पश्चिम बंगाल में आमने-सामने टीएमसी और बीजेपी
२६ मार्च २०२१राज्य की 294 विधानसभा सीटों के लिए आठ चरणों में चुनाव होने हैं. पहले चरण में शनिवार को जंगलमहल इलाके की 30 सीटों पर मतदान होना है. यह सीटें इस लिहाज से काफी अहम हैं कि वर्ष 2016 में बीजेपी को इनमें से एक सीट भी नहीं मिली थी. यहां 27 सीटों पर टीएमसी जीती थी, दो पर कांग्रेस और एक पर लेफ्ट की सहयोगी आरएसपी. पहले दौर के मतदान से बाकी सात चरणों की दशा-दिशा तो तय होगी ही, भावी राजनीति की तस्वीर भी कुछ हद तक साफ होने की उम्मीद है. पांच जिलों की इन तीस सीटों पर मतदान के लिए केंद्रीय बलों की 659 कपनियां तैनात की गई हैं.
बीजेपी ने विधानसभा चुनाव के एलान के पहले से ही पश्चिम बंगाल में अपनी पूरी ताकत झोंक रखी है. खासकर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह तो बीते नवंबर से ही लगातार राज्य का दौरा करते रहे हैं. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस महीने चार रैलियां कर चुके हैं. उनके अलावा अमित शाह, राजनाथ सिंह, जेपीनड्डा और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तक पार्टी के स्टार प्रचारकों की सूची काफी लंबी है. दूसरी ओर, ममता अकेले अपने बूते पर व्हीलचेयर के सहारे अब तक डेढ़ दर्जन से ज्यादा रैलियां कर चुकी हैं. पहले चरण में पूर्व और पश्चिम मेदिनीपुर के अलावा बांकुड़ा, पुरुलिया और झाड़ग्राम जिलों की 30 सीटों के लिए मतदान होना है. इस दौर में जिन सीटों पर मतदान होना है उनमें जंगल महल के नाम से कुख्यात रहे इलाके की 23 सीटें हैं. बाकी सात सीटें पूर्व मेदिनीपुर में हैं. इस चरण में पूर्व मेदिनीपुर की 16 में से सात, पश्चिम मेदिनीपुर की 15 में से छह और बांकुड़ा की 12 में से चार सीटों पर मतदान होगा जबकि पुरुलिया की सभी नौ और झाड़ग्राम की सभी चार सीटों पर इसी दौर में वोट डाले जाएंगे. फिलहाल इस दौर की 30 सीटों के लिए कुल 191 उम्मीदवार मैदान में हैं. इनमें 21 महिलाएं हैं.
पहले चरण की अहम सीटों में पुरुलिया के अलावा बांकुड़ा की छातना सीट और पश्चिम मेदिनीपुर जिले की खड़गपुर और पूर्व मेदिनीपुर की मेदिनीपुर सीट शामिल है. पुरुलिया और छातना की अहमियत इसलिए ज्यादा है कि वर्ष 2016 के चुनाव में यहां हार-जीत का फासला ढाई से पांच हजार वोटों का रहा था. तब पुरुलिया सीट कांग्रेस के सुदीप मुखर्जी ने जीती थी और छातना सीट पर लेफ्ट की सहयोगी आरएसपी का कब्जा रहा था. वर्ष 2016 में खड़गपुर सीट प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष ने जीती थी. लेकिन वर्ष 2019 में उनके लोकसभा चुनाव जीत कर सांसद बन जाने के बाद वहां हुए उपचुनाव में टीएमसी ने उस पर कब्जा कर लिया था. टीएमसी ने इस बार वहां उपचुनाव जीतने वाले उम्मीदवार दिनेन राय को ही मैदान में उतारा है. मेदिनीपुर सीट पर पूर्व विधायक मृगेंद्र नाथ माइती की बजाय अभिनेत्री जून मालिया के टीएमसी के टिकट पर मैदान में उतरने से मुकाबला दिलचस्प हो गया है.
आंकड़ों के लिहाज से देखें तो वर्ष 2016 में टीएमसी ने इन 30 सीटों में से 27 जीती थीं. तब कांग्रेस को दो और आरएसपी को एक सीट मिली थी. लेकिन इस बार समीकरण बदले हुए नजर आ रहे हैं. लोकसभा चुनाव में मिली कामयाबी के बाद अब बीजेपी की निगाहें इन सीटों पर हैं. पार्टी के चुनाव अभियान से यह अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है कि उसने इलाके की इन सीटों पर कितनी ताकत झोंकी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इलाके में तीन-तीन रैलियां कर चुके हैं जबकि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने खड़गपुर में रोड शो के अलावा कम से कम आठ रैलियों को संबोधित किया है. उनके अलावा बीजेपी प्रमुख जेपी नड्डा से लेकर राजनाथ सिंह और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तक इलाके में प्रचार कर चुके हैं. चुनाव प्रचार के आखिरी दिन तो अभिनेता मिथुन चक्रवर्ती ने भी इलाके में रोड शो किया है.
दूसरी ओर, नंदीग्राम में हुए हादसे में घायल होने के बावजूद टीएमसी अध्यक्ष और मुख्यमंत्री एक पांव पर प्लाटर के साथ व्हीलचेयर के सहारे डेढ़ दर्जन रैलियां कर चुकी हैं. इस चरण में सत्ता के दोनों दावेदारों यानी बीजेपी और टीएमसी ने अपनी पूरी ताकत एक-दूसरे को कठघरे में खड़ा करने में ही खर्च कर दी.. बीजेपी के तमाम नेता ममता बनर्जी सरकार पर भ्रष्टाचार औऱ भाई-भतीजावाद के आरोप लगाते रहे हैं. उनका दावा है कि दो मई को टीएमसी सरकार का सत्ता से जाना तय है. प्रधानमंत्री मोदी अपनी रैलियों में लगातार कहते रहे हैं कि बंगाल के लोगों ने असल परिवर्तन का मन बना लिया है. लेकिन दूसरी ओर, ममता बनर्जी बीजेपी पर बाहरी गुंडों को राज्य में भेजने और धर्म के आधार पर विभाजन को बढ़ावा देने के आरोप लगाती रही हैं. उन्होंने इस बार नारा दिया है कि खेला होबे यानी खेल होगा. पहले दौर का चुनाव अभियान मुख्य रूप से इसी नारे पर केंद्रित रहा है. बीजेपी ने भी उनके इस नारे के सहारे कहना शुरू किया है कि खेल नहीं होगा, अब दीदी का खेल खत्म होगा.
राजनीतिक हलकों में इस चुनाव को टीएमसी और बीजेपी के बीच सीधी टक्कर माना जा रहा है. लेकिन कांग्रेस और पीरजादा अब्बासी की पार्टी इंडियन सेक्यूलर फ्रंट (आईएसएप) के साथ मैदान में उतरे लेफ्ट का दावा है कि लोग टीएमसी और बीजेपी से आजिज आकर अब तीसरा विकल्प तलाश रहे हैं. इसलिए अबकी लोग इस गठबंधन को चुनेंगे. सीपीएम नेता सुजन चक्रवर्ती कहते हैं, "टीएमसी और बीजेपी साप्रदायिक राजनीति को बढ़ावा देने में जुटी हैं. बंगाल में बीजेपी की मजबूती के लिए ममता बनर्जी ही जिम्मेदार हैं. लेकिन लोग अब इन दोनों की असलियत जान गए हैं. इसलिए अबकी वे हमारा समर्थन करेंगे.”
टीएमसी ने अपने घोषणापत्र में छात्रों के लिए एक क्रेडिट कार्ड योजना शुरू करने के अलावा बांग्ला आवास योजना के तहत 25 लाख नए मकान बनवाने औऱ न्यूनतम आय योजना के तहत सामान्य वर्ग के परिवारों की महिला मुखिया को हर महीने पांच सौ और आदिवासी, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति परिवारो को मासिक एक हजार रुपए देने की बात कही है. दूसरी ओर, बीजेपी ने अपने घोषणापत्र में बीजेपी ने हर घर के एक सदस्य को नौकरी, सरकारी नौकरियों में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण और युवतियों को केजी से पीजी तक मुफ्त शिक्षा मुहैया कराने का वादा किया है. पार्टी ने सत्ता में आते ही राज्य में नागरिकता कानून (सीएए) लागू करने की भी बात कही है.
राजनीतिक विश्लेषक मइदुल इस्लाम कहते हैं, "पहले चरण के मतदान से पहले सत्ता के दावेदारों का जोर जनहित से जुड़े मुद्दों की बजाय एक-दूसरे की छीछालेदर करने पर ही रहा है. आम लोग चुपचाप यह तमाशा देख रहे हैं. ऐसे में फिलहाल कोई पूर्वानुमान लगाना मुश्किल है. लेकिन इस चुनाव में बीजेपी के पास खोने को कुछ नहीं है. इसलिए उसने जीत के लिए तमाम संसाधान यहां झोंक दिए हैं. फिलहाल पहले चरण में उसे फायदा होता नजर आ रहा है.” उनका कहना है कि प्रधानमंत्री का बांग्लादेश दौरा भी बंगाल के मतुआ समुदाय को साधने की कोशिश है. पार्टी ने खासकर मतुआ संप्रदाय को ध्यान में रखते हुए ही नागरिकता कानून लागू करने का वादा किया है. ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि इसका यहां चुनावों पर कितना और कैसा असर पड़ता है.