प्रकृति के सफाईकर्मी माने जाने वाले गिद्ध विलुप्ति की कगार पर पहुंच चुके हैं. गिद्धों की लगभग 99 फीसदी आबादी के मारे जाने के बाद अब इनके संरक्षण के लिए प्रयास किये जा रहे हैं.
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पर्यावरण के रक्षक के रूप में पहचानी जाने वाली गिद्ध प्रजाति संरक्षण के अभाव में पूरे देश से समाप्त होने की कगार पर खड़ी है. एक अनुमान के मुताबिक 40 साल पहले जहां देश में लगभग चार करोड़ गिद्ध थे तो अब चार लाख भी नहीं बचे हैं. गिद्धों की संख्या में आयी इस तेज़ गिरावट के बाद सरकार की नींद टूटी है और वह इनकी संख्या बढ़ाने के विभिन्न उपायों पर काम कर रही है.
संरक्षण के प्रयास
इस साल के पर्यावरण दिवस की थीम “गो वाइल्ड फॉर लाइफ” यानी जिंदगी के लिए जंगलों की ओर चलें, को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार ने गिद्धों को जीवन देने की कोशिश की. सरकार ने इस अवसर पर हरियाणा के पिंजौर में गिद्ध पुनपर्रिचय कार्यक्रम को शुरू कर पर्यावरण दिवस मनाया. पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावडेकर ने गिद्धों को स्वच्छ भारत अभियान के सबसे बड़ा स्वयंसेवक बताते हुए इनके संरक्षण के लिए सभी ज़रूरी कदम उठाने का भरोसा दिलाया है. उन्होंने कहा कि उनका मंत्रालय आगामी सालों में गिद्धों की संख्या बढ़ाने की दिशा में काम करेगा.
इस अवसर पर पिंजौर के गिद्ध संरक्षण प्रजनन केंद्र में पले बढ़े दो गिद्धों को मुक्त विचरण के लिए आजाद कर दिया गया. इन गिद्धों की पहचान बनाये रखने के लिए इनके पैरों में छल्ला डाला गया है. ऐसी उम्मीद की जा रही है कि ये आज़ाद किये गए गिद्ध जंगलों में बेहतर तरीके से प्रजनन बढ़ाने में सहायक होंगे. आगे और गिद्धों को जंगलों में छोड़ा जायेगा. गिद्धों की प्रजाति को अगले दस वर्ष में दोबारा 4 करोड़ के आंकड़े तक पहुंचाने का प्रयास किया जा रहा है. बॉम्बे नैचरल हिस्ट्री सेंटर और अन्य एनजीओ भी सरकार के इस काम में सहयोग कर रहे हैं.
डाइक्लोफेनेक है मौत की मुख्य वजह
गिद्धों की मौत का मुख्य कारण पशुओं को दी जाने वाली दर्द निवारक दवा डाइक्लोफेनेक है. पशुओं के उपचार में डाइक्लोफेनेक दवाई के इस्तेमाल पर यूं तो प्रतिबंध लगा हुआ है, लेकिन आज भी मवेशियों के उपचार के लिए इसका उपयोग जारी है. इस दवा से उपचारित पशु के शव भक्षण से गिद्धों के शरीर में यूरिक एसिड की मात्रा बढ़ने लगती है. जो बाद में उनकी किडनी पर असर डालती है. जानकारों के अनुसार डाइक्लोफेनेक की वजह से ही देश भर से 99 फीसदी गिद्ध विलुप्त हो चुके हैं.
बादशाह है गिद्ध, देखें तस्वीरें
उड़ान के बादशाह गिद्ध
अपनी खुराक के लिए मृत जीवों पर निर्भर रहने वाले गिद्ध दूसरे पक्षियों से कई तरह से अलग होते हैं. एक नजर इनकी खूबियों पर...
तस्वीर: Fotolia/hornyteks
गिद्हों में सूंघने और देखने की क्षमता प्रबल होती है. इसी के सहरे वे दूरी और ऊंचाई के बावजूद अपने लिए भोजन तलाश लेते हैं. इनकी उड़ान आमतौर पर दूर तक होती है ताकि वे अपने अगले समय का भोजन ढूंढ सकें.
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गिद्धों के पंख बेहद मजबूत होते हैं. ये लंबी उड़ान के बावजूद आसानी से नहीं थकते. शिकार देखते ही ये तेजी से उस तक पहुंच जाते हैं, इससे पहले कि कोई और परजीवी उनके खाने पर कब्जा कर ले.
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गिद्हों के सिर और गर्दन पर बाल नहीं होते. इसकी वजह यह है कि वे मरे हुए जीवों को खाते हैं. बाल न होने की वजह से बैक्टीरिया और अन्य सूक्ष्म जीव उनके पंखों पर बैठ नहीं पाते. इसीलिए वे आसानी से बीमार नहीं पड़ते.
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गिद्धों के पैर उनके पंखों के मुकाबले कमजोर होते हैं, जबकि उनकी चोंच काफी शक्तिशाली होती है. लेकिन अगर भोजन को चीरने फाड़ने में उन्हें दिक्कत होती है तो वे अन्य जीवों का इंतजार करते हैं. यही कारण है कि वे अक्सर दूसरे पशुओं के साथ भोजन बांटते दिखाई देते हैं.
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'किंग वल्चर' नाम से जाना जाने वाला यह गिद्ध देखने में सुंदर होता है. तमाम रंगों से सजे ये गिद्ध दूसरों से अलग दिखते हैं. इनका शरीर सफेद और दुम काली होती है जबकि पीला, नारंगी और लाल रंग इनकी गर्दन और सिर को खूबसूरती देता है. ये मेक्सिको से अर्जेंटीना तक के इलाकों में पाए जाते हैं.
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पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावडेकर का कहना है, ‘गिद्धों ने जब से डाइक्लोफेनेक कीटनाशक से युक्त कंकालों को खाना शुरू किया है, उनकी संख्या कम होती जा रही है. देश में पहले 4 करोड़ गिद्ध थे और अब सिर्फ 4 लाख बचे हैं.' डाइक्लोफेनेक पर प्रतिबन्ध के बाद कुछ समय कीटोप्रोफेन का प्रयोग किया जाने लगा पर वह भी गिद्धों के लिए अनुकूल नहीं पायी गयी. इसके अलावा दूधारू जानवरों में दूध की मात्रा को बढ़ाने के लिए ऑक्सीटोसिन इंजेंक्शन दिए जाते हैं. ऑक्सीटोसिन भी गिद्धों के लिए जानलेवा साबित होता है.
पारिस्थितिकी तंत्र में असंतुलन का खतरा
गिद्ध पर्यावरण के प्राकृतिक सफाईकर्मी पक्षी होते हैं जो विशाल जीवों के शवों का भक्षण कर पर्यावरण को साथ-सुथरा रखने का कार्य करते हैं. पर्यावरण के संतुलन में इनकी बड़ी ही महत्वपूर्ण भूमिका है. गिद्धों की पर्याप्त मौजूदगी से मृत पशुओं से फैलने वाली बीमारी का उतना खतरा नहीं रहता था क्योंकि गिद्ध बड़ी ही सफाई से चट कर जाया करते थे लेकिन अब यह शव सड़कर बीमारियों के वाहक बनने लगे हैं. इन गिद्धों के कम होने से भोजन श्रृंखला की एक कड़ी समाप्ति के कगार पर पहुंच गयी है.
हरियाणा के मुख्यमंत्री श्री मनोहर लाल खट्टर का कहना है कि मानव की गलतियों के कारण आज वन्य प्राणियों की कई प्रजातियां लुप्त होने के कगार पर हैं जिसके कारण प्राकृतिक असंतुलन पैदा हो गया है. मनोहर लाल खट्टर की तरह जानकार भी मानते हैं कि गिद्धों को बचाने के उचित प्रयास नहीं किए गए तो वातावरण में प्रदूषण बहुत अधिक बढ़ जाएगा.
रिपोर्ट: विश्वरत्न श्रीवास्तव
2015: खत्म होती प्रजातियां
यह साल अब तक का सबसे गर्म साल रहा. सिर्फ इंसानों की ही मुश्किल नहीं रही, पर्यावरण संरक्षण संस्था डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के अनुसार हाथियों और गैंडों की हालत खराब रही, लेकिन चीते की एक दुर्लभ किस्म से खत्म होने का खतरा टल गया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/B. Roessler
लुप्त होने का खतरा
पर्यावरण संरक्षकों का मानना है कि दुनिया में जीव-जंतुओं और पौधों की प्रजातियां लगातार कम होती जा रही है. डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के अनुसार नए साल के आगमन पर करीब 23,000 प्रजातियां लुप्त होने के खतरे में हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/C. Puebla
लंबी रेड लिस्ट
इससे पहले इतनी प्रजातियां खतरे में पड़ी प्रजातियों की लाल सूची में नहीं थीं. डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के एबरहार्ड ब्रांडेस के अनुसार, ”पशु-पक्षी और पौधे, यहां तक कि सारा इकोसिस्टम गायब हो रहा है, जबकि हर एक बेमिसाल है.”
तस्वीर: Colourbox/Achim Prill
बेशर्म दोहन
और इस बदहाली की वजह पर्यावरण संगठन के अनुसार जानवरों का अंधाधुंध शिकार, जंगलों की बेशर्म कटाई, संसाधनों का लोभ और जलवायु परिवर्तन है. अफ्रीका में शिकारियों ने हाथियों और गैंडों की शामत कर दी.
तस्वीर: imago/Xinhua Afrika
खाने की सजा
डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के अनुसार मॉरीशस में मास्कारेन चमगादड़ों की जान पर आ बनी है. अधिकारियों ने देश में फलों की खेती को चमगादड़ों द्वारा पहुंचाए जा रहे भारी नुकसान के कारण उन्हें मारने के आदेश दिए हैं.
तस्वीर: Rainer Dückerhoff
चीलों की आफत
पर्यावरण संरक्षक अफ्रीकी चील की गिरती तादाद के पीछे अवैध शिकारियों का हाथ देख रहे हैं. 80 के दशक से उनकी संख्या आधी से ज्यादा कम हो गई है. उन्हें इसलिए मारा जा रहा है कि वे शिकारियों का पता बता देते हैं.
तस्वीर: Andre Botha
पौधों की तस्करी
कुछ पौधे भी अवैध व्यापार के शिकार है. डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के अनुसार एशिया के कुछ आर्किड पौधे तस्करी का लोकप्रिय सामान हैं. वीनस स्लिपर आर्किड की सभी 80 प्रजातियों को रेड लिस्ट में डाल दिया गया है.
तस्वीर: CC-BY/Mick Fournier
महामारी के शिकार
एक खतरनाक महामारी में कजाकिस्तान में 2015 में सारे सैगा हिरण मारे गए. साल के शुरू में वहां 85,000 एंटीलोप का विलोप हो गया. विशेषज्ञों का मानना है कि इसमें जलवायु और मौसम बदलने की भी भूमिका थी.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/dpaweb
उम्मीद की किरण
इनके विपरीत अत्यंत कम संख्या वाले पशुओं ने उम्मीद की किरणें दिखाई हैं. स्पेनी बनबिलाव की संख्या फिर से बढ़कर 300 हो गई. रूस में व्लादीवोस्टॉक में संरक्षित क्षेत्र बनाने के बाद आमुर चीतों की संख्या 70 हो गई है.
तस्वीर: Imago
बढ़ते पांडा
पांडा भालू के मामले में स्थिति बेहतर हो रही है. डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के अनुसार संरक्षण के उपायों के बाद पिछले साल उनकी संख्या फिर से बढी है और अब बढ़कर 1860 से ज्यादा हो गई है.
तस्वीर: San Diego Zoo/M. Martin-Wintle
विजेता भेड़िया
भेड़िया इस साल का विजेता घोषित हुआ है. जर्मनी के जंगलों में वह फिर से बसेरा बनाने लगा है. इस बीच भेड़ियों के 30 से ज्यादा झुंड जर्मनी के जंगलों में घूम रहे हैं. कुछ इलाकों से पशुपालकों के साथ संघर्ष की खबरें भी हैं.