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मोदी के तीसरे कार्यकाल के दुनिया के लिए मायने

५ जून २०२४

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीते दो कार्यकाल के दौरान अंतरराष्ट्रीय राजनीति में भारत ने अहम भूमिका निभाई है. अब तीसरे कार्यकाल में इस भूमिका को किस स्तर तक ले जा पाएंगे मोदी?

नरेंद्र मोदी
तीसरा चुनाव जीतने के बाद नरेंद्र मोदीतस्वीर: RAJAT GUPTA/EPA

73 वर्षीय नरेंद्र मोदी भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता के लिए पिछले दस साल से कोशिश कर रहे हैं. वह भारत को ग्लोबल साउथ के नेता की तरह पेश करते रहे हैं और खुद को उसके मुख्य प्रवक्ता की तरह. भले ही लोकसभा में उनका समर्थन कम हुआ हो लेकिन प्रधानमंत्री के तौर पर पांच और साल मिलने पर उनकी यह स्थिति और मजबूत हो सकती है क्योंकि वह वैश्विक नेताओं में काफी वरिष्ठ माने जाएंगे.

किंग्स कॉलेज लंदन में अंतरराष्ट्रीय संबंधों के प्रोफेसर हर्ष वी पंत कहते हैं, "वैश्विक मंच पर मोदी सबसे वरिष्ठ नेताओं में से होंगे. वह भी ऐसा नेता, जिसने तीन चुनाव जीते हैं. उन्होंने अपने और भारत के लिए बड़े लक्ष्य तय किए हैं और इसकी संभावना कम ही है कि वह अपनी विरासत से कोई समझौता करेंगे.”

पश्चिम के साथ फायदे की दोस्ती

कुछ विश्लेषकों का मानना है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत के साझीदार कम हैं, हितसाधक ज्यादा हैं. यही वजह है कि मानवाधिकार कार्यकर्ताओं द्वारा मोदी सरकार पर तानाशाही के आरोप लगाने के बावजूद पश्चिमी देश नरेंद्र मोदी को साथ खड़ा करते हैं. जैसे कि अमेरिका और यूरोप भारत को चीन का प्रभाव कम करने वाले एक देश के रूप में देखते हैं.

भारत क्वॉड संगठन का सक्रिय सदस्य है, जिसमें अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया भी हैं. इस संगठन को प्रशांत महासागर में चीन का बढ़ता प्रभाव रोकने वाली ताकत के रूप में देखा जाने लगा है. इस संगठन के सदस्य होने के नाते नरेंद्र मोदी को इन तीनों देशों में खासी तवज्जो मिलती है. पिछले साल अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने उन्हें ‘राजकीय मेहमान' के तौर पर वॉशिंगटन बुलाया था.

फरवरी में अमेरिका ने भारत को 4 अरब डॉलर के अत्याधुनिक ड्रोन्स बेचने के समझौते को मंजूरी दी थी. इसे अमेरिका द्वारा चीन के सामने भारत को एक बड़ी रक्षा ताकत बनाने की कोशिश के रूप में देखा गया.

यह तब हो रहा है जबकि अमेरिका और दुनिया के मानवाधिकार संगठनों ने लगातार मोदी सरकार पर अल्पसंख्यकों और मीडिया के अधिकारों का उल्लंघन करने के आरोप लगाए. इसके अलावा अमेरिका ने पिछले साल एक भारतीय नागरिक पर न्यूयॉर्क में अमेरिकी नागरिक की हत्या की साजिश रचने का भी मुकदमा दर्ज किया.

इसी तरह यूरोप के साथ भी भारत के संबंध खासकर रक्षा और व्यापार क्षेत्र में काफी मजबूत हुए हैं. मोदी के पिछले कार्यकाल में फ्रांस के साथ रफाएल लड़ाकू विमान और स्कॉर्पियन पनडुब्बियों का समझौता हुआ था.

दूसरी दुनिया से संबंध

भारत ने पश्चिमी देशों के साथ-साथ उनके विरोधियों से भी संबंध अच्छे बनाए रखे हैं. यूक्रेन युद्ध के दौरान भारत ने यह सुनिश्चित किया कि वह रूस के विरोध में ना बोले. बल्कि उसने रूस से जमकर तेल खरीदा.

चीन के साथ भारत के संबंधों में तनाव रहा है लेकिन कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत और चीन मिलकर खड़े रहे हैं. इनमें ब्रिक्स संगठन के अलावा शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन फोरम भी है. फिर भी, विश्लेषकों को लगता है कि मोदी के तीसरे कार्यकाल में भारत-चीन संबंधों में तनाव बढ़ सकता है.

भारत के पूर्व राजदूत जयंत प्रसाद कहते हैं कि रिश्ते और खराब हो सकते हैं. उन्होंने कहा, "अपने दोस्तों के साथ मिलकर भारत, चीन के दबदबे को कम करने की कोशिश करेगा.”

मोदी सरकार ने अफ्रीका में भारत की स्थिति को खासा मजबूत किया है. पिछले साल जब भारत में जी20 सम्मेलन हुआ तो अफ्रीकी संघ को उसकी स्थायी सदस्यता मिली थी. भारत ने इस बात को जोर देकर रखा था कि विकासशील देशों को अंतरराष्ट्रीय फैसलों में ज्यादा भूमिका मिलनी चाहिए.

मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल में पाकिस्तान के साथ संबंध किस ओर जाएंगे, यह एक बड़ा सवाल रहेगा. अपने पहले कार्यकाल में नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तान के साथ कई स्तर पर संपर्क किया था. 2015 में तो वह एकाएक लाहौर पहुंच गए थे, जिस पर काफी हैरत जताई गई थी. लेकिन 2019 के बाद से दोनों देशों के संबंध लगातार खराब होते गए.

हालांकि मार्च में जब पाकिस्तान में चुनाव हुए और शहबाज शरीफ वहां के प्रधानमंत्री बने तो नरेंद्र मोदी ने उन्हें बधाई दी थी, लेकिन यह औपचारिकता आगे बढ़कर संवाद और बातचीत तक जाएगी, इस पर अभी संदेह ही है.

वीके/एए (एएफपी)

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