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समाज

दक्षिण कोरिया की लड़कियों में छिपे कैमरों का खौफ

१६ जून २०२१

डिजीटल सेक्स अपराध अब दक्षिण कोरिया में इतना व्यापक हो गया है कि इसका डर महिलाओं और लड़कियों के जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित कर रहा है.

तस्वीर: Fotolia/OleGunnar

मानवाधिकार संस्था ह्यूमन राइट्स वॉच (एचआरडब्ल्यू) का कहना है कि दक्षिण कोरिया वैश्विक खुफिया कैमरे का केंद्र बन गया है. छोटे और छिपे हुए कैमरे से पीड़ितों का नग्न या पेशाब करते वक्त वीडियो बनाया जा रहा है या फिर यौन संबंधों की रिकॉर्डिंग की जा रही है. अन्य मामले अंतरंग तस्वीरें बिना सहमति से लीक होने से जुड़े हैं या फिर यौन शोषण जैसे बलात्कार की वारदात कैमरे पर रिकॉर्ड कर उसे ऑनलाइन साझा किया गया है.

एचआरडब्ल्यू ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि पीड़ितों को तब ज्यादा सदमा लगता है जब उनका सामना पुलिस या अभियोजकों से होता है. और उनसे ही सबूत इकट्ठा करने और इंटरनेट की निगरानी करने को कहा जाता ताकि नई तस्वीरें सामने आने पर वे सूचित कर सकें. रिपोर्ट की लेखिका हीथर बर कहती हैं, "दक्षिण कोरिया में डिजीटल यौन अपराध इतने आम हो गए हैं कि वे महिलाओं और लड़कियों के जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित कर रहे हैं."

उन्होंने एक बयान में कहा, "महिलाओं और लड़कियों ने हमें बताया कि वे सार्वजनिक शौचालयों के इस्तेमाल करने से बचती हैं. यहां तक कि वे अपने घरों में छिपे हुए कैमरे को लेकर चिंता महसूस करती हैं. डिजीटल सेक्स की पीड़ितों की एक खतरनाक संख्या ने बताया कि उन्होंने आत्महत्या का विचार किया था."

38 साक्षात्कारों और एक ऑनलाइन सर्वेक्षण पर आधारित रिपोर्ट कहती है कि डिजीटल यौन अपराध के मामले 2017 की तुलना में 2018 में 11 गुना बढ़े. डिजीटल सेक्स अपराध के आंकड़े कोरिया के अपराध विभाग से जुटाए गए थे. दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून जे इन ने यौन अपराध की बढ़ती संख्यों के दावों, जिसमें हाल ही में सेना के सदस्यों पर भी आरोप लगे हैं, कि जांच के लिए पुलिस को आदेश दिए हैं.

पिछले साल, पुलिस ने प्रलोभन देने वाले एक ऑनलाइन नेटवर्क को भंडाफोड़ किया था जो दर्जनों महिलाओं और कम उम्र की लड़कियों को ब्लैकमेल कर तस्वीरें मंगाता था. अधिकारियों का कहना था कि नेटवर्क लड़कियों से अपने बारे में हिंसक यौन कल्पना कर खुद से तस्वीरें निकालकर भेजने को कहता.

एचआरडब्ल्यू का कहना है कि सरकार को कानून को मजबूत करते हुए दोषियों को सख्त देनी चाहिए. पुलिस, अभियोजकों और जजों में महिलाओं की भागीदारी भी बढ़ाई जानी चाहिए.

एए/वीके (रॉयटर्स)

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