रसायनिक हथियार, जिनके इस्तेमाल की आशंका रूस-यूक्रेन जता रहे
जुल्फिकार अबानी | रजत शर्मा
१७ मार्च २०२२
1997 में दुनिया के आठ देशों ने माना था कि उनके पास रासायनिक हथियार हैं. भारत भी उनमें से एक था. जानिए, कब-कब हो चुका है इन जानलेवा हथियारों का इस्तेमाल.
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एक कहावत है कि जंग का पहला शिकार सच्चाई होती है. बीते दिनों यूक्रेन युद्ध से जुड़ी ऐसी जानकारियां सामने आईं जिनकी सच्चाई का पता लगाना वाकई बेहद मुश्किल है. रूस के रक्षा मंत्रालय ने दावा किया कि यूक्रेन अपने ही लोगों पर रसायनिक हथियारों का इस्तेमाल करने की तैयारी में है और इल्जाम रूस पर लगाया जाएगा. रूस ने दावा किया कि अमेरिका इस काम में यूक्रेन का समर्थन कर रहा है.
यह दावा रूस के सरकारी मीडिया और सोशल मीडिया तक पहुंचा तो अपुष्ट दावे के आधार पर कयासबाजी होने लगी. ऐसे दावे होने लगे कि यूक्रेन और उसके सहयोगी देश रूस और रूसी सेना के खिलाफ रासायनिक या जैविक हथियार तैयार कर रहे हैं. जवाब में अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने रूस के इल्जामों को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि कहा कि रूस के इल्जाम 'सफेद झूठ' हैं. मंत्रालय ने कहा, "अमेरिका की यूक्रेन में कोई भी केमिकल या बायोलॉजिकल लैब नहीं है और ना ही कोई लैब संचालित करता है. रूस का इतिहास रहा है कि वह जो अपराध खुद कर रहा होता है, उसका इल्जाम पश्चिम पर लगा देता है." यूक्रेन युद्ध में अब तक रासायनिक हथियार के इस्तेमाल की जानकारी सामने नहीं आई है.
कितने परमाणु हथियार हैं दुनिया में और किसके पास
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने यूक्रेन पर हमले के तीन दिन बाद ही परमाणु हथियारों को भी हाई अलर्ट पर रखने का हुक्म दिया. रूस के पास कुल कितने परमाणु हथियार हैं. रूस के अलावा दुनिया में और कितने परमाणु हथियार है?
तस्वीर: AP Photo/picture-alliance
कितने परमाणु हथियार
स्टॉकहोम अंतरराष्ट्रीय शांति शोध संस्थान यानी सीपरी हर साल दुनिया भर में हथियारों के बारे में रिपोर्ट तैयार करती है. सीपरी के मुताबिक 2021 की शुरुआत में दुनिया भर में कुल 13,080 परमाणु हथियार मौजूद थे. इनमें से 3,825 परमाणु हथियार सेनाओं के पास हैं और 2,000 हथियार हाई अलर्ट की स्थिति में रखे गए हैं, यानी कभी भी इनका उपयोग किया जा सकता है. तस्वीर में दिख रहा बम वह है जो हिरोशिमा पर गिराया गया था.
तस्वीर: AFP
किन देशों के पास है परमाणु हथियार
सीपरी के मुताबिक दुनिया के कुल 9 देशों के पास परमाणु हथियार हैं. इन देशों में अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस, चीन, भारत, पाकिस्तान, इस्राएल और उत्तर कोरिया के नाम शामिल हैं. दुनिया में परमाणु हथियारों की कुल संख्या में कमी आ रही है हालांकि ऐसा मुख्य रूप से अमेरिका और रूस के परमाणु हथियारों में कटौती की वजह से हुआ है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
उत्तर कोरिया
डेमोक्रैटिक पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ कोरिया यानी उत्तर कोरिया ने 2006 में पहली बार नाभिकीय परीक्षण किया था. वर्तमान में उसके पास 40-50 परमाणु हथियार होने का अनुमान है.
तस्वीर: KCNA/KNS/AP/picture alliance
इस्राएल
इस्राएल ने पहली बार नाभिकीय परीक्षण कब किया इस बारे में कोई जानकारी नहीं है. फिलहाल इस्राएल के पार 90 परमाणु हथियार होने की बात कही जाती है. इस्राएल ने भी परमाणु हथियारों की कहीं तैनाती नहीं की है. तस्वीर में शिमोन पेरेज नेगेव न्यूक्लियर रिसर्च सेंटर नजर आ रहा है. इस्राएल ने बहुत समय तक इसे छिपाए रखा था.
तस्वीर: Planet Labs Inc./AP/picture alliance
भारत
भारत के परमाणु हथियारों के जखीरे में कुल 156 हथियार हैं जिन्हें रिजर्व रखा गया है. अब तक जो जानकारी है उसके मुताबिक भारत ने परमाणु हथियारों की तैनाती नहीं की है. भारत ने पहली बार नाभिकीय परीक्षण 1974 में किया था.
तस्वीर: Indian Defence Research and Development Organisation/epa/dpa/picture alliance
पाकिस्तान
भारत के पड़ोसी पाकिस्तान के पास कुल 165 परमाणु हथियार मौजूद हैं. पाकिस्तान ने भी अपने परमाणु हथियारों की तैनाती नहीं की है और उन्हें रिजर्व रखा है. पाकिस्तान ने 1998 में पहली बार नाभिकीय परीक्षण किया था.
तस्वीर: AP
ब्रिटेन
ब्रिटेन के पास मौजूद परमाणु हथियारों के जखीरे में कुल 225 हथियार है. इनमें से 120 परमाणु हथियारों को ब्रिटेन ने तैनात कर रखा है जबकि 105 हथियार उसने रिजर्व में रखे हैं. ब्रिटेन ने पहला बार नाभिकीय परीक्षण 1952 में किया था. तस्वीर में नजर आ रही ब्रिटेन की पनडुब्बी परमाणु हथियारों को ले जाने में सक्षम है.
तस्वीर: James Glossop/AFP/Getty Images
फ्रांस
फ्रांस ने 1960 में पहली बार नाभिकीय परीक्षण किया था और फिलहाल उसके पास 290 परमाणु हथियार मौजूद हैं. फ्रांस ने 280 परमाणु हथियारों की तैनाती कर रखी है और 10 हथियार रिजर्व में रखे हैं. यह तस्वीर 1971 की है तब फ्रांस ने मुरुरोआ एटॉल में परमाणउ परीक्षण किया था.
तस्वीर: AP
चीन
चीन ने 1964 में पहली बार नाभिकीय परीक्षण किया था. उसके पास कुल 350 परमाणु हथियार मौजूद हैं. उसने कितने परमाणु हथियार तैनात किए हैं और कितने रिजर्व में रखे हैं इसके बारे में जानकारी उपलब्ध नहीं है.
तस्वीर: Zhang Haofu/Xinhua/picture alliance
अमेरिका
परमाणु हथियारों की संख्या के लिहाज से अमेरिका फिलहाल दूसरे नंबर पर है. अमेरिका ने 1,800 हथियार तैनात कर रखे हैं जबकि 2,000 हथियार रिजर्व में रखे गए हैं. इनके अलावा अमेरिका के पास 1,760 और परमाणु हथियार भी हैं. अमेरिका ने 1945 में पहली बार नाभिकीय परीक्षण किया था.
तस्वीर: Jim Lo Scalzo/EPA/dpa/picture alliance
रूस
वर्तमान में रूस के पास सबसे ज्यादा 6,255 परमाणु हथियार हैं. इनमें से 1,625 हथियारों को रूस ने तैनात कर रखा है. 2,870 परमाणु हथियार रूस ने रिजर्व में रखे हैं जबकि दूसरे परमाणु हथियारों की संख्या 1,760 है. रूस के हथियारों की संख्या 2020 के मुकाबले थोड़ी बढ़ी है. रूस ने 1949 में परमाणु हथियार बनाने की क्षमता हासिल की थी.
तस्वीर: AP Photo/picture-alliance
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क्या हैं रासायनिक या जैविक हथियार
रासायनिक हथियारों में रसायनों का इस्तेमाल किया जाता है जो किसी भी इंसान के नर्वस सिस्टम (तंत्रिका तंत्र) और श्वसन तंत्र को नुकसान पहुंचाते हैं. आम तौर पर यह जानलेवा होते हैं. रासायनिक हथियारों के भी कुछ प्रकार हैं.
नर्व एजेंट- इन्हें सबसे जानलेवा रासायनिक हथियार माना जाता है. ये द्रव या गैसीय अवस्था में हो सकते हैं और इन्हें सांस या त्वचा के जरिये शरीर में पहुंचाया जाता है. इससे नर्वस सिस्टम को भारी क्षति पहुंचती है और जान चली जाती है. सेरीन, सोमान और वीएक्स ऐसे ही कुछ नर्व एजेंट हैं.
ब्लिस्टर एजेंट- यह गैस, एयरोसॉल या तरल अवस्था में इस्तेमाल किए जाते हैं. इनसे त्वचा बुरी तरह जल जाती है और बड़े छाले पड़ जाते हैं. अगर यह सांस के रास्ते शरीर में जाए तो श्वसन तंत्र बुरी तरह प्रभावित होता है. सल्फर मस्टर्ड, नाइट्रोजन मस्टर्ड और फोसजीन ओक्सीमाइन इसके कुछ चर्चित उदाहरण हैं.
चोकिंग एजेंट- यह भी श्वसन तंत्र को प्रभावित करते हैं. यह दमघोंटू होते हैं. फोसजीन, क्लोरीन और क्लोरोपिक्रिन जैसे केमिकल इस श्रेणी में आते हैं.
ब्लड एजेंट- इस तरह के केमिकल शरीर में ऑक्सीजन के प्रवाह को कम करते हैं. हाइड्रोजन क्लोराइड ऐसा ही ब्लड एजेंट है.
रॉयट एजेंट- आंसू गैस का गोला इस श्रेणी में आता है. इनसे आंखें जलती हैं और सांस लेने की तकलीफ होती है. कई देशों में प्रदर्शनकारियों को काबू करने के लिए पुलिस या सुरक्षाबल इसका इस्तेमाल करते हैं. ज्यादा देर तक इसके संपर्क में रहना जानलेवा साबित हो सकता है.
ये देश खरीदते हैं सबसे ज्यादा हथियार
स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (सिप्री) की सालाना रिपोर्ट बताती है कि बीते पांच साल में दुनियाभर में सबसे ज्यादा हथियार भारत और सऊदी अरब ने खरीदे. देखिए, कौन से देश हैं सबसे बड़े खरीददार...
सिप्री की रिपोर्ट के मुताबिक भारत और सऊदी अरब दुनिया के सबसे ज्यादा हथियार खरीदते हैं. इन्होंने 2016 से 2020 के बीच कुल बिके हथियारों का 11-11 प्रतिशत हिस्सा खरीदा है. हालांकि 2012-16 के मुकाबले भारत का आयात 21 प्रतिशत घटा है.
तस्वीर: U.S. Navy/Zuma/picture alliance
सऊदी अरब
2012-16 के मुकाबले बीते पांच साल में सऊदी अरब में हथियारों का आयात 27 प्रतिशत बढ़ा है और यह दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा हथियार आयातक बना हुआ है.
तस्वीर: Jon Gambrell/AP/picture alliance
मिस्र, दूसरे नंबर पर
सिप्री में मिस्र को दूसरे नंबर पर रखा गया है जिसने कुल हथियार आयात का 5.7 प्रतिशत हिस्सा खरीदा. पिछले पांच साल में उसने 2012-16 के मुकाबले 73 प्रतिशत ज्यादा हथियार खरीदे हैं.
हाल ही में अमेरिका और ब्रिटेन से पनडुब्बी समझौता करने वाला ऑस्ट्रेलिया 5.4 प्रतिशत हथियार खरीदकर तीसरे नंबर पर है.
तस्वीर: Amanda R. Gray/U.S. Navy via AP/picture alliance
चीन
सिप्री की रिपोर्ट कहती है कि चीन अब खुद हथियार बनाने में बहुत प्रगति कर चुका है लेकिन तब भी वह दुनिया के कुल आयात का 4.8 प्रतिशत खरीद रहा है. चीन ही एकमात्र ऐसा देश है जो हथियार बेचने वालों में भी पांचवें नंबर पर है.
तस्वीर: Yang Pan/Xinhua/picture alliance
म्यांमार का आयात घटा
बीते पांच साल में म्यांमार की हथियार खरीद 32 प्रतिशत कम हो गई है. उसके पास कुल आयात का सिर्फ 0.6 प्रतिशत हिस्सा गया.
तस्वीर: Yirmiyan Arthur/AP Photo/picture alliance
इस्राएल का आयात बढ़ा
2012-16 से तुलना की जाए तो इस्राएल ने बीते पांच साल में 19 प्रतिशत ज्यादा हथियार खरीदे हैं.
तस्वीर: Rafael Ben-Ari/Chameleons Eye/Newscom/picture alliance
ताइवान का आयात घटा
चीन के साथ संबंधों में तनाव झेल रहे ताइवान का आयात बीते पांच साल में तो 68 प्रतिशत घट गया है लेकिन आने वाले सालों में उसकी हथियार खरीद में बड़ी वृद्धि की संभावना जताई गई है.
तस्वीर: Daniel Ceng Shou-Yi/ZUMAPRESS.com/picture alliance
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जैविक हथियारों में वायरस, बैक्टीरिया, फंगी जैसे सूक्ष्म जीवों को हथियार की तरह इस्तेमाल किया जाता है. यह बेहद खतरनाक साबित हो सकता है क्योंकि आमतौर पर शुरुआत में इसका पता लगा पाना आसान नहीं होता. जब तक दूसरा पक्ष संभलता है, तब तक उनके स्वास्थ्य और सामुदायिक व्यवस्था को भारी नुकसान पहुंच चुका होता है. एंथ्रैक्स, बोटुलिनम और प्लेग, इबोला और लासा वायरस इसके कुछ उदाहरण है. इस तरह के जैविक हथियार इंसान, जानवरों और पेड़-पौधों की नस्लों का सफाया करने में सक्षम हैं.
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किसके पास हैं यह हथियार
ऐसा कहा जाता है कि रासायनिक और जैविक हथियारों का सबसे बड़ा जखीरा शीत युद्ध के दौरान जमा किया गया था. दो बड़े देश, जिनके पास यह हथियार थे, वो थे अमेरिका और सोवियत रूस. आज क्या स्थिति है, यह कहना थोड़ा मुश्किल है. अमेरिका के आर्म्स कंट्रोल एसोसिएशन के मुताबिक, साल 1997 में केमिकल वेपन कन्वेंशन हुई. इस पर दस्तखत करने वाले आठ देशों ने जानकारी दी कि उनके पास कितने ऐसे हथियार हैं. यह देश थे, अल्बानिया, भारत, इराक, लीबिया, सीरिया, अमेरिका, रूस और एक अज्ञात देश, जिसका नाम कभी बाहर नहीं आया.
अमेरिका के अलावा सभी देशों ने अपने घोषित जखीरे को नष्ट कर दिया है. अमेरिका आज भी योजना बना रहा है. हालांकि केमिकल हथियार नष्ट करने के सीरिया के दावे पर लगातार सवाल उठते रहे हैं. केमिकल हथियारों से जुड़े मामलों की देखरेख के लिए बनी अंतरराष्ट्रीय संस्था- ऑर्गेनाइजेशन फॉर द प्रोहिबिशन ऑफ केमिकल वीपंस (ओपीसीडब्ल्यू) सीरिया के दावों पर शक जताता रहा है.
यूक्रेन के लिए हथियार उठाने वाले स्पोर्ट्स स्टार
यूक्रेन के कई जानेमाने खिलाड़ी सेना में भर्ती हो गए हैं. इनमें से कोई वर्ल्ड चैंपियन है तो कोई रिटायर होकर कोच बन चुका है. देखिए, कौन-कौन है इस फेहरिस्त में...
तस्वीर: imago sportfotodienst
दमित्रो पिडरूचनी (बायाथलॉन)
2022 के बीजिंग ओलंपिक से लौटकर दमित्रो पिडरूचिनो नैशनल गार्ड में भर्ती हो गए हैं. 30 साल के दमित्रो पूर्व यूरोपीय बायथलीट चैंपियन हैं और दो बार ओलंपिक खेल चुके हैं.
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विटाली क्लिश्को (बॉक्सर)
यूक्रेन के सबसे मशहूर खिलाड़ियों में से एक विटाली वर्ल्ड हेवीवेट चैंपियन मुक्केबाज हैं. वह 2014 से कीव के मेयर हैं. 50 साल के विटाली ने कहा है कि वह अपनी मातृभूमि के लिए हथियार उठाने को तैयार हैं.
तस्वीर: FABIAN BIMMER/REUTERS
व्लादिमीर क्लिश्को (बॉक्सर)
विटाली के भाई व्लादिमीर क्लिश्को 1996 में ओलंपिक में गोल्ड जीत चुके हैं. पेशेवर मुक्केबाजी में भी उनकी खूब धाक रही है. 2016 में संन्यास लेने वाले 45 साल के व्लादिमीर अब यूक्रेन की सेना में भर्ती हो गए हैं.
तस्वीर: Efrem Lukatsky/AP Photo/picture alliance
सर्गेय स्टाचोवस्की (टेनिस)
पूर्व टेनिस खिलाड़ी स्टाचोवस्की ने 2013 में विंबलडन ओपन के दूसरे दौर में रॉजर फेडरर को हराकर तहलका मचा दिया था. तब उनकी विश्व रैंकिंग 116 थी. अब 35 साल के हो चुके स्टाचोवस्की ने सेना में भर्ती होकर हथियार उठा लिए हैं.
तस्वीर: JB Autissier/PanoramiC/imago images
ओलेक्सांद्र उसिक (बॉक्सर)
उसिक पेशेवर हेवीवेट बॉक्सिंग चैंपियन हैं. 2012 के ओलंपिक में गोल्ड जीतने वाले उसिक ने अपने देश की रक्षा के लिए सेना में भर्ती होने का फैसला किया है. उन्होंने कहा, “मैं गोली नहीं चलाना चाहता. मैं किसी की हत्या नहीं करना चाहता. लेकिन मेरे पास कोई विकल्प नहीं है.”
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ओले लुजनी (फुटबॉल)
इस सदी की शुरुआत में प्रीमियर लीग और एफए कप जैसी प्रतिष्ठित प्रतियोगितों में खेल चुके ओले लुजनी अब 53 वर्ष के हैं. सेना में भर्ती होते वक्त उन्होंने कहा, “हालात भयानक हैं. मैं कोच के रूप में ब्रिटेन जाना चाहता हूं लेकिन बाकी सबसे पहले मैं अपने लोगों के लिए, अपने देश और लोकतंत्र के लिए मजबूती से खड़ा होना चाहता हूं.”
तस्वीर: Chris Lobina/Getty Images
वासिली लोमाचेंको (बॉक्सिंग)
यूक्रेन के महानतम मुक्केबाजों में से एक माने जाने वाले लोमाचेंको ने दिसंबर में ही अपना एक मैच खेला था जिसमें उन्होंने रिचर्ड कॉमी को हराया था. 34 साल के लोमाचेंको अब सेना में भर्ती हो गए हैं.
तस्वीर: Sarah Stier/Getty Images
यूरी वेर्नीदूब (फुटबॉल)
वेर्नीदूब एक फुटबॉल कोच हैं. उन्होंने मोल्डोवा के क्लब शेरिफ तिरासपोल को कोच किया है जो रियाल मैड्रिड को हरा चुकी है. 56 साल के यूरी खुद भी बेहतरीन मिडफील्डर रह चुके हैं. रूस के क्लब जेनित सेंट पीटर्सबर्ग के लिए खेल चुके यूरी अब बंदूक उठा रहे हैं.
तस्वीर: Pavlo Bahmut/Ukrinform/imago images
यारोस्लाव अमोसोव (एमएमए)
मिक्स्ड मार्शल आर्ट खिलाड़ी अमोसोव वेल्टरवेट चैंपियन हैं. 28 साल के अमोसोव को मई में माइकल पेज के खिलाफ मैच खेलना है. लेकिन उससे पहले वह अपने देश के लिए लड़ना चाहते हैं और सेना में भर्ती हो गए हैं.
तस्वीर: imago sportfotodienst
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रसायनिक और जैविक हथियारों के इस्तेमाल का इतिहास
अंतरराष्ट्रीय नियमों के हिसाब से केमिकल और बायोलॉजिकल हथियारों का इस्तेामल प्रतिबंधित है. साल 1925 में तय हुए जिनेवा प्रोटोकॉल में तय किया गया था कि किसी भी अंतरराष्ट्रीय सैन्य गतिरोध या युद्ध में रासायनिक या जैविक हथियारों का इस्तेमाल नहीं किया जाएगा. लेकिन इस कन्वेंशन से पहले और बाद में भी केमिकल हथियारों का इस्तेमाल होता रहा है.
पुरातात्विक साक्ष्यों से संकेत मिलता है कि सदियों पहले प्राचीन फारस और रोमन सेनाओं के युद्ध में बिटुमिन और सल्फर के क्रिस्टलों का इस्तेमाल हुआ था.
कहा जाता है कि साल 1347 में मुगलों ने प्लेग से संक्रमित शरीरों का इस्तेमाल काले सागर के बंदरगाह पर किया था. 1710 में रूसी सेना ने भी रवाल (मौजूदा टालिन, एस्टोनिया) में इसी तरह हमला किया था. 1763 में ब्रिटेन की फौज ने चेचक से संक्रमित कंबल अमेरिकी इंडियन आबादी में बांट दिए थे, जिससे महामारी फैल गई थी.
1845 में फ्रांस ने अल्जीरिया के बेरबेर कबीले के खिलाफ धुएं वाले केमिकल हथियारों का इस्तेमाल किया था. अमेरिकी गृह युद्ध में गुब्बारों के जरिये जहर के कनस्तर गिराए गए थे.
आधुनिक लड़ाइयों में क्लोरीन, फोसजीन और मस्टर्ड गैस का इस्तेमाल पहले विश्व युद्ध के दौरान किया गया है. अमेरिका ने वियतनाम युद्ध में एजेंट ऑरेंज का इस्तेमाल किया था. यह एक तरह का खरपतवार नाशक था. इसमें ऐसे केमिकल थे कि लड़ाई के दशकों बाद तक वियतनाम के इस हिस्से में बच्चे अपंगता के साथ पैदा हुए और कई लोगों की मौत कैंसर से हुई.
हाल के युद्धों में रासायनिक हथियारों का इस्तेमाल
हथियारों के विशेषज्ञों ने ऐसे सबूत जुटाए हैं, जिससे पता चलता है कि इराकी तानाशाह सद्दाम हुसैन ने 1980 के दशक में ईरान से हुए संघर्ष में केमिकल हथियारों का इस्तेमाल किया था. इसके अलावा अपनी ही कुर्द आबादी के खिलाफ 1988 में सारीन, टाबुन और सल्फर मस्टर्ड जैसे केमिकल इस्तेमाल किए थे.
हाल के दशक में सीरिया पर रासायनिक हथियार इस्तेमाल करने का आरोप लगा है. सीरिया में चल रहे गृह युद्ध में होम्स, अलेप्पो और दमिश्क में यह हथियार इस्तेमाल किए जाने की जानकारी सामने आती रही है. हालांकि ओपीसीडब्ल्यू के आरोपों को सीरिया लगातार खारिज करता रहा है.
साल 1675 में हुए स्ट्रासबुर्ग समझौते के बाद से केमिकल और बायोलॉजिकल हथियारों को सीमित करने और उत्पादन पर रोक लगाने की कोशिश की जा रही है. बावजूद इसके, यह हथियार आज भी दुनिया में हैं. 2019 में जब चीन से कोविड-19 के मामले सामने आने शुरू हुए तो फिर से जैविक हथियारों के बारे में चर्चा होने लगी थी. हालांकि कोविड-19 को बायोलॉजिकल हथियार बताने का कोई भी सबूत आज तक सामने नहीं आया है. यूक्रेन युद्ध में भी दोनों पक्षों की ओर से रासायनिक हथियारों के इस्तेमाल की आशंका लगातार जताई जा रही है.