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यूरोपीय संघ की तरफ पश्चिमी बाल्कन देशों ने बढ़ाया कदम

२१ अक्टूबर २०२२

पश्चिमी बाल्कन देश एक साझा क्षेत्रीय बाजार बनाना चाहते हैं और यह यूरोपीय संघ की सदस्यता की ओर बढ़ने की दिशा में एक बड़ा कदम होगा. बर्लिन में बाल्कन देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक में बड़े समझौते पर सहमति बनी है.

बाल्कन देशों ने यूरोपीय संघ की तरफ बढ़ाया कदम
बर्लिन में बैठक के लिए जमा हुए बाल्कन देशों के विदेश मंत्री तस्वीर: Christoph Soeder/picture alliance/dpa

जर्मन विदेश मंत्री अनालेना बेयरबॉक ने यह जानकारी दी. पश्चिमी बाल्कन देशों के बीच नये समझौते के तहत इन देशों के लोग पासपोर्ट की बजाय महज अपने आइडेंटिटी कार्ड दिखा कर एक दूसरे देशों आ जा सकेंगे. ये देश यूनिवर्सिटियों की डिग्रियों को आपस में मान्यता देंगे. इसी साल 3 नवंबर को बर्लिन में एक सम्मेलन के दौरान बाल्कन देशों को प्रतिनिधि इस समझौते पर दस्तखत कर देंगे.

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जर्मन विदेश मंत्रालय की प्रेस कांफ्रेंस में बेयरबॉक ने कहा, "मैं इस बड़े मौके पर आप सबको बधाई देती हूं. आप लोग अपने नागरिकों की जिंदगी आसान बना रहे हैं और साथ ही पूरे क्षेत्र में व्यापार और आर्थिक विकास को बढ़ने में मदद दे रहे हैं." बेयरबॉक ने पश्चिमी बाल्कन देशों की सरकारों से मांग की है, "सारे जरूरी कदमों पर तेजी से अमल हो जिससे कि समझौते पर दस्तखत किये जा सकें." जर्मन विदेश मंत्री का कहना है कि इन देशों को यूरोपीय संघ का सदस्य बनवाना और वहां आर्थिक विकास को बढ़ावा देना जर्मनी की प्राथमिकता है.

बर्लिन में पश्चिमी बाल्कन देशों के विदेश मंत्रियों की बैठकतस्वीर: ODD ANDERSEN/AFP

पश्चिमी बाल्कन के देश

"बर्लिन प्रॉसेस" के नाम से बुलाई गई बैठक में कई और चीजों पर भी चर्चा हुई. यूक्रेन पर रूसी हमले के परिदृश्य में ऊर्जा सुरक्षा, साइबर सुरक्षा और साझा ग्रीन एजेंडा भी इसमें शामिल है. पश्चिमी बाल्कन देशों में अल्बानिया, बोस्निया हर्जगोविना, कोसोवो, उत्तरी मैसेडोनिया, मोंटेनेग्रो और सर्बिया शामिल हैं. बैठक में बुल्गारिया, ग्रीस, ऑस्ट्रिया, क्रोएशिया, स्लोवेनिया और चेक रिपब्लिक के विदेश मंत्री भी मौजूद थे.

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पश्चिमी बाल्कन देशों को 2003 में यूरोपीय संघ की सदस्यता का वादा किया गया था. इसके बाद हालांकि इस दिशा में कोई खास प्रगति नहीं हुई बल्कि यह मामला अटका ही रहा. "बर्लिन प्रॉसेस" को 2014 में तत्कालीन चांसलर अंगेला मैर्केल ने शुरू किया था. उसी वक्त इसकी पहली बैठक बर्लिन में हुई थी. "बर्लिन प्रॉसेस" काम मकसद पश्चिमी बाल्कन देशों को यूरोपीय संघ के साथ लाने की प्रक्रिया को तेज करना है.

जर्मन विदेश मंत्री अनालेना बेयरबॉकतस्वीर: Christoph Soeder/picture alliance/dpa

चीन और रूस के प्रभाव का डर

यूरोपीय आयोग ने पिछले हफ्ते बोस्निया हर्जगोविना को यूरोपीय संघ में शामिल होने के उम्मीदवार का दर्जा देने की अनुशंसा की थी. तुर्की, अल्बानिया, कोसोवो, मोंटेनेग्रो, उत्तरी मैसेडोनिया और सर्बिया के पास यह दर्जा पहले से ही मौजूद है. माना जा रहा है कि बोस्निया हर्जगोविना ने लोकतंत्र को मजबूत किया है और दूसरे कदम भी उठाये हैं. 

पश्चिमी बाल्कन के कुछ देशों का यूरोपीय संघ में शामिल होने के लिए इंतजार उन्हें निराशा की तरफ ले जा रहा है. कुछ आलोचकों का माना है कि इसमें होने वाली देरी से चीन और रूस को अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए जमीन मिल जायेगी.

आयोग का कहना है कि तुर्की के साथ ही पांच और पश्चिमी बाल्कन देशों के पास यूरोपीय संघ की उम्मीदवारी का दर्जा है. इन देशों को कानून के शासन, भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई और मीडिया की स्वतंत्रता की दिशा में कुछ और सुधार करना होगा.

एनआर/ओएसजे (डीपीए, रॉयटर्स)

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