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यूक्रेन युद्ध के चलते गुजरात के हीरा कारोबार का ऐसा हाल

मुरली कृष्णन
२७ जनवरी २०२३

गुजरात में जिन हीरों की कटिंग और पॉलिशिंग होती हैं, उनकी सबसे बड़ी खेप रूस से आती है. यूक्रेन युद्ध के बाद से यह सप्लाई बाधित हो गई है.

Israel Indien l Diamantenhandel l Pravin Kukadia, Director of Eminent Gems LTD
इस युद्ध के बीच भारत सरकार रुपये में लेनदेन को बढ़ावा देना चाहती थी, लेकिन अभी कोई बड़ी डील नहीं हुई है.तस्वीर: Jack Guez/AFP

41 साल के महेश पटेल पिछले दो दशक से गुजरात के सूरत में अलग-अलग कंपनियों के लिए हीरे की कटाई और पॉलिश का काम करते हैं. सूरत को हीरे की पॉलिशिंग के लिए दुनिया के सबसे बड़े केंद्रों में गिना जाता है.

सूरत के महिधरपुरा क्षेत्र के भीड़-भाड़ वाले बाजारों में काम करने के दौरान उनके वर्षों के अनुभव और उनकी पारखी नजर की वजह से उन्होंने अच्छी आमदनी की.

लेकिन रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध की वजह से पटेल और उनके हजारों साथी या तो बेरोजगार हो गए हैं या फिर उन्हें कुछ ही घंटों का काम मिल पा रहा है. स्थानीय हीरा उद्योग को ज्यादातर हीरे रूस से प्राप्त होते हैं और जैसे-जैसे इनकी उपलब्धता घट रही है, हीरा कारखानों के सामने संकट गहराता जा रहा है.

DW से बातचीत में पटेल कहते हैं, "हीरों की आपूर्ति घटने के कारण कई फैक्ट्री मालिकों ने कर्मचारियों की छंटनी की है. हमें कड़ी टक्कर मिल रही है और काम मिलना मुश्किल हो गया है. छोटी हीरा ईकाइयां बंद हो गई हैं."

न तो पर्याप्त हीरे हैं और न पर्याप्त काम

हाल के महीनों में हीरे के बाजारों में शांति छाई हुई है. उद्योग जगत के अनुमानों के अनुसार सूरत में हीरे चमकाने वाली यानी पॉलिश करने वाली करीब छह हजार ईकाइयां हैं, जो पांच लाख से अधिक श्रमिकों को रोजगार देती हैं. साथ ही, ये ईकाइयां सालाना करीब 21-24 अरब अमेरिकी डॉलर तक का कारोबार भी करती हैं. लेकिन, सूरत डायमंड वर्कर्स यूनियन का एक मोटा अनुमान कहता है कि करीब दस हजार हीरा श्रमिकों को हाल के दिनों में अपनी नौकरी गंवानी पड़ी है.

भारत का हीरा कटाई और पॉलिशिंग उद्योग दुनिया में सबसे बड़ा है.तस्वीर: Jack Guez/AFP

सूरत के एक अनुभवी हीरा व्यापारी चंदर भाई सूता ने DW को बताया, "पर्याप्त हीरे नहीं हैं, इसलिए पर्याप्त काम भी नहीं है." वहीं हीरा व्यापारी परेश शाह कहते हैं, "हीरों की सही कीमत भी नहीं मिल रही है."

वह कहते हैं, "कोई नहीं जानता कि यह स्थिति कब और कैसे सुधरेगी. हालांकि, उत्पादन लागत में वृद्धि हुई है. कई ईकाइयां घाटे का सामना करने के बावजूद किसी तरह खुद को बनाए रखने में सफल रही हैं."

रूस का अलरोसा एक हीरा-खनन व्यवसाय है, जो आंशिक रूप से रूसी राज्य के स्वामित्व में है. वैश्विक स्तर पर कच्चे हीरे की लगभग 30 फीसदी आपूर्ति यही करता है. यह भारत के लिए एक महत्वपूर्ण स्रोत है, जो दुनियाभर में 80-90 फीसदी कच्चे हीरे का आयात करता है और फिर उसकी कटिंग और पॉलिश करता है. ऐसा माना जाता है कि भारत को अपना 60 फीसदी कच्चा माल अलरोसा से प्राप्त होता है.

यूक्रेन में युद्ध के दौरान पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों ने कच्चे हीरे की आपूर्ति को बाधित कर दिया और भारत के सूरत शहर में यह फैल गया. संयुक्त राज्य अमेरिका भारत में संसाधित यानी पॉलिश किए गए हीरों का सबसे बड़ा बाजार है, लेकिन कई बड़ी अमेरिकी कंपनियां अब रूसी मूल के सामान को खरीदने से इनकार कर रही हैं.

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भारत के 'वोस्त्रो' खाते प्रतिबंधों को दरकिनार करने के लिए नाकाफी

रत्न एवं आभूषण निर्यात संवर्धन परिषद के चेयरमैन विपुल शाह कहते हैं कि इस समय हीरा उद्योग चुनौती का सामना कर रहा है. DW से बातचीत में वह कहते हैं, "प्रतिबंधों के कारण हीरों की मात्रा में तीस फीसद से ज्यादा की गिरावट देखी गई है और निर्यात की मात्रा में 35 फीसद की कमी आई है. निश्चित तौर पर पिछले कुछ महीनों में मंदी आई है, लेकिन हमें उम्मीद है कि चीजें बेहतर होंगी."

हीरे की आपूर्ति करने वालों का कहना है कि प्रतिबंधों ने रूस के केंद्रीय बैंक और दो प्रमुख बैंकों को वैश्विक स्विफ्ट भुगतान प्रणाली से हटा दिया है. पिछले साल नवंबर में भारत ने रूस के साथ रुपये में व्यापार की सुविधा के लिए नौ बैंकों को "वोस्ट्रो" खाते खोलने की मंजूरी दी थी. वोस्ट्रो खाते वे होते हैं, जो एक बैंक द्वारा दूसरे बैंक की ओर से खोले गए होते हैं. रुपये में व्यापार करने के पीछे विचार यह था कि इससे रूस के खिलाफ पश्चिमी प्रतिबंधों के असर को दूर किया जा सके.

हालांकि, इस कदम से समस्या हल नहीं हुई. भारत रुपये में व्यापार को बढ़ावा देना चाहता है, लेकिन अब भी उसे अपनी घरेलू मुद्रा में किसी बड़े अंतरराष्ट्रीय व्यापार सौदे का इंतजार है.

शाह कहते हैं, "व्यापार निपटान मुश्किल हो गया है और इससे आपूर्ति बाधित हुई है. कई कंपनियां वोस्ट्रो खातों का उपयोग नहीं कर रही हैं."

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विकल्प के तौर पर प्रयोगशाला में विकसित हीरे

हीरा व्यापारियों को अब इन मुश्किलों का एहसास हो रहा है कि वे रूस से हीरों की आपूर्ति घटने की भरपाई कैसे करें. तैयार उत्पाद की कीमतें भी बढ़ रही हैं. उद्योग के अंदरूनी सूत्र बताते हैं कि उच्च गुणवत्ता वाले पॉलिश किए गए हीरों के लिए अंतरराष्ट्रीय दर यूक्रेन पर आक्रमण से पहले की तुलना में 20-30 फीसद ज्यादा है.

DW से बातचीत में आभूषण जगत के प्रमुख उद्योगपति और KGK ग्रुप के वाइस चेयरमैन संजय कोठारी कहते हैं,"निश्चित रूप से व्यवधान है और मैं देख रहा हूं कि चीजें इस साल की दूसरी छमाही में स्थिर हो सकती हैं. कच्चे माल की कमी ने कुछ कंपनियों को प्रयोगशाला में विकसित हीरों की ओर प्रेरित किया है."

प्रयोगशाला में विकसित हीरे हर तरह से खनन किए गए हीरों के समान ही होते हैं. बस वे मूल रूप से हीरे नहीं होते. उनके पास वही रासायनिक, भौतिक और प्रकाशीय गुण होते हैं, जो खनन किए गए हीरों में होते हैं. प्रयोगशाला में विकसित हीरों में भी वैसी ही आग और चमक होती है. हालांकि, उद्योग जगत का मानना है कि अगर अलरोसा पर अमेरिकी प्रतिबंध जारी रहे, तो लैब में बने हीरे तत्काल उनकी जगह नहीं ले सकते.

गुजरात में ज्यादातर संसाधित हीरे रूसी मूल के हैं, जबकि कुछ हीरा ईकाइयों ने अफ्रीकी देशों से कच्चा माल खरीदना शुरू कर दिया है. लेकिन, इन देशों से आने वाले कच्चे माल की कीमत कहीं ज्यादा है. रेटिंग एजेंसी क्रिसिल के अनुसार चल रहे विवाद के कारण कच्चे हीरों की कीमतों में भी वृद्धि होने की संभावना है, जो इस वित्तीय वर्ष में 10 से 12 फीसद तक हो सकती है.

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