दुनियाभर में चुनावों की निष्पक्षता पर भरोसा कमः रिपोर्ट
११ अप्रैल २०२४
लोकतंत्र की स्थिति पर एक ताजा रिपोर्ट बताती है कि कई देशों में मतदाता लोकतंत्र नहीं बल्कि चुनाव और संसद के बंधन से मुक्त एक ‘मजबूत’ नेता चाहते हैं.
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दुनिया के कई देशों में मतदाता लोकतांत्रिक संस्थानों में विश्वास के संकट से गुजर रहे हैं. 2024 में अमेरिका, भारत, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ समेत दुनिया में लगभग एक चौथाई आबादी नई सरकार चुनने वाली है.
लेकिन इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ डेमोक्रेसी एंड इलेक्ट्रोल असिस्टेंस (IDEA) ने एक सर्वेक्षण के बाद कहा है कि अधिकतर मतदाता लोकतांत्रिक संस्थानों की स्थिति से नाखुश हैं.
गुरुवार को प्रकाशित आईडीईए की रिपोर्ट कहती है कि कई देशों में लोकतंत्र की हालत अच्छी नहीं है. रिपोर्ट के लिए 19 देशों के मतदाताओं के बीच सर्वे किया गया. इनमें से भारत और अमेरिका समेत 11 देशों में आधे से भी कम लोग मानते हैं कि हालिया चुनाव निष्पक्ष थे.
सिर्फ डेनमार्क ऐसा देश है जहां के मतादाता मानते हैं कि अदालतें हमेशा निष्पक्ष होती हैं. 19 में से 18 देशों में आधे से अधिक लोग अदालतों की निष्पक्षता को संदिग्ध मानते हैं. न्याय व्यवस्था में इराकियों का भरोसा अमेरिकियों के मुकाबले ज्यादा है.
19 में से आठ देशों में अधिकतर मतदाताओं ने कहा कि वे एक ऐसा मजबूत नेता चाहते हैं जो चुनाव या संसद के बंधनों में ना बंधा हो. एक ‘मजबूत नेता' के सबसे ज्यादा समर्थक भारत और तंजानिया में थे.
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अमेरिका में चुनावों पर भरोसा कम
आईडीईए महासाचिव केविन कसासा-जमोरा ने एक बयान में कहा, "जनता में पैदा हुई भ्रम की स्थितियों पर ध्यान देना चाहिए. इसके लिए प्रशासनिक व्यवस्था में सुधार किया जाना चाहिए और चुनावों की विश्वसनीयता को संदेह के घेरे में लाने वाली फर्जी सूचनाओं के प्रसार की पूरी व्यवस्था के खिलाफ लड़ना चाहिए.”
अमेरिका में इस बार डॉनल्ड ट्रंप और जो बाइडेन के एक बार फिर आमने-सामने होने की संभावना है. 2020 में भी दोनों के बीच मुकाबला था और जो बाइडेन की जीत के बाद ट्रंप समर्थकों ने चुनावों की विश्वसनीयता पर सवाल उठाया था. डॉनल्ड ट्रंप ने भी चुनावों में धांधली के दावे किए थे.
भारत की सबसे अमीर पार्टी कौन?
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, वित्त वर्ष 2022-23 के लिए छह राजनीतिक दलों ने अपनी आय घोषित कर दी है. बीजेपी की आय सबसे अधिक है.
तस्वीर: IANS
तीन हजार करोड़ रुपये से ज्यादा की आय
भारत की छह राजनीतिक पार्टियों ने वित्त वर्ष 2022-23 के लिए अपनी आय घोषित की है. एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि बीजेपी, कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, बीएसपी, नेशनल पीपल्स पार्टी और सीपीआई (एम) ने 2022-23 वित्त वर्ष में लगभग ₹3,077 करोड़ की कुल आय घोषित की है.
तस्वीर: IANS
बीजेपी की कितनी आय
इस रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले वित्त वर्ष में बीजेपी ने सबसे अधिक आय दर्ज की, जो 2,361 करोड़ थी. एडीआर ने कहा कि वित्त वर्ष 2022-23 के दौरान बीजेपी की आय, छह राष्ट्रीय दलों की कुल आय का करीब 77 प्रतिशत है.
तस्वीर: DW/S. Bandopadhyay
दूसरे नंबर पर कांग्रेस
कांग्रेस ने 452.375 करोड़ रुपये के साथ दूसरी सबसे बड़ी आय घोषित की, जो छह राष्ट्रीय दलों की कुल आय का लगभग 15 प्रतिशत है.
तस्वीर: Imago Images/Hindustan Times
आप की आय में उछाल
एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक, अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी (आप) की आय वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान 44.539 करोड़ रुपये थी, जो वित्त वर्ष 2022-23 में 91.23 प्रतिशत या 40.631 करोड़ रुपये बढ़कर 85.17 करोड़ रुपये हो गई.
तस्वीर: DW/A. Ansari
अन्य दलों की आय कितनी
पूर्वोत्तर से राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल करने वाले इकलौते दल 'नेशनल पीपल्स पार्टी' (एनपीपी) की आय वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान लगभग 47 लाख रुपये थी. बीते साल इसमें 1,500 प्रतिशत (लगभग सात करोड़ रुपये) से ज्यादा की वृद्धि हुई. 2022-23 के वित्त वर्ष में यह रकम 7.562 करोड़ रुपये हो गई.
तस्वीर: David Talukdar/NurPhoto/picture alliance
बीएसपी की आय घटी
एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक, वित्त वर्ष 2021-22 और 2022-23 के बीच कांग्रेस की आय में 16.42 प्रतिशत या 88.90 करोड़ रुपये की गिरावट आई है. इसी दौरान सीपीएम की आय 20.57 करोड़ रुपये यानी 12.68 प्रतिशत और बीएसपी की आमदनी 14.50 करोड़ रुपये या 33.14 प्रतिशत घटी है.
तस्वीर: EPA-EFE
कांग्रेस ने ज्यादा खर्च किया
एडीआर ने कहा कि बीजेपी ने वित्त वर्ष 2022-23 के दौरान कुल आय 2,361 करोड़ रुपये घोषित की, लेकिन इसका केवल 57.68 प्रतिशत ही खर्च किया. यह रकम 1361.684 करोड़ रुपये है. वहीं कांग्रेस ने कुल आय 452.375 करोड़ बताई, जबकि उसका खर्च 467.135 करोड़ रहा. इस लिहाज से कांग्रेस ने आय से 3.26 प्रतिशत अधिक खर्च किया.
तस्वीर: Subrata Goswami/DW
चुनाव आयोग को पार्टी देती है जानकारी
राजनीतिक दल हर साल चुनाव आयोग को आय और खर्च से जुड़ी जानकारी देते हैं. एडीआर इस डेटा का विश्लेषण कर अपनी रिपोर्ट तैयार करती है.
तस्वीर: DW/O. Singh Janoti
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आईडीईए के सर्वे के मुताबिक अमेरिका में 47 फीसदी मतदाता मानते हैं कि देश की चुनाव प्रक्रिया विश्वसनीय है. इसी तरह जून में यूरोपीय संघ के चुनाव होने हैं और इस बार अति दक्षिणपंथी पार्टियां बेहद मजबूत स्थिति में हैं.
अगर यूरोपीय संसद में उनकी ताकत बढ़ती है तो वे जलवायु परिवर्तन व माइग्रेशन से जुड़ी नीतियों से लेकर रूस के खिलाफ यूक्रेन के युद्ध में मदद जैसे फैसलों को प्रभावित करने में सक्षम होंगी.
सरकारों से असंतुष्ट
यह सर्वेक्षण जुलाई 2023 से जनवरी 2024 के बीच हुआ था. 19 देशों में से हरेक में 1,500 लोगों से बातचीत की गई. सर्वे में शामिल देशों में सबसे बड़े लोकतंत्रों भारत और अमेरिका के अलावा ब्राजील, चिली, कोलंबिया, गांबिया, इराक, इटली, लेबनान, लिथुआनिया, पाकिस्तान, रोमानिया, सेनेगल, सिएरा लियोन, दक्षिण कोरिया और तंजानिया शामिल हैं.
कौन बनाता है भारत में चुनावी स्याही
अंगुली पर फिरी स्याही का निशान! आपने वोट डाला, इसका ऐसा पक्का सबूत कि निशान मिटते-मिटते कई दिन लग जाते हैं. इस स्याही की कहानी क्या है? क्या ये इंकपेन वाली स्याही है?
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87 साल पुरानी एक कंपनी
कर्नाटक के मैसूर शहर में एक कंपनी है, मैसूर पेंट्स एंड वार्निश लिमिटेड (एमपीवीएल). साल 1937 में इस कंपनी की नींव रखी थी कृष्णराज वाडियार चतुर्थ ने. वह मैसूर रियासत के शासक थे. मुमकिन है आप कृष्णराज के एक और मशहूर योगदान 'मैसूर सेंडल सोप' से भी वाकिफ हों.
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बस यही कंपनी बनाती है खास स्याही
अब ये कंपनी कर्नाटक सरकार के नियंत्रण में है. एमपीवीएल आमतौर पर सार्वजनिक परिवहन की गाड़ियों में इस्तेमाल होने वाला पेंट बनाती है, लेकिन ये भारत की इकलौती कंपनी है जिसे चुनावी स्याही बनाने का अधिकार है.
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चुनाव से पुराना नाता
पिछले करीब छह दशकों से मतदान की स्याही यहीं बनाई जा रही है. इस स्याही की मुख्य सामग्री है, सिल्वर नाइट्रेट. धूप पड़ने पर स्याही का रंग त्वचा पर गाढ़ा हो जाता है और नाखून पर बैंगनी रंग उतर आता है. बताया जाता है कि इसे मिटाना नामुमकिन है और इसका निशान करीब दो हफ्ते तक बना रहता है.
तस्वीर: Mahesh Kumar A./picture alliance/AP
बहुत पक्का निशान
कई लोग नींबू/पपीते के रस, मेकअप रिमूवर वगैरह से निशान मिटाने की कोशिश करते हैं और अक्सर नाकाम रहते हैं. कंपनी के प्रबंध निदेशक मुहम्मद इरफान ने रॉयटर्स को बताया कि ऐसी कोशिशों से निपटने के लिए मतदान अधिकारियों को चाहिए कि वो इंक लगाने से पहले वोटर की अंगुली को अच्छी तरह पोछ लें.
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अब तक का सबसे बड़ा ऑर्डर
इस लोकसभा चुनाव में करीब 97 करोड़ लोग बतौर मतदाता पंजीकृत हैं. ऐसे में एमपीवीएल को चुनाव आयोग से अब तक का सबसे बड़ा ऑर्डर मिला है. हर शीशी में 10 मिलीग्राम स्याही होती है और इतना इंक लगभग 700 मतदाताओं के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है.
तस्वीर: Mahesh Kumar A./picture alliance/AP
रिकॉर्ड मात्रा में स्याही का उत्पादन
समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक, 2024 की शुरुआत से अबतक कंपनी स्याही की लगभग 27 लाख शीशी चुनाव आयोग को भेज चुकी है. यह रिकॉर्ड उत्पादन है.
तस्वीर: Rakesh Nair/REUTERS
सबसे ज्यादा स्याही कहां गई?
सबसे बड़ी खेप उत्तर प्रदेश भेजी गई है, वहीं 110 शीशीयों का सबसे छोटा ऑर्डर लक्षद्वीप का है. चुनाव आयोग प्रति शीशी एमपीवीएल को 174 रुपये का भुगतान करेगा.
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कई अन्य देशों को भी निर्यात
एमपीवीएल के पास कई अन्य एशियाई देशों की ओर से भी चुनावी इंक बनाने का ऑर्डर है. टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, पिछले कुछ महीनों में एमपीवीएल कंबोडिया, फिजी और सियरा लिओन जैसे देशों में इस स्याही को निर्यात कर चुकी है. उसके पास मंगोलिया और मलेशिया के भी ऑर्डर हैं.
तस्वीर: Rakesh Nair/REUTERS
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‘द परेस्पशन ऑफ डेमोक्रेसी' नाम की रिपोर्ट के मुताबिक 17 देशों में आधे से कम लोग ही अपनी सरकारों से संतुष्ट हैं. सिर्फ चार देश ऐसे हैं जिनमें अधिकतर लोग महसूस करते हैं कि वे आर्थिक रूप से अपने माता-पिता से बेहतर स्थिति में हैं. रिपोर्ट के मुताबिक अधिकतर देशों में अल्पसंख्यक लोगों में चुनावों की निष्पक्षता को लेकर संदेह बहुसंख्यक समुदाय से ज्यादा है.
रिपोर्ट कहती है कि ब्राजील, कोलंबिया, रोमानिया और सिएरा लियोन में गरीबों के बीच सरकार का समर्थन अन्य वर्गों की अपेक्षा ज्यादा है.