले उत्सर्जन से जुड़े घोटाले जैसे स्कैंडल कर्मचारियों की गलती नहीं थी.

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