म्यांमार ने कहा, कुछ सैनिकों ने अपराध किए, सेना ने नहीं
२१ जनवरी २०२०
म्यांमार सरकार की तरफ से नियुक्त पैनल इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि संभवतः उसके कुछ सैनिकों ने रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ युद्ध अपराध किए लेकिन सेना नरसंहार की दोषी नहीं है. अधिकार समूह ने इस निष्कर्ष की निंदा की है.
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एक "स्वतंत्र जांच आयोग" (आईसीओई) ने सोमवार को जांच के नतीजे पेश किए. यह रिपोर्ट उस समय में जारी हुई जब गुरुवार को संयुक्त राष्ट्र की अंतरराष्ट्रीय अदालत फैसला सुना सकती है कि म्यांमार में कथित नरसंहार को रोकने के लिए तत्काल उपाय लागू किया जाएं या नहीं.
जांच पैनल ने स्वीकारा कि कुछ सुरक्षाकर्मियों ने अनुचित बल प्रयोग किया, युद्ध अपराध को अंजाम दिए और मानवाधिकारों का गंभीर उल्लंघन किया था, जिसमें "निर्दोष ग्रामीणों की हत्या और उनके घरों को नष्ट करना" शामिल था. लेकिन पैनल के मुताबिक ये अपराधों को नरसंहार नहीं कहा जा सकता.
जांच आयोग का कहना है, "तर्क करने के लिए सबूत नाकाफी हैं, बहुत कम निष्कर्ष निकलता है कि अपराध पूरे या आंशिक रूप से एक राष्ट्रीय, जातीय, नस्लीय या धार्मिक समूह को नष्ट करने के इरादे से किए गए थे." म्यांमार में अगस्त 2017 में सेना की कार्रवाइयों के बाद 7.4 लाख रोहिंग्या मुसलमान बांग्लादेश भागकर शरणार्थी शिविरों में रह रहे हैं. म्यांमार की सरकार पर रोहिंग्या लोगों का पूरी तरह सफाया करने के आरोप लगते आए हैं.
बौद्ध बहुसंख्यक म्यांमार हमेशा से सेना कार्रवाई को उचित ठहराता आया है. उसका कहना है कि सेना ने सिर्फ जिहादी तत्वों के खिलाफ कार्रवाई की जो देश की सुरक्षा के लिए चुनौती बन रहे थे. लेकिन शरणार्थियों ने बड़े पैमाने पर हत्या, बलात्कार और यातनाएं झेली हैं जिसके कारण वे म्यांमार लौटने से इनकार करते आए हैं.
यह जांच रिपोर्ट म्यांमार की अब तक की सबसे बड़ी जांच है, जिसमें अब तक हुए अत्याचारों को स्वीकार किया गया है. लेकिन म्यांमार के रोहिंग्या संगठन यूके (बीआरओयूके) ने जांच के नतीजों को सिरे से खारिज कर दिया है. उसके मुताबिक यह "प्रचार का तरीका है", जो अंतरराष्ट्रीय अदालत के फैसले से ध्यान भटकाने के लिए किया जा रहा है. बीआरओयूके की प्रवक्ता तुन खिन के मुताबिक, "रखाइन प्रांत में सुरक्षा बलों द्वारा मानवाधिकारों के हनन के गंभीर मामले की जांच खामियों से भरी हैं, जिसके जरिए सुरक्षा बलों की क्रूर हिंसा पर लीपापोती की कोशिश है."
ह्यूमन राइट्स वॉच के फिल रॉबर्टसन के मुताबिक रिपोर्ट मिलिट्री कमांड की जिम्मेदारी तय करने की बजाय सिर्फ कुछ सुरक्षाकर्मियों को बलि का बकरा बनाने की कोशिश कर रही है. उनके मुताबिक, "आईसीओई की जांच, इसकी कार्यप्रणाली और संचालन पारदर्शिता से बहुत दूर है." पिछले साल म्यांमार की नेता आंग सान सू ची हेग की अंतरराष्ट्रीय अदालत में पेश हो चुकी हैं. मुस्लिम बहुल अफ्रीकी देश गांबिया ने म्यांमार के खिलाफ मुकदमा दायर किया है. गांबिया ने म्यांमार पर 1949 की नरसंहार संधि का उल्लंघन करने का आरोप लगाया है.
एए/एके (एएफपी)
कौन हैं रोहिंग्या मुसलमान
म्यांमार के पश्चिमी रखाइन प्रांत में रोहिंग्या मुसलमानों की आबादी लगभग दस लाख है. लेकिन उनकी जिंदगी प्रताड़ना, भेदभाव, बेबसी और मुफलिसी से ज्यादा कुछ नहीं है. आइए जानते हैं, कौन हैं रोहिंग्या लोग.
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इनका कोई देश नहीं
रोहिंग्या लोगों का कोई देश नहीं है. यानी उनके पास किसी देश की नागरिकता नहीं है. रहते वो म्यामांर में हैं, लेकिन वह उन्हें सिर्फ गैरकानूनी बांग्लादेशी प्रवासी मानता है.
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सबसे प्रताड़ित लोग
म्यांमार के बहुसंख्यक बौद्ध लोगों और सुरक्षा बलों पर अक्सर रोहिंग्या मुसलमानों को प्रताड़ित करने के आरोप लगते हैं. इन लोगों के पास कोई अधिकार नहीं हैं. संयुक्त राष्ट्र उन्हें दुनिया का सबसे प्रताड़ित जातीय समूह मानता है.
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आने जाने पर भी रोक
ये लोग न तो अपनी मर्जी से एक स्थान से दूसरे स्थान पर जा सकते हैं और न ही अपनी मर्जी काम कर सकते हैं. जिस जगह वे रहते हैं, उसे कभी खाली करने को कह दिया जाता है. म्यांमार में इन लोगों की कहीं सुनवाई नहीं है.
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बंगाली
ये लोग दशकों से रखाइन प्रांत में रह रहे हैं, लेकिन वहां के बौद्ध लोग इन्हें "बंगाली" कह कर दुत्कारते हैं. ये लोग जो बोली बोलते हैं, वैसी दक्षिणपूर्व बांग्लादेश के चटगांव में बोली जाती है. रोहिंग्या लोग सुन्नी मुसलमान हैं.
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जोखिम भरा सफर
संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि 2012 में धार्मिक हिंसा का चक्र शुरू होने के बाद से लगभग एक लाख बीस हजार रोहिंग्या लोगों ने रखाइन छोड़ दिया है. इनमें से कई लोग समंदर में नौका डूबने से मारे गए हैं.
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सामूहिक कब्रें
मलेशिया और थाइलैंड की सीमा के नजदीक रोहिंग्या लोगों की कई सामूहिक कब्रें मिली हैं. 2015 में जब कुछ सख्ती की गई तो नावों पर सवार हजारों रोहिंग्या कई दिनों तक समंदर में फंसे रहे.
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इंसानी तस्करी
रोहिंग्या लोगों की मजबूरी का फायदा इंसानों की तस्करी करने वाले खूब उठाते हैं. ये लोग अपना सबकुछ इन्हें सौंप कर किसी सुरक्षित जगह के लिए अपनी जिंदगी जोखिम में डालने को मजबूर होते हैं.
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बांग्लादेश में आसरा
म्यांमार से लगने वाले बांग्लादेश में लगभग आठ लाख रोहिंग्या लोग रहते हैं. इनमें से ज्यादातर ऐसे हैं जो म्यांमार से जान बचाकर वहां पहुंचे हैं. बांग्लादेश में हाल में रोहिंग्याओं को एक द्वीप पर बसाने की योजना बनाई है.
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आसान नहीं शरण
बांग्लादेश कुछ ही रोहिंग्या लोगों को शरणार्थी के तौर पर मान्यता देता है. वो नाव के जरिए बांग्लादेश में घुसने की कोशिश करने वाले बहुत से रोहिंग्या लोगों को लौटा देता है.
तस्वीर: Reuters
दर ब दर
बाग्लादेश के अलावा रोहिंग्या लोग भारत, थाईलैंड, मलेशिया और चीन जैसे देशों का भी रुख कर रहे हैं.
तस्वीर: DW/C. Kapoor
सुरक्षा के लिए खतरा
म्यांमार में हुए हालिया कई हमलों में रोहिंग्या लोगों को शामिल बताया गया है. उनके खिलाफ होने वाली कार्रवाई के जवाब में सुरक्षा बलों का कहना है कि वो इस तरह के हमलों को रोकना चाहते हैं.
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मानवाधिकार समूहों की अपील
मानवाधिकार समूह म्यांमार से अपील करते हैं कि वो रोहिंग्या लोगों को नागरिकता दे और उनका दमन रोका जाए.
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कानूनी अड़चन
म्यांमार में रोहिंग्या लोगों को एक जातीय समूह के तौर पर मान्यता नहीं है. इसकी एक वजह 1982 का वो कानून भी है जिसके अनुसार नागरिकता पाने के लिए किसी भी जातीय समूह को यह साबित करना है कि वो 1823 के पहले से म्यांमार में रह रहा है.
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आलोचना
रोहिंग्या लोगों की समस्या पर लगभग खामोश रहने के लिए म्यांमार में सत्ताधारी पार्टी की नेता आंग सान सू ची की अक्सर आलोचना होती है. माना जाता है कि वो इस मुद्दे पर ताकतवर सेना से नहीं टकराना चाहती हैं. सू ची हेग को अंतरराष्ट्रीय अदालत में रोहिंग्या मुसलमानों के नरसंहार से जुड़े आरोपों का सामना करने के लिए जाना पड़ा है.