2025 तक पाकिस्तान में नहीं बचेगा पानी?
८ फ़रवरी २०१७पाकिस्तान के लिए आज सबसे बड़ा खतरा आतंकवाद नहीं, बल्कि पानी की कमी है. आतंकवाद की दुनिया भर में चर्चा होती है, लेकिन पानी ऐसा मुद्दा है जिसकी राष्ट्रीय या फिर अंतरराष्ट्रीय मीडिया में शायद ही कभी बात होती हो. नीति निर्माताओं को भी इसकी चिंता नजर नहीं आती. लेकिन संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) की एक हालिया रिपोर्ट में पाकिस्तान में पसरते गंभीर जल संकट की तरफ ध्यान दिलाया गया है.
पाकिस्तान में बिजली और जल विकास प्राधिकरण के पूर्व अध्यक्ष शमसुल मुल्क कहते हैं कि पाकिस्तान में पानी को लेकर तो कोई नीति ही नहीं है. उनकी राय में, "पाकिस्तान में पानी जमींदारों की जागीर बन गया है और आम लोगों को उससे महरूम रखा जा रहा है." वह बताते हैं कि पाकिस्तान में जल और बिजली मंत्रालय के आग्रह पर एक रिपोर्ट का मसौदा तैयार किया गया था, लेकिन कैबिनेट ने कभी इसकी समीक्षा ही नहीं की.
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पिछले साल पाकिस्तान काउंसिल ऑफ रिसर्च इन वॉटर रिसोर्स (पीसीआरडब्ल्यूआर) ने चेतावनी दी थी कि अगर सरकार ने तत्काल कोई कार्ययोजना तैयार नहीं की तो पाकिस्तान में 2025 तक सूखा होगा. रिपोर्ट का कहना है कि पाकिस्तान ने पानी के लिहाज 1990 में ही "जल तनाव रेखा" को छू लिया और 2005 में वह "जल आभाव रेखा" को पार कर गया.
पीसीआरडब्ल्यूआर का कहना है कि अगर यही हालात रहे तो पाकिस्तान को निकट भविष्य में पानी की गंभीर किल्लत या फिर सूखे जैसे हालात का सामना करना पड़ सकता है. विशेषज्ञ इरफान चौधरी कहते हैं कि सरकार में इस समस्या से निपटने के लिए इच्छा शक्ति नजर नहीं आती. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "पाकिस्तान में पानी के भंडारण की कोई उचित व्यवस्था नहीं है. यहां 1960 के दशक से कोई नया बांध नहीं बना है. हमें इस मुद्दे पर सिर्फ राजनीतिक तू-तू मैं-मैं सुनाई पड़ती है. लेकिन अधिकारियों को कदम उठाने पड़ेंगे. हम सिर्फ 30 दिन के लिए पर्याप्त पानी का ही भंडारण कर सकते हैं, यह बहुत चिंता की बात है."
वॉशिंगटन स्थित वूड्रो विल्सन सेंटर में दक्षिण एशिया मामलों के विशेषज्ञ मिशाएल कूगेलमन कहते हैं, "पाकिस्तान जल संकट की दहलीज की तरफ बढ़ रहा है. चिंता की बात यह है कि भूमिगत जल भी तेजी से खत्म हो रहा है. और सबसे बड़ी चिंता इस बात को लेकर है सरकार और अधिकारियों की तरफ से ऐसा कोई संकेत नहीं मिलता कि वे इस समस्या को हल करने की योजना बना रहे हैं."
पाकिस्तान अकसर अपने यहां पानी की किल्लत के लिए भारत को जिम्मेदार ठहराता है. उसका कहना है कि भारत 1960 के दशक में विश्व बैंक की मध्यस्थता से हुई सिंधु जल संधि के मुताबिक अपनी जिम्मेदारियां पूरी नहीं कर रहा है. पाकिस्तान भारत में नए बांधों के निर्माण पर भी अपनी चिंताएं जताता रहा है.
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हाल में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने बांधों से जुड़े मुद्दे को विश्व बैंक के सामने उठाया था. उन्होंने कहा कि विश्व बैंक को भारत और पाकिस्तान के बीच जल विवाद को सुझलाने में अहम भूमिका अदा करनी चाहिए. लेकिन यूएनडीपी और अंतरराष्ट्रीय बिरादरी की राय में पाकिस्तान अपनी जिम्मेदारी से बच रहा है.
कूगेलमन कहते हैं, "सबसे पहले पाकिस्तानी सरकार और अधिकारियों को मानना पड़ेगा कि यह उनकी समस्या है और इसे हल करने के लिए उन्हें ही कदम उठाने होंगे. इस संकट के लिए पिछली सरकारों या फिर भारत को जिम्मेदार ठहराने से कुछ हासिल नहीं होगा. पाकिस्तान सरकार ऐसे बड़े बदलावों के लिए कदम उठाने होंगे ताकि पानी का इस्तेमाल किफायत से हो."
कूगेलमन कहते हैं, "कुछ लोगों की राय में परमाणु हथियारों की सुरक्षा या फिर इस्लामी चरमपंथी पाकिस्तान के लिए सबसे बड़ी समस्या हो सकते हैं. लेकिन मेरी राय में पानी की किल्लत पाकिस्तान के लिए सबसे बड़ा द्स्वप्न है क्योंकि पाकिस्तान में यह संकट बिल्कुल सामने खड़ा है."